लेनिन जी का मानना है , कि कई बातों के लिए आलोचना की आवश्यकता है किंतु हर बात को उठा कर खत्म भी नही किया जा सकता । उन्होंने कहा कि आज देश को पार्टियां
धर्म जाती के आधार पर बाँटने की कोशिश कर रहीं हैं लेकिन अगर हम अपने वेदों को पढ़ें
तो यजुर्वेद में राष्ट्र की परिभाषा धर्म जाती के आधार पर नही बनाई गई है । यजुर्वेद
में लिखा है , कि अलग- अलग मतों के लोग जहां एक साथ रहते हैं , उसे राष्ट्र कहते हैं ।
उन्होंने कहा कि जातिवाद हम मनुष्यों का ही बनाया गया है, लेकिन वास्तव में हम सभी ऋषियों के पुत्र हैं इसीलिए सबके गोत्र कहीं न कहीं समान
होते हैं । उस समय सभी ऋषिपुत्र थे बस उनके कार्य बातें हुए थे , कुछ राज चलते थे कुछ पुरोहित का कार्य करते थे। ब्राम्हणों
ने ही ब्राह्मणवाद और गुरुसुप्त बनाया । पुरोहितों ने ही छान्दाव उपनिषद में पुरार्जन्म
कि अवधरणा दी इसके पहले संसार में पुनर्जन्म की कोई कल्पना ही नहीं थी ।
उन्होंने जातिवाद को खराब अवधारणा का उदाहरण देते हुए कहा कि हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह में बसंत
पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है । उस दिन दरगाह में कुछ हरा नही होता प्रत्येक व्यक्ति
पीले वस्त्रों में दिखता है । ये सनातन की ताकत है । उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ
जो कि गोरख सम्प्रदाय से सम्बद्ध हैं, उनके गुरु गोरखनाथ जी ने कहा है कि -
“हिन्दू कहे देवगुरा
,मुस्लिम कहे मजीह
जो भी कहे परमधाम , न देवगुरा न मजीह “
आज हम अपनी प्रगति नगर
बसने को बोल रहे हैं लेकिन क्या वास्तव में ये प्रगति है जहां जतिवाद , पुरुषवाद की अवधारणा को भी साथ लेकर आगे बढ़ रहे हैं ।1931
में इसी मुद्दे पर बातचीत करने के लिए करांची सम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता सरदार वल्लभभाई
पटेल ने की थी जिससे दलित बहुत प्रभावित हुए थे ।
लेनिन जी का मानना है कि आज की कांग्रेस और 1947 कि कांग्रेस में बहुत अंतर है । तब की कांग्रेस में जवाहरलाल नेहरू थे, सुभाषचंद्र बोस थे , कांग्रेस थी, राजवाड़े थे , जिन्ना भी सम्मिलित थे ।टैब धर्मनिरपेक्षता को सर्वोपरी रखा जाता था । धर्मनिरपेक्षता कोई बाहर की प्रणाली
नही है ये हमारे पुराणों और वेदों की देन है। हमारे देश मे मानवाधिकारों की बात द्वितीय
विश्व युद्ध के बाद ही आ गयी थी । जिसे आज मुद्दा बनाकर बातें और तंज कसे जा रहे हैं
।
हमारे धर्म , परम्पराओं का अग्निकरण किया जा रहा है जिसे समाप्त करने के लिए हमारे वेदों पुराणों को पढ़ना आवश्यक हो
गया है । कजरी, जनमेला जैसी चीजों को बढ़ावा देना जरूरी हो गया है । लेनिन जी ने बताया हिन्दू -मुस्लिम की प्रवत्ति को खत्म करने के लिए सबसे अच्छा उदाहरण
जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर है उन्होंने जोधाबाई को कभी मुस्लिम बनने को बाध्य नही किया
। उनके वंश में राजपूत और इस्लाम दोनों की ही प्रवत्ति मिश्रित रही ।
ऐसे में कुछ मुट्ठी भर लोग हमारी परम्पराओं को खत्म करने का कार्य कर रहे हैं हमारी संस्कृति और व्यवसाय को विदेशी हाथों में सौपने का कार्य कर रहे हैं । हमें ऐसे में धर्म के नाम पर न बात कर एकता लेन की कोशिश करनी होगी । उन्होंने कहा हमे ब्राह्मणों से नहीं ब्राह्मणवाद को खत्म करना होगा । हमें जाति से मतभेद न करके जाती वाद को समाप्त करना होगा ।