नाम – मुकेश कुमार शुक्ला
पद –
नवप्रवर्तक कोड – 71183545
“यदि नदी खत्म हुई तो मानवीय सभ्यता का भी अंत हो जाएगा”, जागरूकता से परिपूरित इस संदेश के साथ नदियों की अविरलता एवं निर्मलता की दिशा में कार्य कर रहे मुकेश शुक्ला एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम हैं, जिन्होंने विगत 15 वर्षों से निरंतर पर्यावरण सेवक के रूप में कार्य किया है. लोककल्याण की भावना से ओत-प्रोत होकर ग्रामीण परिक्षेत्रों के अंतर्गत पोषण से जुड़ी विकासात्मक योजनाओं के क्रियान्वन में भी प्रमुख भूमिका निभाने वाले मुकेश जी विशेष तौर पर “गंगा जैव विविधता संरक्षण” के मुद्दे पर अनवरत कार्य करते हुए आम जन के मध्य हमारी युगों पुरानी नद्य संस्कृति की अलख जगा रहे हैं.
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा-दीक्षा
मूलरूप से
लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश के निवासी मुकेश शुक्ला एक समाज सेवक एवं पर्यावरणविद्
के रूप में आरम्भ से ही वन्य जीवन,
जल व पर्यावरण संरक्षण के
विषय में अध्ययनरत रहे हैं. उन्होंने वर्ष 2000 में डॉ. आरएमएल अवध यूनिवर्सिटी, फैजाबाद
से जूलॉजी, बोटनी एवं केमिस्ट्री विषयों के साथ बी.एस.सी तथा वर्ष 2004 में सिक्किम
मनीपाल यूनिवर्सिटी से इकोलॉजी एंड पर्यावरण से एम.एस.सी की डिग्री प्राप्त की.
नदियों एवं पर्यावरण की दिशा में विशेष रुझान के चलते मुकेश जी गंगा नदी जैव विविधता संरक्षण के बहुआयामों से जुड़कर प्रयासरत हैं. इसके साथ ही वें दर्शना महिला कल्याण समिति, छतरपुर (मध्य प्रदेश) में न्यूट्रीशन एवं WASH विशेषज्ञ के रूप में ग्रामों के अंतर्गत बच्चों को कुपोषण से बचाने की दिशा में अग्रणी होकर कार्य करते हैं. उन्होंने अपने प्रयासों की श्रृंखला में 6-59 महीने के बच्चों, किशोरियों एवं 15-49 वर्ष तक की आयु वर्ग की महिलाओं पर विशेष ध्यान देते हुए घरेलू आहार विविधता में सुधार सुनिश्चित किया.
गंगा संरक्षण की दिशा में किए गए कार्य
देश में गंगा
संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पर्यावरणविदों में से एक मुकेश
जी ने इस दिशा में कई योजनाओं और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन और प्रचार- प्रसार के
लिए अथक परिश्रम किया. उन्हें नदी जैव विविधता संरक्षण तथा प्राकृतिक संसाधन
नियंत्रण के विषय में काफी जानकारी है.
मुकेश जी नदी जैव विविधता संरक्षण, जल प्रशासन, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में विशेषज्ञता के साथ कार्य कर रहे हैं. उन्होंने उत्तर प्रदेश की जैव विविधता पर मोबाइल बस प्रदर्शनी के लिए परियोजना अधिकारी के रूप में पर्यावरण शिक्षा केंद्र की सहभागिता से कार्य किया, साथ ही गंगा की स्वच्छता के लिए चल रहे राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत गंगा नदी डॉल्फिन संरक्षण शिक्षा कार्यक्रम के लिए भी परियोजना अधिकारी के तौर पर कार्यरत रहे.
इसके अतिरिक्त मुकेश जी तटीय क्षेत्र में किसानों और मछुआरों के समुदाय के बीच स्थायी आजीविका को बढ़ावा देने के लिए और नदी पारिस्थितिकी संरक्षण के महत्व के संबंध में बच्चों और समुदायों को शिक्षित करने के मंतव्य से उत्तर प्रदेश और बिहार के 20 तटीय क्षेत्रों में लगभग 700 विद्यालयों के साथ मिलकर कार्य कर चुके हैं. उन्होंने मोबाइल प्रदर्शनी "प्रकृति बस" और विज्ञान एक्सप्रेस जैव विविधता विशेष प्रदर्शनी ट्रेन के माध्यम से सम्पूर्ण भारत में सफल जैव विविधता जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किया.
वह भारतीय जनता
के मध्य पर्यावरण के अनुकूल जीवन जीने और नदी संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए
विभिन्न एजेंसियों एवं नागरिक सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर तत्परता से कार्य करते
रहते हैं. वर्तमान में गंगा नदी संरक्षण के लिए स्वतंत्र कार्यक्रम का क्रियान्वन
करते हुए मुकेश जी स्थानीय एनजीओ और सरकारी संगठनों की सहभागिता में समुदाय,
छात्रों, युवाओं और महिलाओं को शामिल करके उत्तर-भारत के बहुत से
स्थानों में विभिन्न शिविरों का आयोजन कर आम जन को गंगा अविरलता का सन्देश दे रहे
हैं.
गंगा संरक्षण में महिलाओं एवं बच्चों का योगदान अहम
गंगा संरक्षण में
महिलाएं एवं देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चे अहम भूमिका निभा सकते हैं, ऐसा
मानकर चलने वाले मुकेश जी अक्सर गंगा स्वच्छता की योजनाओं में महिलाओं और बच्चो,
विशेषकर स्कूली विद्यार्थियों को सम्मिलित करके चलते हैं.
उनके द्वारा लिखा
गया रिसर्च जर्नल “रिस्टोरिंग रिवर इकोलॉजी थ्रू इन्वोलव्मेंट ऑफ वीमेन”, “ओंटारियो
इंटरनेशनल डेवलपमेंट एजेंसी” के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा जा चुका
है. गंगा संरक्षण पर लिखे इस रिव्यु जर्नल के अंतर्गत मुकेश जी ने नदियों के
संरक्षण में भारतीय महिलाओं के योगदान को प्रमुख माना है. उनके विचार हैं कि,
“भारतीय महिलाएं अपने धार्मिक स्वाभाव के लिए जानी जाती हैं, साथ ही अपनी संस्कृति की समझ उनमें बहुत अधिक है. यदि उन्हें संगठित कर जागरूक किया जाये, तो हमारी पूजनीय नदियों की स्वच्छता में वें महत्वपूर्ण योगदान अंकित कर सकती हैं.”
साथ ही मुकेश जी का उद्देश्य है कि बच्चों को बचपन से ही उन जगहों पर ले जाया जाए, जहां नदी बहती हैं. ताकि वे बच्चे जिन्होंने कभी नदी नहीं देखी, वह नदियों तथा हमारे जीवन में उनके महत्व के बारे में जान सके. इसके अलावा उन क्षेत्रों जहां से गंगा नदी या अन्य सहायक नदियां बहती हैं, वहां महिलाओं का एक संगठन बनाकर उन्हें जागरूक किया जाए, ताकि वह नदी संरक्षण की दिशा में कार्य कर सके.
रिवर-फ्रेंडली जीवन जियें देशवासी
मुकेश जी के
अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का नदी के महत्व को जानना व समझना बेहद जरूरी है. उनका
लोगों को संदेश है कि,
“नदी संरक्षण के लिए सभी को व्यक्तिगत रूप से अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी. हम सभी एक रिवर फ्रेंडली लाइफ जिये तथा नदी में कूड़ा- कचरा, प्लास्टिक इत्यादि न डालने के साथ ही ऐसी किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें, जिससे नदी के जल तथा उसमें रहने वाले जीव- जन्तुओं को किसी प्रकार की हानि हो, क्यों कि यह प्रत्यक्ष व परोक्ष दोनों ही रूपों से हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं.”
इस प्रकार यदि प्रत्येक व्यक्ति नदियों की स्वच्छता को अपना कर्तव्य व जिम्मेदारी समझेगा, तो कोई भी नदी कभी दूषित नहीं होगी और भारत को पुन: अविरल नदी संस्कृति के लिए विश्व भर में जाना जाएगा.