Ad
Search by Term. Or Use the code. Met a coordinator today? Confirm the Identity by badge# number here, look for BallotboxIndia Verified Badge tag on profile.
सर्च करें या कोड का इस्तेमाल करें, क्या आज बैलटबॉक्सइंडिया कोऑर्डिनेटर से मिले? पहचान के लिए बैज नंबर डालें और BallotboxIndia Verified Badge का निशान देखें.
 Search
 Code
Searching...loading

Search Results, page {{ header.searchresult.page }} of (About {{ header.searchresult.count }} Results) Remove Filter - {{ header.searchentitytype }}

Oops! Lost, aren't we?

We can not find what you are looking for. Please check below recommendations. or Go to Home

तालाब जितने सुंदर व श्रेष्ठ होंगे, अनुपम की आत्मा उतना सुख पायेगी - राजेन्द्र सिंह

Arun Tiwari

Arun Tiwari Opinions & Updates

ByArun Tiwari Arun Tiwari   {{descmodel.currdesc.readstats }}

Originally Posted by {{descmodel.currdesc.parent.user.name || descmodel.currdesc.parent.user.first_name + ' ' + descmodel.currdesc.parent.user.last_name}} {{ descmodel.currdesc.parent.user.totalreps | number}}   {{ descmodel.currdesc.parent.last_modified|date:'dd/MM/yyyy h:mma' }}

तालाब जितने सुंदर व श्रेष्ठ होंगे, अनुपम की आत्मा उतना सुख पायेगी - राजेन्द्र सिंह-हम सभी के

हम सभी के अपने श्री अनुपम मिश्र नहीं रहे। इस समाचार ने खासकर पानी-पर्यावरण जगत से जुडे़ लोगों को विशेष तौर पर आहत किया। अनुपम जी ने जीवन भर क्या किया; इसका एक अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अनुपम जी के प्रति श्रृ़द्धांजलि सभाओं के आयोजन का दौर इस संवाद को लिखे जाने के वक्त भी देशभर में जारी है।  पंजाब-हरियाणा में आयोजित श्रृद्धांजलि सभाओं से भाग लेकर दिल्ली पहुंचे पानी कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह ने खुद यह समाचार मुझे दिया। राजेन्द्र जी से इन सभाओं का वृतांत जानने 23 दिसम्बर को गांधी शांति प्रतिष्ठान पहुंचा, तो सूरज काफी चढ़ चुका था; 10 बज चुके थे; बावजूद इसके राजेन्द्र जी बिस्तर की कैद में दिखे। कारण पूछता, इससे पहले उनकी आंखें भर आई और आवाज़ भरभरा उठी। कुछ संयत हुए, तो बोले - ’’यार, क्या बताऊं, शाम को विजय प्रताप जी वगैरह आये थे। अनुपम भाई को लेकर चर्चा होती रही। उसके बाद से बराबर कोशिश कर रहा हूं, नींद ही नहीं आ रही। अनुपम की एक-एक बात, जैसे दिमाग को मथ रही हैं। चित्त स्थिर ही नहीं हो रहा। क्या करूं ?’’

अनुपम जी - पानी..पर्यावरण की गहरी समझ वाले दूरदृष्टा, राजेन्द्र जी - पानी के अभ्यासक; मैं समझ गया कि दो पानी वाले रातभर आपस में मिलते रहे हैं। मैं एक लेखक हूं। इस अनुपम मिलन को जानने और लिखने का लोभ संवरण करना मेरे लिए संभव नहीं हुआ। मैने राजेन्द्र जी की स्मृति को कुरेदा। जो सुना, वह उसे आप तक पहुंचा रहा हूं:

.....................................................................................................................................

प्र. - पंचतत्वों से बने शरीर का एक ही तो सत्य है - मृत्यु....और फिर अनुपम जी अपनी जीवन साधना में जितना कुछ कर गये, ऐसी उपलब्धि वाली देह के जाने पर आप जैसे व्यक्ति के मन में दुख से ज्यादा तो कुछ संकल्प आना चाहिए। आप दुखी होंगे, तो कैसे चलेगा ? 

उ. - नहीं यार, अभी तो अनुपम भाई की और ज्यादा जरूरत थी हम सभी को। सिद्धराज जी भाईसाहब (प्रख्यात गांधीवादी नेता) के जाने के बाद एक अनुपम ही तो थे, जो मुझे टोकते थे। काम से रोकते नहीं थे, लेकिन टोकते जरूर थे। कहते थे - तुम यह करो। यह मत करो। अब मेरा कुर्ता पकड़कर कौन खींचेगा ? कौन टोकेगा ?

( राजेन्द्र फिर भावुक हो गये। )

..अच्छा करो, तो पीठ भी थपथपाते थे। कैसा तो स्वभाव था उनका! काम की बात पूरी होते ही अक्सर कह उठते थे - ’’राजेन्द्र, अब अपन की सब बातें हो गईं। कुछ और हो, तो बताओ; नहीं तो अब जाओ। तुम्हे कई काम होंगे। तुमसे मिलने वाले तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे।’’ ऐसे स्वभाव वाला व्यक्ति तो अनुपम ही हो सकता है। कमी तो खलेगी। इतना आसान तो नहीं है, जीपीएफ आने पर अनुपम को भूल जाना।

प्र. - जीपीएफ के वातावरण में इस कमी को कोई तो भरेगा ही? हम उम्मीद कैसे छोड़ सकते हैं?

उ. - मुझे याद है, मैं, 1972 में पहली बार रमेश शर्मा जी के साथ यहां, जीपीएफ (गांधी शांति प्रतिष्ठान) आया था। उससे पूर्व रमेश भाई एक स्वैच्छिक कार्यकर्ता के तौर पर हमारे गांव डौला आते-जाते रहते थे। रमेश भाई के माध्यम से ही अनुपम जी से मेरा पहला परिचय हुआ था। 1984 आते-आते हमारा परिचय, गाढ़ी दोस्ती में बदल गया था। अनुपम, पहली बार 1986 में तरुण भारत संघ आये थे। तब से मैं जब भी दिल्ली आता हूं, तो जीपीएफ जरूर आता हूं। जीपीएफ में ही रुकने का प्रयास करता हूं। जीपीएफ आऊं और अनुपम व रमेश भाई जैसे मित्रों से ऊर्जा लिए बगैर चला जाऊं, ऐसा शायद ही कभी हुआ हो। 

सुबह उठकर अनुपम से मिलना तो मेरा मुख्य एजेण्डा रहता था। टेबल पर आमने-सामने हम कभी शांत नहीं बैठते थे। उनके साथ चर्चा से मैने निरंतर सीखा है। खासकर, अनुपम जी की सहिष्णुता ने मुझे बहुत सिखाया। अनुपम न हो, तो भी अनुपम के कक्ष में झांककर मैं लौट आता था। उस कक्ष में जाने भर से मुझे ऊर्जा मिलती थी। जीपीएफ में अनुपम और रमेश..दोनो ही मेरे लिए ऊर्जा के केन्द्र थे। 

आज आया हूं, तो यहां अनुपम भाई नहीं हैं। रमेशभाई भी जीपीएफ से सेवामुक्त हो चुके हैं। मैं आशावान व्यक्ति हूं। आशा करता हूं कि अनुपम के नहीं रहने के बाद, जीपीएफ अनुपम के व्यवहार से सीखेगा। अनुपम के व्यवहार के कारण ही जीपीएफ में अच्छी लोगों की लाइन बनी रही। इसे आगे बनाये रखने की कोशिश करनी चाहिए। व्यक्ति के साथ संस्था न मरे, ऐसी सब गांधीवादी कार्यकर्ताओं की इच्छा माननी चाहिए। अतः मैं तो यही मानता हूं कि यदि गांधी शांति प्रतिष्ठान को जिंदा रहना है, तो अनुपम के व्यवहार को यहां जिंदा रखना होगा। 

अनुपम, गांधी मार्ग पत्रिका के संपादक मात्र नहीं थे; उनके खान-पान, आचार-विचार, पहनावे में भी गांधीजी की जीवन पद्धति का दर्शन मौजूद था। उनके साथ घूमते हुए.. चिंतन-मनन करते हुए एक सहज-सार्थक जीवंतता का संचार महसूस होता था।

प्र. - आप, अनुपम का सबसे बड़ा गुण क्या मानते हैं ?

Ad

उ.- अनुपम, एक इनोवेटिव शब्दशिल्पी थे। पानी परम्परा के वह सच्चे शोधार्थी थे। मैं, अनुपम भाई को भारत में पर्यावरण शब्द व्यवहार का जनक मानता हूं। पानी-पर्यावरण क्षेत्र में काम करने वालों के लिए वह किसी साहित्यिक गुरु से कमतर नहीं थे।

अनुपम की सबसे खास विशेषता यह थी कि लोग अपने जिस खो गये को शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते, अनुपम उसका एहसास करने व कराने वाले व्यक्ति थे। तरुण भारत संघ की पहली पुस्तक ’जोहड़’ अनुपम जी ने मुझसे लिखवाई और खुद बैठकर उसे पढ़ने लायक बनाया।

शब्दों को रचना आसान हो सकता है, लेकिन वे लोक व्यवहार में भी उतरें, इसके लिए समाज की स्वीकार्यता हासिल करना आसान नहीं होता। इसके लिए शब्दों को समाज के मनोनुकूल परोसना भी आना चाहिए। बिहार की बाढ़, भारत के सुखाड़ व नदी जोड़ पर लिखे उनके तीन लेख तथा आज भी खरे हैं तालाब और राजस्थान की रजत बूंदे नामक पुस्तकें - अनुपम साहित्यमाला के इन मोतियों को हटा दें, तो पानी के क्षेत्र में कोई ऐसी पुस्तक या रचना नहीं है, जो लोक व्यवहार में हो।

एक प्रेक्टिसनर को ज्यादा सटीक व्यावहारिक ज्ञान होना चाहिए। किंतु मैं देखता हूं कि अनुपम उस व्यवहार को एक प्रेक्टिसनर से भी ज्यादा सरलता से समाज को परोसना जानते थे। उसे समाज के मन में उतार देना. बिठा देना; यही अनुपम का अनुपम गुण था। इसी गुण के कारण अनुपम, नये ज़माने के लोगों के बीच में भी पुरातन ज्ञान का लोहा मनवाने में सफल रहे। इसी गुण के कारण मैं अनुपम को सिर्फ लेखक-साहित्यकार न कहकर एक अभ्यासक भी मानता हूं। 

प्र. - आपकी निगाह में अनुपम जी का सबसे बड़ा योगदान क्या रहा ?

उ. - मेरी निगाह में अनुपम भाई का सबसे बड़ा योगदान सतत् चलने वाली उनकी वह कोशिश थी, जिसके जरिये वह पानी का काम करने वाले अनेक दूसरे अनेक साथी बनाने और उन्हे बढ़ाने में सफल रहे। मुझे ध्यान है। गोपालपुरा की पश्चिमी पहाड़ी के तालाब से पानी निकालने के लिए तालाब की प्रकृति अनुकूल जगह छोड़ी थी। अनुपम ने देखा, तो बोले - ’’यहां एक छोटी सी, सुंदर सी दीवार बना दो। उस पर ’अपरा’ लिख दो।’’

 मैने पूछा -’’इससे क्या होगा ?’’

Ad

अनुपम बोले -’’यह दीवार पाल पर चढ़ने के काम आयेगी। यह एक लाभ होगा। दूसरा बड़ा लाभ यह होगा कि इससे पानी का संस्कार आगे जायेगा। यदि हमें तालाबों को अगली पीढ़ी को दिखाना है, समझाना है, आगे बढ़ाना है तो तालाबों के अंग-प्रत्यंगों को शब्दों में प्रस्तुत करना भी सीखें।’’

अनुपम की बात गहरी थी। बाद में मैने दीवार बनवाई और उस पर ’अपरा’ भी लिखा।

मुझे भरोसा है कि अनुपम के बनाये लोग, अनुपम की अनुपस्थिति से तत्काल उभरे शून्य को आगे चलकर भरेंगे।

प्र. - तरुण भारत संघ के काम में भी अनुपम जी का कोई योगदान रहा है ?

उ.- तरुण भारत संघ आकर पानी का काम शुरु कराने और उसे आगे बढ़ाने में यदि सबसे ज्यादा किसी का योगदान है, तो अनुपम जी भाईसाहब का। यदि मैं सबसे ज्यादा कहता हूं तो इसका मतलब है, मुझसे भी ज्यादा। चाहे भांवता का सिद्धसागर हो या कोई और खास कार्य, अनुपम का शिक्षण व साथ हमें हर जगह मिला। 

एक बार पांच पेड़ लगाने को लेकर कलक्टर ने मुझ पर जुर्माना ठोक दिया था। अनुपम जी को पता चला, तो वह चण्डीप्रसाद भट्ट, प्रभाष जोशी और अनिल अग्रवाल को लेकर वहां पहुंच गये। प्रभाष जी के कहने पर मुख्यमंत्री द्वारा कलक्टर का ट्रांसफर आदेश भी जारी हो गया। मैं खुश हुआ कि देखो, यह कलक्टर ही गड़बड़ कर रहा था। इससे मुक्ति मिली।

अब अनुपम जी की कुशलता देखो। उन्हे हमारी व हमारे काम की छवि की भी चिंता थी। उन्होने मुझे फोन करके कहा कि कलक्टर को सम्मान देकर विदा करना। उन्होने मुझे समझाया - ’’तुम्हे अलवर में काम करना है। लोगों के बीच में प्रेम बढ़ाना है। इसलिए ऐसा करना अच्छा होगा।’’ मैने वैसा ही किया। कलक्टर को खुद जाकर आमंत्रित किया। मांगू पटेल के चैक में खीर बनवाई। जिन बंजारों के कारण विवाद था, उन्हे भी न्योता। कलक्टर को बाकायदा गणेश जी की प्रतिमा देकर विदा किया। 

पग-पग पर टोकना, संभालना, थपथपाना. इसे मैं कम योगदान नहीं मानता। तरुण भारत संघ का मतलब ही है, अनुपम मिश्र। भाभी मंजुश्री, बेटा शुभम..सभी का श्रम तरुण भारत संघ में लगा है। अनुपम नहीं होते, तो तरुण भारत संघ के काम को कोई नहीं जान पाता।

Ad

प्र. - पानी-पर्यावरण और इससे इतर क्षेत्रों में शोषण, अत्याचार, अनाचार के खिलाफ कई आंदोलन इस बीच देश में चले हैं। मुझे नहीं याद पड़ता कि उन्हे लेकर अनुपम जी कभी उत्तेजित हुए हों अथवा उन्होने उनमें कभी सक्रिय योगदान दिया हो। इसकी वजह आप क्या मानते हैं - अनुपम जी का स्वभाव या आंदोलनों को लेकर अनुपम जी का कोई खास दृष्टिकोण?

उ. - अनुपम जी की मान्यता थी कि राज पर विकास का भूत चढ़ा है। इस भूत की सवारी जब तक रहेगी, विकास के नाम पर विनाशक कार्य चलते रहेंगे। चूंकि वह अत्यंत विद्वान और दूरदृष्टा थे, अतः वह जिन कामों के बारे में देखे लेते थे कि हम इन्हे रोक नहीं पायेंगे, उनमें सक्रिय नहीं होते थे। अपनी ऊर्जा का उपयोग अन्यत्र करते थे। लेकिन ऐसा नहीं था, कि वह ऐसे कार्यों से बेखबर रहते थे। वे आंदोलन व आंदोलनकारियों का हालचाल बराबर रखते थे। यमुना नदी में खेलगांव निर्माण के खिलाफ चले यमुना सत्याग्रह में यूं वह कभी नहीं आये, लेकिन जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लालकिले की प्राचीर से नदियों की शुद्धि की बात की तो खुद गये और कहा - ’’राजेन्द्र, तुम्हारी बात सरकार ने मान ली है। अब यह सत्याग्रह पूर्ण करो।’’ 

वह दूर रहते थे, लेकिन आंदोलनों से विरत नहीं रहते थे। ऐसे कामों में लगे साथियों को समर्थन देते थे। जीत हो, तो पीठ थपथपाते थे। वैसे वह अत्यंत विनम्र थे, लेकिन अच्छा काम करने वालों के बुरे वक्त में सहारा देने को लेकर अत्यंत निर्भीक भी थे।

प्र. - आपसे आखिरी मुलाकात में अनुपम जी ने कुछ ऐसा कहा, जो उनके चाहने वालों को आगे का काम बताये?

उ.- पता है, उन्हे अक्सर गुस्सा नहीं आता था। पिछली बार जब मैं उनसे मिलने गया था, तो बहुत गुस्से में थे। बोले - ’’यह सरकार कुछ भी कर ले, गंगा साफ नहीं कर सकती। ये तो सारे प्रोग्राम, सारा पैसा..सब ठेकेदारों के लिए हो रहा है। गंगा को प्रेम और समर्पण चाहिए। राजेन्द्र, यह कैसे संभव हो ?

फिर शांत हुए, तो बोले - ’’राजेन्द्र, तालाबों का काम ही टिकेगा; बाकी तो सब लुटेगा। तालाबों के काम पर ही जोर लगाने की जरूरत है।’’

वह लूट की छूट और समाज की टूट से भी दुखी थे। समाधान में वह बताते रहे कि जो समाज बंधे-जोहड़ों को बनाता था, बंधे-जोहड़ कैसे उस समाज को जोड़ने वाले साबित होते थे। बोले कि तालाबों का काम चलते रहना चाहिए। सरकार, तालाबों का काम आगे बढ़ाने के लिए कोई अथॉरिटी ही बना दे। इसी से कुछ काम आगे बढ़े।

जैसी मेरी आदत है, मैने कहा - ’’भाईसाहब, अथॉरिटी बनाने से क्या होगा ? रेनफेड अथॉरिटी बनी तो है। उसका हश्र हम सभी देख रहे हैं। तालाबों की अथॉरिटी भी ऐसे ही सरकारी रवैये वाली होगी, तो उसके भी प्लान और पैसे ठेकेदारों की जेब में रहेंगे।’’

खैर, मैं कह सकता हूं कि जीवित अनुपम की आत्मा, उनकी देह से ज्यादा, तालाबों में वास करती थी। भारत ही नहीं, दुनिया में कहीं भी तालाब जितने सुंदर व श्रेष्ठ होंगे, अनुपम की आत्मा उतना ही अधिक सुख पायेगी। 

.....................................................................................................................................

Attached Images

Related Videos
Related Audio
Leave a comment for the team.
Subscribe to this research.
रिसर्च को सब्सक्राइब करें

Join us on the latest researches that matter.

इस रिसर्च पर अपडेट पाने के लिए और इससे जुड़ने के लिए अपना ईमेल आईडी नीचे भरें.

Responses

{{ survey.name }}@{{ survey.senton }}
{{ survey.message }}
Reply

How It Works

ये कैसे कार्य करता है ?

start a research
Follow & Join.

With more and more following, the research starts attracting best of the coordinators and experts.

start a research
Build a Team

Coordinators build a team with experts to pick up the execution. Start building a plan.

start a research
Fix the issue.

The team works transparently and systematically fixing the issue, building the leaders of tomorrow.

start a research
जुड़ें और फॉलो करें

ज्यादा से ज्यादा जुड़े लोग, प्रतिभाशाली समन्वयकों एवं विशेषज्ञों को आकर्षित करेंगे , इस मुद्दे को एक पकड़ मिलेगी और तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद ।

start a research
संगठित हों

हमारे समन्वयक अपने साथ विशेषज्ञों को ले कर एक कार्य समूह का गठन करेंगे, और एक योज़नाबद्ध तरीके से काम करना सुरु करेंगे

start a research
समाधान पायें

कार्य समूह पारदर्शिता एवं कुशलता के साथ समाधान की ओर क़दम बढ़ाएगा, साथ में ही समाज में से ही कुछ भविष्य के अधिनायकों को उभरने में सहायता करेगा।

How can you make a difference?

Do you care about this issue? Do You think a concrete action should be taken?Then Follow and Support this Research Action Group.Following will not only keep you updated on the latest, help voicing your opinions, and inspire our Coordinators & Experts. But will get you priority on our study tours, events, seminars, panels, courses and a lot more on the subject and beyond.

आप कैसे एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं ?

क्या आप इस या इसी जैसे दूसरे मुद्दे से जुड़े हुए हैं, या प्रभावित हैं? क्या आपको लगता है इसपर कुछ कारगर कदम उठाने चाहिए ?तो नीचे फॉलो का बटन दबा कर समर्थन व्यक्त करें।इससे हम आपको समय पर अपडेट कर पाएंगे, और आपके विचार जान पाएंगे। ज्यादा से ज्यादा लोगों द्वारा फॉलो होने पर इस मुद्दे पर कार्यरत विशेषज्ञों एवं समन्वयकों का ना सिर्फ़ मनोबल बढ़ेगा, बल्कि हम आपको, अपने समय समय पर होने वाले शोध यात्राएं, सर्वे, सेमिनार्स, कार्यक्रम, तथा विषय एक्सपर्ट्स कोर्स इत्यादि में सम्मिलित कर पाएंगे।
Communities and Nations where citizens spend time exploring and nurturing their culture, processes, civil liberties and responsibilities. Have a well-researched voice on issues of systemic importance, are the one which flourish to become beacon of light for the world.
समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
Share it across your social networks.
अपने सोशल नेटवर्क पर शेयर करें

Every small step counts, share it across your friends and networks. You never know, the issue you care about, might find a champion.

हर छोटा बड़ा कदम मायने रखता है, अपने दोस्तों और जानकारों से ये मुद्दा साझा करें , क्या पता उन्ही में से कोई इस विषय का विशेषज्ञ निकल जाए।

Got few hours a week to do public good ?

Join the Research Action Group as a member or expert, work with right team and get funded. To know more contact a Coordinator with a little bit of details on your expertise and experiences.

क्या आपके पास कुछ समय सामजिक कार्य के लिए होता है ?

इस एक्शन ग्रुप के सहभागी बनें, एक सदस्य, विशेषज्ञ या समन्वयक की तरह जुड़ें । अधिक जानकारी के लिए समन्वयक से संपर्क करें और अपने बारे में बताएं।

Know someone who can help?
क्या आप किसी को जानते हैं, जो इस विषय पर कार्यरत हैं ?
Invite by emails.
ईमेल से आमंत्रित करें
The researches on ballotboxindia are available under restrictive Creative commons. If you have any comments or want to cite the work please drop a note to letters at ballotboxindia dot com.

Code# 5{{ descmodel.currdesc.id }}

ज़ारी शोध जिनमे आप एक भूमिका निभा सकते है. Live Action Researches that might need your help.

Follow