गोमती की धरा हुई धीमी, नदी सूखने की ओर

2009 से 2011 तक चले इसरो और बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी द्वारा चलाए गए प्रोजेक्ट से पता चला है की अगर जल्दी ही कुछ कारगर कदम नहीं उठाए गए तो गोमती नदी अगले 20 वर्षों में अपना अस्तित्व खो देगी। सॅटॅलाइट की सहायता से बनाई गई इन रिपोर्ट्स में सामने आया है की 1975 से २०११ के बीच नदी ने ४०-५० % तक पानी खोया है. डॉ. वेंकटेश दत्ता जो की एक जाने माने पर्यावरण विज्ञानी हैं, ने इस प्रोज़ेक्ट को हेड किया. डॉ. दत्ता ने बताया की १९७५ से के कर २०११ तक लगातार अंतराल पर पानी के बहाव में कमी आयी है, इसके अलावा नदी के विस्तार में भी १९७५ से २०१२ के बीच में कमी आयी है.
क्यों आ रही है कमी?
डॉक्टर वेंकटेश दत्ता का कहना है की नदी में पानी का प्रवाह तभी रहता है जब नदी में पानी हो , गोमती नदी हिमालय की तलहटी से ५५ किलोमीटर दूर दक्षिण पीलीभीत जनपद के उत्तर स्थित माधो तंडा गाँव में फुलहर झील से निकलती है. नदी ९६० किलोमीटर का सफ़र तय कर गंगा में मिलती है . सॅटॅलाइट से पता चलता है की पीलीभीत से ५७ किलोमीटर तक नदी में प्रवाह न के बराबर है. प्रवाह ना होने के कारण यहाँ काफी गाद (कीचड़) हो गयी है और सिल्ट की मात्रा काफी बढ़ी है, जिससे नदी में काफी प्रदूषण हो रहा है .पीलीभीत के माधो टांडा में बीते ३० बर्षो में बारिश औसत से भी कम हुई है, इसकी वजह से भी गोमती नदी और इसकी सहायक नदियों के पानी के प्रवाह में काफ़ी कमी आयी है.गोमती नदी में नीमसार और लखनऊ के आसपास मार्च से मई में काफी कमी आ जाती है , इसकी वजह से गोमती में हर साल शारदा से पानी छोड़ने की ज़रूरत पड़ती है, पानी छोड़ने का मकसद नदी में जल प्रवाह बना रहे और सिल्ट, कूड़ा करकट इत्यादि ना जमा हो है .रिकार्ड्स के मुताबिक गोमती का १९७९ में औसत जल प्रवाह ४२३८ क्यूसेक था जो वर्ष २००८ में घट के सिर्फ १४४८ क्यूसेक रह गया , मानसून में भी पानी के प्रवाह में कमी दर्ज की गयी है .इस नदी को सुन्दरीकरण की ज़रूरत नहीं, बल्कि सहेजने की ज़रूरत है , नलकूपों से पानी बर्बाद किया जा रहा है, सिंचाई इत्यादि में जल का अति दोहन हो रहा है, नदी का इसके नालों से नाता टूट रहा है, गन्दगी नालों से हो कर नदी में सीधे मिल रही है. नदी तभी बचेगी जब नालों से हो कर आने वाली गन्दगी रुकेगी, और भूजल का दोहन रोका जाएगा . एक रिकॉर्ड के अनुसार १९८४ में गोमती बेसिन में करीब ६०% इलाकों का मानसून पूर्व भूजल स्तर ५ मीटर से ऊपर था, जो वर्ष २००६ में सिर्फ़ २२ प्रतिशत रह गया .
हम किस ओर अग्रसर है और अगर आप कुछ करना चाहते हैं:
हम इस एक्शन ग्रुप के जरिये गोमती पर हो रहे रिवरफ्रण्ट के निर्माण की समीक्षा कर रहे है। गोमती पर करवाये जा रहे रिवरफ्रण्ट के निर्माण के बहुत दुष्परिणाम हो सकते है। कुछ तो दिखने भी लगे है। लखनऊ मे बहती गोमती के कई हिस्सों पे निर्माण चल रहा है। नदी की सतह में जमी गाद और गन्दगी को करोड़ों खर्च के ड्रेजिंग कर के निकाला जा रहा है। वही दूसरी ओर उसमे नाले सीवेज गिरा रहे है। सरकार गोमती की सफाई के नाम पर कई करोड़ खर्च कर चुकी है और आम जनता का पैसा लगातार अनुयोजित ढंग से खर्च किया जा रहा है। बहुत विशेषज्ञों ने रिवरफ्रण्ट की आलोचना भी की है और इससे रोकने की भी निवेदन किया पर सरकार ने कार्य को बिना रोके कार्यात रखा।
हम इस एक्शन ग्रुप से गोमती रिवरफ्रण्ट की समीक्षा करेंगे और विशेषज्ञों की राय और साइंटिफिक रिसर्च से रिवर फ्रंट के दुष्परिणाम और उसमे मुनासिब बदलाव के मौको को तलाशेंगे और सरकार को सुझाएंगे। इस रिसर्च के माध्यम से हम सही सुजाव देने मे भी समर्थ होंगे.
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अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो इस विषय मे कुछ जानता हो:
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Venkatesh Dutta 53
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