नाम - भारत भूषण त्यागी
पद - प्रगतिशील किसान, मिश्रित एवं जैविक कृषि विशेषज्ञ (बुलंदशहर)
नवप्रवर्तक कोड - 71183495
प्रकृति का इशारा है, अभी भी वक्त है संभल जाओ ! नहीं तो झेलने को तैयार हो जाओ....(भरत भूषण त्यागी)
मनुष्य और प्रकृति के परस्पर समन्वय को परिभाषित करते
धरती पुत्र श्री भारत भूषण त्यागी जी जैविक एवं मिश्रित कृषि क्षेत्र में चर्चित
नाम है. भारतीय कृषि को विभिन्न विधाओं के माध्यम से नए आयाम देने वाले भारत भूषण
जी ने खेती के प्रति नई पीढ़ी के मध्य जागरूकता पैदा करने का कार्य किया है, साथ ही
वें एक प्रगतिशील कृषक के रूप में किसानों की मानसिक चेतना में गुणात्मक परिवर्तन
लाने की दिशा में निरंतर अग्रसर हैं.
शिक्षा के साथ किया कृषि का समागम –
वर्ष 1974 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से गणित, भौतिकी और
रसायन विज्ञान में स्नातक कर रहे ग्राम बीटा, बुलंदशहर के एक युवा ने कभी भी कृषि
को भावी करियर के रूप में नहीं देखा था, परन्तु कृषक अभिभावकों के कहे अग्रलिखित प्रेरक
कथनों ने उस युवा के जीवन का रुख ही बदल दिया..
“आने वाले समय में ग्रामों की दुर्दशा होगी क्योंकि कृषि करने वाले पढ़े-लिखे नहीं हैं और अच्छी शिक्षा कृषि के लिए बेहद जरूरी है.”
माता-पिता के दिए इन संस्कारों के चलते उस युवा ने
कृषि में ही अपना मन रमा लिया और किसानी को ज़मीनी स्तर पर परखना आरम्भ कर दिया. आज
44 वर्ष बाद उसी युवा यानि भारत भूषण त्यागी जी को देश के सर्वाधिक प्रगतिशील किसानों में से एक के तौर पर
जाना जाता है, जिन्होंने अपने अथक प्रयासों और शिक्षा के साथ कृषि के समागम से
भारतीय खेती के उन्नत एवं विकसित स्वरुप को सबके सामने अंकित किया.
शिक्षित सोच के साथ भारत भूषण जी ने प्राकृतिक व्यवस्था का गहन अध्ययन करके मिश्रित फसलों द्वारा कृषि को व्यवस्थित स्वरुप दिया और धीरे धीरे देश भर के किसानों को अपने साथ जोड़कर कृषि क्षेत्र में नवक्रांति का प्रचार प्रसार किया.
संघर्षशील जीवन से स्थापित किये नए मानक –
कृषि क्षेत्र में 40 वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाले भारत
भूषण जी के अनुसार आरम्भ में उन्होंने भी उर्वरक व कीटनाशकों का प्रयोग कर कृषि
करना शुरू किया था, परन्तु उससे होने वाले प्रतिकूल प्रभावों ने उनकी मानसिकता ही
बदल डाली. इसके उपरांत उन्होंने जैविक खेती को अपने जीवन का ध्येय मान कर पर्यावरण
संरक्षण की दृष्टि से अपनी दिशा को एक नया मोड़ दिया.
उनके समक्ष आने वाली प्रारंभिक चुनौतियों में सबसे बड़ी थी, जनमानस की सदियों से स्थापित रुढ़िवादी विचारधारा और तत्कालीन सरकारी संस्थाओं के पास संसाधनों एवं सही समझ का अभाव. ग्रामवासी किसी भी प्रकार के परिवर्तन के लिए सरलता से तैयार नहीं हो होते और कुछ ऐसी ही परिस्थिति भारत भूषण जी को भी झेलनी पड़ी, परन्तु परिवारीजनों के साथ और संकल्पित इच्छाशक्ति के चलते वे आगे बढ़ते चले गए.
खेती पर बाजारीकरण का प्रभाव –
कृषि की बारीकियों को समझकर योजनानुरूप खेती करने के विशेषज्ञ भारत भूषण जी ने
आईआरआई, पूसा संस्थान से कृषि तकनीकों, बीजो एवं खाद का उचित प्रयोग आदि सीखकर
कृषि के मैकेनिज्म को समझा. इसके पश्चात जो उलझन उनके सम्मुख पेश आई, वह कृषि का
बाजारीकरण था. उन्होंने महसूस किया कि खेती के अंतर्गत सिंचाई, बुआई, बीज, खाद,
जुताई आदि सब कुछ बाज़ार का अंग बन चुका है, साथ ही खेती से उत्पन्न उत्पाद भी
बाज़ार में ही बिक रहे हैं, यानि किसानों की कीमत बाज़ार निर्धारित कर रहा है. उनके
शब्दानुसार,
“खेती पर व्यापार का आक्रमण है.”
खेती को इस चक्रव्यूह से बाहर निकालने के मंतव्य से उन्होंने देश भर में
किसानों से मिलना-जुलना आरम्भ किया और बहुत से व्यवसायिक तरीकों में भी प्रशिक्षण
लिया. उन्होंने निरंतर प्रयासरत रहकर आत्मबोध किया कि उत्पदान से लेकर बाज़ार
व्यवस्था तक किस प्रकार समन्वित प्रयास किये जाये और क्या किसान इस प्रयास में सफल
हो सकते हैं? साथ ही इन प्रयासों में उन्होंने स्वयं की भूमिका का भी मनन किया.
उनके अनुसार कृषि पर बाज़ार का ही प्रभाव था कि जैविक कृषि को उस समय नकारा जा रहा था, यहां तक कि वैज्ञानिक भी इस पद्धति को अधिक तवज्जों नहीं दे पा रहे थे. जिसके पश्चात उन्होंने कृषि तकनीकों में नवीनता एवं विविधता लाकर किसानी को मुनाफे के साथ जोड़ा और प्राथमिक कदम यही उठाया कि किस प्रकार कृषि का बाजारीकरण रोका जाये. जिसके लिए खेती की गुनात्मक अर्थव्यवस्था का सिद्धांत उन्होंने स्वयं के उदाहरण से अन्य किसानों के सामने रखा.
गुनात्मक परिवर्तन का अर्थ है, जीव चेतना से मानव चेतना मे परिवर्तन. इसके लिए मध्यस्थ दर्शन सह अस्तित्ववाद प्रणेता श्री अग्राहार नागराज अमरकंटक के प्रकाश में इस वर्तमान में धरती के सभी मानव अध्ययनपूर्वक मानवीयतापूर्ण आचरण की वास्तविकता को समझकर ही समाधान के साथ जीकर सफल होंगे.
सह अस्तित्व को स्वीकार कर ही मानव विरोध से मुक्त होता है. विरोध के कारण ही मानव का मानव के साथ संबंधों में विश्वासघात तथा शेष प्रक्रति के साथ असंतुलन समस्या के रूप में मानव जाति झेल रही है. आज खेती भी इस प्रकार की भ्रमित मानसिकता के कारण संकटग्रस्त हो गई है, धरती पर उत्पादन व्यवस्था नियम संतुलनपूर्वक है, फिर खेती के नाम पर मनमानी क्यों? न्याय के विरुद्ध कम देकर ज्यादा लेने की मानसिकता क्यों?
खेती का अर्थ भी यही है कि प्रकृति की व्यवस्था को समझकर उसके साथ जिया जाए. इसके अलावा अनेक प्रकार की भय प्रलोभन आस्थावादी विचारधाराओं के परिणाम भी सामने हैं. आज इतिहास को दोहराने की जरूरत नहीं है अपितु वर्तमान को समझने की जरूरत है.
मिश्रित कृषि पद्धति से खेती को दिया नवजीवन –
भारत भूषण जी ने पर्यावरण व भूमि के लिए मिश्रित कृषि को नितांत आवश्यक माना है. उनका मानना है कि यदि हम भी प्रकृति के साथ तालमेल बना कर कार्य करें तो प्रकृति भी हमारे अनुकूल ही परिणाम देगी. प्रकृति द्वारा प्रदान की गयी सभी वस्तु बेहद उपयोगी है. यदि आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो मिश्रित खेती सुरक्षा कवच का कार्य करती है.
भारत भूषण जी के अनुसार जब एक खेत में एक साथ भांति-भांति
की फसलें उगाई जाती हैं, तो यह संभावना रहती है कि यदि कोई फसल मौसम की असामान्यता
के कारण खराब हो जाये तब भी अन्य फसल बच सकती है. साथ ही बाज़ार में यदि किसी एक
फसल का मूल्य गिर रहा है, तो अन्य किसी फसल का मूल्य बढ़ भी रहा होगा, जिससे किसान
को हर दशा में लाभ होगा. मिश्रित कृषि से प्राप्त सुरक्षा न केवल मिट्टी की नमी को
बनाए रखने में सहायक है, अपितु विभिन्न कीटों एवं फसल-व्याधियों के प्रकोप की
स्थिति में भी लाभदायक सिद्ध हुई है.
धरती को विविधता की जननी की संज्ञा से संबोधित कर भरत जी मिश्रित कृषि की तकनीक के लिए पांच चरण को समझना बेहद आवयश्क मानते है.
1.उत्पादन 2.प्रसंस्करण 3.प्रमाणीकरण 4.बाज़ार व्यवस्था 5.प्रकृति का सहयोग
यही पांच चीजों को ध्यान में रख कर कृषि को उचित तरीके से किया जा सकता है.
मौसम के अनुसार फसलें उगाना तथा उनकी उचित देखभाल से 10 गुना तक लाभ प्राप्त किया
जा सकता है.
जैविक कृषि से स्थापित किया प्रकृति संग तालमेल -
वर्तमान में किसान मुनाफा ज्यादा प्राप्त करने के लिए खरपतवार व कीटों को नष्ट
कर जहरीले रसायनों का सहारा ले रहें हैं, परन्तु यह रसायन जो आज
मुनाफा प्रदान करने का साधन बने हुए हैं वही कल इस भूमि को बंजर बना देंगे.
भारत भूषण जी का मानना है कि वर्तमान में कृषि के लिए जो आधुनिक तौर तरीके
अपनाये जा रहें है, उससे प्रकृति के संतुलन पर खतरा बढ़ता जा रहा है, परिणामस्वरूप
लोगों को जानलेवा बीमारियों से जूझना पड़ रहा है.
बेमौसमी सब्जियों को उगाना उनका सेवन करना स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के
लिए भी हानिकारक है. भूमि अपनी उर्वरता के लिए कीड़े या खरपतवार पैदा करती है ताकि
फसलों की प्रतिरोधक क्षमता का संतुलन बना रहे, लेकिन खतरनाक रसायनों का प्रयोग कर
इन सबको नष्ट किया जा रहा है, जिससे अत्यधिक फसल हो सके परन्तु ये लाभ नहीं ये
भविष्य में उत्पन्न होने वाली बड़ी क्षति की ओर इशारा है. इन्हीं खतरों से प्रकृति
का संरक्षण करने के निहितार्थ भारत भूषण जी अन्य किसानों के बीच जैविक खेती की अलख
जगा रहे हैं.
भारत भूषण जी के अनुसार, जरूरी नही कि फसल प्राप्त करने के लिए बड़ी जमीन की ही
आवयश्कता हो, जिसके पास जितनी जमीन की उपलब्धता है, उसमें भी जैविक खेती की जा
सकती है और यही पर्यावरण संरक्षण का उचित मार्ग भी है.
जनतंत्र के मध्य नवचेतना के प्रणेता –
“पिछले 35 वर्षों में देश में काफी कुछ परिवर्तन हुआ है. धर्मतंत्र और राजतंत्र इस उथल-पुथल को तब तक दूर नहीं कर सकते, जब तक जनतंत्र बेहद बारीकी से सभी तथ्यों को नहीं समझें.”
इसी अंतर्ध्वनि के साथ भारत भूषण जी निरंतर जनचेतना के लिए कार्य कर रहे हैं, उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे आमजन को उन्हीं के अनुरूप समझकर चलते हैं और स्वयं कार्यों को करके दिखाते हैं. उनके प्रयासों के परिणामस्वरुप आज समाज में कृषि को लेकर सकारात्मक बदलाव आने लगा है. देश भर से किसान आज उनके पास प्रशिक्षण के लिए जाते हैं और यही नहीं बहुत से शिक्षा एवं तकनीकी संस्थानों में उन्हें विशेष प्रवक्ता के तौर पर आमंत्रित भी किया जाता है.
वे प्रत्येक माह हजारों किसानों के मध्य जागरूकता फैला कर उन्हें मिश्रित एवं
जैविक कृषि प्रशिक्षण देने के साथ साथ विदर्भ, बुन्देलखंड जैसे सूखाग्रसित क्षेत्रों
के किसानों की समस्याओं को भी समझने की दिशा में सराहनीय कार्य कर रहे हैं. उनके
कथनानुसार,
“आज आवश्यकता है कि किसान राजनीतिक विरोधाभास से बाहर निकलकर स्वावलम्बी बने, अपनी जिम्मेदारी को समझें और खेती को सही तरीके से आत्मसात कर देश को आगे बढ़ाएं.”
आईआईटी दिल्ली, आईआईटी कानपुर जैसे तकनीकी संस्थानों के साथ साथ अन्य बहुत से
यूनिवर्सिटीस के छात्रों से मिलकर भारत भूषण जी उन्हें कृषि क्षेत्र में भविष्य
बनाने के प्रति प्रेरित करते हैं.
कृषि मंत्रालय, एग्रीकल्चर फाइनेंस कमीशन, नाबार्ड जैसे बड़े सस्थानों के साथ कार्य कर
चुके भारत भूषण जी राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र के साथ जुड़कर किसानों को जैविक
खेती में प्रमाणीकरण दिलवाने के लिए भी कार्य कर रहे हैं, जिसके अंतर्गत जैविक
कृषि से संबंधित सभी समस्याओं का निवारण करने की दिशा में पहल कर रहे हैं.
आर्गेनिक कृषि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश प्रशासन के साथ
मिलकर भारत भूषण जी किसानों के सहयोग से फार्मर कमीशन आर्गेनाईजेशन का भी गठन किया
है, जिसके माध्यम से वें प्रदेश में किसानों की प्रत्येक समस्या को दूर करने में
अहम भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं.
“प्रगतिशील किसान” के रूप में पाया सम्मान –
देश भर के किसानों के मध्य अनूठी मिसाल बने भारत भूषण जी को अब तक अनगिनत पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है. इन सम्मानों को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी समझकर चलने वाला यह किसान वास्तव में प्रशंसा के दायरे में सीमित नहीं किया जा सकता है.
स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इन्हें “प्रगतिशील किसान” के
पुरस्कार से विभूषित किया है. पिछले वर्ष भारत में हुए विश्व जैविक कुंभ के
अंतर्गत भारत भूषण जी को जहां “धरती पुत्र” की उपाधि दी गयी, वहीँ प्राकृतिक
तरीकों से जैविक कृषि से संबंधित किसानों को प्रशिक्षित करने के चलते उन्हें वर्ष
2018 में ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने यूपी दिवस पर
सम्मानित भी किया.
हाल ही में देश के 70वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर जैविक कृषि में अनुपम योगदान के लिए केंद्र सरकार द्वारा भारत भूषण जी को पदम् श्री सम्मान देने की घोषणा की गयी है. इसके अतिरिक्त भी अनगिनत यूनिवर्सिटीस, कर्नाटक सरकार, गुजरात सरकार आदि ने भी
भारत भूषण जी को सम्मानित किया है. इन सभी पुरस्कारों को समाज के प्रति अपने
कर्तव्य समझते हुए वे निरंतर कृषि विशेषज्ञों के साथ मिलकर देश को एक नई दिशा देने
के पथ पर अग्रणी हैं.
अंततः कहा जा सकता है कि भारत भूषण जी केवल एक कृषक नहीं, अपितु एक विकसित विचारधारा के प्रतीक हैं, जो समाज में नवप्रवर्तन की पहल करने की ओर अग्रसर होकर देश को वास्तविक विकास के पथ पर अग्रसर कर रही हैं. उनके इन प्रयासों का हम हृदय से सम्मान करते हैं और उनके प्रेरक व्यक्तित्व से यदि थोड़ी सी शिक्षा भी समाज ग्रहण कर सके तो सही मायनों में देश एक बार फिर “सोने की चिड़िया” कहा जाएगा.