नाम : दिलीप कुमार
काम : शिक्षक व समाजसेवी
नवप्रवर्तक कोड - 71182724
दिलीप कुमार पेशे से शिक्षक मगर दिल से और अपने
कार्यों से समाजसेवी हैं. वह अपने मिलनसार
स्वभाव के कारण विद्यार्थियों में काफी लोकप्रिय हैं. वर्षों तक जामिया मिलिया इस्लामिया में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप
में अपनी सेवा देने के बाद वह विभिन्न संस्थानों में भी पढ़ाते आए हैं.
पूर्वी भारत में उन्होंने अपनी सेवा टेकनिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस स्टडीज में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर और हेड ऑफ डिपार्टमेंट जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन के रूप में दी है. इसके साथ ही वह ट्रिनिटी इंस्टिट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज में भी एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर और मीडिया डिपार्टमेंट में हेड ऑफ डिपार्टमेंट का कार्यभार संभाला है. यही नहीं उन्होंने मीडिया संस्थान एनडीटीवी में रहकर भी कार्य किया है. अभी फिलहाल वह लिंगयाज ललिता देवी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड साइंसेस में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं.
बहुमुखी प्रतिभा के धनी दिलीप कुमार इसके साथ ही
नई प्रेस के मैनेजिंग एडिटर भी है और साथ ही समाजसेवा का कार्य भी करते हैं. उन्होने
पुनरुत्थान ट्रस्ट नामक एनजीओ की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले रखी है व अध्यक्ष के रूप
में वहाँ अपनी सेवा दे रहे हैं. पुनरुत्थान ट्रस्ट एक एनजीओ है जो की दिल्ली में स्थित
हैं . इस एनजीओ का मुख्य उद्देश्य वंचित बच्चों, युवाओं
और महिलाओं को प्रासंगिक शिक्षा,
अभिनव स्वास्थ्य सेवा और बाजार-केंद्रित आजीविका
कार्यक्रमों के माध्यम से सशक्त बनाना है. इसके साथ ही दिलीप कुमार लिखने-पढ़ने के
भी शौकीन हैं और लगातार शोध कार्य करते रहे हैं.
जैसा की हम सब जानते हैं की भारत में चुनाव के समय होने वाली रैलियों में सिर्फ धन और समय की बर्बादी होती है व इन रैलियों के कारण भ्रष्टाचार भी बढ़ता है, जनमेला चुनावों में हो रही इन त्रुटियों को सुधारने की एक पहल है.
दिलीप जी के हिसाब से जनमेला एक यूनीक कान्सैप्ट
पर आधारित हैं इसमे लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की गयी है,
भारत के लोकतन्त्र को अगर एक मजबूत लोकतन्त्र बनाकर विश्व में उभारना है तो जनमेला
जैसे साईंटिफ़िक कान्सैप्ट को बढ़ावा देना होगा,
इस कान्सैप्ट के लिए जनता को ज्यादा से ज्यादा जागरूक किया जाए उन्हे बताया जाए की
लोकतन्त्र क्या है और लोगों का, लोगों के और लोगों द्वारा अगर सरकार को संचालित
किया जाए तो लोकतन्त्र में जनमेला का यह नया कान्सैप्ट मील का पत्थर साबित होगा यह
एक लोकतान्त्रिक अवधारणा है.
हाल के कुछ दिनों से मीडिया व सोशल मीडिया आंशिक सत्य व गलत खबर दिखाने के कारण जैसे सबके निशाने पर हैं उस पर दिलीप जी का मानना हैं की मीडिया समाज का आईना होता है, कहीं न कहीं अगर हम लोकतन्त्र के वास्तविक सत्य को जानना चाहते हैं तो आज के दशक में न्यू मीडिया को एक अहम भूमिका निभानी चाहिए भारत की ज्यादातर जनता मीडिया को भरोसे का प्रतीक मानती हैं ऐसे में मीडिया की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है और ऐसे में हाल के दशकों में कई बार मीडिया पर प्राश्निक चिन्ह लगे हैं जो की काफी निंदनीय हैं ऐसे में मीडिया मात्र एक मज़ाक बनकर रह जाएगा.
मीडिया को पारदर्शी होने के साथ साथ आम जनता को
जागरूक करने की भी आवयशकता है मीडिया सच्ची खबरों को जनता तक ले जाए .
जनमेला के तहत वोटिंग की पारदर्शिता पर दिलीप
कुमार जी के तहत इससे चुनावी प्रक्रिया प्रभावी साबित होगी अभी चुने जा रहे
प्रत्याशीयों की प्रक्रियाँ पूर्ण लोकतान्त्रिक नहीं हैं. यह प्रत्याशी समाज के
प्रतिनिधि होते हैं इन्हे चुनने की प्रक्रियाँ ऐसी हो जिसमे की इनके समाज में किए
गए अच्छे कामों को देखा जाए व इसी पर इनकी वोटिंग हो इसके बाद उनकी ग्रेडिंग हो
जिसमे देखा जाए की उन्होने अपने चुनावी वादे पूरे किए गए या नहीं चयन प्रक्रियाँ
अगर साफ सुथरी होगी है तो लोगों का विश्वास भारतीय राजनीति पर विश्वास कायम रहेगा.
दिलीप जी आगे बताते हैं की मतदाता लोकतन्त्र की
रीढ़ की हड्डी हैं क्योंकि देश की सरकार चुनने का अधिकार सबसे बड़ा अधिकार है और यह अधिकार मतदाता का है इतनी
बड़ी ज़िम्मेदारी निभाने से पहले मतदाता की ज़िम्मेदारी भी बढ़ जाती है मतदाता चुनाव
प्रक्रिया का अहम हिस्सा होता है उसे पता होना चाहिए की वह किसको वोट दे रहा है,
अगर मतदाता जागरूक होगा तो आने वाले दिनों में वह एक जागरूक नेता भी बनेगा इससे
राजनीतिक पार्टियों की जवाबदेही बढ़ जाती है यह भारतीय लोकतन्त्र के लिए बहुत
आवश्यक है.
चुनावी फंडिंग को परदर्शि करने के लिए सूप्रीम
कोर्ट ने भी कहा है की चुनाव को अगर परदर्शि करना है तो उसकी फंडिंग भी परदर्शित
हो और न केवल चुनाव आयोग को बल्की आम जनता
को भी इसकी पूर्ण जानकारी हो.