नाम : रवींद्र सिंह कुशवाहा
पद : सामाजिक कार्यकर्त्ता, कानपुर
नवप्रवर्तक कोड : 71183011
सामाजिक कार्य -
रवीन्द्र सिंह कुशवाहा अपने संगठन के माध्यम से कई जागरूकता रैलियों का आयोजन करते रहते हैं. जिसके अंतर्गत वह जन- जन को जागरूक करने के लिए ‘नशामुक्ति’ रैलियों का भी आयोजन करते हैं, जिसके तहत युवाओं व बुजुर्गों को यह सन्देश दिया जाता है कि राष्ट्र सेवा के लिए राष्ट्र के लोगों का स्वस्थ होना आवश्यक है तथा नशीले पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं. अतः नशीले पदार्थों से दूर रहें. इसके अलावा उनका संगठन धार्मिक संस्थानों व धार्मिक कार्यक्रमों में भी सहयोग देता है तथा ऐसे कार्यक्रमों में जाकर भी लोगों को नशामुक्ति के लिए जागरूक किया जाता है. इसके अलावा बुजुर्गों को भी यह सन्देश दिया जाता है कि वह अपने ज्ञान व अनुभव से समाज को कुछ देकर जायें.
भावी परियोजना –
रवींद्र सिंह कुशवाहा लोगों में राष्ट्रभक्ति कि भावना जागृत करने के लिए कार्य करते रहते हैं तथा वह चाहते हैं कि जिस तरह से देश में होली, दीपावली, ईद आदि सांस्कृतिक पर्व मनाएं जाते हैं, ठीक उसी प्रकार से व उसी उत्साह के साथ राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस भी मनाएं जायें. लोगों में जाति-धर्म के बजाय राष्ट्रवाद की भावना जगे तथा हर घर में तिरंगा फहरता हुआ नजर आये.
बाधाएं –
विभिन्न जागरूकता रैलियों का आयोजन करते समय रवींद्र सिंह कुशवाहा के मार्ग में सबसे बड़ी बांधा आई लोगों का जाति समीकरणों में बंटे होना. प्रारम्भ में गांव के लोग जल्दी जागरूकता अभियानों पर विश्वास नहीं करते व आवश्यक सहयोग नहीं देते थे, किन्तु उन्होंने धीरे- धीरे हर जाति व वर्ग के लोगों को विभिन्न रैलियों के माध्यम से जोड़ने का कार्य किया.
नीति परिवर्तन पर विचार –
नीति परिवर्तन के
सम्बन्ध में रवींद्र सिंह कुशवाहा का मानना है कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी
धर्मों के लोग एक- दूसरे का व एक- दूसरे के माता – पिता को सम्मान दें. सभी भारतीय चाहें वह किसी भी धर्म
के हों इस जातिवाद व धर्मवाद के बन्धनों से बाहर निकलकर भारतमाता कहे जाने वाले इस
देश कि सभी माताओं को सम्मान दें.
सामाजिक –
परिवर्तन पर विचार – एक समाज सेवक के
रूप में सामाजिक- परिवर्तन पर उनके विचार हैं कि देश से जाति समीकरण खत्म होना
चाहिए. सभी धर्मों व जातियों के लोग एक- दूसरे के माता- पिता को सम्मान दें तभी
सभी संगठन एक- दूसरे के साथ कंधे से कन्धा मिलकर खड़े होंगें तथा तभी एक भेदभाव
रहित समाज का निर्माण संभव हो सकेगा.