प्रोफेसर मनोज कुमार
प्रोफेसर मनोज कुमार बेहद ही सरल और सहृदय व्यक्तित्व वाले इंसान
हैं। मनोज जी गांधीवादी विचारक, सामाजिक
कार्यकर्ता और साथ ही शिक्षक भी हैं।
आपने वर्ष 1974 के दौरान बिहार के बांका
जिले से छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया। उसी दौरान आप दो बार जेल भी गए। 1989 के भागलपुर में हुए सांप्रदायिक दंगे के बाद मनोज जी ने शांति
सद्भावना स्थापना में अपना योगदान दिया। उसके बाद वर्ष 1990 से
वर्ष 2005 तक आप गांधी शांति प्रतिष्ठान, भागलपुर में बतौर सचिव पद पर रहकर अपने सामाजिक योगदान को और आगे
बढ़ाया। मनोज जी ने विभिन्न संस्थान जैसे समन्वय समिति, केंद्रीय
शांति सद्भावना समिति आदि में विभिन्न पदों पर रहते हुए कार्य किया। वर्ष 2000 के दौरान जब भयंकर बाढ़ आई तो उस दौरान भी मनोज जी ने कपाट से और
जर्मनी की एक संस्था के सहयोग से 1500
लोगों के रिलीफ, रिहैबिलिटेशन और लो कॉस्ट हाउसिंग का
काम करवाया।
उन्होंने इसके साथ रिवर ट्रेडिशनल इरिगेशन सिस्टम का भी अध्ययन किया
और फिर स्वराज नामक संस्थान के साथ मिलकर कोसी कंसोडियम, गंडक
और गंगा के लिए बिहार में काम किया। इसके अलावा उन्होंने गांधी पीस सेंटर के साथ
मिलकर 1991 से 1994 तक
स्टेट कोऑर्डिनेटर के तौर पर कार्य किया है।
1974 में हुए छात्र आंदोलन के दौरान
इंटरमीडिएट की पढ़ाई में भले ही रुकावट आई हो मगर 1980 के
दौरान उन्होंने तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय जहां से पूरे हिंदुस्तान में
सबसे पहली बार गांधियन थॉट्स यानी गांधी विचार की पढ़ाई शुरू हुई थी उसमें आपने
सबसे पहले बैच 1980-1982 सत्र के दौरान
टॉप किया। वर्ष 1989 में उन्होंने
अपनी पीएचडी गांधी जी से जुड़े विषय शांति सेना जो कि गांधी जी के अनुयायियों ने
बनाया था उस पर लेकर की।
आगे चलकर वह 10 वर्षों तक
गांधियन थॉट डिपार्टमेंट, तिलका मांझी
भागलपुर विश्वविद्यालय में बतौर शिक्षक के तौर पर अपना कार्य करते रहे इसी में ढाई
वर्ष उन्हें प्रोफेसर इंचार्ज रहने का भी मौका मिला। मनोज जी ने इसके बाद
महाराष्ट्र के वर्धा में स्थित महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय में काम करना
शुरू किया और वर्तमान में भी वह इसी विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। सर्वप्रथम व
संस्कृति विद्यापीठ के डीन रहे, उसके बाद वह
स्कूल ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज के डीन बने और वर्तमान में व स्कूल ऑफ लॉ
के डीन के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रहे हैं।
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