यमुना नदी के तट पर बसी बांकेबिहारी की नगरी, जहां की हर गली में कान्हा की
जयकार है, जहां के हर रास्ते में राधिका का गुणगान है, जहां की हवाओं में आज भी
मुरली की तान सुनाई देती है, जहां मंदिर- मंदिर भक्तों की कतारें दिखाई देती हैं.
यह वह धरती है जिसे खुद भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जन्म से पवित्र किया. मथुरा नगरी
की माया को शब्दों में बांधना संभव नहीं है, न ही यहां की रमणीयता का वर्णन कुछ
पंक्तियों के माध्यम से किया जा सकता है. सप्तपुरियों में शुमार इस दिव्य नगरी के
उस अलौकिक अनुभव को महज़ महसूस किया जा सकता है, जो आज भी श्रीकृष्ण के अस्तित्व
का अहसास कराता है.
संक्षिप्त परिचय –
ऐतिहासिक व पौराणिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला मथुरा जिला
उत्तर- प्रदेश के प्रमुख जिलों में से एक है. साथ ही यह जिला सूबे का प्रमुख
पर्यटक स्थल भी है. आगरा से लगभग 50 कि.मी. की दूरी पर स्थित मथुरा अत्यंत प्राचीन
शहर है. माना जाता है कि इस जिले की स्थापना कनिष्क वंश द्वारा की गई है. हिन्दुओं
के प्रमुख देवता भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली होने के कारण धार्मिक व पर्यटन के
दृष्टिकोंण से मथुरा का महत्व और भी बढ़ जाता है.
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य -
प्राचीन काल में इस जिले को मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा, सूरसेन नगरी इत्यादि
नामों से भी जाना जाता था. वाल्मीकि रामायण में इस शहर को मधुपुर व मधुदानव का नगर कहा गया है. महाभारत और भागवत पुराण के आधार पर यह भी मान्यता है कि मथुरा सुरसना साम्राज्य की राजधानी
थी, जहां श्री कृष्ण के मामा कंस का
शासन था. उसी की जेल में कैद मां देवकी की कोख से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था.
कई
अन्य जगहों पर मथुरा का शूरसेन देश की राजधानी के रूप में भी उल्लेख मिलता है. धार्मिक रूप से विशेष स्थान रखने वाले इस जिले का कला, साहित्य आदि क्षेत्रों
में भी महत्वपूर्ण
योगदान रहा है. यहां के दिव्य एवं विशाल मंदिर शिल्प कला के बेजोड़ उदाहरण
प्रस्तुत करते हैं. साथ ही यह जिला रसखान, सूरदास सरीखे प्रसिद्ध कवियों की
कर्मस्थली भी रहा है.
भौगोलिक पृष्ठभूमि –
यमुना नदी के पश्चिम में बसे मथुरा जिले का क्षेत्रफल 3340 वर्ग किमी. है. यह शहर अक्षांश 27° 41' उत्तर और देशान्तर 77° 41' पूर्व के मध्य स्थित है. मथुरा आगरा मंडल के अंतर्गत आने वाला जिला है, जो कि इसके उत्तर- पश्चिम में स्थित है. जिले को 15 नगर निगम व चार विधानसभा क्षेत्रों (मांटा, छाता, बलदेव, मथुरा, गोवर्धन) में विभाजित किया गया है. जिले में एक संसदीय क्षेत्र है, जहां की सांसद मशहूर फिल्म अभिनेत्री रह चुकी भाजपा नेत्री हेमामालिनी हैं. यहां कुल 880 गांव है. यह जिला वृंदावन व गोवर्धन से जुड़ा हुआ ही है तथा क्रमशः 11 कि.मी. व 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है. यह समुद्र तल से 187 मीटर की ऊंचाई पर स्थिति है.
जिले में यमुना नदी उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है. साथ ही यहां यमुना की
सहायक नदियां करवन व पथवाहा भी बहती हैं. अपनी गोद में तमाम ऐतिहासिक कहानियां,
मान्यताएं व विरासतों को समेटे यह शहर आज भी विकास के मामले में प्रदेश के अन्य
बड़े जिलों की तुलना में काफी पिछड़ा है. सूबे का प्रमुख पर्यटन स्थल होने के
बावजूद सुविधाओं के लिहाज़ से सरकार द्वारा इस जिले को काफी नज़रअंदाज किया गया
है.
जनसांख्यिकी –
मथुरा जिले की कुल आबादी 25,47,000 है, जिसमें 13,67,000 पुरूष व 11,80,000
महिलाएं हैं. यहां का लिंगानुपात 869 तथा बाल लिंगानुपात 851 है. मथुरा जिले का
जनसंख्या घनत्व 12,536 वर्ग कि.मी. है, जो कि कई जिलों की तुलना में काफी अधिक है.
जिले की साक्षरता दर 75.49 प्रतिशत है, जिसके अंतर्गत पुरूषों की साक्षरता दर
महिलाओं की साक्षरता दर से काफी कम है. जिले में पुरूषों व महिलाओं की साक्षरता दर
का प्रतिशत क्रमशः 81.49 व 68.62 है.
पर्यटन स्थल –
मथुरा नगरी की माया ऐसी है कि यहां आने वाले लोगों के लिए यह समझना मुश्किल
होगा कि इस जिले में पर्यटन स्थल बसे हुए हैं या पर्यटन स्थलों के मध्य कोई जिला
बसा हुआ है. भारतीय संस्कृति और इतिहास से परिचित कराने वाले इस शहर के प्रत्येक
पर्यटन में ऐसा अद्भुत आकर्षण है, कि जो भी यहां आता है बस राधा- कृष्ण की भक्ति
में लीन होकर जाता है. आगरा में स्थित दुनिया के सात अजूबों में शुमार ताजमहल
घूमने आने वाले देशी- विदेशी पर्यटक सप्तपुरियों में से एक मथुरा नगरी भी जरूर
घूमने आते हैं. और मथुरा आने वाले पर्यटक इस जिले से जुड़े बरसाना, गोकुल, वृंदावन,
गोवर्धन आदि स्थलों की सैर करके ही जाते हैं.
माखन की यह नगरी आज मंदिरों का शहर बन चुकी है. यहां का हर स्थल, हर मंदिर, हर दीवार, हर दरवाजे की अपनी अलग कहानी है, जो कि भगवान श्रीकृष्ण की जीवन लीलाओं का बखान करती चली जाती है. इस मायानगरी के आप जितने भीतर जाएंगे, यह जिला आपको इतिहास के पन्नों के उतने ही पीछे लेकर जाएगा. आइए आपको बताते हैं मथुरा के कुछ प्रमुख व प्राचीन पर्यटन स्थलों के बारे में -
श्रीकृष्ण जन्मस्थली –
मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. यहां आज भी जेल की भांति का एक कमरा है. कहा जाता है कि यह वही जेल है, जहां कंस ने अपनी बहन देवकी को कैद करके रखा था और यहीं पर उन्होंने श्रीकृष्ण को जन्म दिया था. यहां एक विशाल मंदिर होने के साथ ही सुंदर अभ्यारण्य भी है. जहां प्रवेश करते ही पवित्रता की अनुभूति होती है.
रमण रेती –
गोकुल में स्थित रमण रेती नामक इस पर्यटन स्थल की रमणीयता
भी अनूठी है. इस स्थली की रेत को अत्यंत पवित्र माना जाता है. वर्णन है कि भगवान
कृष्ण यहीं पर अपने भाई बलराम व मित्रों के साथ खेला करते थे. रमणरेती के विशाल
परिसर में कई मंदिर व साधुओं की कुटियां आदि स्थित हैं.
द्वारकाधीश मंदिर –
इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण द्वारकाधीश के रूप में
विराजमान हैं. मंदिर की दीवारों पर बेहतरीन कला और चित्रकारी का प्रदर्शन किया गया
है. द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण 1814 में ग्वालियर के खंजाची रहे सेठ गोकुलदास
पारीख ने करवाया था. मंदिर में राधा- कृष्ण के सुंदर विग्रह के साथ ही अन्य देवी-
देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं.
मथुरा से 13 कि.मी. दूर वृंदावन में स्थित इस मनोरम मंदिर
को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं. बांकेबिहारी मंदिर का निर्माण 1864 में स्वामी हरिदास
ने करवाया था. यहां भगवान कृष्ण की बांकेबिहारी के रूप में पूजा की जाती है. कहा
जाता है कि इस मंदिर में मौजूद बांकेबिहारी की विग्रह किसी धातु का नहीं है, बल्कि
यह प्रतिमा स्वयं उत्पन्न हुई है. इसके साथ ही इस मंदिर की एक और विशेषता यह है कि
यहां कोई भी श्रृद्धालु बांकेबिहारी जी की मूर्ति को एकटक नहीं देख सकता. यहां
कुछ- कुछ देर पर प्रतिमा पर पर्दा गिरता रहता है. इसके पीछे की मान्यता है कि जो
भी भक्त बांकेबिहारी की मूर्ति को एकटक देख लेता है, बांकेबिहारी उसके प्रेम में
वशीभूत होकर उसी साथ चल देते हैं और मूर्ति मंदिर से गायब हो जाती है. ऐसा कई बार
होने के प्रमाण बताए जाते हैं, जिसके बाद मूर्ति को मंदिर में दोबारा स्थापित किया
गया.
वृंदावन में स्थित इस मंदिर का निर्माण 1542 में हुआ था. इस
मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण राधा रमन अर्थात राधा के प्रेमी के रूप विराजमान हैं.
यह मंदिर वृंदावन के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है.
आधुनिक कला और कारीगरी का बेजोड़ उदाहरण प्रस्तुत करने वाला
प्रेम मंदिर विशाल व भव्य होने के साथ ही अत्यन्त सुंदर व मनमोहक भी है. इस मंदिर
में राधा- कृष्ण व राम- सीता की मूर्तियां जोड़े के रूप में स्थापित हैं. वृंदावन
में बने इस मंदिर का निर्माण कृपालु महाराज ने करवाया था. 54 एकड़ के परिसर में
फैले इस मंदिर में रात के समय की लाइटिंग, फव्वारों के साथ ही आश्चर्यचकित करने
वाली कई दृश्य हैं. प्रेम मंदिर में आध्यात्म, आधुनिकता, धर्म, कला व विज्ञान का
अद्भुत संगम वास्तव में दर्शनीय है.
देश – विदेश में भगवान कृष्ण के मंदिरों का निर्माण करने
वाली तथा हिन्दू धर्म व संस्कृति के प्रचार- प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने
वाली संस्था इस्कॉन ने वृंदावन में भी श्रीकृष्ण के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया
है. मंदिर में हरे राम हरे कृष्णा का भजन जैसे ही गूंजता है. हर श्रृद्धालु भक्ति
में लीन होकर नृत्य करने लगता है. मंदिर में विदेशी भी श्रीकृष्ण की साधना में लीन
होकर मंदिर की सेवा का कार्य कर रहे हैं.
नंद भवन –
इसे चौरासी खंभा व बलराम जन्मस्थली के नाम से भी जानते हैं.
इस भवन में कुल 84 खंभे बने हुए हैं. मान्यता है कि यहां कृष्ण जी के बड़े भाई
बलराम का जन्म हुआ था तथा भगवान कृष्ण के शरारत करने पर मां यशोदा उन्हें इन्हीं
खंभों से बांधती थीं. इस महल की विशेषता यह है कि यहां बने 84 खंभे इस स्वरूप में
बने हैं कि कोई भी एक बार में पूरे खंभे गिन नहीं सकता है. मंदिर के नीचे पाताल
देवी का मंदिर व पूतना की मोक्ष स्थली भी है.
श्री राधारानी मंदिर –
मथुरा से कुछ दूरी पर बसे बरसाना गांव, जहां की राधा जी
रहने वाली थी, वहां राधा रानी का एक सुंदर मंदिर स्थित है. इस मंदिर भव्यता मथुरा,
वृंदावन घूमने आने वाले पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर ही लेती है. बरसाने की
होली देशभर में काफी प्रसिद्ध है तथा होली के समय इस मंदिर का रंग देखते ही बनता
है.
चार शिव मंदिर –
इस नगरी की अलौकिकता सिर्फ यहां के कृष्ण मंदिरों तक ही सीमित नहीं हैं. बल्कि
कहा जाता है कि भगवान शिव स्वयं मथुरा की रक्षा करते हैं. इसका प्रमाण है मथुरा के
चारों ओर स्थित चार शिव मंदिर. इस शहर के पूर्व में पिपलेश्वर मंदिर, उत्तर
में गोकर्णेश्वर मंदिर, दक्षिण में रंगेश्वर मंदिर, और पश्चिम में
भूतेश्वर महादेव का मन्दिर स्थित है. मथुरा के चारों दिशाओं में भगवान शिव के मंदिर होने के कारण उन्हें मथुरा का
कोतवाल भी कहा जाता है.
विश्राम घाट –
द्वारकाधीश मंदिर से 30 मीटर की दूरी पर स्थित विश्राम घाट यमुना नदी के तट पर
स्थित जिले का प्रमुख घाट है. इस घाट की विशेषता यह है कि यह मथुरा के अन्य 24
घाटों के मध्य में स्थित है. इस जिले के उत्तर व दक्षिण दिशा में 12- 12 घाट स्थित
हैं. इस घाट के लेकर मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करके इसी स्थान
पर विश्राम किया था, इसीलिए इसका घाट का नाम विश्राम घाट पड़ा. शाम के समय घाट पर
होने वाली यमुना आरती दर्शनीय है.
यमुना नगरी में अचरज, आश्चर्य व आध्यात्म से सराबोर ऐसे और भी कई दर्शनीय स्थल
है. जो यहां आने वाले हर पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.
औद्योगिक पृष्ठभूमि –
आध्यात्मिक इतिहास के साथ ही मथुरा की औद्योगिक पृष्ठभूमि भी काफी समृद्ध रही
है. प्राचीन काल में तो इस स्थान पर दूध- दही की नदियां बहती ही थीं. आज के समय
में भी यह जिला दूध से बनने वाले उत्पादों का उत्पादन केन्द्र है. साथ ही यहां
कपड़े व साड़ी पर छपाई का उद्योग भी काफी प्रचलित है.
वहीं जिले में स्थित इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की मथुरा तेल रिफाइनरी एशिया की
सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी में शुमार है. इसके अलावा जिले में अन्य कई छोटे- बड़ी
फैक्ट्रियां, कारखाने आदि स्थित हैं.
जलवायु संरचना –
मथुरा की जलवायु
संरचना उत्तर- भारत के अन्य जिलों के समान ही है. ग्रीष्म ऋतु में यहां का तापमान 22°
से 45° तथा शीत ऋतु में 10° से 14° सेल्सियस के मध्य या
अधिक रहता है. यहां का मौसम साधारणतया शुष्क रहता है. जिले की औसत वर्षा 66 से.मी.
है, जो कि सामान्यतया जून से सितंबर के बीच में होती है. जिले की अधिकांश वर्षा जुलाई- अगस्त माह में होती है तथा
इस मौसम में मथुरा का पश्चिमी भाग बाढ़ की चपेट में भी आ जाता है.
नागरिक सुविधाएं –
नागरिक सुविधाओं में शिक्षा की यदि बात करें तो जिले में पर्याप्त स्कूल व
कॉलेज होने के साथ ही कई बड़े इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट कॉलेज भी हैं. यही नहीं
बल्कि एशिया का पहला पशु चिकित्सा कॉलेज (पं दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा
विश्वविद्यालय) इसी जिले में स्थित है.
वहीं यदि स्वास्थ्य व्यवस्था पर चर्चा करें तो जिले में 6 अस्पताल हैं.
हालांकि जनसंख्या को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है, जिसके कारण लोगों को इलाज़ के
लिए मथुरा से बाहर जाना पड़ता है. जनता की सुविधा के लिहाज़ से जिले में 8 बैंक भी
स्थापित हैं.
REFRENCES -
http://mathura.gov.in/en/destination