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अब कहां जाएगा 111 मिलियन टन कचरा ? : चीन के ग्रीन फेंस अधिनियम से पनपी विश्वव्यापी अपशिष्ट समस्या

Can Green India and Swachh Bharat live with Big Billion Day? – A Review and Research

Can Green India and Swachh Bharat live with Big Billion Day? – A Review and Research News and Media Coverage

ByDeepika Chaudhary Deepika Chaudhary   34

वर्ष 1992 से 2017 तक विश्व के सबसे बड़े अपशिष्ट
आयातक देश चीन ने विश्व भर के लगभग 106 मिलियन टन पुरान

वर्ष 1992 से 2017 तक विश्व के सबसे बड़े अपशिष्ट आयातक देश चीन ने विश्व भर के लगभग 106 मिलियन टन पुराने बैग, प्लास्टिक बोतलें, रैपर, कंटेनर इत्यादि कचरे का आयात रिसाइकिल के लिए किया, जिसकी कीमत $57.6 बिलियन थी. नव वर्ष 2018 के आगमन के साथ ही चीन की सरकार ने यह घोषणा भी कर दी कि वें पर्यावरण और अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं और इसी के चलते जनवरी से ही रिसाइकिल के लिए आने वाली प्लास्टिक एवं 20 अन्य प्रकार की वस्तुओं के आयात पर पूरी तरह से रोक लगा दी गयी. विश्वव्यापी सरकारों को कचरा आयात पर लगी रोक से पैदा हुए नये खतरे का आभास तो था, परन्तु यह कितना विशालकाय हो सकता है, इस पर अब मंथन किया जाना आरम्भ हुआ है.

यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया द्वारा की गयी रिसर्च से निकले परिणाम 

जॉर्जिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त राष्ट्र वैश्विक व्यापार डेटा का एक न्य विश्लेष्ण करके निष्कर्ष निकला गया कि वर्ष 2030 तक विश्व के सामने अनुमानित 111 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे की समस्या खड़ी होगी. विश्व को सोचना होगा कि किस प्रकार इस प्लास्टिक को रिसाइकिल किया जाए या इतनी मात्रा में प्लास्टिक वस्तुओं का निर्माण ही नहीं किया जाए. अब विश्व भर के सामने खड़े इस महाकचरे से निपटान के प्रयास अब प्रत्येक देश को अपने स्तर पर ही करने होंगे.

पिछले वर्ष जॉर्जिया की रिसर्च टीम ने खुलासा किया था कि यदि प्लास्टिक बोतलों, बैग और खाद्य पैकेट्स को जोड़ा जाये तो वर्ष 2017 में लगभग 8.3 अर्ब मीट्रिक टन नए प्लास्टिक का संचय किया गया था. अन्य बहुत सी वस्तुओं के अतिरिक्त्र विश्व भर के 700 मिलियन आईफ़ोन लगभग दस लाख मीट्रिक टन का केवल दसवां हिस्सा निर्मित करते हैं.

कहां जाता है इतनी बड़ी मात्रा में उत्पन्न अपशिष्ट ?

वैश्विक स्तर पर भीमकाय स्क्रैप प्लास्टिक अंबार के लगभग चौथाई हिस्से को भूमिगत कर दिया जाता है या वातावरण को दूषित करने के लिए ऐसे ही फेंक दिया जाता है. प्रत्येक वर्ष लाखों टन प्लास्टिक महासागरों के हवाले कर दी जाती है, जिससे समुंद्र तट विषाक्त हो रहे हैं एवं उत्तरी प्रशांत के विशाल इलाके निरंतर प्रदूषित हो रहे हैं. इतनी बड़ी मात्रा में प्लास्टिक के उत्सर्जन से प्रकृति के सभी संसाधन अत्याधिक प्रभावित होते हैं, फ्लोरा एवं फोना पर इसके हानिकारक रसायनों एवं विषाक्त गैसों के दुष्परिणाम देखने को मिलते रहे हैं.

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वर्ष 1992 से 2017 तक विश्व के सबसे बड़े अपशिष्ट
आयातक देश चीन ने विश्व भर के लगभग 106 मिलियन टन पुरान

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अब तक चीन इस स्क्रैप प्लास्टिक का एक बड़ा हिस्सा रिसाइकिल करता आ रहा था. वर्ष 2016 में यह तकरीबन 7.4 मिलियन मीट्रिक टन था. प्लास्टिक रिसाइकिल चीनी नागरिकों के लिए भी कमाई का एक बड़ा स्त्रोत बना हुआ होने के कारण चीन विश्व भर में सबसे बड़ा कचरा आयात देश रहा है परन्तु उद्योग की अधिकता के नकारात्मक परिणाम अब नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ साथ पर्यावरण पर भी देखे जा रहे हैं. जिसके चलते 2013 में ही एक अधिनियम “ग्रीन फेंस” लाया गया था. इस कानून के तहत प्लास्टिक, धातु या अन्य दूषित पदार्थों के आवागमन पर रोक लगाने की मांग उठाई गयी थी. ग्रीन फेंस कानून के पारित होने के पश्चात जनवरी 2018 में स्क्रैप प्लास्टिक के आयात पर सरकार द्वारा पूरी तरह रोक लगा दी गयी. 

वर्ष 1992 से 2017 तक विश्व के सबसे बड़े अपशिष्ट
आयातक देश चीन ने विश्व भर के लगभग 106 मिलियन टन पुरान 

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समाधान खोजने फिलहाल मुश्किल 

चीन के बाद कचरे को रिसाइकिल करने में भारत और विएतनाम का रुख किया जा सकता है, परन्तु इन दोनों देशों की क्षमताएं इस सन्दर्भ में अधिक विकसित नहीं हैं. विएतनाम ने हाल ही में अपने प्लास्टिक कचरे के आयात  को निलंबित कर दिया था,  जिसका कारण जहाजों का बन्दरगाहों पर अटक जाना था. यदि भारत के संदर्भ में देखा जाए तो संघीय पर्यावरण मंत्रालय की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के अनुसार यहां 25,940 टन प्लास्टिक अपशिष्ट प्रतिदिन के हिसाब से उत्सर्जित होता है, जिसके प्रबंधन के लिए बहुत अधिक औद्योगिक इकाइयां उपलब्ध नहीं हैं, ऐसे में आयात किये जाने वाले स्क्रैप प्लास्टिक के रिसाइकिल दर की क्षमता पर प्रभाव पड़ना लाज़िमी है. हालाँकि इन देशों समेत कई अन्य देशों में भी अपशिष्ट रिसाइकिल पर बल दिया जा रहा है, परन्तु चीन के साथ उसकी बराबरी कर पाना फिलहाल संभव नहीं होता दिखता.

1950 से उत्पादन के स्तर में वृद्धि के बाद से ही अपशिष्ट की समस्या विश्व के सामने खड़ी रही है, परिणामस्वरूप जो कभी 2 मिलियन टन था, वह 2015 में बढ़कर 322 मिलियन तक जा पहुंचा. विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान में हमारी उत्पादन दर अपशिष्टों का निपटान करने की हमारी क्षमता से कहीं अधिक है.

कहा जा सकता है कि, “नवप्रवर्तनशील विचारों एवं बेहतर प्रबंधन रणनीतियों के अभाव में वर्तमान रिसाइकिलिंग दरों के विकास और समयसीमाओं के लक्ष्य को पूरा कर पाना लगभग असंभव है.” 

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