नवप्रवर्तक - बाबू
लाल जैन छाबड़ा
पद- राष्ट्रीय
महामंत्री (श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा), लखनऊ
नवप्रवर्तक कोड -
प्रारंभिक जीवन एवं
शिक्षा –
श्री भारतवर्षीय दिगंबर
जैन महासभा के आधारकर्ता श्री बाबूलाल जैन छाबड़ा जी का जन्म 3 अप्रैल 1946 में
सआदतगंज, लखनऊ में हुआ. प्राथमिक शिक्षा (कक्षा छह तक) के उपरांत मात्र 12 वर्ष की
आयु में वे अपने पिता के व्यवसाय में सहयोग देने लगे.
बेहद लगन एवं निष्ठा
से कार्य करते उन्होंने अपने व्यवसायिक जीवन में निरंतर उन्नति की और बाबूलाल जैन
के नाम से एक दुकान प्रारंभ की, जिसके उपरांत वर्ष 1980 में उनके द्वारा “मेसर्स
संतोष गृह उद्योग” के नाम से दूसरी फर्म का भी उद्घाटन किया गया. वर्तमान में बाबूलाल
जी अथक परिश्रम द्वारा फलीभूत व्यवसाय को परिवार को सौंप कर पूर्ण रूप से समाज
सेवा के कार्यों में संलग्न हैं.
संगठनात्मक
कार्यशैली –
श्री भारतवर्षीय
दिगम्बर जैन महासभा में महामंत्री पद पर कार्य करने के साथ साथ बाबूलाल जी धर्म
संरक्षिणी महासभा, तीर्थ संरक्षिणी महासभा एवं खंडेलवाल दिगम्बर महासभा में भी
महामंत्री के पदभार को बखूबी संभाल रहे हैं. वर्ष 1997 में गठित “धर्म संरक्षिणी
महासभा” में संयुक्त महामंत्री के पद पर कार्य करते हुए बाबूलाल जी लोगों में
धार्मिक ज्ञान एवं संस्कारों की स्थापना करने के मंतव्य से विद्यालयों में जैन
धर्म की शिक्षा की व्यवस्था करते हैं. साथ ही धर्म पर आए संकटों को सुलझाने की
दिशा में भी प्रयत्नशील रहते हैं और संस्कार शिविर एवं धार्मिक पुस्तकों के
प्रकाशन और नि:शुल्क आबंटन से जन जन के मध्य धर्म की प्रतिस्थापना होते देखना
चाहते हैं.
“तीर्थ संरक्षिणी
महासभा” के अंतर्गत मंत्री पद पर सुशोभित होकर बाबूलाल जी तीर्थस्थलों के
जीर्णोद्धार का कार्य देखते हैं. इस महासभा का प्रमुख उद्देश्य देशभर के प्राचीन
तीर्थस्थलों का संरक्षण एवं संवर्धन करना है. इसके तहत अब तक लगभग 310 तीर्थ
क्षेत्रों के नवीनीकरण के लिए सहायता राशि दी जा चुकी है तथा इन क्षेत्रों की
तस्वीरें संकलित कर जीर्णोद्धार हेतु पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया जाता है.
“खंडेलवाल दिगम्बर
महासभा”, मुख्य रूप से जैन परिवारों का एक संगठन है, जो देश भर में जैन परिवारों
की एकजुटता और एकीकरण का कार्य करता है. बाबूलाल जी इस सभा में महामंत्री पद पर
आसीन हैं और इसके जरिये वे खंडेलवाल जैन परिवारों के परिचय संकलन हेतु कार्यरत
रहते हैं, साथ ही विवाह योग्य युवक-युवती परिचय सम्मेलन भी आयोजित कराना इस सभा का
उद्देश्य है.
सामाजिक सरोकार –
सामाजिक रूप से
जनसेवा के कार्य में अपना अग्रणी योगदान देने वाले बाबूलाल जी युवा वर्ग में
संस्कृति एवं मूल्यों की प्रतिस्थापना होते देखना चाहते हैं. उनका मानना है कि
विवाह का निर्णय सज्जाति होकर लेना चाहिए. अर्थ है कि समाज में जाति की रक्षा के
बारे में सकारात्मक सोच रखनी आज की आवश्यकता है. साथ ही उनके विचारानुसार
सादगी, परिश्रम और कार्य के प्रति लगन
लोगों को सदैव गौरवशाली बनाती है.
युवाओं से मूल्यों
और जनकल्याणकारी कार्यों के आदर की अपेक्षा रखते हुए निवेदन करते हैं कि युवा
पीढ़ी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए उच्च शिक्षा का दुरुपयोग न करें. अपने संगठन “श्री
भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा” के द्वारा वे समाज में परिवर्तन लाने की दिशा में कार्य कर
रहे हैं. इस संगठन के विभिन्न अंग धर्म संरक्षिणी, श्रुत संवर्द्धिनी, तीर्थ
संरक्षणी, पाण्डु लिपि, खंडेलवाल महासभा आदि विभागों के रूप में समाज के अलग-अलग
क्षेत्रों में कल्याणकारी कार्यों के प्रति प्रयासरत हैं.
संगठन द्वारा किये
गए विकास कार्य –
वर्तमान में बाबूलाल
जी “श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा” के कार्यों
में पूर्ण रूप से तल्लीन रहते हैं. इस संगठन के अंतर्गत विभिन्न सभाओं के द्वारा
मासिक पत्रिकाओं का संपादन भी किया जाता है. जिनमें “जैन गजट”, “महिलादर्श”, “प्राचीन
तीर्थ जीर्णोधार” एवं “हितेच्छु” पत्रिकाएँ मुख्य हैं.
संगठन की ओर से जैन
गजट पत्रिका का प्रकाशन हिन्दी भाषा के अतिरिक्त मराठी और कन्नड़ भाषा में भी
होता है. खण्डेलवाल दिगंबर जैन सभा का पूर्ण ध्येय निर्धनों, असहायों, कमजोर वर्ग के
जीवन को बेहतर बनाना और उनके विकास की दिशा में निरंतर योगदान देना है. अपने इस
ध्येय के लिए वें वंचित वर्ग को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के साथ साथ उन्हें
मासिक आर्थिक सहायता भी देते हैं. मानव सेवा के निहितार्थ यह महासभा निर्धन वर्ग
को स्वास्थ्य सुविधाएं भी मुहैया कराती है.
सामाजिक परिवर्तन पर
विचार –
बाबूलाल जी का मानना
है, कि किसी भी समाज को कायम रखने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
लगातार सम्मेलन और बैठकों का संचालन होते रहना चाहिए. साथ ही समाज की वर्तमान
स्थिति में होते परिवर्तन का उत्तरदायी वे टेलीविजन कार्यक्रमों को मानते हैं. परिवर्तन
का तात्पर्य सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही मायनों में हो रहे बदलाव से लगाया जा
सकता है. उनका मानना है कि बालकों को होटल संस्कृति से दूर ले जा बेहतर शिक्षा
देना चाहिए. साथ ही शाकाहार के प्रचार-प्रसार को भी बाबूलाल जी समाज की उन्नति का
द्योतक मानते हैं.
भावी परियोजनाएं -
मंजिल वरमाला को लेकर, स्वयं तुम्हारा वरण करेगी।तुम हिम्मत से बढ़ते जाओ, विजय तुम्हारे चरण धरेगी।।
बाबूलाल जी ऐसी सोच के साथ लगातार अपने ध्येय की ओर बिना किसी बाधा की
चिन्ता किये बढ़ने का संदेश देते हैं. वे श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा और
खंडेलवाल दिगम्बर महासभा के प्रति पूर्ण संकल्पित भाव से कार्यरत रहते हुए न केवल
इन सभाओं को अपितु सामाजिक तंत्र को भी सुविकसित एवं पोषित होता देखने के लिए
प्रयासरत हैं.