चुनावी चंदे को और पारदर्शी बनाये जाने की जरूरत
चुनाव सुधार को लेकर चल रहे हमारे प्रयास के तहत हमें कई मोर्चें पर सफलता प्राप्त हुई है. कई नेताओं ने माना कि जनमेला एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है साथ ही साथ कई नेताओं ने चुनाव में बेतरतीब किए जाने वाले खर्च को कम करने की बात कही. महंगा चुनाव हमेशा देश के लिए एक बड़ा मुद्दा रहा है साथ ही चुनावी चंदे में पारदर्शिता का मुद्दा हमेशा से चर्चा का विषय. इसी बीच बेनामी चंदे का चलन भी खूब चला लेकिन बाद में इस पर शासन के द्वारा कड़ा रुख अपनाया गया. चुनाव के दौरान पार्टियों को मिलने वाला चंदा भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारक साबित होता रहा है ऐसे में चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए कोई ठोस कदम भी उठाए गए हैं. ऐसे में राजनीतिक दलों को मिलने वाले चुनावी चंदे का हिसाब अब सबके सामने आ जाता है.
एडीआर की रिपोर्ट

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें 2017 में हुए गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में हुए संपन्न विधान सभा चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा लिए गए चंदे के बारे में बताया गया है. इस रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि 5 राज्यों के चुनाव के दौरान राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक पार्टियों ने जमकर चंदा लिया बावजूद उसके एकत्रित किए गए चंदे को खर्च करने के दौरान उन्होंने अपने हाथ खींच लिए. राजनीतिक दलों को अपने चुनाव खर्च का विवरण विधान सभा चुनाव की अंतिम तिथि से 75 दिन के अंतर्गत चुनाव आयोग में जमा करना होता है. चंदे के तौर पर सबसे ज्यादा पैसा भाजपा को प्राप्त हुआ है.
कुल चंदे का 92.4 प्रतिशत चंदा भाजपा को
एडीआर की इस रिपोर्ट में 7 राष्ट्रीय दलों और 16 क्षेत्रीय दलों को सम्मिलित किया गया है. चुनाव में 16 क्षेत्रीय दलों ने भाग लिया जिनमें से 6 क्षेत्रीय दलों ने अपने चुनाव खर्च का विवरण चुनाव आयोग को अब तक जमा नहीं किया है. एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार राजनीतिक पार्टियों को 1503.21 करोड़ रुपए बतौर चंदा प्राप्त हुआ जबकि इनमें से महज 494.36 करोड़ रुपए व्यय किए गए हैं. इस रिपोर्ट में यह बात निकलकर सामने आई है कि राष्ट्रीय दलों को चुनावी चंदे के तौर पर 1314.29 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं. जिनमें से खर्च केवल 328.66 करोड़ रुपए किया गया है. भाजपा को सबसे ज्यादा चंदे में 1214.46 करोड़ रुपए मिले हैं. आश्चर्य की राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे का यह 92.4 प्रतिशत हिस्सा है.
इनमें से 119 4.21 करोड़ रुपए भाजपा केंद्रीय मुख्यालय को प्राप्त हुए तो वहीं राज्यों में सबसे ज्यादा भाजपा को गोवा यूनिट से 17 करोड़ रुपए चंदे के तौर पर प्राप्त हुए. दूसरी ओर कांग्रेस के केंद्रीय मुख्यालय से ज्यादा रकम राज्य स्तर पर जुटाई गई है. प्राप्त चंदे में कांग्रेस को 62.09 करोड़, एनसीपी को 0.61 करोड़, माकपा को 0.46 करोड़ रुपए राज्य स्तर पर चंदे के तौर पर प्राप्त हुए हैं. बहुजन समाजवादी पार्टी ने कोई भी चंदा नहीं लिया है.
क्षेत्रीय दलों में शिवसेना को मिला सबसे ज्यादा चंदा
क्षेत्रीय दलों द्वारा जमा किए गए चुनाव खर्च विवरण के आधार पर इन दलों ने कुल 188.92 करोड़ रुपए चंदा के तहत प्राप्त किया वहीं उनका कुल खर्च 165.70 करोड़ रुपए रहा. क्षेत्रीय दलों में सबसे ज्यादा चंदा 116 करोड़ रुपए शिवसेना को प्राप्त हुए हैं. आम आदमी पार्टी को गोवा और पंजाब चुनाव के दौरान 37.35 करोड़ रुपए चंदे के तौर पर मिले. शिवसेना ने उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड चुनाव में कोई भी पैसा खर्च नहीं किया.

चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों को प्राप्त चंदा नकद, चेक और डीडी के माध्यम से प्राप्त हुए हैं. राष्ट्रीय दलों ने प्रचार पर 189.46 करोड़ और क्षेत्रीय दलों ने प्रचार पर 110.77 करोड़ रुपए का खर्च अपने चुनाव रिपोर्ट में घोषित किया है. राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने प्रचार पर ही 56 प्रतिशत का खर्च किया है.
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवारों पर किये गए खर्च में बड़ा अंतर

राष्ट्रीय दलों ने यात्रा खर्च पर 79.23 करोड़ रुपए और क्षेत्रीय दलों ने यात्रा पर केवल 31.463 करोड़ रुपए का खर्च अपने चुनाव रिपोर्ट में घोषित किया है. राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के व्यय का गर हम आंकलन करें तो अधिकतम अंतर उम्मीदवारों पर खर्च की राशि है. राष्ट्रीय दलों ने अपने उम्मीदवारों पर 75.12 करोड़ रुपए खर्च घोषित किया है जबकि क्षेत्रीय दलों ने अपने उम्मीदवारों को लेकर सिर्फ 22.62 करोड़ रुपए का खर्च ही दर्शाया है.
हमारा मानना
चुनाव में लोगों की आस्था फिर से जगाने के लिए और लोकतंत्र की छवि को बेहतर बनाने के लिए चुनाव सुधार के इस पहल में आदर्श तो यही होगा कि चंदा पार्टी विशेष को ना देकर सीधे इलेक्शन कमीशन के पास जमा करवाया जाए. चुनाव आयोग द्वारा ही इस चंदे का बेहतर इस्तेमाल जनमेला या इसी तरह के समान अवसर प्रदान करने वाले उपक्रम पर हो. हो सकता है चुनाव आयोग के पास चंदा देने से चंदे में कमी आए मगर इसके साथ भ्रष्टाचार में भी कमी आएगी.

चुनाव आयोग के पास चंदा जमा होने से निष्पक्ष और सभी के लिए समान अवसर, सभी पार्टियों को और सभी उम्मीदवारों को मिल पाएगी. साथ ही इससे एक आदर्श चुनाव करवा पाने में चुनाव आयोग को सफलता प्राप्त हो सकेगी. इसके साथ-साथ हमारा यह भी मानना है कि उन सभी दानकर्ताओं की जानकारी और योगदान सार्वजनिक किया जाना चाहिए जिन्होंने चुनाव के दौरान पार्टियों को चंदा दिया है. एक बेहतर चुनाव प्रक्रिया की दिशा में आगे बढ़ने के लिए यह जरूरी है कि कुछ कड़े फैसले भी लिए जाए.
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Swarntabh Kumar 48
चुनावी चंदे को और पारदर्शी बनाये जाने की जरूरत
चुनाव सुधार को लेकर चल रहे हमारे प्रयास के तहत हमें कई मोर्चें पर सफलता प्राप्त हुई है. कई नेताओं ने माना कि जनमेला एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है साथ ही साथ कई नेताओं ने चुनाव में बेतरतीब किए जाने वाले खर्च को कम करने की बात कही. महंगा चुनाव हमेशा देश के लिए एक बड़ा मुद्दा रहा है साथ ही चुनावी चंदे में पारदर्शिता का मुद्दा हमेशा से चर्चा का विषय. इसी बीच बेनामी चंदे का चलन भी खूब चला लेकिन बाद में इस पर शासन के द्वारा कड़ा रुख अपनाया गया. चुनाव के दौरान पार्टियों को मिलने वाला चंदा भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारक साबित होता रहा है ऐसे में चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए कोई ठोस कदम भी उठाए गए हैं. ऐसे में राजनीतिक दलों को मिलने वाले चुनावी चंदे का हिसाब अब सबके सामने आ जाता है.
एडीआर की रिपोर्ट
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें 2017 में हुए गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में हुए संपन्न विधान सभा चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा लिए गए चंदे के बारे में बताया गया है. इस रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि 5 राज्यों के चुनाव के दौरान राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक पार्टियों ने जमकर चंदा लिया बावजूद उसके एकत्रित किए गए चंदे को खर्च करने के दौरान उन्होंने अपने हाथ खींच लिए. राजनीतिक दलों को अपने चुनाव खर्च का विवरण विधान सभा चुनाव की अंतिम तिथि से 75 दिन के अंतर्गत चुनाव आयोग में जमा करना होता है. चंदे के तौर पर सबसे ज्यादा पैसा भाजपा को प्राप्त हुआ है.
कुल चंदे का 92.4 प्रतिशत चंदा भाजपा को
एडीआर की इस रिपोर्ट में 7 राष्ट्रीय दलों और 16 क्षेत्रीय दलों को सम्मिलित किया गया है. चुनाव में 16 क्षेत्रीय दलों ने भाग लिया जिनमें से 6 क्षेत्रीय दलों ने अपने चुनाव खर्च का विवरण चुनाव आयोग को अब तक जमा नहीं किया है. एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार राजनीतिक पार्टियों को 1503.21 करोड़ रुपए बतौर चंदा प्राप्त हुआ जबकि इनमें से महज 494.36 करोड़ रुपए व्यय किए गए हैं. इस रिपोर्ट में यह बात निकलकर सामने आई है कि राष्ट्रीय दलों को चुनावी चंदे के तौर पर 1314.29 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं. जिनमें से खर्च केवल 328.66 करोड़ रुपए किया गया है. भाजपा को सबसे ज्यादा चंदे में 1214.46 करोड़ रुपए मिले हैं. आश्चर्य की राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे का यह 92.4 प्रतिशत हिस्सा है.
इनमें से 119 4.21 करोड़ रुपए भाजपा केंद्रीय मुख्यालय को प्राप्त हुए तो वहीं राज्यों में सबसे ज्यादा भाजपा को गोवा यूनिट से 17 करोड़ रुपए चंदे के तौर पर प्राप्त हुए. दूसरी ओर कांग्रेस के केंद्रीय मुख्यालय से ज्यादा रकम राज्य स्तर पर जुटाई गई है. प्राप्त चंदे में कांग्रेस को 62.09 करोड़, एनसीपी को 0.61 करोड़, माकपा को 0.46 करोड़ रुपए राज्य स्तर पर चंदे के तौर पर प्राप्त हुए हैं. बहुजन समाजवादी पार्टी ने कोई भी चंदा नहीं लिया है.
क्षेत्रीय दलों में शिवसेना को मिला सबसे ज्यादा चंदा
क्षेत्रीय दलों द्वारा जमा किए गए चुनाव खर्च विवरण के आधार पर इन दलों ने कुल 188.92 करोड़ रुपए चंदा के तहत प्राप्त किया वहीं उनका कुल खर्च 165.70 करोड़ रुपए रहा. क्षेत्रीय दलों में सबसे ज्यादा चंदा 116 करोड़ रुपए शिवसेना को प्राप्त हुए हैं. आम आदमी पार्टी को गोवा और पंजाब चुनाव के दौरान 37.35 करोड़ रुपए चंदे के तौर पर मिले. शिवसेना ने उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड चुनाव में कोई भी पैसा खर्च नहीं किया.
चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों को प्राप्त चंदा नकद, चेक और डीडी के माध्यम से प्राप्त हुए हैं. राष्ट्रीय दलों ने प्रचार पर 189.46 करोड़ और क्षेत्रीय दलों ने प्रचार पर 110.77 करोड़ रुपए का खर्च अपने चुनाव रिपोर्ट में घोषित किया है. राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने प्रचार पर ही 56 प्रतिशत का खर्च किया है.
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवारों पर किये गए खर्च में बड़ा अंतर
राष्ट्रीय दलों ने यात्रा खर्च पर 79.23 करोड़ रुपए और क्षेत्रीय दलों ने यात्रा पर केवल 31.463 करोड़ रुपए का खर्च अपने चुनाव रिपोर्ट में घोषित किया है. राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के व्यय का गर हम आंकलन करें तो अधिकतम अंतर उम्मीदवारों पर खर्च की राशि है. राष्ट्रीय दलों ने अपने उम्मीदवारों पर 75.12 करोड़ रुपए खर्च घोषित किया है जबकि क्षेत्रीय दलों ने अपने उम्मीदवारों को लेकर सिर्फ 22.62 करोड़ रुपए का खर्च ही दर्शाया है.
हमारा मानना
चुनाव में लोगों की आस्था फिर से जगाने के लिए और लोकतंत्र की छवि को बेहतर बनाने के लिए चुनाव सुधार के इस पहल में आदर्श तो यही होगा कि चंदा पार्टी विशेष को ना देकर सीधे इलेक्शन कमीशन के पास जमा करवाया जाए. चुनाव आयोग द्वारा ही इस चंदे का बेहतर इस्तेमाल जनमेला या इसी तरह के समान अवसर प्रदान करने वाले उपक्रम पर हो. हो सकता है चुनाव आयोग के पास चंदा देने से चंदे में कमी आए मगर इसके साथ भ्रष्टाचार में भी कमी आएगी.
चुनाव आयोग के पास चंदा जमा होने से निष्पक्ष और सभी के लिए समान अवसर, सभी पार्टियों को और सभी उम्मीदवारों को मिल पाएगी. साथ ही इससे एक आदर्श चुनाव करवा पाने में चुनाव आयोग को सफलता प्राप्त हो सकेगी. इसके साथ-साथ हमारा यह भी मानना है कि उन सभी दानकर्ताओं की जानकारी और योगदान सार्वजनिक किया जाना चाहिए जिन्होंने चुनाव के दौरान पार्टियों को चंदा दिया है. एक बेहतर चुनाव प्रक्रिया की दिशा में आगे बढ़ने के लिए यह जरूरी है कि कुछ कड़े फैसले भी लिए जाए.