नाम - डॉ संदीप सौरभ
पद - विधायक, पालीगंज विधानसभा (बिहार)
पार्टी - सीपीआई (एमएल)
नवप्रवर्तक कोड - 71191118
क्या कभी किसी छोटे से गाँव का युवक बड़े सपनों के साथ राजनीति में कदम रख सकता है? डॉ. संदीप सौरभ ने यही किया है! पालीगंज, बिहार के विधायक, डॉ. सौरभ ने अपने शिक्षा के सफर और सामाजिक संघर्षों के जरिए साबित किया है कि यदि इरादा मजबूत हो, तो हर बाधा को पार किया जा सकता है। पटना के एक साधारण गाँव से उठकर, वे छात्र आंदोलनों के प्रेरणास्रोत बने और आज जनहित के मुद्दों पर प्रतिबद्धता के साथ समाज के कमजोर तबके की आवाज़ बने हुए हैं।
उनकी यात्रा केवल एक नेता के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे परिवर्तनकामी के रूप में है, जो शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक न्याय की दिशा में साहसिक कदम उठाने के लिए तैयार है। आइए, उनकी प्रेरणादायक कहानी में प्रवेश करें, जो बिहार के युवाओं के लिए एक नई उम्मीद की किरण है।
डॉ. संदीप सौरभ : जनसेवा और छात्र आंदोलन से राजनीति तक का सफर
डॉ. संदीप सौरभ , पालीगंज, बिहार से CPI (ML) पार्टी से जुड़े एक लोकप्रिय विधायक, एक समर्पित शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने अपने जीवन को गरीबों, दलितों, और पिछड़े वर्गों की आवाज़ बनने के लिए समर्पित किया है। उनका जन्म पटना के मनेर ब्लॉक के मौलानीपुर गाँव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गाँव से ही प्राप्त करने के बाद, उन्होंने पटना के बीएम कॉलेज से इंटरमीडिएट और स्नातक किया। इसके बाद, उन्होंने दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से हिन्दी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन किया और वहीं से एमफिल और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
कक्षा से क्रांति तक: एक सामाजिक योद्धा की प्रेरक गाथा
डॉ. संदीप सौरभ का छात्र जीवन प्रेरणादायक और संघर्षशील रहा है। पटना में प्रारंभिक शिक्षा के दौरान वे एक अंतर्मुखी और शिक्षा के प्रति समर्पित छात्र के रूप में जाने जाते थे, लेकिन जब वे उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली की प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) पहुँचे, तो उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। जेएनयू के प्रगतिशील और विचारशील वातावरण ने उन्हें समाज की गहरी समस्याओं से रूबरू कराया। यहाँ उन्होंने देखा कि छात्र न केवल अपनी शिक्षा बल्कि देश और समाज के व्यापक मुद्दों पर भी गंभीरता से सोचते और संघर्ष करते हैं।
यहीं से डॉ. संदीप सौरभ के भीतर सामाजिक न्याय और असमानता के खिलाफ लड़ने का संकल्प जागृत हुआ। उन्होंने ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (AISA) से जुड़कर छात्रों और समाज के हाशिए पर खड़े लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। अपने नेतृत्व कौशल और निडरता के चलते, वे जल्दी ही AISA के एक प्रमुख चेहरे बन गए। उन्होंने जेएनयू में छात्र चुनाव लड़ा और 2013 में जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के जनरल सेक्रेटरी पद के लिए खड़े हुए। यह उनकी सामाजिक सक्रियता और नेतृत्व क्षमता का प्रमाण था कि उन्हें बड़ी संख्या में छात्रों का समर्थन प्राप्त हुआ।
अपने छात्र जीवन के दौरान, डॉ. संदीप सौरभ ने शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर राष्ट्रीय स्तर पर कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। उन्होंने न केवल बिहार, बल्कि दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों में भी AISA के माध्यम से छात्रों और युवाओं को संगठित किया। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद भी शिक्षण क्षेत्र में अपनी जॉब को छोड़कर समाज और राजनीति के यज्ञ में पूरी तरह से खुद को आहूत कर दिया। उनका मानना था कि समाज में वास्तविक बदलाव तभी संभव है, जब निचले तबके के लोगों की आवाज़ मुखर की जाए और उनकी मौलिक समस्याओं का समाधान हो।
इस प्रकार, डॉ. संदीप सौरभ का छात्र जीवन केवल अकादमिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह समाज की सेवा और सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक भी बना। उनके नेतृत्व और संघर्ष की यह यात्रा राजनीति में उनकी आगे की सफलता का आधार बनी।
राजनीति का नया अध्याय
डॉ. संदीप सौरभ का राजनीति में प्रवेश किसी आकस्मिक निर्णय का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उनके वर्षों के सामाजिक संघर्षों और छात्रों के हितों के लिए समर्पित जीवन का स्वाभाविक विस्तार था। राजनीति के प्रति उनकी दिलचस्पी 2007 में तब शुरू हुई, जब वे जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में छात्र आंदोलन और सामाजिक न्याय के मुद्दों से गहराई से जुड़े। जेएनयू के प्रगतिशील माहौल में उन्होंने यह महसूस किया कि शिक्षा और छात्र अधिकारों के संघर्ष के साथ-साथ, व्यापक सामाजिक परिवर्तन के लिए राजनीतिक भागीदारी भी अत्यावश्यक है।
डॉ. संदीप सौरभ ने ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (AISA) से जुड़कर छात्रों के बीच अपनी पहचान बनाई और बहुत जल्दी एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे। 2013 में जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के जनरल सेक्रेटरी पद के लिए चुनाव लड़कर उन्होंने अपने नेतृत्व का परिचय दिया। छात्र राजनीति में उनकी सफलता ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति के प्रति प्रेरित किया, और वे CPI (ML) के साथ जुड़ गए, जो कि गरीबों, दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की बात करने वाली पार्टी है। उनका स्पष्ट उद्देश्य था कि वे सत्ता की राजनीति का हिस्सा बनकर हाशिये पर खड़े समाज के तबके के लिए ठोस परिवर्तन ला सकें।
2020 में, डॉ. संदीप सौरभ ने पहली बार पालीगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। यह चुनाव उनके लिए केवल एक राजनीतिक अवसर नहीं था, बल्कि एक मिशन था। इस चुनाव में उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों, खासकर दलितों, पिछड़ों और वंचित समुदायों के हकों की बात को प्रमुखता से उठाया। पालीगंज के मतदाताओं ने उन्हें व्यापक समर्थन दिया और वह विजयी होकर बिहार विधानसभा में पहुंचे। उनकी जीत को और भी खास इस तथ्य ने बनाया कि उन्होंने रामलखन सिंह यादव जैसे कद्दावर नेता के पोते के खिलाफ चुनाव लड़ते हुए जीत हासिल की, जो कि राजनीति में उनके उभरते कद का प्रमाण है।
राजनीति में उनका दृष्टिकोण केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं है, बल्कि समाज के मूलभूत मुद्दों जैसे कि शिक्षा, रोजगार, भूमि सुधार, और सामाजिक न्याय पर ठोस काम करना है। वह मानते हैं कि केवल चुनाव जीतने से ही समाज में बदलाव नहीं आता, बल्कि इसके लिए जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनना और समाधान के लिए निरंतर प्रयास करना आवश्यक है। वह अपनी विधानसभा सदस्यता का उपयोग पालीगंज और बिहार के अन्य हिस्सों में विकास की नई परिभाषा स्थापित करने के लिए कर रहे हैं, जो कि निचले तबके के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करती है।
जनहित के मुद्दों और राष्ट्रीय समस्याओं को लेकर व्यापक दृष्टिकोण
डॉ. संदीप सौरभ का राजनीतिक जीवन जनहित के मुद्दों और सामाजिक सेवा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है। उनका मानना है कि राजनीति का असली उद्देश्य समाज के सबसे निचले तबके के लोगों की भलाई और उन्हें सशक्त बनाना होना चाहिए। यही वजह है कि विधायक बनने के बाद उन्होंने पालीगंज और बिहार के अन्य हिस्सों की गंभीर समस्याओं को विधानसभा में जोरदार तरीके से उठाया है और अपने क्षेत्र के विकास के लिए लगातार काम किया।
1. विकास की परिभाषा में बदलाव
डॉ. संदीप सौरभ का विकास के प्रति दृष्टिकोण पारंपरिक राजनीति से हटकर है। उनका मानना है कि विकास सिर्फ सड़कों, पुलों, और इमारतों के निर्माण तक सीमित नहीं होना चाहिए। असली विकास तब होता है जब समाज के सबसे वंचित और पिछड़े तबके को भी इसमें बराबर की भागीदारी मिले। वह मानते हैं कि बिहार के दलित, आदिवासी, मुसहर जाति के लोग, जो अभी भी जीवन की बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं, के लिए विकास की नई परिभाषा गढ़ी जानी चाहिए।
डॉ. संदीप सौरभ ने लगातार उन लोगों के अधिकारों की बात की है, जिनके पास जमीन नहीं है, जो आर्थिक और सामाजिक रूप से शोषित हैं। उन्होंने विधानसभा में बिहार की अत्याधिक शोषित मुसहर जाति के उदाहरण से यह मुद्दा उठाया कि बिहार में गरीबों को जमीन और आवास का अधिकार मिले, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। वह मानते हैं कि जमीनी स्तर पर लोगों का विकास ही विकास का असली मापदंड होना चाहिए।
2. सामाजिक न्याय और आरक्षण का सही उपयोग
बिहार में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के बावजूद, दलित और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व अभी भी बेहद कम है। डॉ. संदीप सौरभ का कहना है कि केवल 1.67% लोग ही सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ उठा पा रहे हैं, जो कि बहुत ही कम है। उन्होंने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया और सामाजिक न्याय की सही परिभाषा के लिए आरक्षण नीति के बेहतर क्रियान्वयन की मांग की। उनके अनुसार, जब तक समाज के हर तबके को बराबरी का अवसर नहीं मिलेगा, तब तक समग्र विकास संभव नहीं है।
3. राजनीति में घृणा और भेदभाव का विरोध
डॉ. संदीप सौरभ ने हमेशा राजनीति में घृणा, असहिष्णुता, और भेदभाव के खिलाफ खुलकर अपनी आवाज उठाई है। उनका मानना है कि लोकतंत्र में किसी भी स्तर पर महिलाओं, दलितों, और कमजोर वर्गों के प्रति अपमानजनक भाषा और व्यवहार अस्वीकार्य है। उन्होंने इस मानसिकता के खिलाफ संघर्ष करते हुए इसे समाप्त करने की पुरजोर मांग की है।
4. रोजगार और शिक्षा के लिए संघर्ष
बिहार में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, और डॉ. संदीप सौरभ ने इस मुद्दे पर व्यापक रूप से काम किया है। उन्होंने शिक्षकों के अधिकारों, छात्रों की समस्याओं, और बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की दिशा में कई पहल की हैं। इसके साथ ही उन्होंने नई शिक्षा नीति का भी विरोध किया, क्योंकि उनका मानना है कि यह नीति शिक्षा के निजीकरण की ओर बढ़ रही है, जिससे गरीब और वंचित वर्ग शिक्षा से और भी दूर हो जाएंगे।
5. नई शिक्षा नीति के खिलाफ आवाज
नई शिक्षा नीति के आने से पूर्व ही डॉ. संदीप सौरव ने एमएचआरडी को ज्ञापन सौंपकर नई शिक्षा नीति का विरोध किया था। उनके अनुसार, यह नीति संविधान के समतामूलक शिक्षा के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है और शिक्षा को तेजी से निजीकरण की दिशा में धकेल रही है। उनका स्पष्ट विचार है कि शिक्षा सभी के लिए मुफ्त और समान होनी चाहिए, ताकि समाज के वंचित वर्गों को बराबरी का अवसर मिल सके।
6. समाज में पसरी भूमि असमानता पर चिंता
इसके साथ ही डॉ. संदीप सौरभ अक्सर इस बात पर जोर देते हैं कि समाज के 70% तबके के पास केवल 3% जमीन है, जो कि एक बड़ी असमानता को दर्शाता है। वह मानते हैं कि इस जमीन की असमानता और भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाने की जरूरत है, ताकि गरीबों और वंचितों को उनकी जमीन का अधिकार मिले। उनका यह भी मानना है कि जब तक समाज में शिक्षा और भूमि के प्रति बराबरी का दृष्टिकोण नहीं होगा, तब तक गरीबी और असमानता की खाई खत्म नहीं हो सकती।
डॉ. संदीप सौरभ का जीवन और संघर्ष यह दर्शाता है कि सच्ची राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि समाज के हर तबके की भलाई के लिए निःस्वार्थ रूप से काम करना है। शिक्षा, सामाजिक न्याय, रोजगार, और विकास के प्रति उनकी स्पष्ट सोच और प्रतिबद्धता ने उन्हें न केवल पालीगंज का एक लोकप्रिय जननेता बनाया है, बल्कि एक राष्ट्रीय स्तर पर उभरते हुए प्रगतिशील नेता के रूप में स्थापित किया है। उनका यह संघर्ष केवल बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी दृष्टि और संकल्प पूरे देश में सामाजिक और राजनीतिक बदलाव लाने की प्रेरणा देती है। भारतीय राजनीति में ऐसे नेता का होना एक उम्मीद की किरण है, जो सत्ता के लिए नहीं, बल्कि समाज के समग्र विकास और न्याय के लिए समर्पित है।