
“एक्सवाईजेड एप
के माध्यम से करोड़ों फेसबुक यूजर्स का डेटा चुराया गया.”
“फेशियल
रिकग्निशन कंपनी ने फेसबुक से ब्रीच किया यूजर्स का पिक्चर डेटा.”
हो सकता है,
वर्ष 2020 में इस प्रकार की खबरें समाचार पत्रों-पत्रिकाओं का हिस्सा बनें. ऐसा
नहीं होने की वाज़िब वजह भी तो नहीं है. सोचिये जब 2016 में अमेरिकी चुनाव हो रहे
थे, तो क्या किसी को अंदाजा था कि आने वाले समय में “कैंब्रिज एनालिटिका”, “फेसबुक
डेटा ब्रीच” जैसी खबरें सुनने को मिलेंगी? हालात आज भी वही हैं, बस समय और तरीका
बदल गया है. वर्ष 2019 के आगाज़ के साथ फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर एक नया
ट्रेंड वायरल हो रहा है, 10 वर्ष पहले आप कैसे दिखते थे और आज कैसे दिखतें
हैं..यानि #10yearschallenge
इस समय व्यापक रूप से चलन में है.
आम जन हों या
नेता-अभिनेता, सभी एक ही दिशा में चल निकलें हैं. सभी अपनी 2009 और 2019 की
तस्वीरों को फ्रेम कर साझा कर रहे हैं. अब इसे मनोरंजन कहें या मानवी दिखावे की
पुरानी प्रवृति, जो सभी को इस बेतुके से ट्रेंड को फॉलो करने पर विवश कर रही है.
परन्तु यहां सवाल यह उठता है कि,
“आप कैसे
सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपके #10YearChallenge में उपयोग हो
रहे फेसबुक पिक्चर्स का प्रयोग किसी
प्रकार के सॉफ्टवेयर या आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक के लिए नहीं किया जा
रहा है?”
आरंभ में फेसबुक
आदि पर यूजर्स इस ट्रेंड को मजाक के तौर पर ही ले रहे थे, परन्तु टेक ह्यूमनिस्ट
लेखक केट ओ’नील द्वारा किये गए ट्वीट ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कहीं वास्तव
में हम अपना डेटा फेसबुक या किसी अन्य थर्ड पार्टी के हाथों में तो नहीं थमा रहे.

केट ओ’नील द्वारा किया गया यह ट्वीट बिना किसी साइड-बाय फोटोज के ही वायरल हो गया. जिसमें उन्होंने स्पष्ट तौर पर
लिखा,
“मैं 10 वर्ष पूर्व - शायद फेसबुक और इंस्टाग्राम पर प्रोफाइल पिक्चर एजिंग मेमे के साथ मजेकर रही होती."
मैं आज के समय में – आश्चर्यचकित हूं कि किस प्रकार इतनी बड़ी मात्रा में यह डेटा आयु बढ़ने एवं आयु से जुड़े विभिन्न तथ्यों को पहचानने के लिए फेशियल रिकग्निशन एल्गोरिथम्स के रूप में चुराया जा सकता है?”
और यह वास्तव
में मंत्रणा का विषय भी होना चाहिए, आज जब फेसबुक हर ओर से आरोपों से घिरा हुआ
है..यूजर्स प्राइवेसी को लेकर मार्क जकरबर्ग कभी यूरोपियन संसद तो कभी अमेरिकी
सेनेटर्स के सम्मुख जवाबदेही देते हुए दिख रहे हैं..तो कभी अपनी पालिसी पारदर्शिता
को लेकर अनेकों प्रश्नचिन्हों से घिरे हुए नजर आते हैं.
ऐसे में फेसबुक
या इंस्टाग्राम आदि पर अचानक आए किसी भी ट्रेंड को आंख मूंदकर फॉलो करने से पहले
उस पर यथायोग्य विचार कर लेना आवश्यक है. बकौल लेखक केट ओ’नील आज यूजर्स के पास एक बहुत बड़ा डेटा है, जिसे वे हर
समय साझा कर रहे हैं और कंपनियां इसे एकत्र कर विभिन्न तरीकों से इसका उपयोग कर
रही हैं.
किस
प्रकार उपयोग किया जा सकता है फेशियल रिकग्निशन डेटा?
फेशियल
रिकग्निशन की तकनीक हालांकि क़ानूनी रूप से लम्बे समय से प्रयोग में लाई जाती रही
है. विभिन्न देशों में पुलिस प्रशासन एवं कानूनविदों के द्वारा इस तकनीक का उपयोग
संदेहास्पद व्यक्तियों या गुमशुदा लोगों को खोजने में किया जाता रहा है, इसका सबसे
बड़ा उदाहरण अप्रैल, 2018 में दिल्ली पुलिस द्वारा फेशियल
रिकग्निशन प्रणाली की सहायता से मात्र 4 दिनों में 3000 गुमशुदा बच्चों को खोज निकालना था.
इनोवेशन की तेज गति के दौर में हर तकनीक
अपने साथ फायदा और नुकसान दोनों ही लेकर चलती है, जहां कानून विशेषज्ञों के लिए यह
तकनीक लाभप्रद है, वहीँ बहुत सी कंपनियों के लिए यह मात्र मार्केटिंग का मॉडल भी
बनकर रह सकती है. आज नीतिशास्त्री, तकनीकी विशेषज्ञ, शिक्षाविद् और स्वयं यूजर्स भी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से जुड़ी भावी चुनौतियों पर आशंका जता रहे हैं.
कल्पना कीजिए कि
आप चेहरे के माध्यम से उम्र से संबंधित विशेषताओं की पहचान करना चाहते हैं, इससे
जुड़े एल्गोरिदम को समझना चाहते हैं और विशेष रूप से, उम्र की प्रगति पर अध्ययन करना चाहते हैं,
तो आपको बहुत से लोगों की वास्तविक पिक्चर्स के आवश्यकता होगी. ऐसे में आप बहुत
सारे लोगों के पिक्चर्स के रूप में एक व्यापक और मजबूत डेटासेट चाहेंगे. बस,
फेसबुक प्लेटफार्म यही डेटा आपको उपलब्ध करा सकता है, ठीक वैसे ही जैसे ट्रम्प
इलेक्शन में मानसिक जोड़-तोड़ करने के लिए यूजर्स के डेटा का उपयोग किया गया. यानि फेशियल एल्गोरिदम से जुड़ा हमारा डेटा कॉस्मेटिक इंडस्ट्री, बायोमेट्रिक विशेषज्ञों और उम्र को लेकर शोध कर रहे वैज्ञानिकों के लिए कारगर हो सकता है, जिसे हम लेटेस्ट ट्रेंड के नाम पर फेसबुक की झोली में डाल रहे हैं.
फेसबुक फ़ोटो से जुड़ा आकलन
आंकड़ों पर गौर करे तो वर्ष 2009 में फेसबुक ने कहा था कि सोशल नेटवर्क पर
उपयोगकर्ताओं द्वारा 15 बिलियन फ़ोटो पहले से ही अपलोड किए जा
चुके हैं और हर हफ्ते 220 मिलियन नई
तस्वीरें जोड़ी जा रही हैं.
वर्ष 2013 में, उपयोगकर्ता एक दिन में तकरीबन 330 मिलियन फ़ोटो अपलोड कर रहे थे. देखा जाये
तो इसके बाद से ही स्मार्टफोन की ललक, फेसबुक का उपयोग
और ऑनलाइन फोटो अपलोड करने की प्रवृति बहुत अधिक बढ़ गई है.
आज जब हम वर्ष 2019 में हैं, तो यह जानना असंभव है कि
वर्तमान में फेसबुक के पास कितनी बिलियन या ट्रिलियन तस्वीरें हैं - जब तक कि वे
स्वयं हमें न बताएं और इसकी कोई संभावना भी नहीं है. जैसा कि सब जानते हैं कि
फेसबुक ने कभी भी अपने “लाइव आत्महत्या प्रयासों” को रोकने के संबंध में प्रयोग
होने वाली तकनीक की सटीक एवं पारदर्शी जानकारी भी साझा नहीं की.
आज जिस तरह से आर्टिफ़िशियल
इंटेलिजेंस द्वारा संचालित छवि प्रसंस्करण एल्गोरिदम और भी स्मार्ट हो गए हैं और
लगभग हर कंपनी किसी न किसी तरीके से फेशियल रिकग्निशन का उपयोग कर रही है, ऐसे में इस तथ्य पर गौर करना अधिक आवश्यक
हो गया है.
आज देखें तो, आपके
एप्पल आईफोन पर फोटो ऐप चेहरे की पहचान कर सकता है, यहां तक कि आपके एंड्रॉइड फोन पर गूगल
फ़ोटो ऐप लोगों और उनके कॉन्टेक्ट्स के चेहरों को समझकर कार्य करता है.
डॉयचे टेलीकॉम
में एसवीपी इंटरनल सिक्योरिटी के थॉमस त्चेरिसिच के अनुसार,
"#फेसबुक
का 10 ईयर
चैलेंज, अब तक का
सबसे अच्छा तरीका है, जो वे आपके व्यक्तिगत डेटा के साथ अपनी आर्टिफ़िशियल
इंटेलिजेंस को सशक्त बनाने में कर सकते हैं."
उपरोक्त मुद्दें
पर फेसबुक का वक्तव्य -
जाहिर है, फेशियल
रिकग्निशन का यह नया प्रकरण बहुत से उपयोगकर्ताओं के लिए एक चिंता का विषय है और विशेषज्ञों का एक बड़ा समूह इसके
विरोध में है. परन्तु, फेसबुक इसका खंडन करते हुए ट्विटर पर
निम्नलिखित बयान पोस्ट करता है..
“#10yearschallenge एक
उपयोगकर्ता-जनित मीम है, जो फेसबुक की भागीदारी के बिना, स्वयं आरंभ हुआ. यह साक्ष्य
है कि लोग फेसबुक पर आनंद उठा रहे हैं."
हो सकता
है कि यह विशेष मीम किसी प्रकार के डेटा ब्रीच से नहीं जुड़ा हुआ हो. किन्तु पिछले
कुछ वर्षों में फेसबुक जैसे सोशल मीडिया उपागम से डेटा निष्कर्षण और इकट्ठा करने जैसे
मुद्दें लगातार सामने आते रहे हैं.
आज
यूजर्स को सोचना होगा कि क्या वे लोगों की पहचान करने में तकनीकी दिग्गजों की
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस प्रणाली को बेहतर बनाने में मदद कर रहे हैं. बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि #10YearChallenge के लिए
अपलोड की गई तस्वीरों में डेटा की बहुत बड़ी संख्या थी, जिसे फेसबुक सालों से एकत्रित कर रहा है.
यदि गौर
किया जाये तो फेसबुक मंच पर मात्र “आनंद” के लिए वायरल यह चुनौती, ऐसी कंपनियों के
लिए अपेक्षाकृत स्वच्छ डेटा सेट प्रदान कर सकता है, जो आयु-प्रगति तकनीक पर काम
करना चाहती हैं और वास्तव में फेसबुक के पास पहले से ही अरबों तस्वीरें संग्रहित
हैं और यूजर्स को किसी भी कंपनी को बायोमेट्रिक डेटा की एक बड़ी खेप पकड़ा देना, वो
भी जिस पर पहले से पारदर्शी नहीं होने के आरोप लग रहे हों, यह निराधार है.
विचार
करें -
आर्टिफ़िशियल
इंटेलिजेंस के इस युग में मनुष्य भौतिक और डिजिटल दुनिया के बीच की कड़ी है. आज
मानवीय अंतःक्रियाएं इंटरनेट को तथ्य प्रदान कर दिलचस्प और आकर्षक बनाने में अहम
योगदान देती हैं. देखा जाये तो हमारा डेटा वह ईंधन है, जो फेसबुक जैसे बड़े उद्यमों
को मार्केटिंग मॉडल प्रदान कर अधिक स्मार्ट बना रहा है. आज आवश्यकता है कि इन
विशालतम कंपनियों को डेटा प्राइवेसी से जुड़े नियमों और प्रावधानों में रखा जाये,
विशेषकर भारत में, जहां इनके व्यापारिक मॉडल को लेकर जनता की समझ अपर्याप्त है और
यूजर्स की संख्या असीमित.
साथ ही हमें यह भी सोचना होगा कि हमें स्वयं अपने डेटा को कैसे सुरक्षित रखना है?
भेड़चाल में चलने का उन्माद कभी भी लाभप्रद नहीं होता और इतिहास इसका साक्षी रहा
है. स्वयं को बौद्धिक क्षमता और तर्क-वितर्क के आधार पर चुनौती देकर आधुनिक मानना
कहीं अधिक बेहतर है बजाय अपनी तस्वीरों की चुनौतियों वाले पोस्ट को वायरल कर देने
के.
By
Deepika Chaudhary 10
“एक्सवाईजेड एप के माध्यम से करोड़ों फेसबुक यूजर्स का डेटा चुराया गया.”
“फेशियल रिकग्निशन कंपनी ने फेसबुक से ब्रीच किया यूजर्स का पिक्चर डेटा.”
हो सकता है, वर्ष 2020 में इस प्रकार की खबरें समाचार पत्रों-पत्रिकाओं का हिस्सा बनें. ऐसा नहीं होने की वाज़िब वजह भी तो नहीं है. सोचिये जब 2016 में अमेरिकी चुनाव हो रहे थे, तो क्या किसी को अंदाजा था कि आने वाले समय में “कैंब्रिज एनालिटिका”, “फेसबुक डेटा ब्रीच” जैसी खबरें सुनने को मिलेंगी? हालात आज भी वही हैं, बस समय और तरीका बदल गया है. वर्ष 2019 के आगाज़ के साथ फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर एक नया ट्रेंड वायरल हो रहा है, 10 वर्ष पहले आप कैसे दिखते थे और आज कैसे दिखतें हैं..यानि #10yearschallenge इस समय व्यापक रूप से चलन में है.
आम जन हों या नेता-अभिनेता, सभी एक ही दिशा में चल निकलें हैं. सभी अपनी 2009 और 2019 की तस्वीरों को फ्रेम कर साझा कर रहे हैं. अब इसे मनोरंजन कहें या मानवी दिखावे की पुरानी प्रवृति, जो सभी को इस बेतुके से ट्रेंड को फॉलो करने पर विवश कर रही है. परन्तु यहां सवाल यह उठता है कि,
आरंभ में फेसबुक आदि पर यूजर्स इस ट्रेंड को मजाक के तौर पर ही ले रहे थे, परन्तु टेक ह्यूमनिस्ट लेखक केट ओ’नील द्वारा किये गए ट्वीट ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कहीं वास्तव में हम अपना डेटा फेसबुक या किसी अन्य थर्ड पार्टी के हाथों में तो नहीं थमा रहे.
केट ओ’नील द्वारा किया गया यह ट्वीट बिना किसी साइड-बाय फोटोज के ही वायरल हो गया. जिसमें उन्होंने स्पष्ट तौर पर लिखा,
और यह वास्तव में मंत्रणा का विषय भी होना चाहिए, आज जब फेसबुक हर ओर से आरोपों से घिरा हुआ है..यूजर्स प्राइवेसी को लेकर मार्क जकरबर्ग कभी यूरोपियन संसद तो कभी अमेरिकी सेनेटर्स के सम्मुख जवाबदेही देते हुए दिख रहे हैं..तो कभी अपनी पालिसी पारदर्शिता को लेकर अनेकों प्रश्नचिन्हों से घिरे हुए नजर आते हैं.
ऐसे में फेसबुक या इंस्टाग्राम आदि पर अचानक आए किसी भी ट्रेंड को आंख मूंदकर फॉलो करने से पहले उस पर यथायोग्य विचार कर लेना आवश्यक है. बकौल लेखक केट ओ’नील आज यूजर्स के पास एक बहुत बड़ा डेटा है, जिसे वे हर समय साझा कर रहे हैं और कंपनियां इसे एकत्र कर विभिन्न तरीकों से इसका उपयोग कर रही हैं.
किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है फेशियल रिकग्निशन डेटा?
फेशियल रिकग्निशन की तकनीक हालांकि क़ानूनी रूप से लम्बे समय से प्रयोग में लाई जाती रही है. विभिन्न देशों में पुलिस प्रशासन एवं कानूनविदों के द्वारा इस तकनीक का उपयोग संदेहास्पद व्यक्तियों या गुमशुदा लोगों को खोजने में किया जाता रहा है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण अप्रैल, 2018 में दिल्ली पुलिस द्वारा फेशियल रिकग्निशन प्रणाली की सहायता से मात्र 4 दिनों में 3000 गुमशुदा बच्चों को खोज निकालना था.
इनोवेशन की तेज गति के दौर में हर तकनीक अपने साथ फायदा और नुकसान दोनों ही लेकर चलती है, जहां कानून विशेषज्ञों के लिए यह तकनीक लाभप्रद है, वहीँ बहुत सी कंपनियों के लिए यह मात्र मार्केटिंग का मॉडल भी बनकर रह सकती है. आज नीतिशास्त्री, तकनीकी विशेषज्ञ, शिक्षाविद् और स्वयं यूजर्स भी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से जुड़ी भावी चुनौतियों पर आशंका जता रहे हैं.
कल्पना कीजिए कि आप चेहरे के माध्यम से उम्र से संबंधित विशेषताओं की पहचान करना चाहते हैं, इससे जुड़े एल्गोरिदम को समझना चाहते हैं और विशेष रूप से, उम्र की प्रगति पर अध्ययन करना चाहते हैं, तो आपको बहुत से लोगों की वास्तविक पिक्चर्स के आवश्यकता होगी. ऐसे में आप बहुत सारे लोगों के पिक्चर्स के रूप में एक व्यापक और मजबूत डेटासेट चाहेंगे. बस, फेसबुक प्लेटफार्म यही डेटा आपको उपलब्ध करा सकता है, ठीक वैसे ही जैसे ट्रम्प इलेक्शन में मानसिक जोड़-तोड़ करने के लिए यूजर्स के डेटा का उपयोग किया गया. यानि फेशियल एल्गोरिदम से जुड़ा हमारा डेटा कॉस्मेटिक इंडस्ट्री, बायोमेट्रिक विशेषज्ञों और उम्र को लेकर शोध कर रहे वैज्ञानिकों के लिए कारगर हो सकता है, जिसे हम लेटेस्ट ट्रेंड के नाम पर फेसबुक की झोली में डाल रहे हैं.
फेसबुक फ़ोटो से जुड़ा आकलन
आंकड़ों पर गौर करे तो वर्ष 2009 में फेसबुक ने कहा था कि सोशल नेटवर्क पर उपयोगकर्ताओं द्वारा 15 बिलियन फ़ोटो पहले से ही अपलोड किए जा चुके हैं और हर हफ्ते 220 मिलियन नई तस्वीरें जोड़ी जा रही हैं.
वर्ष 2013 में, उपयोगकर्ता एक दिन में तकरीबन 330 मिलियन फ़ोटो अपलोड कर रहे थे. देखा जाये तो इसके बाद से ही स्मार्टफोन की ललक, फेसबुक का उपयोग और ऑनलाइन फोटो अपलोड करने की प्रवृति बहुत अधिक बढ़ गई है.
आज जब हम वर्ष 2019 में हैं, तो यह जानना असंभव है कि वर्तमान में फेसबुक के पास कितनी बिलियन या ट्रिलियन तस्वीरें हैं - जब तक कि वे स्वयं हमें न बताएं और इसकी कोई संभावना भी नहीं है. जैसा कि सब जानते हैं कि फेसबुक ने कभी भी अपने “लाइव आत्महत्या प्रयासों” को रोकने के संबंध में प्रयोग होने वाली तकनीक की सटीक एवं पारदर्शी जानकारी भी साझा नहीं की.
आज जिस तरह से आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस द्वारा संचालित छवि प्रसंस्करण एल्गोरिदम और भी स्मार्ट हो गए हैं और लगभग हर कंपनी किसी न किसी तरीके से फेशियल रिकग्निशन का उपयोग कर रही है, ऐसे में इस तथ्य पर गौर करना अधिक आवश्यक हो गया है.
आज देखें तो, आपके एप्पल आईफोन पर फोटो ऐप चेहरे की पहचान कर सकता है, यहां तक कि आपके एंड्रॉइड फोन पर गूगल फ़ोटो ऐप लोगों और उनके कॉन्टेक्ट्स के चेहरों को समझकर कार्य करता है.
डॉयचे टेलीकॉम में एसवीपी इंटरनल सिक्योरिटी के थॉमस त्चेरिसिच के अनुसार,
उपरोक्त मुद्दें पर फेसबुक का वक्तव्य -
जाहिर है, फेशियल रिकग्निशन का यह नया प्रकरण बहुत से उपयोगकर्ताओं के लिए एक चिंता का विषय है और विशेषज्ञों का एक बड़ा समूह इसके विरोध में है. परन्तु, फेसबुक इसका खंडन करते हुए ट्विटर पर निम्नलिखित बयान पोस्ट करता है..
हो सकता है कि यह विशेष मीम किसी प्रकार के डेटा ब्रीच से नहीं जुड़ा हुआ हो. किन्तु पिछले कुछ वर्षों में फेसबुक जैसे सोशल मीडिया उपागम से डेटा निष्कर्षण और इकट्ठा करने जैसे मुद्दें लगातार सामने आते रहे हैं.
आज यूजर्स को सोचना होगा कि क्या वे लोगों की पहचान करने में तकनीकी दिग्गजों की आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस प्रणाली को बेहतर बनाने में मदद कर रहे हैं. बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि #10YearChallenge के लिए अपलोड की गई तस्वीरों में डेटा की बहुत बड़ी संख्या थी, जिसे फेसबुक सालों से एकत्रित कर रहा है.
यदि गौर किया जाये तो फेसबुक मंच पर मात्र “आनंद” के लिए वायरल यह चुनौती, ऐसी कंपनियों के लिए अपेक्षाकृत स्वच्छ डेटा सेट प्रदान कर सकता है, जो आयु-प्रगति तकनीक पर काम करना चाहती हैं और वास्तव में फेसबुक के पास पहले से ही अरबों तस्वीरें संग्रहित हैं और यूजर्स को किसी भी कंपनी को बायोमेट्रिक डेटा की एक बड़ी खेप पकड़ा देना, वो भी जिस पर पहले से पारदर्शी नहीं होने के आरोप लग रहे हों, यह निराधार है.
विचार करें -
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के इस युग में मनुष्य भौतिक और डिजिटल दुनिया के बीच की कड़ी है. आज मानवीय अंतःक्रियाएं इंटरनेट को तथ्य प्रदान कर दिलचस्प और आकर्षक बनाने में अहम योगदान देती हैं. देखा जाये तो हमारा डेटा वह ईंधन है, जो फेसबुक जैसे बड़े उद्यमों को मार्केटिंग मॉडल प्रदान कर अधिक स्मार्ट बना रहा है. आज आवश्यकता है कि इन विशालतम कंपनियों को डेटा प्राइवेसी से जुड़े नियमों और प्रावधानों में रखा जाये, विशेषकर भारत में, जहां इनके व्यापारिक मॉडल को लेकर जनता की समझ अपर्याप्त है और यूजर्स की संख्या असीमित.