Ad
Search by Term. Or Use the code. Met a coordinator today? Confirm the Identity by badge# number here, look for BallotboxIndia Verified Badge tag on profile.
 Search
 Code
Searching...loading

Search Results, page of (About Results)

नाबालिग अपराधी मासूम नहीं होते हैं

Smriti  Mishra

Smriti Mishra Opinions & Updates

BySmriti  Mishra Smriti Mishra   266

                                                                                                                                                                                                                

16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में हुई घटना जिसने पूरे देश को शर्मिंदा किया था, अंततः उसमें इतने  लंबे समय के इंतजार के बाद में  निर्भया इंसाफ पाने में कामयाब हुई। निर्भया केस के चारों आरोपियों को दिल्ली हाईकोर्ट ने मृत्युदंड की सजा सुनाई थी, जिससे बचने के लिए उन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी उन दोषियों की मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखते हुए निर्भया को इंसाफ दिया। इस मामले में इस से कम सजा तो हो ही नहीं सकती थी। इन अपराधियों को मिली सजा के साथ एक मिसाल भी कायम हुई। शायद अब लोगों के अंदर ऐसे अपराध को अंजाम देने से पहले मौत का खौफ सामने आए।  ऐसे जघन्य अपराधों की ओर बढ़ने से पहले सौ बार सोचें।

 

निर्भया के चारों अपराधियों को तो सजा हुई लेकिन एक अपराधी जिसको कि मासूम नाबालिक का नाम देकर छोड़ दिया गया, वह भी तो सजा का हकदार था। जब उसने  निर्भया पर दया नहीं दिखाई तो आखिर वह दया का पात्र क्यों बना? इस हैवानियत भरे अपराध को अंजाम देने में वह भी पूरा भागीदार था, लेकिन उसको नाबालिग होने का सर्टिफिकेट मिला हुआ था जिसकी वजह से वह बच गया।

 

भारत में 18 साल से कम उम्र का अपराधी नाबालिक कहलाता है। उनकी सुनवाई केवल जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में होती है और सजा के नाम पर बस 3 साल के लिए बाल सुधार गृह भेजा जाता है। आयु सीमा की छूट की वजह से अपराध करने के बावजूद यह लोग सजा से बच जाते हैं। जबकि बदलते परिवेश में यह 'बेचारे' नाबालिक अक्सर गंभीर अपराधों को अंजाम देते पाए जाते हैं।  एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार किशोरों द्वारा किए गए दुष्कर्म के मामलों में 2012 से 2014 तक 2 % वृद्धि हुई है।  2003 में 535 मामले दर्ज हुए थे जो कि 2014 तक 2144 हो गए।  एनसीआरबी के अनुसार किशोरों द्वारा किए गए अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है। जहां पूरे देश में बाल अपराध के 33320 मामले दर्ज थे वहीं 2014 में इनकी संख्या बढ़कर 45266 हो गई। 2014 में दर्ज दुष्कर्म के 2144  में से  1488 मामलों में अपराधियों की उम्र 16 वर्ष से 18 वर्ष थी।

 

31364 आपराधिक मामलों में बाल अपराधियों की उम्र 16 वर्ष की थी। 10534 मामलों में इनकी उम्र 12 वर्ष से कम थी। 12 साल वाले अपराधियों में एक दर्जन से ज्यादा किशोरों की गिरफ्तारी हत्या जैसे जघन्य अपराधों के लिए हुई थी।

 

निश्चित ही यह आंकड़े हैरान करने वाले हैं।  हालांकि दिसंबर 2012 में हुए निर्भया केस के बाद लोकसभा में 'किशोर न्याय संशोधन विधेयक 2014' रखा गया। इस विधेयक में अपराधियों की आयु सीमा 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दी गई है। हालांकि अभी यह विधेयक सिर्फ रखा गया है पारित नहीं हुआ है। ऐसा किया जाना निश्चित ही बहुत ही जरूरी था। नाबालिग का अर्थ होता है की वह बच्चा अबोध है, उसे ज्ञान नहीं है। परंतु यह विचार करने वाली बात है कि यदि वह नादान हैं तो ऐसे वैश्यी कैसे हो सकते हैं? इन अपराधियों के लिए तो और भी कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए। जब यह नाबालिग अज्ञानी होते हैं तो इतने जघन्य अपराधों को अंजाम दे  देते हैं। वहीं जब वह पूर्णतयः समझदार हो जाएंगे तो कितने खतरनाक साबित हो सकते हैं इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है। नाबालिग अपराधियों की दर में लगातार वृद्धि हो रही है। बढ़ते आंकड़ों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि कहीं कानून की नरमी से इनके हौसले और भी बुलंद तो नहीं हो रहे हैं।

 

Ad

2012 में निर्भया के केस के ठीक दो साल बाद जनवरी 2014 में दिल्ली में डेनमार्क की एक महिला के साथ गैंगरेप का मामला सामने आया। जिसमें 9 लोगों के साथ 3 नाबालिग शामिल थे। इस घटना में नाबालिगों ने साफ दर्शाया कि उन्हें किसी का खौफ नहीं है। इस केस में गिरफ्तारी के दो साल बाद भी अभी तक बयान नहीं दर्ज किए गए हैं।

 

 इस  वैश्यानात्मक घटना ने पूरे देश को झिंझोर कर रख दिया था। दिल्ली में हुई इस घटना ने पूरे देश को रास्तों पर लाकर खड़ा कर दिया था। कहीं लोग कैंडल मार्च निकाल रहे थे तो कहीं लोग धरना दे रहे थे। सभी ने पूरे जोर के साथ उन अपराधियों के लिए मौत की सजा की मांग की थी । इस घटना के बाद दिल्ली की लड़कियों की मानसिक स्थिति यह हो गई थी कि वह रात में निकलने से पहले सौ बार सोचती थी। अधिकतर लड़कियां तो रात में बाहर निकलने से ही डरती थी।

 

हमारे देश में हर तरह की सुरक्षा की बात की जाती है। लेकिन ऐसे मामलों में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है। लड़कियों को किसी न किसी अपराध का सामना करना ही पड़ता है। कहीं लड़कियों को पैदा होने से पहले ही खत्म कर दिया जाता है, कहीं तेजाब फेंका जाता है, कभी वह छेड़खानी का शिकार होती हैं तो कभी किसी की हैवानियत का शिकार होती है। अंततः सहना हमेशा लड़कियों को ही पड़ता है। अगर महिलाओं के साथ  दुष्कर्म के अपराधों के आंकड़े देखे जाएं तो निश्चित ही वह हैरान करने वाले हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)के मुताबिक भारत में हर दिन 92 महिलाएं रेप की शिकार होती हैं। जिनमें से चार दिल्ली में ही होती हैं। इनके आंकड़ों के मुताबिक देश में हर घंटे में रेप की 4 वारदातें होती हैं। यानी हर 14 मिनट में एक वारदात सामने आती है। हर 2 घंटे में एक नाकाम रेप की कोशिश को अंजाम दिया जाता है तो यह सोच कर ही कितना खतरनाक लगता है कि जब कहीं कोई खुशी मना रहा होता है तब उन 15 मिनट के अंदर कोई महिला इस दर्द से गुजर रही होती है। यह आंकड़े तो केवल दर्ज हुए मामलों पर आधारित हैं। जबकि जाने कितने मामले मामलों में महिलाओं को लोक लाज के डर से  चुप करा दिया जाता है।

 

Ad

निर्भया केस के बाद कानून में आए बदलावों से लग रहा था कि ऐसे अपराध कुछ कम होंगे। लेकिन एनसीआरबी के आंकड़ें कुछ और ही बयां करते हैं। इनके आंकड़ों के मुताबिक 2015 में 33707 मामले दर्ज हुए और अगले साल तक जब यह रिपोर्ट आई तब तक संख्या बढ़ कर 36707 हो गई थी। 2014 में 34651 रेप के मामले दर्ज किए गए 2014 में दुष्कर्म के मामलों में इजाफा देखने को मिला। 2013 के मुकाबले 2014 में  2069 मामले दर्ज किए गए। 2014 में 674 वारदात को अंजाम महिलाओं के करीबियों ने दिया।

 

निर्भया केस में कड़ी सजा की मांग करी गई जिसके बाद उम्मीद करी जा रही थी कि  अपराधों की दर में कमी होती दिखेगी। लेकिन आंकड़े तो  यही बताते हैं ना ही अपराधों की संख्या में कुछ कमी आई और न ही न्याय की प्रक्रिया ने रफ्तार पकड़ी। आखिर निर्भया को भी तो इंसाफ मिलने में इतना समय लग गया। वहीं अभी भी बहुत सी निर्भया इंसाफ का इंतजार कर रही  हैं और बहुतों ने तो इंसाफ पाने से पहले ही दम तोड़ दिया । 2013 में तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल को अपनी महिला सहकर्मी के साथ यौन शोषण के लिए जेल हुई थी। लेकिन 2014 में उन्हें बेल मिल गई और 2 वर्ष बाद भी इस मामले पर सुनवाई होने का इंतजार चल रहा है। वहीं 2013 में आध्यात्मिक गुरु आसाराम बापू पर एक नाबालिक समेत तीन महिलाओं के यौन शोषण और रेप का आरोप लगा जिसके लिए वह तब से अब तक जेल में बंद है। लेकिन 2 वर्ष और 2 महीने बीत जाने के बाद भी इस मामले का ट्रायल अभी बांकी है। ऐसे ना जाने कितने मामलो में सुनवाई तो कहीं सजा पर अमल होना बाकी है।

 

  अक्सर देखा गया है कि दुष्कर्म से पीड़ित महिलाओं को ही लोग उनके साथ हुई हैवानियत का जिम्मेदार ठहराते हैं। कोई कहता है कि देर रात तक बाहर घूम रही थी इसलिए ऐसा हुआ, तो कोई कहता है कि इतने छोटे कपड़े पहनकर घूमोगी तो ये  तो होगा ही। यदि ऐसे अपराध देर रात तक घूमने या कपड़ों  की वजह से ही होते हैं तो बुलंदशहर के उस परिवार को उन हैवानों की बर्बरता का सामना क्यों करना पड़ा? असल में तो बुराई देर रात तक बाहर रहने या कपड़ों में नहीं, बल्कि उनकी सोच में होती है। यदि हर कोई अपनी मानसिकता मैं बदलाव  लाए तो एनसीआरबी के वृद्धि कर रहे आंकड़ों में कमी आ जाए।

 

Ad

वहीं निर्भया केस के बाद लैगिंग समानता को बढ़ावा देने हेतु पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात कही गई है। नाबालिग अपराधियों को ध्यान में रखते हुए उनकी उम्र सीमा कम करने हेतु किशोर न्याय संशोधन विधेयक 2014 रखा गया। साथ ही रास्तों में महिलाओं की सुरक्षा हेतु पुख्ता इंतजाम करने के लिए भी कहा गया है।

 

अब देखने वाली बात यह है कि इसके बाद आए बदलावों में किस हद तक और कब तक अमल होता है। अब जरूरत है जल्द-से-जल्द आगे से ऐसे अपराधों में अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए। ताकि आने वाले समय में लोग ऐसे जघन्य अपराध की ओर न बढ़े और  दोबारा कोई निर्भया न जन्म ले।

 

 

Leave a comment for the team.
रिसर्च को सब्सक्राइब करें

इस रिसर्च पर अपडेट पाने के लिए और इससे जुड़ने के लिए अपना ईमेल आईडी नीचे भरें.

ये कैसे कार्य करता है ?

start a research
जुड़ें और फॉलो करें

ज्यादा से ज्यादा जुड़े लोग, प्रतिभाशाली समन्वयकों एवं विशेषज्ञों को आकर्षित करेंगे , इस मुद्दे को एक पकड़ मिलेगी और तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद ।

start a research
संगठित हों

हमारे समन्वयक अपने साथ विशेषज्ञों को ले कर एक कार्य समूह का गठन करेंगे, और एक योज़नाबद्ध तरीके से काम करना सुरु करेंगे

start a research
समाधान पायें

कार्य समूह पारदर्शिता एवं कुशलता के साथ समाधान की ओर क़दम बढ़ाएगा, साथ में ही समाज में से ही कुछ भविष्य के अधिनायकों को उभरने में सहायता करेगा।

आप कैसे एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं ?

क्या आप इस या इसी जैसे दूसरे मुद्दे से जुड़े हुए हैं, या प्रभावित हैं? क्या आपको लगता है इसपर कुछ कारगर कदम उठाने चाहिए ?तो नीचे फॉलो का बटन दबा कर समर्थन व्यक्त करें।इससे हम आपको समय पर अपडेट कर पाएंगे, और आपके विचार जान पाएंगे। ज्यादा से ज्यादा लोगों द्वारा फॉलो होने पर इस मुद्दे पर कार्यरत विशेषज्ञों एवं समन्वयकों का ना सिर्फ़ मनोबल बढ़ेगा, बल्कि हम आपको, अपने समय समय पर होने वाले शोध यात्राएं, सर्वे, सेमिनार्स, कार्यक्रम, तथा विषय एक्सपर्ट्स कोर्स इत्यादि में सम्मिलित कर पाएंगे।
समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
अपने सोशल नेटवर्क पर शेयर करें

हर छोटा बड़ा कदम मायने रखता है, अपने दोस्तों और जानकारों से ये मुद्दा साझा करें , क्या पता उन्ही में से कोई इस विषय का विशेषज्ञ निकल जाए।

क्या आपके पास कुछ समय सामजिक कार्य के लिए होता है ?

इस एक्शन ग्रुप के सहभागी बनें, एक सदस्य, विशेषज्ञ या समन्वयक की तरह जुड़ें । अधिक जानकारी के लिए समन्वयक से संपर्क करें और अपने बारे में बताएं।

क्या आप किसी को जानते हैं, जो इस विषय पर कार्यरत हैं ?
ईमेल से आमंत्रित करें
The researches on ballotboxindia are available under restrictive Creative commons. If you have any comments or want to cite the work please drop a note to letters at ballotboxindia dot com.

Code# 52403

ज़ारी शोध जिनमे आप एक भूमिका निभा सकते है.

Follow