नाम – रेणु बाला
पद – विधायक
(कांग्रेस), साढौरा विधानसभा (हरियाणा)
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हरियाणा की
साढौरा विधानसभा सीट से विधायक रेणु बाला हरियाणा की 14वीं विधानसभा से सदस्या और
साढौरा की पहली महिला विधायक हैं. कांग्रेस पार्टी से चुनावों में उतरते हुए
उन्होंने वर्ष 2019 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के बलवंत सिंह को
17,020 वोटों के बड़े अंतर से हराकर जीत दर्ज की है.

रेणु बाला के
राजनीतिक जीवन की शुरुआत हालांकि भाजपा से ही हुयी थी, उन्होंने 2016 में वार्ड 8 से जिले परिषद चुनावों में हासिल कर जिला परिषद
चेयरपर्सन का पद प्राप्त किया था. लेकिन साढौरा विधानसभा सीट से विधायक चुनावों में
भाजपा से उन्हें टिकट नहीं मिला. जिसके चलते उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया
और हरियाणा कांग्रेस कमेटी की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा के खास लोगों में अपनी
पहचान बनाई. जिसके चलते साढौरा विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने का अवसर उन्हें दिया
गया.

साढौरा विधानसभा
सीट के गठन के बाद से ही यहां से आज तक कोई भी महिला विधायक नहीं रही है, 1982 में यहां प्रथम बार बाली देवी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें मात्र 207 वोट ही मिला पाए थे. इसके बाद 1997 में भी निर्दलीय
प्रकाश कौर चुनावों में उतरी और 681 वोट प्राप्त किये. यही हाल यहां अन्य महिला
प्रत्याशियों का भी रहा. हालांकि 2014 के चुनावों में यहां इनेलो की प्रत्याशी
पिंकी छप्पर रनरअप रही और उन्हें तकरीबन 49,000 वोट मिले थे.

जिसके बाद वर्ष
2019 में रेणु बाला ने साढौरा विधानसभा सीट पर इतिहास रचते हुए विधायक पद की जिम्मेदारी
संभाली. यहां उनकी इस विजय को अप्रत्याशित कहा जा सकता हैं क्योंकि भाजपा की
स्थिति यहां बेहद मजबूत मानी जाती है. लेकिन रेणु बाला ने न केवल बीजेपी को यहां
धराशायी किया अपितु यहां की महिलाओं ने सामने राजनीतिक करियर में विकल्प होने का
उदहारण भी पेश किया.

गौरतलब है कि
साढौरा विधानसभा क्षेत्र अंबाला लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है और भौगोलिक
तौर पर यह हरियाणा के यमुनानगर जिले में शामिल है. 42 वर्ष पूर्व गठित हुए इस
विधानसभा क्षेत्र में प्रथम चुनाव 1977 में आयोजित कराये गए थे और तब यहां से जनता
पार्टी के राजनेता भागमल विधानसभा पहुंचे थे. यमुनानगर जिले के कईं सरकारी विभागों
के कार्यालय साढौरा में होने के कारण यह राजनैतिक तौर पर काफी अहम माना जाता है.

प्राकृतिक और
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी साढौरा का महत्व काफी अधिक है. कहा जाता है शिवालिक की
तलहटी में बसे इस कस्बे का इतिहास 400 वर्ष से भी पुराना है, जिसके साक्षी यहां स्थित तोरावालां तालाब के किनारे बने प्राचीन लक्ष्मीनारायण
मंदिर के भित्ति चित्र हैं. नकाती नदी के किनारे बसे इस क्षेत्र को कभी साधु हारा
के नाम से जाना जाता था, जो बदलते समय के साथ साढौरा हो गया.

साढौरा में हर धर्म का इतिहास देखने को मिलता है. यहां यदि एक ओर सनातनी धर्म से जुड़े प्राचीन मंदिरों के दर्शन होते हैं, तो वहीं दूसरी ओर यहां मुगलकालीन इतिहास का झरोखा दिखाती मस्जिदें भी हैं. साथ ही सिख समुदाय के लोगों के लिए भी यह क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है, जिसका कारण यहां गुरुद्वारा ढयोढ़ी साहिब का होना है, कच्चा किला में स्थापित यह गुरुद्वारा बाबा बंदा बहादुर सिंह की वीरता के किस्से कहता है.

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