Name - Dharmendra Singh Katiyar
Badge no. - 71182954
Designation – Associate Professor, Department of Social Work, CSJM University, Kanpur
परिचय –
धर्मेन्द्र सिंह कटियार एक सामाजिक नवप्रवर्तक हैं, जो कि छत्रपति शाहूजी महाराज यूनिवर्सिटी, कानपुर में समाजशास्त्र विषय के सहायक प्रोफेसर हैं। धर्मेन्द्र जी कानपुर यूनिवर्सिटी में सन् 1994 से कार्यरत हैं। इसके अलावा वह सामाजिक सुधार व परिवर्तन की दिशा में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। धर्मेन्द्र जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं, उन्हें आर्ट्स के कई विषयों की अच्छी- खासी जानकारी है तथा उन्होंने कई विषयों से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है, जिनमें समाजशास्त्र व अंग्रेजी प्रमुख हैं। साथ ही उन्होंने हरि गौर सागर यूनिवर्सिटी, मध्य प्रदेश से मॉस कम्यूनिकेशन से भी स्नातकोत्तर किया है। इसके अलावा उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग, सामाजिक, आर्थिक , राजनीतिक गतिशीलता विषय पर पीएचडी की है। वहीं उन्होंने कानपुर के बीएसएसडी कॉलेज से एल.एल.बी भी की है।
उपलब्धियां -
धर्मेन्द्र जी ने रेडियो के कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में शिरकत के साथ ही विशेषज्ञ की भूमिका का भी निर्वहन किया। इनके सहभागित कुछ ख़ास विषय संबंधों का इतिहास, आत्महत्या आदि हैं। इसके अलावा उन्होंने प्रकाश नारायण जी की जीवनी, भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरु, शहीद भगत सिंह की जीवनी पर भी विचार विमर्श का कार्य किया। इनमें से कई कार्यक्रमों का अन्य प्रसारण केंद्रों से भी प्रसारण हुआ, जो कि अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
भावी योजनाएं -
धर्मेंद्र जी ने एक स्किल डेवलपमेंट
सेमिनार में हिस्सा लिया, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने 'कमला स्टडी सेन्टर' को एक एनजीओ के रूप में शुरू किया है। इस संस्थान में रिसर्च वर्क करने वाले स्टूडेंट्स अपने अध्ययन से जुड़ी
प्रत्येक समस्याओं का निवारण प्राप्त करते हैं। धर्मेन्द्र जी आने वाली युवा पीढ़ी
को भारत की सभ्यताओं का ज्ञान प्रदान कराना चाहते हैं , क्योंकि आज के दौर में हम अपने पुश्तैनी संस्कृति से विरक्त होते जा रहे हैं।
प्राचीन समय में जिस प्रकार से हमारे बड़े-बुजुर्ग बीजों का संरक्षण करते थे, इस ज्ञान से आज हमारे युवा दूर हो गए हैं। इस ज्ञान के अभाव में ही आज किसानों द्वारा काफी सारी सब्जियों, फलों का सही संरक्षण एवं उत्पादन नहीं हो पा रहा है। वहीं वह गाजर घास से बचाव के कार्यक्रम
चलाने की एक योजना की शुरूआत करना चाहते हैं, क्योंकि ये घास हमारी श्वास क्रिया
द्वारा शरीर के प्रवेश करके काफी नुकसान पहुंचाते हैं।
इसके अलावा धर्मेन्द्र जी देश की युवा पीढ़ी में शिक्षा के साथ- साथ संस्कार व उनमें बड़े- बुजुर्गों के प्रति सेवा व सम्मान की भावना को जाग्रत करने को भी काफी महत्वपूर्ण मानते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि जब तक देश के युवा अपने बुजुर्गों का आदर करना नहीं सीखेंगे, तब तक देश विकास नहीं कर पायेगा।
वहीं उनका मानना है कि हमारे समाज को पानी के महत्व की बात समझाना भी बहुत आवश्यक है अन्यथा हमारी आने वाली पीढ़ी को इसका खामियाज़ा भुगतना होगा। वह पानी का स्तर बढ़ाने की जानकारी से जुड़े कार्यक्रमों की शुरूआत करने की योजना भी तैयार कर रहे हैं।
मीडिया की भूमिका पर राय –
धर्मेंद्र जी किसी भी सामाजिक कार्य के प्रोत्साहन में मीडिया की सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण भूमिका मानते हैं। उनका मानना है कि अच्छी बात को मीडिया दबा देती है। हमारे वेदों में, पुराणों में, हड़प्पा की खुदाई में स्नानागार मिले, इतिहास में सीता की रसोई मिली। वहीं आज शौचालयों को अत्याधिक महत्ता देकर भूमिगत जल को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। हमारे देश में किसी भी योजना को लागू करने के लिए शिक्षित लोगों को बैठा कर चर्चा की जानी चाहिए न कि चार चन्दू चाटुकारों की बहस करानी चाहिए।
नीति परिवर्तन पर विचार –
धर्मेंद्र जी के अनुसार सामाजिक तौर पर हमारे देश के विद्वानों को अत्याधिक परेशान किया जाता है। उनके शिक्षा और ज्ञान की समीक्षा किए बिना, उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विचार- विमर्श करने के बजाय उन्हें आलोचना का विषय बना दिया जाता है। कुछ दिन पहले आई आधार कार्ड के डाटा लीक होने की खबर उठाने वाले पत्रकार की सराहना करने के बजाय उसके खिलाफ केस दर्ज करा दिया गया। हमारे देश के कुछ बुद्धिजीवी सिर्फ एक- दूसरे पर उंगली उठाने के मौके की तलाश में रहते हैं, जिनकी वजह से कई महत्वपूर्ण मुद्दे बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे ही दब जाते हैं।
सामाजिक परिवर्तन पर विचार -
एक सामाजिक नवप्रवर्तक के रूप में धर्मेन्द्र जी मानते हैं कि समाज में लगातार विकास कार्य तो चल रहे हैं, लेकिन कहीं न कहीं थोड़ी बहुत बुराइयां भी मौजूद हैं। समाज में बदलाव आते रहते हैं, जो कि नियति का क्रम है। हमें परिवर्तन के दौर में साथ चलते हुए इतिहास की मान्यताओं का भी अनुसरण करना चाहिए। जिसका सबसे रोचक उदाहरण एक सरल लोलक को माना जा सकता है, जो आगे तो बढ़ता है, लेकिन समय – समय पर अपनी पूर्व अवस्था का भी आकलन करता रहता है।