यह तो महज दिल्ली का एमसीडी चुनाव है
ढोल नगाड़ों का जबरदस्त शोर. आंखें जहां तक देख ना सके वहां तक ई-रिक्शा की लंबी कतार. लगभग सभी ई-रिक्शा में बड़े-बड़े पीले झंडे लहरा रहे हैं और साथ ही बड़े-बड़े होर्डिंग्स और बैनर में स्वराज इंडिया आपसे "साफ दिल - साफ दिल्ली" का नारा और वादा कर अपने अभियान में निकल चुका है. भले ही आने जाने वाली गाड़ियों को कुछ मिनटों का जाम झेलना पड़े मगर योगेंद्र यादव के पोस्टर के साथ उन्हें शायद यह भी लिखा दिख जाए कि हम वादे नहीं, मिशन लेकर आए हैं. जी हां आप चौंकिए मत यह किसी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव नहीं यह महज दिल्ली का एमसीडी चुनाव भर है.
स्वराज इंडिया कुछ नया करने से चूक गई
आम आदमी पार्टी से अलग हुए योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने जिस सोच और राजनीति का पूरक बनने के लिए महात्मा गांधी के जन्मदिन पर स्वराज इंडिया नाम की राजनीतिक पार्टी बनाई थी, उसका इस तरह से एमसीडी चुनाव में उतरना कहीं से गले नहीं उतरता. बेशक आज के समय में चुनाव काफी खर्चीला हो चुका है. बैनर-पोस्टर, बड़े-बड़े रोड शो, रैलियां चुनाव लड़ने का एक तरीका बन गया हो मगर जिस सोच के साथ आपने राजनीति में प्रवेश किया था उसके लिए आप को एक अलग रास्ता अख्तियार करने की जरूरत थी. बेशक आप हार जाते हैं मगर एक नई चुनावी रणनीति की आवश्यकता थी जो लोगों के लिए एक मिसाल बन पाती मगर अफसोस स्वराज इंडिया चूक गई.

हमने जिस सोच और उम्मीद के साथ जनमेला की परिकल्पना की थी उसमें यह जरूरी था कि जिस चुनाव को लोग अमीरों का चुनाव मानते हैं उसमें आम आदमी की भी पहुंच हो सके. एक साधारण सा इंसान जिसके पास ढेर सारा पैसा ना हो वह भी आसानी से चुनाव लड़ सके. मगर अफसोस स्वराज इंडिया ने भी इस मामले में हमें निराश किया. हमारा उद्देश्य था की बड़ी-बड़ी रैलियां, रोड शो में होने वाले खर्चे में कटौती आए और चुनाव सस्ता हो सके, मगर गांधी के विचारों को लेकर चलने वाली पार्टी भी नई धुरी की तलाश ना कर सकी. बनी बनाई परिपाटी पर चलकर कोई कतई रास्ता साफ नहीं कर सकता है बल्कि बनी बनाई परंपराओं से अलग हटकर उसे नए विचारों को लाने की आवश्यकता थी.
स्वराज इंडिया का रोड शो

हम यहाँ बात दूसरे चुनावों की नहीं बल्कि महज एमसीडी चुनाव की कर रहे हैं. यहां पूरी दिल्ली पोस्टरों से पटी पड़ी हैं आए दिन होने वाले रोड शो से जाम आम बात हो चुकी है. ऐसे ही एक रोड शो से दिनांक 19 मार्च 2017 को योगेंद्र यादव की पार्टी स्वराज इंडिया ने अपने एमसीडी चुनाव के अभियान का आगाज किया है मगर इस अभियान के लिए जिस तरह से रोड शो का प्रदर्शन किया गया वह बेहद ही महंगा था. कई जगह से उनके उम्मीदवारों ने रोड शो द्वारा अपने धन बल का प्रदर्शन कर कम से कम यह तो जाता ही दिया की वह भी कुछ अलग नहीं हैं. जैसी राजनीति उनसे अपेक्षित थी वैसी तो बिलकुल भी पूरी नहीं हो सकी.

स्वच्छ और साफ सुथरी राजनीती के लिए यह भी जरुरी होता है कि आप अपने विचार जैसे प्रस्तुत करते हैं उसपर अमल भी करें. आपने आम आदमी पार्टी से अलग होकर जिस उद्देश्य हेतु स्वराज इंडिया का निर्माण किया था उसके लिए जरूरी था कि दूसरी राजनीतिक पार्टियों से आप कुछ अलग करते ना की भेड़ चाल को स्वीकार करते. आपने एमसीडी चुनाव लड़ने का फैसला तो कर लिया मगर आपने साफ-सुथरी राजनीति को बल देने के लिए ना ही कुछ अलग फैसला किया और ना ही साहस दिखा सके. आपने जिस तरह से रोड शो का प्रदर्शन किया वह धन-बल को ही समर्थन देता दिख रहा था.
अपने खुद के विचारों से अलग दिखी स्वराज इंडिया

रविवार 19 मार्च को एमसीडी चुनाव का आगाज करते हुए स्वराज इंडिया ने जिस रोड शो का प्रदर्शन किया वह कहीं से भी आपके विचारों को इंगित नहीं कर रहा था. स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने रविवार को आगामी एमसीडी चुनाव के लिए पार्टी के अभियान के तहत पार्टी का रोड शो शुरू किया जिसमें अलग-अलग क्षेत्रों के उम्मीदवारों ने भी अपने क्षेत्र से रोड शो निकाला. बिजवासन से पार्टी उम्मीदवार सत्येंद्र राणा ने अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ योगेंद्र यादव का स्वागत किया. रोड शो के साथ-साथ पार्टी समर्थकों ने क्षेत्र में बाइक रैली भी की. वहीं कापासेड़ा से पार्टी उम्मीदवार मंजू यादव ने अपने वार्ड से रोड शो आगे बढ़ाया. दूसरी ओर पालम वार्ड से स्वराज इंडिया की उम्मीदवार उपासना सहरावत ने भी अपने यहां से सैकड़ों की हजूम में ई-रिक्शा के द्वारा रोड शो का प्रदर्शन किया. पार्टी की सादनगर उम्मीदवार रेखा यादव ने अपने वार्ड में रोड शो का नेतृत्व किया.
खुद में झांकने की जरुरत
इस तरह का रोड शो आखिर क्या दर्शाता है? लोगों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए क्या स्वराज इंडिया के लिए यही सबसे सही माध्यम था? एमसीडी चुनाव के लिए स्वराज इंडिया का दिया गया नारा “तीन सरकार, तीनों बेकार” तो क्या आपकी पार्टी ने इन पार्टियों से कुछ अलग करके दिखाया? हमारा जवाब तो नहीं है. साथ ही योगेंद्र यादव ने भी “जुमला, ड्रामा, घोटाला... #बस और नहीं” का नारा दिया. इस नारे में जुमला के साथ योगेंद्र यादव ने भाजपा और प्रधानमंत्री पर हमला किया, तो नाटक के साथ उन्होंने आम आदमी पार्टी को निशाना बनाने की कोशिश की और घोटालों के साथ उन्होंने कांग्रेस पार्टी को घेरने की कोशिश की. मगर अफसोस आपके इस रोड शो ने हमारी नजर में तो आपकी बनी बनाई वैचारिक साख को कम ही किया है.

स्वराज इंडिया एमसीडी की सभी 272 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता अनुपम ने बताया कि हमारे एजेंडे और उम्मीदवारों को चुनने की प्रक्रिया से ही पार्टी दिखा रही है कि वह परंपरागत राजनीतिक दलों से कैसे अलग है. उन्होंने साथ ही कहा कि स्वराज इंडिया पहली पार्टी है जिसने अपने चुनावी एजेंडे में शीर्ष पर पर्यावरण और स्वच्छता है. मगर अफसोस आपके रोड शो में इस तरह से धन-बल का लगना कहीं से भी परंपरागत राजनीति से अलग होना नहीं दर्शाता. आपके इस प्रदर्शन से लोगों को जिस तरह से जाम का सामना करना पड़ा, पानी की खाली बोतलें और गंदगी फैलाई गई वह ना ही आपके विचार और ना ही जनमेला की अवधारणा को कहीं से पूर्ण करता है.

स्वराज इंडिया ने हमें निराश किया
जनमेला की अवधारणा के तहत हम चाहते थे कि चली आ रही चुनावी परंपरा को बदला जाये. राजनीतिक पार्टी अपने तौर तरीकों को बदले. धन-बल के उपयोग को समाप्त किया जा सके. स्वच्छता इसका एक अलग पैमाना हो. चुनाव में आम लोगों की पहुंच हो सके. मगर अफसोस स्वराज इंडिया ने हमें निराश किया है. जनमेला की अवधारणा सिर्फ उनकी बातों और एजेंडे में दिखता है मगर कार्य में तब्दील होता नहीं दिखता. एक छोटे से एमसीडी चुनाव में इस तरह से धन-बल का प्रयोग इतना तो बताने के लिए काफी ही है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में किस तरह से धन-बल का उपयोग होता होगा. यह तो महज एक छोटी सी पार्टी का हाल है आगे-आगे देखिए की किस तरह से बड़ी-बड़ी पार्टियां इस चुनावी दंगल को जीतने के लिए अपना प्रदर्शन करती है.
राजनीतिक पार्टियां को समझना होगा अपनी नैतिक जिम्मेदारी
फिर भी हमारा विश्वास है कि हम जिस सोच को लेकर जनमेला को आगे बढ़ा रहे हैं वह एक ना एक दिन अवश्य पूर्ण होगा. जनमेला के उद्देश्य की पूर्ति के लिए जिस तरह से हमें आम लोगों का सहयोग मिला है उससे हमारी उम्मीद और भी बढ़ी है और आशा है कि हमें और भी लोगों का सहयोग मिलेगा. मगर यहाँ जरुरी है कि आम जन के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियां भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझे तभी जनमेला की अवधारणा जमीनी हकीकत के रूप में तब्दील हो सकेगी और देश में एक नया माहौल बनेगा. चुनावी खर्चों में पाबंदी आएगी और आम लोग की पहुंच में भी इस तरह के चुनाव होंगे जहां वह खुद चुनाव लड़ सके.
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Swarntabh Kumar 84
यह तो महज दिल्ली का एमसीडी चुनाव है
ढोल नगाड़ों का जबरदस्त शोर. आंखें जहां तक देख ना सके वहां तक ई-रिक्शा की लंबी कतार. लगभग सभी ई-रिक्शा में बड़े-बड़े पीले झंडे लहरा रहे हैं और साथ ही बड़े-बड़े होर्डिंग्स और बैनर में स्वराज इंडिया आपसे "साफ दिल - साफ दिल्ली" का नारा और वादा कर अपने अभियान में निकल चुका है. भले ही आने जाने वाली गाड़ियों को कुछ मिनटों का जाम झेलना पड़े मगर योगेंद्र यादव के पोस्टर के साथ उन्हें शायद यह भी लिखा दिख जाए कि हम वादे नहीं, मिशन लेकर आए हैं. जी हां आप चौंकिए मत यह किसी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव नहीं यह महज दिल्ली का एमसीडी चुनाव भर है.
स्वराज इंडिया कुछ नया करने से चूक गई
आम आदमी पार्टी से अलग हुए योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने जिस सोच और राजनीति का पूरक बनने के लिए महात्मा गांधी के जन्मदिन पर स्वराज इंडिया नाम की राजनीतिक पार्टी बनाई थी, उसका इस तरह से एमसीडी चुनाव में उतरना कहीं से गले नहीं उतरता. बेशक आज के समय में चुनाव काफी खर्चीला हो चुका है. बैनर-पोस्टर, बड़े-बड़े रोड शो, रैलियां चुनाव लड़ने का एक तरीका बन गया हो मगर जिस सोच के साथ आपने राजनीति में प्रवेश किया था उसके लिए आप को एक अलग रास्ता अख्तियार करने की जरूरत थी. बेशक आप हार जाते हैं मगर एक नई चुनावी रणनीति की आवश्यकता थी जो लोगों के लिए एक मिसाल बन पाती मगर अफसोस स्वराज इंडिया चूक गई.
हमने जिस सोच और उम्मीद के साथ जनमेला की परिकल्पना की थी उसमें यह जरूरी था कि जिस चुनाव को लोग अमीरों का चुनाव मानते हैं उसमें आम आदमी की भी पहुंच हो सके. एक साधारण सा इंसान जिसके पास ढेर सारा पैसा ना हो वह भी आसानी से चुनाव लड़ सके. मगर अफसोस स्वराज इंडिया ने भी इस मामले में हमें निराश किया. हमारा उद्देश्य था की बड़ी-बड़ी रैलियां, रोड शो में होने वाले खर्चे में कटौती आए और चुनाव सस्ता हो सके, मगर गांधी के विचारों को लेकर चलने वाली पार्टी भी नई धुरी की तलाश ना कर सकी. बनी बनाई परिपाटी पर चलकर कोई कतई रास्ता साफ नहीं कर सकता है बल्कि बनी बनाई परंपराओं से अलग हटकर उसे नए विचारों को लाने की आवश्यकता थी.
स्वराज इंडिया का रोड शो
हम यहाँ बात दूसरे चुनावों की नहीं बल्कि महज एमसीडी चुनाव की कर रहे हैं. यहां पूरी दिल्ली पोस्टरों से पटी पड़ी हैं आए दिन होने वाले रोड शो से जाम आम बात हो चुकी है. ऐसे ही एक रोड शो से दिनांक 19 मार्च 2017 को योगेंद्र यादव की पार्टी स्वराज इंडिया ने अपने एमसीडी चुनाव के अभियान का आगाज किया है मगर इस अभियान के लिए जिस तरह से रोड शो का प्रदर्शन किया गया वह बेहद ही महंगा था. कई जगह से उनके उम्मीदवारों ने रोड शो द्वारा अपने धन बल का प्रदर्शन कर कम से कम यह तो जाता ही दिया की वह भी कुछ अलग नहीं हैं. जैसी राजनीति उनसे अपेक्षित थी वैसी तो बिलकुल भी पूरी नहीं हो सकी.
स्वच्छ और साफ सुथरी राजनीती के लिए यह भी जरुरी होता है कि आप अपने विचार जैसे प्रस्तुत करते हैं उसपर अमल भी करें. आपने आम आदमी पार्टी से अलग होकर जिस उद्देश्य हेतु स्वराज इंडिया का निर्माण किया था उसके लिए जरूरी था कि दूसरी राजनीतिक पार्टियों से आप कुछ अलग करते ना की भेड़ चाल को स्वीकार करते. आपने एमसीडी चुनाव लड़ने का फैसला तो कर लिया मगर आपने साफ-सुथरी राजनीति को बल देने के लिए ना ही कुछ अलग फैसला किया और ना ही साहस दिखा सके. आपने जिस तरह से रोड शो का प्रदर्शन किया वह धन-बल को ही समर्थन देता दिख रहा था.
अपने खुद के विचारों से अलग दिखी स्वराज इंडिया
रविवार 19 मार्च को एमसीडी चुनाव का आगाज करते हुए स्वराज इंडिया ने जिस रोड शो का प्रदर्शन किया वह कहीं से भी आपके विचारों को इंगित नहीं कर रहा था. स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने रविवार को आगामी एमसीडी चुनाव के लिए पार्टी के अभियान के तहत पार्टी का रोड शो शुरू किया जिसमें अलग-अलग क्षेत्रों के उम्मीदवारों ने भी अपने क्षेत्र से रोड शो निकाला. बिजवासन से पार्टी उम्मीदवार सत्येंद्र राणा ने अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ योगेंद्र यादव का स्वागत किया. रोड शो के साथ-साथ पार्टी समर्थकों ने क्षेत्र में बाइक रैली भी की. वहीं कापासेड़ा से पार्टी उम्मीदवार मंजू यादव ने अपने वार्ड से रोड शो आगे बढ़ाया. दूसरी ओर पालम वार्ड से स्वराज इंडिया की उम्मीदवार उपासना सहरावत ने भी अपने यहां से सैकड़ों की हजूम में ई-रिक्शा के द्वारा रोड शो का प्रदर्शन किया. पार्टी की सादनगर उम्मीदवार रेखा यादव ने अपने वार्ड में रोड शो का नेतृत्व किया.
खुद में झांकने की जरुरत
इस तरह का रोड शो आखिर क्या दर्शाता है? लोगों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए क्या स्वराज इंडिया के लिए यही सबसे सही माध्यम था? एमसीडी चुनाव के लिए स्वराज इंडिया का दिया गया नारा “तीन सरकार, तीनों बेकार” तो क्या आपकी पार्टी ने इन पार्टियों से कुछ अलग करके दिखाया? हमारा जवाब तो नहीं है. साथ ही योगेंद्र यादव ने भी “जुमला, ड्रामा, घोटाला... #बस और नहीं” का नारा दिया. इस नारे में जुमला के साथ योगेंद्र यादव ने भाजपा और प्रधानमंत्री पर हमला किया, तो नाटक के साथ उन्होंने आम आदमी पार्टी को निशाना बनाने की कोशिश की और घोटालों के साथ उन्होंने कांग्रेस पार्टी को घेरने की कोशिश की. मगर अफसोस आपके इस रोड शो ने हमारी नजर में तो आपकी बनी बनाई वैचारिक साख को कम ही किया है.
स्वराज इंडिया एमसीडी की सभी 272 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता अनुपम ने बताया कि हमारे एजेंडे और उम्मीदवारों को चुनने की प्रक्रिया से ही पार्टी दिखा रही है कि वह परंपरागत राजनीतिक दलों से कैसे अलग है. उन्होंने साथ ही कहा कि स्वराज इंडिया पहली पार्टी है जिसने अपने चुनावी एजेंडे में शीर्ष पर पर्यावरण और स्वच्छता है. मगर अफसोस आपके रोड शो में इस तरह से धन-बल का लगना कहीं से भी परंपरागत राजनीति से अलग होना नहीं दर्शाता. आपके इस प्रदर्शन से लोगों को जिस तरह से जाम का सामना करना पड़ा, पानी की खाली बोतलें और गंदगी फैलाई गई वह ना ही आपके विचार और ना ही जनमेला की अवधारणा को कहीं से पूर्ण करता है.
स्वराज इंडिया ने हमें निराश किया
जनमेला की अवधारणा के तहत हम चाहते थे कि चली आ रही चुनावी परंपरा को बदला जाये. राजनीतिक पार्टी अपने तौर तरीकों को बदले. धन-बल के उपयोग को समाप्त किया जा सके. स्वच्छता इसका एक अलग पैमाना हो. चुनाव में आम लोगों की पहुंच हो सके. मगर अफसोस स्वराज इंडिया ने हमें निराश किया है. जनमेला की अवधारणा सिर्फ उनकी बातों और एजेंडे में दिखता है मगर कार्य में तब्दील होता नहीं दिखता. एक छोटे से एमसीडी चुनाव में इस तरह से धन-बल का प्रयोग इतना तो बताने के लिए काफी ही है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में किस तरह से धन-बल का उपयोग होता होगा. यह तो महज एक छोटी सी पार्टी का हाल है आगे-आगे देखिए की किस तरह से बड़ी-बड़ी पार्टियां इस चुनावी दंगल को जीतने के लिए अपना प्रदर्शन करती है.
राजनीतिक पार्टियां को समझना होगा अपनी नैतिक जिम्मेदारी
फिर भी हमारा विश्वास है कि हम जिस सोच को लेकर जनमेला को आगे बढ़ा रहे हैं वह एक ना एक दिन अवश्य पूर्ण होगा. जनमेला के उद्देश्य की पूर्ति के लिए जिस तरह से हमें आम लोगों का सहयोग मिला है उससे हमारी उम्मीद और भी बढ़ी है और आशा है कि हमें और भी लोगों का सहयोग मिलेगा. मगर यहाँ जरुरी है कि आम जन के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियां भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझे तभी जनमेला की अवधारणा जमीनी हकीकत के रूप में तब्दील हो सकेगी और देश में एक नया माहौल बनेगा. चुनावी खर्चों में पाबंदी आएगी और आम लोग की पहुंच में भी इस तरह के चुनाव होंगे जहां वह खुद चुनाव लड़ सके.