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चुनाव सुधार के लिए नेताओं की 'बोलबंदी' भी जरुरी

Mar 3, 2017  10:58 Feb 16, 2020  00:00 Swarntabh Kumar Swarntabh Kumar 1,724
चुनाव सुधार के लिए जनमेला की अवधारणा एक बहुत ही महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी कदम है, मगर साथ ही इसके आए
चुनाव सुधार के लिए जनमेला की अवधारणा एक बहुत ही महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी कदम है, मगर साथ ही इसके आए दिन नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप के दौर के बीच से निकलने वाले बोल की बोलबंदी भी उतनी ही ज्यादा आवश्यक है. शब्दों की मर्यादा और गरिमा को बनाए रखना नेताओं का जहां कर्तव्य होना चाहिए वहीं आज इन नेताओं को हमें इसे याद दिलाना पड़ता है. इसे देश का दुर्भाग्य ही कहिए या हम जनता का जिनके बीच ऐसे नेता निकलते हैं जो कि अपनी भाषा की मर्यादा का उल्लंघन कर कुछ भी बोल जाते हैं. ऐसे में हमारी जिम्मेदारी भी काफी ज्यादा बढ़ जाती है. मतदाताओं के पास उनके मत के अधिकार के रूप में सबसे बड़ा हथियार होता है. आज ज़रूरत है कि हम मतदाता इसका बहुत ही संजीदा और दिमाग से इस्तेमाल करें. उन नेताओं को हम कबूल करने से साफ इनकार कर दें जो कि अपनी भाषा के द्वारा अभद्रता दिखाते हैं. हमें यह प्रण लेना होगा कि हम वैसे नेताओं को सपोर्ट और वोट ना करें जो कि अपनी भाषा की मर्यादा का पालन नहीं कर पाते हैं. 
हम अपने आप को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहलाना पसंद करते हैं, मगर उसी देश में हमें ऐसे नेताओं द्वारा शर्मसार होना पड़ता है जो कि हमारा और कहीं ना कहीं देश का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं. ऐसा भी नहीं है कि यह सिर्फ चुनाव के समय ही देखने को मिलता है. अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल अब इन नेताओं के द्वारा आम तौर पर किया जाने लगा है. ऐसे वाक्या आए दिन होते हैं और हमारे कानों पर जू तक नहीं रेंगते. हमने नज़रअंदाज़ करना सीख लिया है मगर आज जरूरी है कि हम इन सभी चीजों पर बेशक बहुत ही संजीदा होकर ध्यान दें और इन उम्मीदवारों को नकारे जो कि समाज में अपने बोल के द्वारा घृणा पैदा करते हैं. यह एक सभ्य समाज को बचाने और चुनाव सुधार के लिए आज बेहद जरुरी हो गया है. 
चुनाव के मौसम में मुंह से निकलने वाले विषैले बोल का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि यह दूसरे को आघात तो करते ही हैं मगर साथ ही साथ कहीं आग लगाने तो यहां तक दंगा फैलाने के लिए भी काफी हैं. भड़काऊ भाषण से भी मर्यादा का उल्लंघन करना चुनाव के समय आम हो जाता है. यह सिर्फ किसी एक पार्टी के द्वारा नहीं बल्कि सभी पार्टियों के द्वारा आम तौर पर किया जाने लगा है. विगत कुछ सालों में राजनीति का स्तर बेहद ही गिर गया है. चुनावी सभाओं में रैलियों में या कहीं भी कुछ भी बोल कर चले जाना आज नेताओं की रणनीति बन चुकी और उन्हीं के अनुसार उन्हें इसका परिणाम भी मिलता है. एक समय था जब चुनाव को लोकतंत्र के त्यौहार के रूप में जाना जाता था मगर आज इसी चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के कई सारे नेताओं को गंदी भाषा इस्तेमाल करने की आजादी दे दी है. गंदे बोल, विपक्षियों पर आक्रमक शैली का इस्तेमाल करना, किसी कौम को भड़काना, जातियों में मतभेद पैदा करना, समाज को बांटने की कोशिश आज इन नेताओं के द्वारा आम तौर पर होने लगी है. इसीलिए आज यह जरुरी हो गया है कि जहां एक ओर हम चुनाव सुधार के लिए जनमेला की अवधारणा को हकीकत में तब्दील करने में लगे हैं तो वहीं नेताओं के ऐसे बोल पर भी पाबंदी लगाई जानी चाहिए.
नेताओं के अच्छे आचरण समाज को ही प्रतिबिंबित करते हैं. ऐसे में इन नेताओं को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होना चाहिए और इसके लिए हम मतदाताओं को भी गंभीर होने की जरूरत है. नेताओं के अभद्र बोल पर हमारी पैनी नजर होनी चाहिए और उन्हें एक सिरे से नकार दिया जाना चाहिए. जिससे ऐसी बोलचाल वाली भाषा पर पाबंदी आए और नेताओं में उन्हें नकारे जाने का डर बने.
अगर देश हित में नोटबंदी जैसे फैसले लिए जा सकते हैं तो रैलीबंदी और नेताओं की बोलबंदी पर कड़े फैसले क्यों नहीं लिया जा सकता? नेताओं के अच्छे आचरण और बुरे व्यवहार पर बैलेटबॉक्स इंडिया उन्हें अपग्रेड और डाउनग्रेड करने जा रहा है. अगर आपकी नजर में भी वैसे नेता है जिनके आचरण से समाज मैं अच्छा माहौल बनता है या वैसे नेता जिनके कारण समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है तो उन्हें अपग्रेड और डाउनग्रेड करने में हमारी मदद करें.
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