नाम : महेंद्र बैठा
पद : भावी विधायक प्रत्याशी (रालोसपा) चेनारी (रोहतास)
नवप्रवर्तक कोड : 71185339
वेबसाईट : mahendrabaitha.com
परिचय :
राजनीति और समाज के लिए संघर्षशील रहे महेंद्र बैठा रोहतास जिले के नोहट्टा प्रखण्ड के रहने वाले हैं, जिसे जिले का सबसे पिछड़ा इलाका माना जाता है। लंबे समय से जनहित निहितार्थ कार्य कर रहे महेंद्र बैठा का संघर्षपूर्ण सफर भी नोहट्टा प्रखण्ड से ही शुरू हुआ, जहां उन्होंने समाज कल्याण के लिए बहुत से कार्य किए और वहां की समस्याओं को जमीनी स्तर पर अनुभव किया। स्थानीय जनता के सुझाव से उन्होंने औपचारिक रूप से राजनीति से जुडने का निर्णय लिया और वर्ष 2015 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भागीदारी की।
राजनीति में आगमन :
प्रखण्ड स्तर से ही समाज हित के लिए प्रयास करते रहने के कारण महेंद्र बैठा का आमजन से जुड़ाव रहा है। जमीनी स्तर पर लोगों के लिए कार्य करते रहने से जनता में अपने अधिकारों के लिए जागरूकता लाने का प्रयास उन्होंने किया। इस दौरान उन्होंने जाना कि ना केवल नोहट्टा बल्कि कैमूर की पहाड़ियों पर स्थित ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं, जहां जनता आज भी सड़क, स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मौलिक सुविधाओं से वंचित है।
इसके अतिरिक्त महेंद्र बैठा ने यह भी महसूस किया कि वह आज तक जिन जन प्रतिनिधियों को चुनकर सदन भेजते आए हैं, उनमें से किसी ने भी कभी इन पिछड़े इलाकों की समस्याओं को नहीं उठाया। इन सभी समस्याओं से आमजन को मुक्ति दिलाने के लिए और नोहट्टा की आवाज बनने के लिए उन्होंने राजनीति में आने का विचार किया। आमजन के सहयोग से ही उन्होंने राजनीति से जुड़कर सदन पहुंचने का फैसला लिया और अपने इलाके की समस्याओं को सुलझाने के मकसद से ही वह राजनीति में आए।
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी से जुड़ाव :
धीरे धीरे अपने राजनीतिक सफर को आगे बढ़ाते हुए महेंद्र बैठा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के बारे में सुना और राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री उपेंद्र कुशवाहा के जनहित सिद्धांतों एवं लोक कल्याण विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने वर्ष 2018 में रालोसपा का हिस्सा बनना तय किया। वर्तमान में रालोसपा से बिहार के प्रदेश सचिव पद पर कार्य कर रहे हैं और पार्टी के आदर्शों का प्रचार प्रसार जनता के मध्य निरंतर कर रहे हैं।
महेंद्र बैठा का विजन और भावी उद्देश्य :
अपने भावी विजन के बारे में महेंद्र बैठा का कहना है कि आज देश की आजादी के 70 साल बाद भी उनके प्रखण्ड नोहट्टा से एक भी जन प्रतिनिधि चुनकर सदन तक नहीं पहुंचा। इलाके में शिक्षा और खुद के अधिकारों के लिए जनता में जागृति नहीं है और जब उन्होंने लगातार जनसंपर्क करते हुए लोगों से वार्तालाप की और उन्हें शिक्षा का महत्व समझाया, उनके अधिकारों की चर्चा की तो जनता ने खुद उन्हें राजनीति में जाने के लिए प्रेरित किया।
महेंद्र बैठा के अनुसार आज बिहार में शिक्षा और विकास की जो स्थिति है वह किसी से भी छिपी नहीं है और इस पिछड़ेपन के मूल में सबसे बाद कारण शिक्षा और जागरूकता का अभाव होना है। रालोसपा के साथ उनके जुडने का सबसे बाद कारण भी यही है कि पार्टी इन्हीं मुद्दों के लिए संघर्ष कर रही है। उनका भावी उद्देश्य भी इन मूलभूत समस्याओं को समाप्त करना है।
प्रमुख क्षेत्रीय समस्याएँ :
अपने इलाके के प्रमुख मुद्दों के बारे में महेंद्र बैठा बताते हैं कि, नोहट्टा प्रखण्ड मुख्यत: कैमूर की तलहटी और सोन के तट पर बसा इलाका है और अपनी विशिष्ट भौगोलिक संरचना के चलते यहां कृषि संबंधी बहुत सी जटिलताएँ हैं। जिन्हें बिना सरकारी व्यवस्थाओं के सुलझाया नहीं जा सकता है। यहां की सिंचाई व्यवस्था बेहद बदतर है, जिसके कारण खेती करना मुश्किल हो जाता है। महेंद्र बैठा के अनुसार यहां सरकारी योजनाएँ खबरों में तो आती हैं लेकिन धरातल पर काभी नहीं दिखाई देती।
वह उदाहरण देते हुए बताते हैं कि कुछ वर्षों पूर्व बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश को जोड़ने के लिए एक पनका पुल की योजना काफी समय तक अखबारों की सुर्खियों में रही, जिसके बन जाने से सिंचाई व्यवस्था के साथ साथ आवागमन व्यवस्था भी बहाल होती लेकिन यह योजना काभी जमीनी स्तर पर नहीं लागू हुई। इसके अलावा कदवन जलाशय की योजना भी खबरों तक ही रह गई, जिसके कारण प्रखण्ड की हजारों एकड़ भूमि आज भी असिंचित पड़ी हुई है।
अन्य प्रमुख समस्याओं पर महेंद्र बैठा का कहना है कि नोहट्टा में पहले एक सीमेंट उद्योग स्थापित था, जो हजारों लोगों की जीविका का स्त्रोत था लेकिन विगत कुछ समय से यह उद्योग पूरी तरह से बंद है और इसकी पुनर्स्थापना के विषय में सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जिसके कारण बहुत से लोगों का रोजगार छिन गया।
इसके अतिरिक्त रोहतास जिले का सुदूर इलाका होने के चलते नोहट्टा में सड़क व्यवस्था काफी लचर है, यहां मात्र जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए चार-पांच घंटे का समय लग जाता है। साथ ही महेंद्र बैठा का कहना है कि कैमूर की पहाड़ियों पर बसे दर्जनों गांव के हालात तो और अधिक बदतर हैं। वहां आज भी बिजली, पानी, सड़क, स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मौलिक सुविधाओं का अभाव है, जिसके कारण वहां के स्थानीय लोग त्रस्त हैं।