संक्षिप्त परिचय-
महारानी लक्ष्मी बाई की गौरव गाथा लिए झांसी शहर पूरे राज्य में प्रसिद्ध है. नगर में इतिहास से लेकर वर्तमान समय के विभिन्न पर्यटन स्थल हैं. यह जिला प्रदेश में अपनी शान के लिए जाना जाता है. हालांकि बड़े शहरों की तरह यहां लोगों की जिन्दगी में तेजी नहीं देखी जाती लेकिन यहां की सुस्त सड़कों में अपनापन महसूस कर सकते हैं.
उत्तर भारत में स्थित झांसी जिला और आयुक्त मुख्यालय है.
शहर की सीमा उत्तर दिशा की ओर जालौन जिले से, पूर्व में हमीरपुर और महोबा जिले से, दक्षिण की ओर
से मध्य प्रदेश राज्य के टीकमगढ़ से, दक्षिण पश्चिम में
ललितपुर जिले से जुड़ी हैं.
ऐतिहासिक
पृष्ठभूमि-
झांसी पूर्व में मध्य प्रदेश के ललितपुर जिले के दतिया जिले
से जुड़ा है जो पहाड़ी क्षेत्र में दक्षिण तक फैला हुआ है. इसे 1891 में झाँसी जिले में जोड़ा गया, और 1974 में फिर से एक अलग जिला घोषित कर दिया गया
था.
यह ऐतिहासिक शहर प्रदेश के दक्षिण में बुंदेलखंड की पाहुज
नदी के किनारे स्थित है. झाँसी पहूज और बेतवा नदियों के बीच 285 मीटर (935 फीट) की
औसत ऊंचाई पर स्थित है. जिला नई दिल्ली से लगभग 415 किलोमीटर
की दूरी पर है.
रानी का महल शहर की शान माना जाता है. शहर को प्राचीन नाम
बलवंतनगर से भी जाना जाता है जो वर्ष 1817 से 1854 तक था, इसके बाद शहर
का नाम झांसी रख दिया गया. झांसी रियासत की राजधानी थी, जिस
पर मराठा राजाओं का शासन था. सन् 1854 में ब्रिटिश गवर्नर
जनरल द्वारा राज्य की घोषणा की गई थी. दामोदर राव को राजकुमार बनाने की बात से जब
अंग्रेजों ने इंकार कर दिया तब रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 से 1858
तक जिले पर शासन किया था.
झांसी उत्तर प्रदेश के अन्य सभी प्रमुख शहरों से सड़क और
रेलवे नेटवर्क से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना
ने झाँसी के विकास की बागडोर संभाली. श्रीनगर से कन्याकुमारी उत्तर-दक्षिण गलियारा
झांसी से होकर गुजरता है.
ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में झांसी, चेदि राष्ट्र, झींझक
भुक्ति, जझोटी और बुंदेलखंड के क्षेत्रों का एक हिस्सा था.
झांसी चंदेल राजाओं का गढ़ था लेकिन 11वीं शताब्दी में जिले
ने अपना महत्व खो दिया. सत्रहवीं शताब्दी में ओरछा झांसी के राजा बीर सिंह देव के
नेतृत्व में फिर मुख्यता से उभर कर आयी. इतिहास की मानें तो राजा बीर सिंह देव के
मुगल सम्राट जहांगीर के साथ अच्छे संबंध थे. वर्ष 1613 में
राजा बीर सिंह देव ने झांसी किले का निर्माण कराया. वर्ष 1627 में उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे जुझार सिंह ने
राजगद्दी संभाली.
पन्ना के महाराजा छत्रसाल बुंदेला एक अच्छे प्रशासक और
बहादुर योद्धा थे. सन् 1729 में मोहम्मद खान
बंगश ने छत्रसाल पर हमला किया जिसमें पेशवा बाजी राव प्रथम ने महाराजा छत्रसाल की
मदद की और मुग़ल सेना को हराया. आभार स्वरूप महाराजा छत्रसाल ने अपने राज्य का एक
हिस्सा मराठा पेशवा बाजी राव प्रथम को भेंट किया जिसमें झांसी भी शामिल था.
सन् 1742 में नरोशंकर को
झांसी का सूबेदार बनाया गया. लगभग 15 वर्षों के कार्यकाल के
दौरान उन्होंने न केवल झांसी किले का विस्तार किया बल्कि कुछ अन्य इमारतों का भी
निर्माण किया. किले के विस्तारित भाग को शंकरगढ़ कहा जाता है. सन् 1757 में नरोशंकर को पेशवा द्वारा वापस बुलाया गया था. सन् 1766 में विश्वास राव लक्ष्मण को झांसी का सूबेदार बनाया गया. उन्होंने में साल
1766 से 1769 तक थी. उनके बाद सक्षम
प्रशासक रघुनाथ राव (द्वितीय) नेवलकर को झाँसी का सूबेदार नियुक्त किया गया. उसने
राज्य के राजस्व में वृद्धि की. महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर का निर्माण उनके
द्वारा किया गया था. अपने स्वयं के निवास के लिए उन्होंने शहर में एक सुंदर इमारत
रानी महल का निर्माण किया.
साल 1803 में ईस्ट इंडिया
कंपनी और मराठा के बीच एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए. वर्ष 1835 में रामचंद्र राव की मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के बाद रघुनाथ राव (तृतीय)
को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया. वर्ष 1838 में रघुनाथ राव
(तृतीय) की भी मृत्यु हो गई. वर्ष 1842 में राजा गंगाधर राव
ने मणिकर्णिका से शादी की. इस विवाह के बाद मणिकर्णिका को लक्ष्मी बाई का नया नाम
दिया गया, 1857 में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सेना का
नेतृत्व किया. उन्होंने सन् 1858 में भारतीय स्वतंत्रता में
अपना सक्षम नेतृत्व किया. उन्होंने 1861 में ब्रिटिश सरकार
ने झाँसी किला और झाँसी शहर को जियाजीराव सिंधिया को दे दिया. झाँसी तब ग्वालियर
राज्य का एक हिस्सा बन गया था. उन्होंने 1886 में अंग्रेजों
ने ग्वालियर राज्य से झांसी वापस ले लिया.
प्रशासनिक
ढांचा-
झांसी जिलें में 4 तहसील (झाँसी, मोठ, गौराठा और
मौर्यपुर) औऱ 8 ब्लॉक हैं. जिले में 5 नगर
पालिका परिषद एवं 1 नगर निगम है. 7 नगर
पंचायत वाले इस जिले में लगभग 26 पुलिस स्टेशन हैं. जिले का
पिन कोड 284001 है. क्षेत्रफल की दृष्टि से
देखें तो 5024 वर्गमीटर है. जिले में लगभग ग्राम पंचायत की
संख्या 452 है. जिले में गांवों की संख्या 839 है
कृषि एवं
जलवायु-
जिले में सिंचाई का मुख्य स्रोत भूजल और नहर है. नहर की कुल
लंबाई 1236 किमी है, जिससे 75,235 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित हो जाता है. क्षेत्र
में सरकारी नलकूप भी हैं, जिनसे लगभग 3,806 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित हो जाता है.
जिले में निजी ट्यूबवेल द्वारा भी सिंचाईं की जाती है इसलिए क्षेत्र का करीब 54%
क्षेत्र उपजाऊ है जहां अन्नदाता फसल की बुआई कर सकता है.
क्षेत्र में सालाना लगभग 850.1 मिमी तक बारिश होती है. मार्च
से जून के मध्य गर्मियों का मौसम तथा नवबंर से फरवरी के मध्य सर्दियों का मौसम
रहता है. जून से सितंबर माह तक बारिश का मौसम रहता है. मौसम की लगभग 91 प्रतिशत
इन्हीं महीनों में होती है. वर्षा से भूजल स्तर में खासा बढ़ोत्तरी होती है.
बुंदेलखंड से जुड़े होने के कारण इस जिले में काबर, माड़, राकर व परबा
आदि प्रकार की मिट्टी पाई जाती हैं. राकर व परबा लाल मिट्टी के अंतर्गत आती हैं
तथा इनकी उत्पादन क्षमता काफी कम है. यहां के मैदानों में काफी मात्रा में लाल
मिट्टी मिलने के कारण ही इसे ‘लाल रेत की भूमि’ भी कहा जाता है.
राज्य के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में स्थित झांसी जिला 250 ̊07” और 250 ̊57 ”उत्तरी अक्षांश और
780 ̊10 ”और 790 ̊25 "पूर्व देशांतर में स्थित
है. जिले का भौगोलिक क्षेत्र 5024 वर्ग किलोमीटर है.
जनसांख्यिकी-
2001 की जनगणना
के अनुसार जिले की जनसंख्या 17,44,907 थी जिनमें 9,32,800 पुरुष और 8,12,107
महिलाएं थीं. उसी साल महिलाओं की ग्रामीण आबादी लगभग 9,89,157 और शहरी आबादी
755774 थी.
जिले की वर्तमान जनसंख्या 19,98,603 है. बात करें साक्षरता दर की तो जिले में 83.02% साक्षर
लोग हैं. क्षेत्र में लिंग अनुपात 890 है.
नदियां-
झांसी जिले में मुख्य रूप से बेतवा नदी और छोटी नदियां जैसे
धसान और पहूज हैं. बेतवा और धसान यमुना की सहायक नदियाँ हैं. बेतवा की प्रमुख
सहायक नदियों में लखेरी, सुखनई, कुरेरा आदि सम्मिलित हैं.
पर्यटन-
पर्यटन की दृष्टि से क्षेत्र में कई दर्शनीय स्थल हैं. जो
जिले को वृहद रूप देते हैं साथ ही प्राचीनता का प्रतीक भी बनते हैं. जो निम्न
प्रकार से हैं-
झांसी का किला
प्राचीन काल से महारानी के किले का सामरिक महत्व है. इसका निर्माण
ओरछा के राजा बीर सिंह देव (1606-27) ने बलवंतनगर
(झांसी) के शहर में बंगरा नामक एक चट्टानी पहाड़ी पर किया था. किले में दस द्वार
हैं. इनमें से कुछ के नाम निम्न प्रकार हैं खांडेरो गेट, दतिया
दरवाजा, उन्नाव गेट, झरना गेट, लक्ष्मी गेट, सागर गेट, ओरछा
गेट, सैनिक गेट, चांद गेट.
मुख्य किला क्षेत्र के भीतर बिजली टैंक, रानी गार्डन, शिव
मंदिर और गुलाम गौस खान, मोती बाई और खुदा बक्श की मजार है.
झाँसी का किला, प्राचीनता और वीरता का जीवंत प्रमाण है,
जिसमें मूर्तियों का एक अच्छा संग्रह है, जो
बुंदेलखंड के घटनात्मक इतिहास में एक उत्कृष्ट प्रदान करते हैं.
रानी महल
रानी महल, रानी लक्ष्मी बाई का महल अपनी दीवारों और छत पर बहुरंगी कला और चित्रकारी से सुशोभित है. वर्तमान में यह महल एक संग्रहालय में परिवर्तित हो गया है. यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहाँ रखे 9वीं और 12वीं शताब्दी के बीच की अवधि की मूर्तियों का विशाल संग्रह मिलता है.
संग्रहालय
राज्य संग्रहालय में टेराकोटा, कांस्य, हथियार, मूर्तियां, पांडुलिपियां, चित्रकारी और स्वर्ण, रजत और तांबे के सिक्के का अच्छा संग्रह है, जो जिले में प्रसिद्ध है.
महालक्ष्मी मंदिर
महा लक्ष्मी मंदिर देवी महालक्ष्मी को समर्पित एक प्राचीन
मंदिर है जिसे 18 वीं शताब्दी में
बनाया गया था. यह शानदार मंदिर लक्ष्मी ताल के पास लक्ष्मी "दरवाजा" के
बाहर स्थित है.
गणेश मंदिर
झांसी का गणेश मंदिर बहुत प्रसिद्ध है. जहां महारानी लक्ष्मी बाई का विवाह समारोह संपन्न होता है. साल 1857 की वीरता पर आधारित युद्ध और महाराज गंगाधर राव की वीरता का प्रदर्शन किया गया.
जिले के अन्य दर्शनीय स्थल में प्रमुख रूप से मंदिर हैं. जिनमें कालिजी मंदिर, मुरली मनोहर मंदिर, पंचकुणिया मंदिर, जीवन शाह का मज़ार, सेंट जूड का तीर्थ, तलैया मोहल्ले में गुरुद्वारा, करगुन जैन तीर्थयात्रा, कुंज बिहारी मंदिर हैं.
Reference-
http://cgwb.gov.in/District_Profile/UP/Jhansi.pdf
https://www.districtsofindia.com/uttarpradesh/jhansi/agriculture/index.aspx