नाम- दिलीप वर्मा
पद- पूर्व विधायक, सिकटा विधानसभा, पश्चिमी चंपारण
नवप्रर्वतक कोड- 71190522
"जात ना धर्म सिर्फ कर्म", की आदर्शवादी विचारधारा पर चलते हुए पश्चिमी चंपारण के सिकटा विधानसभा क्षेत्र में अपने सामाजिक एवं राजनीतिक सेवाक्षेत्र को विस्तार दे रहे दिलीप वर्मा एक जनप्रिय नेता हैं, जिन्हें पांच बार सिकटा विस का प्रतिनिधित्व करने का गौरव प्राप्त है। दिलीप वर्मा देश के उन चुनिंदा जन प्रतिनिधियों में से हैं, जिन्होंने "सर्व धर्म सम्भाव" के प्रति निष्ठा एवं एकात्म मानवतावाद के गूढ भावों के साथ राजनीति की परिकल्पना को अपनाया है।
समतायुक्त एवं शोषणमुक्त अर्थव्यवस्था के सिद्धांत पर चलते हुए स्वयं को सत्तासुख की लोलुपता के परे रखते हुए दिलीप वर्मा ने अपने मूल्यों, सिद्धांतों व आदर्शों को कभी पीछे नहीं छोड़ा। इसी का परिणाम रहा कि सिकटा विस क्षेत्र की जनता ने उन्हें बार बार बहुमत से विधायक चुना और क्षेत्र में तमाम जातीय व सांप्रदायिक समीकरणों से परे एक नए इतिहास का सृजन सिकटा में हुआ।
ऐतिहासिक पारिवारिक पृष्ठभूमि से प्रेरणा लेकर बढ़े आगे
समाज में शोषितों, वंचितों और निर्धनों की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहने वाले जननेता दिलीप वर्मा का जन्म चंपारण में स्व श्री अमरेश प्रसाद वर्मा और स्व श्रीमती शैलवाला वर्मा के घर में हुआ। अपने परिवार के राजनीतिक स्वर्णिम इतिहास और सामाजिक प्रतिष्ठा से प्रेरणा लेते हुए दिलीप वर्मा भी अपने पूर्वजों की भांति विलक्षण प्रतिभा से संपन्न रहे हैं। उन्होंने मुंबई के सेंट जेवीयर कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया, जिसके बाद 1978 में उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया।
समाज में व्याप्त राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक भ्रष्टाचार के कारण हाशिये पर खड़े लोगों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ दिलीप वर्मा ने आवाज उठाई। उन्होंने अनवरत निर्धन वर्ग की सेवा करते हुए सिकटा को अपनी कर्मभूमि बना लिया और दिन-रात क्षेत्र में घूमते हुए जन जन के दुख-सुख में भागीदार रहे। उक्त समय क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में पेयजल की समस्या विकट थी, लोग नदियों, तालाबों से पानी लाकर पीने को विवश थे। क्षेत्र में कुछ चापाकल थे और वह भी खराब पड़े रहते थे, जिसके लिए दिलीप वर्मा अपने साथ चापाकल ठीक करने के औजार जैसे नट-बोल्ट साथ में लेकर घुमा करते थे ताकि जनता की समस्याओं को तत्क्षण दूर किया जा सके।
दिलीप वर्मा की इस निस्वार्थ जनसेवा का ही परिणाम रहा कि जनता ने सर्वप्रथम 1991 में उन्हें भारी मतों से विधानसभा उपचुनाव में विजय दिलाई और यह कारवां उसके बाद भी निरंतर जारी रहा। दिलीप वर्मा लगातार 2005 तक सिकटा में विधायक पद पर सक्रिय रहे, 2005 में हालांकि वह उपविजेता रहे लेकिन जनसेवा का जज़्बा तब भी अहर्निश जारी रहा। इसके बाद 2010 में दिलीप वर्मा ने एक बार फिर भारी जनसमर्थन प्राप्त कर सिकटा का प्रतिनिधित्व संभाला।
"राजनीति के लिए नहीं सेवा के लिए राजनीति", के अपने आदर्शों को दिलीप वर्मा ने कभी धूमिल नहीं होने दिया है। अपने स्वाभिमान, राजनीतिक सिद्धांतों और दृढ़ संकल्प के चलते उन्होंने अनेकों बार मंत्री, सांसद इत्यादि पदों के अवसरों को अस्वीकृत किया। दिलीप वर्मा ने सही मायनों में अपनी गरिमामय पारिवारिक पृष्ठभूमि के संस्कारों एवं विरासत को संभालते हुए आगे बढ़ाया है और वर्तमान में उनकी संतति भी उसी परंपरा को आगे बढ़ा रही है।
दिलीप वर्मा के पूर्वजों का स्वर्णिम इतिहास
कहा जाता है कि किसी भी वंश का गौरवमयी इतिहास उसके पुरखों के संस्कारों एवं संकल्पों का दर्पण होता है, जिसकी आभा से आने वाली पीढ़ियां भी दमकती रहती हैं। दिलीप वर्मा के वंश का इतिहास भी समृद्ध और भारतीय संस्कृति का अनुपम उदाहरण है। 1700 ई के उत्तरार्ध में अयोध्या के समीप कुलीन कायस्थों की बस्ती अमरोही हुआ करती थी, जिसका शासन वर्षों तक चला। श्री राय जगत सिंह इसी वंश के राजा थे, जिनके वंशज आगे चलकर पाण्डेय कायस्थ कहलाने लगे।
कायस्थ परिवार वैदिक काल से ही अपनी कुलीनता के लिए जाना जाता है। शिकारपुर की गरिमामयी पारिवारिक पृष्ठभूमि, जिसकी स्थापना श्री गौरीशंकर ने की और श्री विंध्यवासिनीदत्त प्रसाद, दीवान श्री आद्या प्रसाद जैसी विभूतियों ने इस परिवार को शोभित किया। पाण्डेय जगन्नाथ प्रसाद सहित श्री भगवती प्रसाद वर्मा, श्री विपिन बिहारी वर्मा, श्री युगल किशोर ब्रह्मचारी, श्री पाटन प्रसाद के समय से ही आवास को गरीबों की सेवा के लिए चिकित्सालय बना दिया गया। शिकारपुर के इसी ऐतिहासिक परिवार को महात्मा गांधी जी के आतिथ्य का गौरव प्राप्त हुआ, जिसे सींचते हुए श्री अवधेश प्रसाद (दिलीप वर्मा के दादा जी) ने पुनीत संस्कारों के इस कारवां को आगे बढ़ाया, जिनके परम मित्र और संबंधी देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद रहे।
शिकारपुर के इस सुप्रसिद्ध परिवार ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई और महात्मा गांधी जी के साथ साथ सुभाष चंद्र बोस, विपिन चंद्र पॉल सहित अनेकों स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के साथ भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया। दीन दुखियों की सेवा का व्रत जिस परिवार की रग रग में रचा-बसा हुआ है, ऐसे गरिमापूर्ण परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने का सौभाग्य दिलीप वर्मा को मिला है।
विगत 40 वर्षों से कर रहे हैं जनसेवा
पश्चिमी चंपारण जिला बिहार के सुदूर क्षेत्रों में से एक है, जो नेपाल और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित है। हर वर्ष बाढ़ व सुखाड़ का दंश झेलता यह क्षेत्र आदिवासी, वनवासी बहुल है। यहां की अधिकतर जनसंख्या निर्धन व अशिक्षित है और कुपोषण, आर्थिक तंगी, बीमारी इत्यादि समस्याओं से घिरी हुई है। इस क्षेत्र के अंतर्गत दिलीप वर्मा बीते 40 वर्षों से संकल्पित होकर सेवा कर रहे हैं।
बेतिया, बगहा, मैनाठाड़े, नरकटियगंज, रामनगर सहित अन्य स्थानों पर नि:शुल्क शिविरों का आयोजन कर दिलीप वर्मा ने 10000 से भी अधिक दिव्यांगो को ट्राई साइकिल, बैसाखी इत्यादि उपकरणों का वितरण किया है। वहीं 32 हजार गरीबों का उन्होंने पटना और दिल्ली में बेहतर इलाज कराया है, इसके साथ ही हजारों लोगों का मोतियाबिन्द का ऑपरेशन वह अभी तक करवा चुके हैं। दिलीप वर्मा ने अपने विधायक आवास को जनसेवा के लिए समर्पित कर रखा था, इसके संबंध में वह कहा करते थे कि "यह सरकारी आवास मेरा नहीं बल्कि सिकटा के लोगों का है, जिनके मतदान की बदौलत मुझे यह मिला है। जिसे अब मैं अपने क्षेत्रवासियों को लौटा रहा हूं।"
भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ फूंका संघर्ष का बिगुल
दिलीप वर्मा ने केवल अपनी कर्मभूमि सिकटा ही नहीं अपितु समस्त चंपारण में अन्याय के शिकार लोगों की आवाज बनने हेतु संघर्ष किया। उन्होंने भ्रष्टाचार का दंश झेल रहे मजदूरों, किसानों, कामगारों, महिलाओं आदि की समस्याओं के लिए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। दिलीप वर्मा ने अपनी चंपारण विकास पार्टी के अंतर्गत चंपारण सहित पूरे बिहार में हो रहे घोटालों का पर्दाफ़ाश किया, जिनमें पशुपालन घोटाला, गन्ना घोटाला, धोती-साड़ी घोटाला, लाल कार्ड घोटाला इत्यादि को लेकर संघर्ष जारी रखा।
इसके अलावा दिलीप वर्मा ने गृह रक्षवाहिनी के जवानों को नौकरी दिलवाकर न्याय प्रदान करने का संकल्प उन्होंने लिया। होम गार्ड, जो देश की रक्षा के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं करते हैं, उन्हें मात्र बत्तीस रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिल रही थी। इसके लिए दिलीप वर्मा 1994 में आमरण अनशन पर बैठ गए और लगातार पांच दिनों तक निर्जला आमरण अनशन पर बैठे रहे। अंतत: सरकार को झुकना पड़ा और जवानों के वेतन में बढ़ोतरी की गई।
विधायक के रूप में सिकटा में किया विकास
1991 में प्रथम बार सिकटा विधानसभा का उत्तरदायित्व संभालते हुए दिलीप वर्मा ने सिकटा क्षेत्र के पिछड़ेपन को दूर करने के प्रयासों को गति दी। उन्होंने पेयजल, विद्युत, आवागमन सहित अनेकों जन समस्याओं पर प्राथमिकता से काम किया। उनके कुछ प्रमुख संपन्न विकास कार्य इस प्रकार हैं:
1.) पेयजल की विकट समस्या को दूर करने के लिए अपने विधायक कोष के माध्यम से अनेकों चापाकल लगवाए।
2.) मैनाटाड़ प्रखंड में कौडेना नदी पर साइफन का निर्माण कराया।
3.) उडिया नदी पर पुल का निर्माण कर आठ पंचायत क्षेत्रों का कल्याण किया।
4.) सिकटा, मैनाटाड़ प्रखंडों को जोड़ने हुए नौखनीयां नदी पर पुल का निर्माण कराया।
5.) कौडेना नदी (सुखलही) पर पुल का निर्माण कर मैनाटाड़ प्रखंड को नरकटियागंज से जोड़ा।
6.) सोमगढ़ सम्हौता सहित चार पंचायतों के आवागमन को सुगम बनाने के लिए पंडई नदी पर 42 लाख के पुल का निर्माण कराया।
7.) सिकता मैनाटाड़ में जहां लोगों ने कभी बिजली नहीं देखी थी, वहां नेपाल से रक्सौल के रास्ते लगभग 15 किमी विद्युत पोल गड़वाए और तार बिछवा कर सिकटा बाजार में बिजली लगवाई।
8.) असंगठित मजदूर बीमा योजना लागू करवाकर 31 विधवा महिलाओं को आर्थिक सहायता मुहैया कराई। भूमिहीनों को भी आर्थिक लाभ दिलाया गया।
9.) चंपारण के कल्याण के लिए औरेया चौक से की पदयात्रा, युवाओं से किया चंपारण के विकास का आह्वान।
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