नाम : अतुल तिवारी
पद : डायरेक्टर , संवाद सामाजिक संस्था, लखनऊ
नवप्रवर्तक कोड : 71183046
परिचय :
सामजिक नवप्रवर्तन के द्योतक अतुल तिवारी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. वें 1998 से सामाजिक कार्यों से जुड़कर जन साधारण को उनके मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं. अपने संगठन सवांद सामाजिक संस्था के माध्यम से वें लखनऊ, बाराबंकी तथा प्रतापगढ़ जिलों में लोगों को सरकारी परियोजनाओं के असल लाभों के बारे में सचेत कर रहे हैं.
समजिक उद्देश्य :
तिवारी जी अपने संगठन के जरिये वंचित लोगों को उनके अधिकारों को ग्रहण करने के उचित तरीके समझाते हैं. उनके अनुसार आज समाज में सवांदविहीनता ने घर कर लिया है. लोगों के व्यवहार में संकुचन आ गया है. पहले जहां ग्रामों में चौपालें, बैठकें, वार्ताएं इत्यादि माध्यम लोगों में ज्ञान का प्रचार किया करते थे, वहीं आज मनुष्य स्वयं में सिमट कर रह गया है. इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि गाँव, कस्बों में सटीक जानकारियां पहुंच ही नहीं पाती और जरुरतमन्द वर्गों को उनके अधिकारों की खबर होती ही नहीं है. सवांद संगठन के माध्यम से तिवारी जी इसी प्रकार के लोगों तक जरूरी जानकारियों को पहुंचाते हैं. सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचाते हैं. इनका मुख्य ध्येय यही है कि सही जानकारियां लोगों तक जाएं एवं समाज उचित प्रकार से कार्य कर विकसित हो सके.
प्रमुख संगठनात्मक कार्य :
सवांद संस्था द्वारा मनरेगा योजना से मजदूरों को लाभ दिलवाना तिवारी जी के पायलट प्रोजेक्ट में से एक था. सोशल ऑडिट के जरिये उन्होंने प्रतापगढ़ के मजदूर वर्ग के लिए सरकारी सहायता से समय पर व उचित वेतनमान का प्रबंध, सरकारी सुविधाओं का उचित लाभ दिलवाने का कार्य किया. मनरेगा एक्ट के सभी प्रावधानों का शत प्रतिशत लाभ मजदूरों को मिल सके, इसके लिए उन्होंने एक लम्बी लडाई लड़ी और इसमें वें काफी हद तक सफल भी रहे.
इसके साथ ही वें बच्चों के अधिकारों के लिए भी कार्य कर रहे हैं. उनका मानना है कि क्योंकि बच्चे सरकार का वोट बैंक नहीं होते हैं, इसीलिए उनसे जुड़े अधिकारों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है. उनके लिए नीतियों का निर्माण तो किया जाता है परन्तु उस पर व्यावहारिक अमल कभी नहीं हो पाता है. आज आवश्यकता है कि बच्चों को घर में, स्कूलों में तथा आंगनवाडी इत्यादि में उनके अधिकारों की प्राप्ति हो तभी वें एक युवा के तौर पर देश के विकास में भागीदारी कर पाएंगे.
सवांद संस्था द्वारा महिलाओं के अधिकारों की भी बात रखी जाती है. तिवारी जी कहते है कि स्त्रियों को श्रम के क्षेत्र में सदैव कमतर आँका जाता रहा है, जबकि उनकी भागीदारी पुरुषों से भी अधिक होती है. उनके कार्यों को उचित सम्मान की प्राप्ति होनी जरुरी है तथा परिवार या कार्यक्षेत्र में हो रही प्रताड़ना पर प्रतिबन्ध भी आवश्यक है. उनकी संस्था स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने का कार्य भी कर रही है.
शिक्षा के अधिकार की सही इम्प्लीमेंटेशन पर भी तिवारी जी ध्यान केन्द्रित करते है, जिसके अंतर्गत शिक्षा की गुणवत्ता, सामान शिक्षा जैसे प्रावधानों की सही जानकारी वें जनमानस तक पहुंचाते हैं.
सामाजिक कार्यो में बाधाएं :
तिवारी जी के अनुसार समाज के लिए कुछ बेहतर करने के प्रयास में कठिनाईयां आना तो स्वाभाविक ही है. आर्थिक पक्ष इस मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है, संसाधनों की व्यवस्था में काफी परेशानी उठानी पडती है. इसके साथ साथ सत्ता में विराजमान कुछ प्रभावशाली लोग वंचितों के अधिकारों की राह में रोड़ा बनते हैं. जन साधारण भी बहुत बार जानकारियों का क्रियान्वन सही से नहीं करते हैं, इसी कारण संस्था को द्वंदात्मक स्थिति से दो चार होना पड़ता है. टिकाऊ परिवर्तन के लिए बार बार प्रयास करना स्वयं में एक चुनौती है.
बेहतर नीति परिवर्तन
समाज के प्रत्येक व्यक्ति को एक सम्मानपूर्वक जीवन मिले, उसकी अपनी गरिमा हो, सही पहचान हो, बेहतर सामजिक ताना बाना हो तथा सबको समानता का अधिकार प्राप्त हो, इस प्रकार के समाज की आशा तिवारी जी करते हैं. समाज में ऐसी नीतियों का निर्माण हो सके, जिनके माध्यम से लोग एक साथ मिलजुल कर समस्याओं को सुलझा सकें.
सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचार :
तिवारी जी मानते है कि छात्रों व नौजवानों में सामजिक उत्तरदायित्वों का बोध होना जरुरी है, जब यह व्यवहार सम्बंधी परिवर्तन समाज में आयेगा तभी देश आगे बढ़ पायेगा. यदि सामाजिक कार्यों के प्रति हर नागरिक में चेतना आ जाती है तो एक बेहतर समाज का निर्माण स्वत: ही हो जाएगा. केवल व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा जिस दिन सामाजिक लाभ का रूप ले लेगी उस दिन देश भी पूर्णत: विकसित हो जाएगा. सबके प्रयासों से यह संभव भी है कि यह सामाजिक जागरूकता एक दिन अवश्य आयेगी.