नाम - पुष्पेन्द्र भाई
पद - प्रगतिशील किसान, बाँदा (बुंदेलखंड)
नवप्रवर्तक कोड - 71182046
कृषि पद्धति को प्रकृति के सबसे अनुपम देन समझते हुए, किसानी के प्रगतिशील स्वरुप को उन्नत करने में अग्रणी किसान पुष्पेन्द्र भाई बुंदेलखंड के बाँदा जनपद के रहने वाले हैं. भारतीय कृषि पद्धति को आधुनिक तकनीकों के साथ जोड़ने और आवर्तनशील कृषि प्रणाली के माध्यम से किसानों को विकासशील कृषि की ओर उन्मुख करने की दिशा में पुष्पेन्द्र भाई विगत कईं वर्षों से प्रयासरत हैं.
बुंदेलखंड, जिसे वस्तुतः एक सूखाग्रस्त भू-भाग के तौर पर जाना जाता है और जहाँ कृषि पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर करती है. ऐसे क्षेत्र में भी उन्नत कृषि की संकल्पना के साथ कार्य करना अपने आप में अनूठा प्रयास है एवं पुष्पेन्द्र भाई एक प्रखर पर्यावरण प्रहरी के समान किसानों को सूखे की समस्या से निजात दिलाने के लिए “अपना तालाब अभियान” के संयोजक की अहम भूमिका का वहन करते हुए नए तालाबों के निर्माण एवं पुराने तालाबों के जीर्णोद्धार की दिशा में वें निरंतर कार्य कर रहे हैं.
बाँदा में जनहित निहितार्थ गहराते महाजलसंकट से बचाव के लिए और किसानों की कृषि उत्पादकता बढ़ाने के संबंध में श्रृंखलाबद्ध तालाबों का निर्माण करने के संसर्ग में पुष्पेन्द्र भाई अक्सर अधिकारियों से पत्र व्यवहार भी करते रहते हैं. वर्ष 2018 में जिलाधिकारी का ध्यान इस समस्या की ओर दिलाने के संदर्भ में उन्होंने “इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बेस्ड रेनवाटर हार्वेस्टिंग मॉडल” के द्वारा जनपद को जल संकट से उभारने का मुद्दा रखा.
वर्ष 2013 में पुष्पेन्द्र भाई केन-बेतवा गठजोड़ के विरोध में जन-अभियान के अंतर्गत सहभागीदारी की और ग्राम स्वराज्य प्रभारी प्रशिक्षण संस्थान के सहयोग में अन्य किसानों के साथ विरोध प्रदर्शन किया. एक जागरूक किसान के रूप में वें जैविक कृषि को बहुलता देते हुए प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह जी के साथ मिलकर किसानों को प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से जैविक एवं आवर्तनशील कृषि तकनीकों की जानकारी देते हैं. पुष्पेन्द्र भाई आवर्तनशील कृषि के पुरजोर समर्थक हैं और कृषकों को प्रौद्योगिकी टेक्नोलॉजी के माध्यम से जैविक कृषि की आधुनिकतम तकनीकों से कृषि उत्पादन में वृद्धि के जरिये किसानों के विकास में योगदान दे रहे हैं.
पुष्पेन्द्र भाई भारतीय खेती में क्राफ्ट डिजाइनिंग
के स्थान पर फार्म डिजाइनिंग (आवर्तनशील कृषि) को वरीयता देते हुए कृषि पद्धति को
मानव शरीर के रूप में देखते हैं, उनका मानना है कि..
“जिस तरह मानव शरीर को स्वस्थ रहने के लिए संतुलित आहार की आवश्यकता होती है, उसी तरह पेड़-पौधों को पानी और जैविक खादों की जरूरत होती है. यदि शरीर कमजोर हो तो बीमारियों की संभावना भी अधिक होती है, ठीक इसी तरह यदि पौधे कमजोर हों तो उनमें कीट-पतंगें, खरपतवार लगने और तमाम तरह के रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती है.”
वैश्विक परिद्रश्य के अंतर्गत देश में निरंतर बढते पर्यावरण प्रदूषण, कुपोषण, बेरोजगारी आदि की समस्याओं पर अपने विचार रखते हुए पुष्पेन्द्र भाई का कहना है कि वर्तमान में लोकतंत्र के कर्ता-धर्ता जाति-धर्म और दलगत राजनीति से आगे बढ़कर कुछ भी नहीं देखते हैं. इन निरंतर गहराती समस्याओं का समाधान निकलना अत्यंत आवश्यक है, जिससे भावी पीढ़ी को शुद्ध पेयजल, स्वच्छ वायु, खाने योग्य अन्न और जीने योग्य धरती-आसमान उपलब्ध हो सके और यह तभी संभव है, जब किसानी को राष्ट्रीय कार्य माना जाये.
किसानों के उन्नयन की दिशा में पुष्पेन्द्र भाई का
मानना है कि,
“किसान के पास अपनी खाद, अपना बीज, अपना पानी, अपनी ऊर्जा और स्वयं अपने विचार होने आवश्यक हैं, तभी देश सभी समस्याओं का बखूबी सामना कर पाने में समर्थ होगा और प्रगति की ओर अग्रसर होगा.”