भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, सामान्यतया कांग्रेस के नाम से प्रख्यात, भारत का एक प्रमुख व सबसे पुराना राष्ट्रीय राजनैतिक दल है. कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज में 28 दिसंबर 1885 को हुई थी; इसके संस्थापकों में ए ओ ह्यूम (थियिसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य), दादा भाई नौरोजी, मदनमोहन मालवीय, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी और दिनशा वाचा आदि हस्तियां शामिल थीं. 19वीं सदी के आखिर में और 20वीं सदी के प्रारम्भ व मध्य में, कांग्रेस भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में, अपने 1.5 करोड़ से अधिक सदस्यों और 7 करोड़ से अधिक प्रतिभागियों के साथ, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरोध में एक केन्द्रीय भागीदार बनकर उभरी.
1947 में आजादी के बाद, कांग्रेस भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई. आज़ादी से लेकर 2019 तक, 17 आम चुनावों में से, कांग्रेस ने 6 में पूर्ण बहुमत जीता और 4 में सत्तारूढ़ गठबंधन (यूपीए) का नेतृत्व किया. अतः कुल 49 वर्षों तक कांग्रेस केन्द्र सरकार का हिस्सा रही. भारत में, कांग्रेस के सात प्रधानमंत्री रह चुके हैं, जिसमें देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू (1947-1965) भी शामिल हैं. वहीं 2004 से लेकर 2014 तक डॉ मनमोहन सिंह कांग्रेस की ओर से भारत के प्रधानमंत्री रहे. 2014 के आम चुनाव में, कांग्रेस ने आज़ादी से अब तक का सबसे ख़राब आम चुनावी प्रदर्शन किया और 543 सदस्यीय लोक सभा में केवल 44 सीट जीतीं. वहीं 2019 में श्री राहुल गांधी (पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष) के नेतृत्व में चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस पार्टी इस बार भी जीत से काफी दूर रह गई तथा पार्टी के खाते में कुल 52 सीटें ही आईं। हालांकि इस आम चुनाव में कांग्रेस की सीटों में 2014 की तुलना में इजाफ़ा जरूर हुआ, लेकिन इस बार भी यह पार्टी लोकसभा में नेता विपक्ष का पद हासिल करने में असफ़ल रही. इस पद के लिए किसी भी पार्टी को 55 सीटों पर जीत दर्ज करना जरूरी है.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वर्तमान भले ही अंधकार में हो, किन्तु इसका इतिहास काफी गौरवपूर्ण रहा है. यह भारत की पहली और सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है तथा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस का अहम व अभूतपूर्व योगदान रहा है. 1885 में स्थापना के बाद से भारत की आज़ादी तक, कांग्रेस सबसे बड़ी और प्रमुख भारतीय जन संस्था मानी जाती थी, जिसका स्वतन्त्रता आन्दोलन में केन्द्रीय और निर्णायक प्रभाव था.
स्थापना
काँग्रेस की स्थापना के समय सन् 1885 का चित्र
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसम्बर 1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी. इसके संस्थापक महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) ए ओ ह्यूम थे, जिन्होंने कोलकाता के व्योमेश चन्द्र बनर्जी को पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया था. अपने शुरुआती दिनों में कांग्रेस का दृष्टिकोण एक कुलीन वर्ग की संस्था का था. इसके शुरुआती सदस्य मुख्य रूप से बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी से लिये गये थे. कांग्रेस में स्वराज का लक्ष्य सबसे पहले बाल गंगाधर तिलक ने अपनाया था.
प्रारम्भिक वर्ष
कांग्रेस की स्थापना के कुछ वर्षों बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं में आपसी मतभेद शुरू हो गए, जिससे दो विचारधाराएं उभरकर सामने आने लगीं. 1907 में कांग्रेस में दो दल बन चुके थे - गरम दल एवं नरम दल. गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय एवं बिपिन चंद्र पाल (जिन्हें लाल-बाल-पाल भी कहा जाता है) कर रहे थे. वहीं नरम दल का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता एवं दादा भाई नौरोजी (कांग्रेस के द्वितीय अध्यक्ष) कर रहे थे. गरम दल पूर्ण स्वराज की माँग कर रहा था, परन्तु नरम दल ब्रिटिश राज में स्वशासन चाहता था. प्रथम विश्व युद्ध के छिड़ने के बाद सन् 1916 की लखनऊ बैठक में दोनों दल फिर एक हो गये और होम रूल आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसके तहत ब्रिटिश राज में भारत के लिये अधिराजकीय पद (अर्थात डोमिनियन स्टेटस) की माँग की गयी.
कांग्रेस एक जन आंदोलन के रूप में
सन् 1915 में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के भारत आगमन के साथ ही कांग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव आया तथा गांधी जी के नेतृत्व में चम्पारन एवं खेड़ा में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जन समर्थन के साथ ही अपनी पहली सफलता मिली. 1919 में जालियांवाला बाग हत्याकांड के पश्चात गांधी जी कांग्रेस के महासचिव बने. जिनके मार्गदर्शन में कांग्रेस कुलीन वर्गीय संस्था से बदलकर एक जनसमुदायिक संस्था बन गयी. तत्पश्चात् राष्ट्रीय नेताओं की एक नयी पीढ़ी आयी, जिसमें सरदार वल्लभभाई पटेल, पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, महादेव देसाई एवं नेता जी सुभाष चंद्र बोस आदि शामिल थे. इसके बाद गांधी जी के नेतृत्व में प्रदेश कांग्रेस कमेटियों का निर्माण हुआ, कांग्रेस में सभी पदों के लिये चुनाव की शुरुआत हुई, साथ ही कार्यवाहियों के लिये भारतीय भाषाओं का प्रयोग शुरू हुआ. कांग्रेस ने कई प्रान्तों में सामाजिक समस्याओं को हटाने के प्रयत्न किये, जिनमें छुआछूत, पर्दाप्रथा एवं मद्यपान आदि शामिल थे.
राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने के लिए कांग्रेस को धन की कमी का सामना करना पड़ता था. परन्तु गांधी जी ने एक करोड़ रुपये से अधिक का धन जमा किया और इसे बाल गंगाधर तिलक के स्मरणार्थ तिलक स्वराज कोष का नाम दिया. इस दौरान पार्टी की सदस्यता का शुल्क 4 आना था.
स्वतंत्र भारत
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की सबसे बड़ी जनतांत्रिक पार्टी के रूप में उभरने वाली कांग्रेस पार्टी के कई शीर्ष नेताओं ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देश का प्रतिनिधित्व किया. इस दौरान देश ने शिक्षण संस्थानों की स्थापना से लेकर प्रौद्योगिकी तथा परमाणु शक्ति तक विभिन्न क्षेत्रों में विकास किया.
ये रहे प्रधानमंत्री
1. जवाहर लाल नेहरू (15 अगस्त 1947 - 27 मई 1964)
2. गुलजारी लाल नंदा (कार्यवाहक) (27 मई - 9 जून 1964) व (11- 24 जनवरी 1966)
3. लाल बहादुर शास्त्री (9 जून 1964- 11 जनवरी 1966)
4. इंदिरा गांधी (24 जनवरी 1966 - 24 मार्च 1977) (14 जनवरी 1980- 31 अक्टूबर 1984)
6. राजीव गांधी (31 अक्टूबर 1984- 2 दिसंबर 1989)
7. नरसिंह राव (21 जून 1991- 16 मई 1996)
8. मनमोहन सिंह (22 मई 2004 - 17 मई 2014)
प्रथम महिला प्रधानमंत्री
पं जवाहर लाल नेहरू की सुपुत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 24 जनवरी 1966 को भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. अपनी दमदार शख्सियत, निडर व्यक्तित्व और अडिग फैसलों की वजह से उनके शासन काल को 'इंदिरा युग' के रूप में जाना जाता है. वहीं उनके कार्यकाल में देश ने वैश्विक स्तर पर नई पहचान हासिल करने के साथ ही कई बड़ी उपलब्धियां भी प्राप्त की. श्रीमती इंदिरा गांधी को 'आयरन लेडी ऑफ इंडिया' भी कहते हैं. जिन फैसलों ने देश में इतिहास में उनकी अमिट छवि बनायी और भारत को नए आयामों पर पहुंचाया, वो इस प्रकार हैं -
1. हरित क्रांति (1968)
2.14 निजी बैकों का राष्ट्रीयकरण (1969)
3. पाकिस्तान का विभाजन (1971)
4. पोखरण परमाणु परीक्षण (1974)
5. ऑपरेशन ब्लू स्टार (पंजाब) (1984)
6. ऑपरेशन मेघदूत (पाकिस्तान के खिलाफ़) (1984)
आपातकाल (1975-77)
श्रीमती इंदिरा गांधी के शासनकाल के सबसे कड़े फैसलों की सूची में इमरजेंसी यानी आपातकाल शीर्ष पर है, जिसे इतिहास के पन्नों में आज भी 'काले दौर' के रूप में याद किया जाता है. 25 जून 1975 को श्रीमती इंदिरा गांधी के कहने पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ने धारा 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की. जिसके अंतर्गत चुनाव स्थगित कर दिए गए तथा प्रेस की स्वतंत्रता प्रतिबंधित कर दी गई थी. इस दौरान कई पत्रकारों व बड़े नेताओं की गिरफ्तारी भी की गई थी. भारत में इंमरजेसी का दौर 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक रहा.
'इंदिरा युग' का अंत
भारी समर्थन से चुनाव जीतने वाली श्रीमती इंदिरा गांधी को आपातकाल के बाद कड़े विरोध का सामना करना पड़ा तथा 24 मार्च 1977 को वह अपनी रायबरेली सीट के साथ ही लोकसभा चुनाव भी हार गईं. इसके बावजूद उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई तथा 14 जनवरी 1980 को वह फिर से भारत की प्रधानमंत्री निर्वाचित हुईंं. किन्तु वह अपना यह कार्यकाल पूरा करतीं, इससे पहले ही उनकी हत्या कर दी गई. 31 अक्टूबर 1984 को सफदरगंज स्थित आवास में श्रीमती इंदिरा गांधी की सुरक्षा में तैनात उनके दो सिख अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. भारत की सबसे सशक्त व लोकप्रिय शख्सियत की हत्या ने पूरे देश को झकझोंर दिया और इसी के साथ 'इंदिरा युग' का अंत हो गया.
श्री राजीव गांधी की हत्या
श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के सदमे से कांग्रेस पार्टी अभी उभर भी नहीं पाई थी, कि 1991 में पार्टी व देश ने एक और जननायक को खो दिया. 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पुत्र श्री राजीव गांधी देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री (31 अक्टूबर 1984- 2 दिसंबर 1989) बनें. उनके शासनकाल में भी देश ने पंचायती राज, आईटी क्रान्ति, कंप्यूटर व ईवीएम मशीनों की शुरूआत जैसी कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की. किन्तु 21 मई 1991 को पेंरबदूर में एक साजिश के तहत बम धमाके में उनकी हत्या कर दी गई.
नए दौर की शुरूआत
श्री राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस बिखरने लगी. इस दौरान श्री सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने. लेकिन पार्टी को एकजुट रखने के लिए कांग्रेस के कार्यकर्ता श्री राजीव गांधी की पत्नी श्रीमती सोनिया गांधी से पार्टी की कमान संभालने की अपील करने लगे. अपने पति की हत्या के बाद श्रीमती सोनिया गांधी ने राजनीति में आने से इंकार कर दिया था, किन्तु कार्यकर्ताओं के निवेदन पर व पार्टी को अनिश्चितता के दौर से निकालने के लिए उन्होंने 14 मार्च 1998 को कांग्रेस की अध्यक्षा के तौर पर पार्टी की कमान संभाली. हालांकि पार्टी के कुछ नेताओं शरद पवार, तारिक अनवर आदि ने उनको विदेशी मूल का बताकर विरोध किया. जिसके बाद उन्होंने 15 मई 1999 को इस्तीफा दे दिया, किन्तु विरोध कर रहे नेताओं के निष्कासन के बाद वह 24 मई 1999 को पुनः कांग्रेस अध्यक्षा नियुक्त की गईं. इसके साथ ही कांग्रेस में एक नए दौर की शुरूआत हुई. बिखर चुकी कांग्रेस को दोबारा खड़ा करने में श्रीमती सोनिया गांधी ने अहम भूमिका निभायी तथा 2004 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करते हुए पार्टी को सरकार बनाने की स्थिति में पहुंचाया. पार्टी की अध्यक्षा होने बावजूद उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला लिया. डॉ. साहब 2004- 2014 तक दस वर्ष भारत के प्रधानमंत्री रहे.
वर्तमान स्थिति
2014 के बाद से अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रही कांग्रेस पार्टी में श्रीमती सोनिया गांधी के बाद एक नए दौर की शुरूआत हुई, जिसे पार्टी ने युवा पीढ़ी की राजनीति का नाम दिया. जिसके तहत श्री राजीव गांधी और श्रीमती सोनिया गांधी के सुपुत्र श्री राहुल गांधी को 11 दिसम्बर 2017 को पार्टी का अध्यक्ष घोषित किया गया. अध्यक्ष बनने के बाद से ही उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन वह हर चुनाव में पूरी ऊर्जा के साथ डटे रहे. श्री राहुल गांधी की कड़ी मेहनत और प्रयासों के बावजूद पार्टी की स्थिति नहीं बदली और भाजपा लहर में कांग्रेस के हाथ से एक- एक करके कई राज्य निकलते गए. 2014 से 2018 के बीच तक कांग्रेस ने 11 राज्य गवाएं, हालांकि इस दौरान पार्टी कर्नाटक, पुडुचेरी (गठबंधन), व पंजाब में अपनी सरकार बचाने में सफल रही. वहीं आम चुनावों से ठीक पहले मध्य- प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ राज्य के विधानसभा चुनावों में जीत ने पार्टी में नई जान फूंक दी.
बावजूद इसके 2019 के चुनाव में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा तथा म.प्र., राजस्थान जैसे कई राज्यों में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी. वहीं उ.प्र. में कांग्रेस का गढ़ रही अमेठी की सीट भी श्री राहुल गांधी के हाथ से निकल गयी. लोकसभा चुनावों में करारी हार से पार्टी में इस्तीफों का सिलसिला शुरू हो गया. जिसके तहत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राहुल गांधी समेत राष्ट्रीय महासचिव श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया व कई राज्यों के अध्यक्षों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया. वर्तमान में श्रीमती सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन हैं. वहीं उनकी पुत्री श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा पार्टी की महासचिव हैं, जिन्हें 2019 के चुनावों से पहले यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इसके अलावा अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में तथा गुलाम नबी आजाद राज्यसभा में नेता कांग्रेस की भूमिका निभा रहे हैं.