राष्ट्रीय लोक दल : एक परिचय -
राष्ट्रीय लोक दल एक राज्य स्तर की राजनीतिक पार्टी है, जो कि राजनीतिक रूप से देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर- प्रदेश में सक्रिय है. इसकी स्थापना 1996 में जाट नेता अजीत सिंह ने की तथा वह इस पार्टी के अध्यक्ष भी हैं. अजीत सिंह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पुत्र हैं. राष्ट्रीय लोक दल को ‘रालोद’ (आरएलडी) के नाम से भी जानते हैं, जो कि एक धर्मनिरपेक्ष विचारधारा वाली पार्टी है. ‘रालोद’ की मात्र एक सांसद ही वर्तमान में लोकसभा में अपनी जगह बनाने में सफल रहीं हैं, जबकि इस बार उ.प्र. विधानसभा चुनाव में इस पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी. राष्ट्रीय लोक दल का चुनाव चिह्न ‘हैंडपंप’ है तथा पार्टी मुख्यालय ‘बागपत’ में है.
ऐतिहासिक सफ़र -
वैसे तो आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय लोकदल का गठन 1996 में हुआ था, किन्तु इसकी स्थापना का सफर काफी लम्बा- चौड़ा रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री व जाट नेता चौधरी चरण सिंह ने सर्वप्रथम ‘लोकदल’ (ए) नाम की पार्टी का गठन किया था. यह पार्टी कई राजनीतिक उतार– चढ़ावों से होकर गुजरी तथा चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अजीत सिंह इस पार्टी के राजनैतिक उत्तराधिकारी बन गये. इसके कुछ दिनों बाद ही मुलायम सिंह यादव जो कि चौधरी चरण सिंह को अपना राजनीतिक गुरू मानते थे, उनसे मतभेदों के चलते अजीत सिंह ने जनता दल नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली, बाद में जिसका नाम बदलकर ‘राष्ट्रीय लोकदल’ रख दिया गया.
प्रमुख चेहरे -
पार्टी की स्थापना से लेकर इसके संचालन में कई लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. जहां एक ओर रालोद की स्थापना करने वाले अजीत सिंह इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, वहीं उनके पुत्र जयंत चौधरी इसके मुख्य सचिव व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. इसके साथ ही लोकसभा स्तर पर सांसद ‘बेगम तबस्सुम हसन’ रालोद का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो कि हाल ही में हुए कैराना उपचुनाव में रालोद और सपा गठबंधन की प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतकर 16वीं लोकसभा में उत्तर- प्रदेश की पहली मुस्लिम सांसद बनीं. वहीं डॉ मसूद अहमद इस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं जो कि प्रदेश स्तर पर इसका सारा कार्यभार संभालते हैं.
पार्टी का राजनैतिक सफरनामा -
पश्चिमी उत्तर- प्रदेश में अपना दबदबा बना कर रखने वाली राष्ट्रीय लोकदल भले ही वर्तमान में राजनीतिक रूप से कमजोर हो, किन्तु पिछली अन्य सरकारों में इस पार्टी का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है. हालांकि वर्तमान में रालोद का उ.प्र. विधानसभा में एक भी विधायक नहीं है, किन्तु 2002 में बहुजन समाज पार्टी की सरकार में इस पार्टी के दो विधायकों मंत्रिमंडल में जगह दी गई और 2003 में राष्ट्रीय लोक दल के छह मंत्री सरकार में चुनें गए थे. रालोद मुख्यतः जाट, मुसलमान, गुर्जर, दलित व राजपूतों के समीकरण के आधार पर ही चुनाव लड़ती है और पश्चिमी उत्तर –प्रदेश में यह पार्टी अपना अच्छा- खासा वर्चस्व बनाये हुए है. यही कारण है कि 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने वाली रालोद नें तीन सीटों पर विजय प्राप्त की.
इसके बाद 2009 में भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ इस पार्टी ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं 2014 लोकसभा चुनाव में यूपीए के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के बावजूद रालोद एक भी सीट निकालने में सफल नहीं हुई थी. हालांकि हाल ही हुए कैराना उपचुनाव में जीत दर्ज करने के बाद से यह पार्टी एक बार फिर चर्चा में है. इस जीत ने न सिर्फ राष्ट्रीय लोकदल को लोकसभा में पहचान दिलवायी है बल्कि पार्टी में एक नया आत्मविश्वास भी भरा है जो कि 2019 के चुनावों में इसके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.