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Oct 28, 2016  03:43 Oct 7, 2020  00:00 Swarntabh Kumar Swarntabh Kumar 1,716

तमिलनाडु मुख्य सूचना आयुक्त सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के प्रति कितने गंभीर हैं? आरटीआई के ऑनलाइन व्यवस्था में इतनी देरी क्यों? पारदर्शिता एक अहम प्रश्न.

तमिलनाडु मुख्य सूचना आयुक्त सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के प्रति कितने गंभीर हैं? आरटीआई के ऑनलाइन  

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को बने एक दशक से उपर हो चुका है. इस मजबूत कानून के लिए एक मजबूत नियत की भी उतनी ही ज्यादा आवश्यकता है. सरकारी कामकाज को जवाबदेह बनाने में यह कानून बेहद अहम रहा है. मगर अपनी कमियों को छुपाने और अपनी गलतियों से बचने के लिए सरकारी महकमा इसमें भी कई तरह की पेचीदगी ला देता है. आरटीआई का जवाब नहीं देने का इनके पास कई दांव पेंच होते हैं. कभी दस्तखत ना होने का बहाना बना कर आरटीआई लौटा देना, तो कभी निर्धारित शुल्क राशि का कम या ज्यादा होना, तो कभी संबंधित विभाग से नहीं जुड़ा है कह कर अपने आप को काफी अच्छे तरीके से बचा लिया जाता है. आखिर इस तरह के बहाने इस कानून को लचर बनाते हैं और लोगों का भरोसा इसपर से उठता है.आखिर जिस जोर से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की शुरुआत हुई थी कि देश के नागरिकों को सरकारी तंत्र से स्पष्ट और अधिकृत जानकारी, बिना किसी अड़चन के, सुगमता से पाने का अधिकार होगा. इसके लागू होने के 10 से अधिक वर्ष बाद भी इसका बुनियादी ढांचा इतना लचर है कि आज तक इसके दक्ष, युक्तिसंगत, विश्वसनीय और विश्लेषणयोग्य जानकारी देने की क्षमता पर सवालिया निशान खड़े होते रहते हैं. आखिर सरकार और जनता के बीच की दूरी कम करने वाले इस कानून की इस दशा के लिए जिम्मेवार केंद्रीय सूचना आयोग, सभी राज्यों के सूचना आयोग के साथ-साथ सरकार का भी उतना ही बड़ा हाथ है. इतने वर्षों बाद यह कानून मजबूत होने की जगह और भी कमजोर ही हुआ है. इसमें और भी ज्यादा कमियां आई हैं.इस क़ानून को सार्थक बनाने के लिए इसका पारिस्थिकी तंत्र डिजिटल व सुसंगत होना अति आवश्यक है इसके लिए स्पष्ट मानकीकरण बनाया जाना चाहिये. अखिल भारत के स्तर चाहे वह केंद्र या राज्य के स्तर पर हो इससे जानकारी का आदान प्रदान सुलभ हो सके इसके लिए एक केंद्रीय व्यवस्था बनाई जानी चाहिये. जो भी जानकारी मांगी जाये उसे उचित प्रारूप और मूल तत्व सहित प्रदान करने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए. याचिकाकर्ता जो भी जानकारी हासिल करना चाहे उसे पूर्ण रूप से दिया जाना अनिवार्य हो साथ ही अधूरी/संकुचित/असत्य अथवा अनावश्यक विवरण से परहेज़ करना चाहिए. एक सुदृढ़ व त्वरित कारगर प्रतिपुष्टि तंत्र का निर्माण दोनों पक्षों अर्थात सरकारी लोक सूचना अधिकारी व याचिकाकर्ताओं के सहायता के लिए बनाना श्रेयस्कर होगा. विशेषकर जब कोई याचिकाकर्ता बार-बार ऐसी सूचना चाहता हो जो अधिनियम के मूल उद्देश्यों से इतर हो.तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग से भी हमें इसी गंभीरता की उम्मीद है. पिछले वर्ष 13.06.2015 को हमने एक याचिका के माध्यम से आपसे जवाब माँगा था कि आप राज्य में सूचना के अधिकार सम्बन्धी तंत्र को पूरी तरह कब तक ऑनलाइन करेंगे और उसे rti.gov.in से जोड़ सकेंगे अथवा सुगम एवं सुव्यवस्थित विकल्प दे पायेंगे एक वर्ष से अधिक की अवधि गुजर जाने के बावजूद ना ही आपका कोई जवाब आया और ना ही इतने समय बीत जाने बाद भी आप ऑनलाइन व्यवस्था दे पायें.जबकि एक तरफ हमारी केंद्र सरकार का बेहद जोर ‘डिजिटल इंडिया’ की तरफ है पर डिजिटल डेमोक्रेसी का क्या? क्या हर राज्य का अपना खुद का ऑनलाइन आरटीआई वेबसाइट नहीं होना चाहिए, जहां कोई भी बिना किसी झमेले के इक्छुक जानकारी हासिल कर सके? क्या पारदर्शी व्यवस्था का हक़ लोगों को नहीं मिलना चाहिए? 2005 में जिस अपेक्षा से आरटीआई कानून लागू किया गया था आज उसकी इतनी उपेक्षा क्यों? सवाल गंभीर है, उम्मीद है आप जल्द इस दिशा में भी ठोस कदम उठाएंगे. आरटीआई जैसे मजबूत कानून की गंभीरता को समझने की उम्मीद कम से कम हम आपसे तो कर ही सकते हैं. सिर्फ वेबसाइट बना देने भर से आपकी जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती. एक पारदर्शी व्यवस्था के लिए आरटीआई फाइल करने की व्यवस्था भी उतनी ही जरुरी है.

तमिलनाडु मुख्य सूचना आयुक्त सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के प्रति कितने गंभीर हैं? आरटीआई के ऑनलाइन

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