प्रोफेसर आनंद कुमार एक ऐसा नाम जो आपको एक साथ कई भूमिकाओं में दिखते हैं. इनका शानदार कैरियर रहा है. अपने प्रयासों से इन्होंने समाज में अपनी एक पहचान कायम की है.
यह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान में समाजशास्त्र के वर्षों तक प्रोफेसर रहे हैं. प्रोफेसर आनंद कुमार राजनीतिक विश्लेषक,
समाज वैज्ञानिक, सामाजिक चिंतक तो वहीं राजनीतिज्ञ भी हैं. उन्हें बेहतरीन राजनीतिक विचारकों में से एक माना जाता है. यह कहने में कोई भी संशय नहीं कि एक ओर जहां इन्होंने सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह किया है तो वहीं दूसरी तरफ
राजनीतिक तौर पर भी सक्रिय रहे हैं. राजनीति में रहते हुए भी इनकी सबसे बड़ी खूबी रही है कि इन्होंने कभी भी अपने विचारों से समझौता नहीं किया.
प्रोफेसर आनंद कुमार सार्वजनिक जीवन में पिछले 50 वर्षों से भी ज्यादा समय से सक्रिय हैं. उन्होंने सामाजिक-राजनीतिक सुधारों और भ्रष्टाचार के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है. वह आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य और राष्ट्रीय प्रवक्ता भी रहे हैं. विचारों में टकराव के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी और फिलहाल वह
स्वराज अभियान और स्वराज इंडिया दोनों की समितियों में सक्रिय तौर पर अपनी भूमिका निभा रहे हैं. प्रोफेसर आनंद कुमार की खासियत या ईमानदारी कह लीजिए स्वराज अभियान के पहले संयोजक रहते हुए भी उन्होंने 65 साल की उम्र हो जाने पर स्वयं ही पद को छोड़ दिया क्योंकि उनका मानना है कि 65 साल के हो जाने पर किसी भी संगठन का नेतृत्व का काम नहीं लेना चाहिए बल्कि नए चेहरों को, युवा लोगों को मौका दिया जाना चाहिए.
प्रोफेसर आनंद कुमार का जन्म काशी नगरी अर्थात
वाराणसी के स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार में हुआ. बनारस में ही पले बढ़े प्रोफेसर आनंद कुमार ने यही से अपनी शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से बीएससी किया मगर आंदोलनों और विज्ञान की वजह से समाज विज्ञान ने उन्हें आकर्षित किया और 1972 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से ही समाजशास्त्र में स्नाकोत्तर किया. पढ़ाई में दिलचस्पी रखने वाले आनंद कुमार ने आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली का रुख किया और भारत का सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालय माने जाने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से 1975 में समाजशास्त्र में ही एमफिल की उपाधि अर्जित की. इसके बाद उन्हें राष्ट्रीय छात्रवृत्ति प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त हुई और उन्होंने अपनी पीएचडी शिकागो विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में ही पूर्ण की. इनकी पत्नी मंजुला राठौड़ भी समाजशास्त्री हैं और फर्रुखाबाद से हैं.
शिक्षक के तौर पर भी इनका बेहद लंबा कैरियर रहा है. प्रोफेसर आनंद कुमार
बीएचयू में 10 वर्षों तक समाजशास्त्र के व्याख्याता रहे हैं. इसके बाद इन्होंने एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में 1990 से 1998 तक अध्यापन का कार्य किया बाद में इनकी पदोन्नति हुई और बतौर प्रोफेसर 1998 से अपने रिटायरमेंट तक अपने विद्यार्थियों के बीच लोकप्रिय बने रहे और उन्हें पढ़ाते रहे. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अलावा इन्होंने यूएस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, अर्जेंटीना और फ्रांस के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया है. अध्यापन के दौरान भी प्रोफेसर आनंद कुमार राजनीति में अपनी सक्रियता निभाते रहें. वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षक संघ के महामंत्री रहे हैं तो बाद में जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय में अध्याेपक के पद पर रहते हुए दो बार शिक्षक संघ के अध्यरक्ष चुने गए तो वहीं कई बार महासचिव भी रहे. इसके साथ साथ वह केंद्रीय विश्वोविद्यालयों के शिक्षक संघ के भी अध्यतक्ष रह चुके हैं. उन्हें भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, जर्मन शैक्षणिक विनिमय सेवा और नेहरू-फुलब्राइट कार्यक्रम आदि से शैक्षणिक सम्मान प्राप्त हो चुका है. प्रोफेसर आनंद कुमार सर्वसम्मति से भारतीय समाजशास्त्रीय सोसाइटी के अध्यक्ष भी चुने जा चुके हैं, यह देशभर के समाजशास्त्रियों का प्रतिष्ठित संघ है.
राष्ट्रीय आंदोलन परिवार से निकले प्रोफेसर आनंद कुमार के ऊपर राम मनोहर लोहिया का सीधा असर पड़ा. वह बताते हैं कि उनकी धारा लोहिया, गांधी और जयप्रकाश वाली धारा रही है. प्रोफेसर आनंद कुमार के अनुसार उन्हें सक्रिय सामाजिक जीवन में प्रवेश का मौका राम मनोहर लोहिया जी के आशीर्वाद से मिला. उनका पहला सार्वजनिक कार्य था बनारस में विद्यार्थीयों और नौजवानों का एक शिविर आयोजित करना जिस के मुख्य प्रशिक्षक डॉ. राम मनोहर लोहिया थे. यह वर्ष था 1967 का और तब वह महज 17 साल के थे.
भले ही उनका पहला सार्वजनिक कार्य 1967 से शुरू हुआ मगर उन्होंने 1964 से ही प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया से प्रेरणा लेकर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. प्रोफेसर आनंद कुमार छात्र राजनीति में भी बेहद सक्रिय रहे. वह एक और जहां बनारस हिंदू विश्व विद्यालय छात्र संघ के अध्याक्ष रहे तो वहीं जवाहरलाल नेहरू विश्वीविद्यालय में प्रकाश करात को हराकर भी छात्र संघ के अध्याक्ष बने. इस दौरान उन्हें राजनारायण और मधुलिमय जी का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा.
1974 आते आते उन्हें लोकनायक जय प्रकाश नारायण का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और वह जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में वॉलंटियर बने. उसके बाद आपातकाल के दौरान ‘इंडियंस फॉर डेमोक्रेसी’ नाम से एक मंच बनाया जिसमें आपातकाल के विरोध में 19 महीने प्रतिरोध का सक्रिय कार्य किया. इन्हें समाजवादी आंदोलन, जेपी आंदोलन, लोकशक्ति अभियान, समाजवादी अभियान, लोक राजनीति मंच, जेपी फाउंडेशन, जन लोकपाल आंदोलन आदि से लेकर विभिन्न सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है. इसके साथ साथ उन्हें देश के कई महान नेताओं के साथ काम करने का अवसर मिला. उन्होंने राजनारायण, चंद्रशेखर, करपुरी ठाकुर, रबी राय, मधु दंडवते, मधुलिमय, अर्जुन सिंह भदौरिया, किशन पटनायक, राम धन, कृष्णकांत, जानेश्वर मिश्र, ब्रजभूषण तिवारी और मोहन सिंह आदि सहित कई नेताओं के साथ कार्य किया है. लेकिन 1977 से 1979 तक जब जनता पार्टी का प्रयोग असफल हुआ तो उससे उन्हें कुछ चिंता हुई और दुविधा भी जिससे उन्होंने शिक्षक बन कर अपने कर्तव्य का निर्वाह का फैसला किया.
उन्हें अपने छात्र जीवन से ही शिक्षा सुधार, किसान के मुद्दों, युवाओं की बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों के लिए कई बार जेल जाना पड़ा. उन्होंने आचार्य नरेन्द्रदेव, बाबा साहब अंबेडकर, जयप्रकाश नारायण, डॉ. लोहिया और सत्याग्रह शताब्दी समारोह के दौरान रचनात्मक योगदान दिया है. 'समाजवादी युवजन सभा', 'संयुक्त्त समाजवादी पार्टी', 'जनता पार्टी' और 'समता पार्टी' में सक्रिय होने के अलावा वह भारत में चुनावी राजनीति के दोषों के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई है और ‘लोक शक्ति अभियान' के 'राष्ट्रीय समन्वयक' भी रहे हैं. उनके कुछ प्रमुख कार्यों में 'परिवर्तन की राजनीती और राजनीति का परिवर्तन', लोहिया के सौ बरस, ‘भारत में राष्ट्र भवन’, 'भारतीय क्रॉनिक गरीबी रिपोर्ट', 'क्वेस्ट फॉर पार्टिसिपेटरी डेमोक्रेसी: टुवर्ड्स अंडरस्टेंडिंग दी अप्रोच ऑफ गांधी एंड जयप्रकाश नारायण’, ‘उभरते हुए भारत को समझना’ आदि उनके समझना शामिल है.
जन लोकपाल आंदोलन की शुरुआत से ही वह राष्ट्रीय समाचार पत्रों और मीडिया में सक्रिय रूप से इसके पक्ष में खड़े रहे और जनलोकपाल आंदोलन को देशभर से मिले समर्थन के बाद बनाई गई राजनीतिक पार्टी ‘आम आदमी पार्टी’ के संस्थापक सदस्य हैं. इन्होंने आम आदमी पार्टी की तरफ से 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ा था. 2015 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी के आंतरिक मतभेदों के कारण पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव के साथ प्रोफेसर आनंद कुमार को भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बहिष्कृत कर दिया गया था जिसके परिणाम स्वरुप आम आदमी पार्टी के प्रमुख पदों से निष्कासन और पार्टी की कार्यशैली से असंतुष्ट लोगों ने मिलकर 14 अप्रैल 2015 को गुरुग्राम तबके गुड़गांव में स्वराज संवाद का आयोजन किया जिसमें यह फैसला लिया गया कि वह देश भर में स्वराज अभियान पर निकलेंगे और इसके तहत प्रोफेसर आनंद कुमार को स्वराज अभियान का संयोजक बनाया गया.
आजकल प्रोफेसर आनंद कुमार इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज में फेलो हैं और स्वराज अभियान के संयोजक पद छोड़ने के बाद स्वराज अभियान और स्वराज इंडिया की समितियों में हैं और अपनी सक्रियता बनाये हुए हैं.
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