Ad
Search by Term. Or Use the code. Met a coordinator today? Confirm the Identity by badge# number here, look for BallotboxIndia Verified Badge tag on profile.
सर्च करें या कोड का इस्तेमाल करें, क्या आज बैलटबॉक्सइंडिया कोऑर्डिनेटर से मिले? पहचान के लिए बैज नंबर डालें और BallotboxIndia Verified Badge का निशान देखें.
 Search
 Code
Searching...loading

Search Results, page {{ header.searchresult.page }} of (About {{ header.searchresult.count }} Results) Remove Filter - {{ header.searchentitytype }}

Oops! Lost, aren't we?

We can not find what you are looking for. Please check below recommendations. or Go to Home

ब्रिटिश राज के दौरान भारत से लूटे गये 45 ट्रिलियन डॉलर : अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक

Indian Colonization and a $45 Trillion Fake-Narration - Tracking World Economics, Culture and Politics

Indian Colonization and a $45 Trillion Fake-Narration - Tracking World Economics, Culture and Politics Opinions & Updates

ByDeepika Chaudhary Deepika Chaudhary   {{descmodel.currdesc.readstats }}

Originally Posted by {{descmodel.currdesc.parent.user.name || descmodel.currdesc.parent.user.first_name + ' ' + descmodel.currdesc.parent.user.last_name}} {{ descmodel.currdesc.parent.user.totalreps | number}}   {{ descmodel.currdesc.parent.last_modified|date:'dd/MM/yyyy h:mma' }}

"मुगल काल में भारत इतना धनी था कि लंदन, पेरिस, मैड्रिड, रोम, मिलान भी एक साथ मिलकर उसकी समृद्धि के मुकाबले में कहीं खड़े नहीं थे. अंग्रेज इसी लालच में हिंदुस्तान आए थे."

-विलियम डेलरिंपल, ब्रिटिश लेखक

ब्रिटिश लेखक विलियम डेलरिंपल ने वर्ष 2014 में अंग्रेजों के भारत पहुंचने की 400वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित परिचर्चा में "ब्रिटिश उपनिवेश के अनुभवों से भारतीय उपमहाद्वीप को नुकसान से ज्यादा लाभ हुआ”, विषय पर अपने विचार रखते हुए समृद्ध भारत की तस्वीर सबके सम्मुख रखी थी. इंडो-ब्रिटिश हेरिटेज ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस परिचर्चा में कांग्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर एवं ब्रिटिश लेखक निक रॉबिन्स ने भी भारत के पक्ष में अपने मत रखते हुए बताया था कि किस प्रकार ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गयी थी.

और हाल ही में कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित निबंधों के संग्रहण पर शोध के माध्यम से प्रसिद्द अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक ने निष्कर्ष निकाला कि उपनिवेशकाल के 200 वर्षों के दौरान ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत से तकरीबन 44.6 ट्रिलियन डॉलर अवशोषित किये गये. औपनिवेशक युग की समयावधि में भारत की अधिकांश विदेशी मुद्रा आय सीधे लंदन पहुंचाई गयी, जापान के समान आधुनिकीकरण की होड़ करते हुए अंग्रेजों ने भारत की मशीनरी एवं प्रौद्योगिकी आयात करने की देश की क्षमता को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया. उपनिवेशवाद के उस भयंकर दंश के परिणाम आज तक देश को भुगतने पड़ रहे हैं.   

भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन –

उत्सा जी के अनुसार वर्ष 1765 से 1938 के मध्य जितना भी धन भारत से अधिग्रहण किया गया था, उसके लिए स्थानीय उत्पादकों को उनके स्वयं के सोने और विदेशी मुद्रा कमाई के लिए भी कोई श्रेय नहीं दिया गया था. यहां तक कि उन्हें देश के बजट से अलग, रूपये के समांतर भुगतान किया गया, जो किसी भी स्वतंत्र देश में देखने को नहीं मिल सकता. यह अवशोषण केंद्र सरकार के बजट से 26 से 36 प्रतिशत तक भिन्न था. यदि भारत की यह विशाल अंतर्राष्ट्रीय कमाई देश के भीतर ही बरक़रार रखी जाती तो स्पष्ट रूप से बहुत अधिक फर्क पड़ता, शायद भारत बेहतर विकास मानकों एवं सामाजिक कल्याण संकेतकों के साथ कहीं अधिक विकसित होता. वस्तुतः वर्ष 1900-1946 के बीच भारत की प्रति व्यक्ति आय में कोई वृद्धि नहीं हुई, जबकि 1929 से तीन दशक पहले भारत ने विश्व भर में दूसरी सबसे बड़ी निर्यात अधिशेष अर्जन दर्ज किया. 

ब्रिटिश राज के अंतर्गत भारत में कुपोषण एवं महामारियों के कारण आम लोग मक्खियों की भांति मर रहे थे. चौंकाने वाला तथ्य यह है कि वर्ष 1911में भारतीय जीवन-प्रत्याशा मात्र 22 वर्ष रह गयी थी, बेहद उच्च करों के चलते भारतीयों की क्रय शक्ति को बुरी तरह प्रभावित किया गया, जिसके कारण 1900 में अनाज की प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत 200 कि. ग्रा. से घटकर 157 कि. ग्रा. तक रह गयी. द्वितीय विश्व युद्ध की पूर्व संध्या पर यह खपत और अधिक कम होकर 137 कि. ग्रा. प्रति व्यक्ति रह गयी. वर्तमान में विश्व का कोई भी देश, भले ही वह अल्पविकसित ही क्यों न हो..भारत की 1946 की स्थिति के आस पास भी नहीं है.

"मुगल काल में भारत इतना धनी था कि लंदन, पेरिस, मैड्रिड, रोम, मिलान भी एक साथ मिलकर उसकी समृद्धि के म

भारतीय जीवन प्रत्याशा दर वर्ष 1911

ब्रिटिश राज में धन-अवशोषण की व्यवस्था –

सभी उपनिवेशवाद शक्तियों के मूल में कर संग्रहण व्यवस्था रही है, जिला प्रशासक को “कलेक्टर” का नाम दिया गया था. जब कंपनी को प्रथम बार वर्ष 1765 में बंगाल से राजस्व एकत्रित करने का अधिकार मिला, तो उसके कर्मचारी धनलोलुपता के कारण पूरी तरह से पागल हो गये थे. ब्रिटिश राज में, एक सिविल सेवा अधिकारी आर.सी. दत्त द्वारा दस्तावेजित किया गया है कि, वर्ष 1765-1770 के मध्य कंपनी ने पूर्व में नवाब के शासन की तुलना में बंगाल में तीन गुना अधिक कर राजस्व कर दिया था.

Ad

नवाब भी अपने शासन काल में उच्च मात्र में ही कर एकत्र कर रहा था, परन्तु जब कंपनी ने लगातार पांच वर्षों तक तिगुना कर संग्रहण किया, तो ब्नागल की जनता भुखमरी के कगार पर पहुंच गयी. वर्ष 1770 के बंगाल के अकाल में स्वयं अंग्रेजो के अनुमान के अनुसार 30 मिलियन में से 10 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गयी थी. वर्ष 1765 तक ईस्ट इंडिया कंपनी किसानों से निर्यात की वस्तुएं खरीदने के लिए शुद्ध राजस्व के एक तिहाई हिस्से का उपयोग कर रही थी. यह वास्तव में करों का असामान्य उपयोग था और किसान स्वयं नहीं जानते थे कि वें शोषण की इस प्रक्रिया में फंसते जा रहे हैं.

"मुगल काल में भारत इतना धनी था कि लंदन, पेरिस, मैड्रिड, रोम, मिलान भी एक साथ मिलकर उसकी समृद्धि के म

Pic credit : The wire (wikimedia commons)

वास्तविक सम्बन्धों को धुंधला करने की क्षमता रखने वाला बाजार बहुत ही अद्भुत चीज है. उत्पादक के स्वयं के कर भुगतान का एक बड़ा हिस्सा आसानी से निर्यात वस्तुओं में परिवर्तित हो गया, इसलिए कंपनी के लिए यह सब वस्तुएं बिल्कुल मुफ्त हो गयी. मार्केटिंग की इस धारा के अंतर्गत करों को व्यापार के साथ जोड़ने की इस अनुचित प्रणाली से यदि भारत में किसी को लाभ हुआ तो वह केवल मध्यस्थ अथवा दलाल थे. आधुनिक भारत के कुछ प्रसिद्द व्यवसायिक घरानों ने ब्रिटिशों के लिए दलाली कर अपना प्रारंभिक मुनाफा कमाया.  

भारत से अधिग्रहित धन का इस्तेमाल किस प्रकार किया गया –

आधुनिक पूंजीवादी समाज का अस्तित्व बिना उपनिवेशवाद एवं धन की लूट के संभव नहीं था. ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति (1780-1820) के दौरान एशिया एवं वेस्ट इंडीज जैसे उपनिवेशों से होने वाला अर्जन ब्रिटेन की जीडीपी का 6 प्रतिशत हिस्सा थी, जो उसकी स्वयं की बचत दर के समान ही थी. 19वीं शताब्दी के मध्य जहां, कॉन्टिनेंटल यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के साथ युद्ध के कारण ब्रिटेन के अधिकांश धन का अपव्यय हो रहा था, वहीं दूसरी ओर वह इन्हीं देशों में सडकें, रेलवे और फक्ट्रियों का निर्माण करने में निवेश भी कर रहा था. यहां सोचने वाला तथ्य है कि ब्रिटेन इतनी बड़ी संख्या में धनराशि का व्यय किस प्रकार कर रहा था, तो इसका सरल सा उत्तर यह है कि वह भारत से प्राप्त आय से अपने बीओपी घाटे की पूर्ति कर रहा था. ब्रिटेन पर पड़ने वाले हर असामान्य खर्च वह भारत के बजट से ही निष्काषित कर रहा था, परिणामस्वरुप पहले से ही ब्रिटिश शोषण तंत्र के तले दबा भारत और अधिक ऋण के बोझ तले दबता जा रहा था. 

कंपनी एवं क्राउन की नियमावली के अनुसार भारत के राजस्व बजट का एक तिहाई हिस्सा घरेलू रूप से खर्च नहीं करके विदेशी व्यय के तौर पर पृथक रूप से रखा गया था. लंदन में स्थित भारत के सचिव (एसओएस) ने विदेशी आयातकों को भारत से अपने शुद्ध आयात के लिए भुगतान (सोने और स्टर्लिंग में) जमा करने के लिए आमंत्रित किया, जो बैंक ऑफ इंग्लैंड में एसओएस के खाते में गायब हो गये. इस भारतीय कमाई के खिलाफ उन्होंने बिल जारी किए, जिन्हें काउंसिल बिल (सीबीएस) कहा जाता है, जो समान रूप से रुपए के मूल्य के थे और जिसका “विदेशी व्यय” के नाम से भारतीय बजट से भुगतान किया गया था. इस प्रकार ब्रिटेन के पास भारतीय उत्पादकों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा अर्जन पर पूर्ण नियंत्रण का अधिकार था. यदि इसका एक हिस्सा भी भारत को मिलता, तो 1870 में जापान में आई औद्योगिक क्रांति से पूर्व ही भारत भी आधुनिक तकनीकों का निर्यात करने योग्य हो सकता था.

मुग़ल शासन और ब्रिटिश राज में अंतर –

Ad

मुग़ल शासन और बहुत से अन्य रजवाड़े जो भारत में बाहर से आए थे, वे यहां स्थायी रूप से बस चुके थे. हालांकि मुग़ल काल एवं रजवाड़ों के अंतर्गत भी जनता पर भारी कर लगाया जाता था, परन्तु वह हर लिहाज से अंग्रेजी शासन काल से बेहतर था. मुग़ल भारत में आकर यहीं के निवासी बनकर रह गये थे,उन्होंने किसी अन्य विदेशी भूमि में भारत का धन अवशोषित नहीं किया, जिस प्रकार अंग्रेजी राज में किया गया. अंग्रेजी शासन के अतिरिक्त किसी भी अन्य शासनकाल के दौरान स्थानीय उत्पादकों से धोखाधड़ी, जनता पर अत्याधिक करभार या किसी अन्य उप-महाद्वीप पर भारतीय धन का आवागमन नहीं किया गया.   

"मुगल काल में भारत इतना धनी था कि लंदन, पेरिस, मैड्रिड, रोम, मिलान भी एक साथ मिलकर उसकी समृद्धि के म

अफ्रीका में चीन की दखलंदाजी कहीं नव-साम्राज्यवाद तो नहीं –

चीन या भारतीयों उधमियों को जो अफ्रीका में व्यापार जमाने का प्रयास कर रहे है, उनके विषय में यह कहना बिलकुल गलत होगा कि वे अफ्रीका में अपना नव साम्राज्यवाद स्थापित करना चाहते हैं. यह मात्र एक हथकंडा है, जो उत्तर वाले जबरन राजनीतिक नियंत्रण प्राप्त करने के पश्चात, हम भारतीयों के खिलाफ किये गये अपराधों से ध्यान हटाने के लिए उपयोग करते हैं. ब्रिटेन और उनके जैसे अन्य देशों ने न केवल अपने उपनिवेशों से उनके विदेशी अर्जन को हथिया लिया, भारी मात्रा में कर का संग्रहण किया और उन्हें भूखा मरने के लिए छोड़ दिया.

अफ्रीका में चीनी और भारतीय उद्यमी स्वतंत्र सरकारों के साथ समझौते में व्यापार करने की कोशिश कर रहे हैं. हम कभी भी उत्तरी देशों के विकास पथ को दोहराने का प्रयास नहीं कर सकते हैं. उन्होंने बड़े पैमाने पर मुख्य रूप से अमेरिका के लिए, स्थायी बाह्य प्रवासन0020के माध्यम से ग्रामीण विस्थापन और बेरोजगारी के अवसरों को बढ़ाया. यह विकल्प श्रम-अधिशेष भारत या चीन के लिए खुला नहीं है. हमें एक औद्योगिकीकरण रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है, जो रोजगार और आजीविका के संतुलन को बना कर सके.

क्या ब्रिटेन को भारतीय अधिग्रहण की क्षतिपूर्ति करनी चाहिए

केवल ब्रिटेन ही नहीं, अपितु वर्तमान का अत्याधुनिक तकनीकी पूंजीवादी विश्व भारत एवं अन्य औपनिवेशिक कॉलोनियों के बलबूते पर ही पोषित हुआ है. अपने उपनिवेश भारत से बड़ी मात्रा में पूंजी को अवशोषित करने की क्षमता ब्रिटेन में अकेले नहीं थी, जिस कारण यह विश्व का सबसे बड़ा पूंजी निर्यातक बन गया और इसने कॉन्टिनेंटल यूरोप, अमेरिका और रूस तक के औद्योगिक विकास में उनकी सहायता की. अन्यथा इन देशों में वृहद् संरचनात्मक उन्नति संभव नहीं थी.

Ad

औपनिवेशिक व्यवस्था ने उत्तरी अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक के देशों में, जहां भी ब्रिटिश लोग जाकर बसे, उन्होंने आधुनिक पूंजीवादी साम्राज्य बनाने में सहायता की. इसीलिए उन्नत पूंजीवादी देशों को विकाशील देशों को, विशेषकर गरीब देशों को अपनी वार्षिक जीडीपी में से एक हिस्सा हस्तांतरित करना चाहिए. खासकर ब्रिटेन को, बंगाल अकाल के दौरान मारे गये नागरिकों के लिए नैतिक रूप से क्षतिपूर्ति करनी चाहिए, क्योंकि यह एक योजनागत अकाल था.

संपादकीय नोट -

"मुगल काल में भारत इतना धनी था कि लंदन, पेरिस, मैड्रिड, रोम, मिलान भी एक साथ मिलकर उसकी समृद्धि के म

कांग्रेसी राजनीतिज्ञ एवं प्रसिद्द भारतीय लेखक शशि थरूर ने भारतीय उपनिवेशवाद से जुड़ी अपनी पुस्तक “द ईरा ऑफ डार्कनेस : द ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया” के अंतर्गत स्पष्ट किया है कि 200 वर्ष पूर्व का भारत विश्व के सबसे अमीर देशों में से एक था, जो विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 23 फीसदी की भागीदारी रखता था और गरीबी भारत के लिए अपिरिचित थी.

वास्तव में अंग्रेजो के आने से पूर्व का भारत सोने की चिड़िया यूहीं नहीं कहलाता था. अपनी अनूठी मौसमी विविधता, उपजाऊ नदी-क्षेत्रों, कौशलपूर्ण कुटीर उद्योगों आदि के चलते कृषि एवं उद्योगों के क्षेत्र में भारत विश्व के प्रभुत्त्वशाली देशों में से एक था, जो अंग्रेजो के 200 वर्षों के शोषण के पश्चात दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक के रूप में चिन्हित हुआ.

आज जिस भारत की गरीबी दिखाकरअंतर्राष्ट्रीय सिनेमा के अंतर्गत ऑस्कर की श्रेणियों का सफ़र तय किया जाता है, जहां के स्लम एरिया की डॉक्यूमेंट्रीज बनाकर यू-टयूबर्स मिलियन व्यूज प्राप्त करने का कार्य करते हैं..पूर्व में अपनी समृद्धता के कारण जाना जाता था, परन्तु इन सकारात्मक तथ्यों को दर्शाने में लोगों की रूचि शायद इतनी अधिक नहीं है.

"मुगल काल में भारत इतना धनी था कि लंदन, पेरिस, मैड्रिड, रोम, मिलान भी एक साथ मिलकर उसकी समृद्धि के म

आज समृद्धता के मायने विकासशील भारत के लिए काफी अलग हैं, देश फिर से सोने की चिड़िया बने, यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा भर है. गुलामी का दौर भले ही समाप्त हो चुका है..किन्तु उसके दंश आज भी इतने अधिक हैं कि गिनती में नहीं आ सकते, फिर भी प्रयास करें तो पाएंगे..

1. अपनी ही मातृभाषा हिंदी का बहुउपयोग करने वालों को आज के भारत का आधुनिक वर्ग उपेक्षित कर देता है. जिस हिंगलिश (हिंदी+इंग्लिश) का उपयोग आज का भारत कर रहा है, यानि हिंदी बोलने की शर्म और फ़्लूएंट अंग्रेजी नहीं बोल पाने की विवशता ने एक अलग ही भाषा का निर्माण कर दिया है, इसका भविष्य क्या होगा? यह कोई नहीं जनता है. 

2. हमारी नदियां, संस्कृति, लोक-परम्पराएं आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं, विकास की होड़ में संसाधनों का दोहन दर्शाता है कि 200 वर्ष की अंग्रेजियत हमें हमारी भारतीयता से ही कहीं न कहीं इतर कर गयी.

3. अपने दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर नजर दौड़ाइए, उनमें भारतीय ब्रांड शायद नाम मात्र के ही होंगे. विदेशी वस्तुओं के उपभोग की प्रवृति ने हमारी स्वदेशी अवधारणा को ही नष्ट कर दिया.

4. भारत की गुरुकुल परंपरा का स्थान आज की कान्वेंट शिक्षा ले चुकी है, जिसमें शिक्षा पद्धति पूर्णरूपेण अंग्रेजी है. यानि भारत के भविष्य की नींव को भी प्रभावित करने का क्रम बदस्तूर जारी है, इत्यादि.

सोचिये यदि भारत में भारतीयता ही नहीं होगी, तो आज़ादी के लिए किये गये अथक संघर्षों का क्या लाभ? ब्रिटिश राज ने भारत की अर्थव्यवस्था को ही नहीं निचोड़ा अपितु सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, मानसिक आदि पहलुओं पर भी देश को अत्याधिक प्रभावित किया. इस सोच और समझ को साथ लेकर आत्म-मंथन कर हमें वास्तविक्ता व कल्पनाओं के मध्य के अंतर को समझना होगा और प्रयास करना होगा सही अर्थों में भारत को भारत बनाए रखने का.

Attached Images

Related Videos
Related Audio
Leave a comment for the team.
Subscribe to this research.
रिसर्च को सब्सक्राइब करें

Join us on the latest researches that matter.

इस रिसर्च पर अपडेट पाने के लिए और इससे जुड़ने के लिए अपना ईमेल आईडी नीचे भरें.

Responses

{{ survey.name }}@{{ survey.senton }}
{{ survey.message }}
Reply

How It Works

ये कैसे कार्य करता है ?

start a research
Follow & Join.

With more and more following, the research starts attracting best of the coordinators and experts.

start a research
Build a Team

Coordinators build a team with experts to pick up the execution. Start building a plan.

start a research
Fix the issue.

The team works transparently and systematically fixing the issue, building the leaders of tomorrow.

start a research
जुड़ें और फॉलो करें

ज्यादा से ज्यादा जुड़े लोग, प्रतिभाशाली समन्वयकों एवं विशेषज्ञों को आकर्षित करेंगे , इस मुद्दे को एक पकड़ मिलेगी और तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद ।

start a research
संगठित हों

हमारे समन्वयक अपने साथ विशेषज्ञों को ले कर एक कार्य समूह का गठन करेंगे, और एक योज़नाबद्ध तरीके से काम करना सुरु करेंगे

start a research
समाधान पायें

कार्य समूह पारदर्शिता एवं कुशलता के साथ समाधान की ओर क़दम बढ़ाएगा, साथ में ही समाज में से ही कुछ भविष्य के अधिनायकों को उभरने में सहायता करेगा।

How can you make a difference?

Do you care about this issue? Do You think a concrete action should be taken?Then Follow and Support this Research Action Group.Following will not only keep you updated on the latest, help voicing your opinions, and inspire our Coordinators & Experts. But will get you priority on our study tours, events, seminars, panels, courses and a lot more on the subject and beyond.

आप कैसे एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं ?

क्या आप इस या इसी जैसे दूसरे मुद्दे से जुड़े हुए हैं, या प्रभावित हैं? क्या आपको लगता है इसपर कुछ कारगर कदम उठाने चाहिए ?तो नीचे फॉलो का बटन दबा कर समर्थन व्यक्त करें।इससे हम आपको समय पर अपडेट कर पाएंगे, और आपके विचार जान पाएंगे। ज्यादा से ज्यादा लोगों द्वारा फॉलो होने पर इस मुद्दे पर कार्यरत विशेषज्ञों एवं समन्वयकों का ना सिर्फ़ मनोबल बढ़ेगा, बल्कि हम आपको, अपने समय समय पर होने वाले शोध यात्राएं, सर्वे, सेमिनार्स, कार्यक्रम, तथा विषय एक्सपर्ट्स कोर्स इत्यादि में सम्मिलित कर पाएंगे।
Communities and Nations where citizens spend time exploring and nurturing their culture, processes, civil liberties and responsibilities. Have a well-researched voice on issues of systemic importance, are the one which flourish to become beacon of light for the world.
समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
Share it across your social networks.
अपने सोशल नेटवर्क पर शेयर करें

Every small step counts, share it across your friends and networks. You never know, the issue you care about, might find a champion.

हर छोटा बड़ा कदम मायने रखता है, अपने दोस्तों और जानकारों से ये मुद्दा साझा करें , क्या पता उन्ही में से कोई इस विषय का विशेषज्ञ निकल जाए।

Got few hours a week to do public good ?

Join the Research Action Group as a member or expert, work with right team and get funded. To know more contact a Coordinator with a little bit of details on your expertise and experiences.

क्या आपके पास कुछ समय सामजिक कार्य के लिए होता है ?

इस एक्शन ग्रुप के सहभागी बनें, एक सदस्य, विशेषज्ञ या समन्वयक की तरह जुड़ें । अधिक जानकारी के लिए समन्वयक से संपर्क करें और अपने बारे में बताएं।

Know someone who can help?
क्या आप किसी को जानते हैं, जो इस विषय पर कार्यरत हैं ?
Invite by emails.
ईमेल से आमंत्रित करें
The researches on ballotboxindia are available under restrictive Creative commons. If you have any comments or want to cite the work please drop a note to letters at ballotboxindia dot com.

Code# 5{{ descmodel.currdesc.id }}

ज़ारी शोध जिनमे आप एक भूमिका निभा सकते है. Live Action Researches that might need your help.

Follow