सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 - नागालैंड सूचना आयोग ने आरटीआई आवेदन को ऑनलाइन करने की स्वीकृति दी बावजूद अब तक ऐसा नहीं हुआ, आपको डाउनग्रेड किया जाता है
आरटीआई एक्ट भ्रष्टाचार कम करने में भी रहा सहायक
सूचना का अधिकार अधिनियम एक दशक पार कर चूका है. परिपक्वता की ओर बढ़ रहे इसके कदम में कई खामियां है बावजूद इसके भारतीय नागरिकों को मिला यह अबतक एक प्रमुख और सबसे सशक्त कानून है. इसने सरकार और आम जनता के बीच कई साल से चली आ रही दूरियों को कम करने का काम किया है. साथ ही इस कानून की ही यह खासियत है कि इसने सरकारी काम-काज में पारदर्शिता लाने में भी अपनी भूमिका निभाई है. ना जाने कितने घोटालों का उजागर आरटीआई के कारण हो पाया है. होते आ रहे भ्रष्टाचार में इसी के कारण कमी आई है यानी कुल मिला कर कहा जाए तो आरटीआई एक्ट 2005 में कई कमियों के बाद भी यह अबतक एक बेहतरीन कानून साबित हुआ है.
ग्यारह का हुआ आरटीआई
12 अक्टूबर, 2005 एक ऐसा दिन जब देश और उसकी जनता को संविधान से पारित एक अधिकार प्राप्त हुआ, जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 कहा गया. आज इस कानून को बने लगभग 11 वर्ष होने को है. आने वाला 12 अक्टूबर, 2016 भारत में सूचना का अधिकार कानून की 11 वीं वर्षगांठ के अवसर होगा। इस कानून में पारदर्शिता को लेकर थोड़ी कमी भी है बावजूद इसके इस कानून की ताकत काफी प्रभावशाली है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र को और भी मजबूत बनता यह कानून दुनिया के शीर्ष पांच में अपना स्थान रखता है और एक भारतीय होने के नाते हमें इस बात का गर्व है. चाहत है कि इस कानून को हम और भी मजबूत बनाए, इसमें और भी पारदर्शिता लाये ताकि आने वाले समय में यह दुनिया के शीर्ष पांच की जगह अपना स्थान पहले नंबर पर दर्ज करवा पाए.
दस वर्षों में 1.75 करोड़ आरटीआई आवेदन दायर हुए
कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव द्वारा किये गए अध्ययन से पता चलता है कि 2005 से 2015 तक सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत अब तक कुल 1.75 करोड़ आरटीआई आवेदन दायर किये गए हैं. भारत भर में सरकार से जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रति दिन 4,800 आरटीआई आवेदन दायर किये जाते हैं. हो सकता है यह आकड़ें देखने में बड़े लगे पर हकीकत यह है कि जागरूकता के कमी के कारण बहुत से राज्यों का आरटीआई फाइल करने का औसत बेहद असंतोष जनक है. इन आकड़ों में और इजाफा हो पता अगर लोगों में हमेशा इस कानून के प्रति जागरूकता अभियान चलाया जाता, आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या और उनपर हमले न होते (देश के सभी राज्यों में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले हो चुके हैं और धमकियां मिलना जैसे आम बात हो), आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन सुविधा हो पाती.
आरटीआई आवेदन में से एक चौथाई आवेदन केंद्र को
इसी अध्ययन से पता चलता है कि 1.75 करोड़ आरटीआई आवेदन में से एक चौथाई आवेदन केंद्र को किये गए हैं. 2005 और 2015 के बीच दायर कुल आवेदनों में से केंद्र के तहत विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के लिए 27.2% (47.66 लाख) जानकारी प्राप्त करने के लिए कुल आवेदन किये गए. सूचना का अधिकार कानून का इस्तेमाल महाराष्ट्र के लोगों ने भी बखूबी किया यहाँ कुल आवेदनों की संख्या 26.40% (46.26 लाख) रही, यानी महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर रहा तो वहीं तीसरे स्थान पर कर्नाटक सरकार रही जिसे 11.83% (20.73 लाख) आवेदन प्राप्त हुए. इन तीनों ने ही दो तिहाई या पिछले 10 वर्षों में भारतीयों द्वारा दायर आरटीआई आवेदन के 65.43% आवेदन प्राप्त किया.
पूर्वोत्तर राज्य आरटीआई आवेदन करने में फिस्सडी
इसी अध्ययन से यह भी पता चलता है कि पूर्वोत्तर राज्यों द्वारा आरटीआई अधिनियम का लगातार कम उपयोग किया गया है. 2005-15 तक नगालैंड सरकार को बस 16,009 आरटीआई आवेदन प्राप्त हुए हैं तो मेघालय को 11,092 अनुरोध प्राप्त हुए. तो वहीं 1600 आवेदन ही मिले सिक्किम को तो 555 आवेदन के साथ अरुणाचल प्रदेश हैं कजिन्हें इन राज्यों के मुकाबले सबसे कम आवेदन प्राप्त हुए.
सरकारी महकमों को बदलना होगा अपना रवैया
इतने कम आवेदनों के बावजूद सरकारी महकमे का गलत जानकारी देना, आवेदन को टालने की कोशिश करना, दूसरे मंत्रालय या विभाग का बता कर आवेदन को लौटा देना आम जनता के लिए यह रवैया जरा मुश्किल हो जाता है. उनके लिए बार-बार दौड़ना मुश्किल हो जाता है शायद यही कारण है कि पूर्वोत्तर राज्यों द्वारा आरटीआई अधिनियम का कम उपयोग किया गया है. एक उदहारण देखिये - Public Service Aspirants of Nagaland ने आरटीआई के तहत गलत और अधूरी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए लीगल मेट्रोलोजी और उपभोक्ता संरक्षण (LMCP) विभाग के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. मेट्रोलोजी और उपभोक्ता संरक्षण विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी 2015 में मुख्य सूचना आयोग (सीआईसी), नागालैंड द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के विपरीत था. अब ऐसे हालात में कोई आम नागरिक क्यों आरटीआई दाखिल करना चाहेगा.
आरटीआई आवेदनों का आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं
यह दुर्भाग्य ही है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 12 अक्टूबर को अपने कार्यान्वयन के 11 वर्ष पूरे कर 12 वें वर्ष में प्रवेश करेगा बावजूद उसके सरकार के पास आरटीआई आवेदनों की कुल संख्या का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है. जागरूकता की कमी, पारदर्शिता के आभाव का कारण भी शायद यही है कि सरकारों का इस कानून के प्रति कोई खास गंभीर रुख नहीं रहा है सिवाय इस अधिनियम को लागू करने के अलावा.
नागालैंड सूचना आयोग क्यों हुआ डाउनग्रेड
यहीं कारण है कि केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों ने भी आरटीआई की पारदर्शिता को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए सिवाय अपनी वेबसाइट पर बड़ी-बड़ी बातें लिखने के अलावा. नागालैंड सूचना आयोग ने जिस प्रकार से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की गंभीरता को समझते हुए आरटीआई आवेदन पर हमारे सुझाव और प्रश्न की क्या आपके पास आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था है? का जवाब तुरंत दिया और कहा की हम इस प्रक्रिया को जल्द शुरू करेंगे बेहद सराहनीय था. जिसके लिए हम तहे दिल से आपके शुक्रगुजार है पर पता नहीं आप आरटीआई को ऑनलाइन करने की किस प्रक्रिया में उलझ गए कि एक वर्ष से भी अधिक अवधि के बीत जाने के बाद भी नागालैंड सूचना आयोग अब तक आरटीआई की ऑनलाइन व्यवस्था नहीं दे पाया है. हम दुखी मन से नागालैंड सूचना आयोग को डाउनग्रेड करते हैं. मगर उम्मीद है आप अब भी अपने दिए वचन के प्रति गंभीर होंगे और इस दिशा में जल्द ही कोई ठोस कदम उठाएंगे.

क्या चाहते हैं हम?
एक ऐसा भारत जहां हर राज्य के पास एक ऐसी उन्नत व्यवस्था हो जिससे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की शक्ति को और भी बल मिल सके. हर राज्य के पास खुद की आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इसे और भी सुचारू तरीके से चलाया जा सके. जब केंद्र सरकार आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था प्रदान कर सकती है तब दूसरे राज्य उसका अनुसरण क्यों नहीं कर सकते? जब भारत एक है तो #OnenationOneRTI क्यों नहीं हो सकता?
अगर आप आरटीआई विशेषज्ञ हैं या आरटीआई कार्यकर्ता जो वास्तव में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की बेहतरी के लिए हमारे साथ काम करना चाहते हैं तो अपना विवरण हमें coordinators@ballotboxindia.com पर भेजें.
आप किसी को जानते हैं, जो इस मामले का जानकार है, एक बदलाव लाने का इच्छुक हो. तो आप हमें coordinators@ballotboxindia.com पर लिख सकते हैं या इस पेज पर नीचे दिए "Contact a coordinator" पर क्लिक कर उनकी या अपनी जानकारी दे सकते हैं.
अगर आप अपने समुदाय की बेहतरी के लिए थोड़ा समय दे सकते हैं तो हमें बताये और समन्वयक के तौर हमसे जुड़ें.
क्या आपके प्रयासों को वित्त पोषित किया जाएगा? हाँ, अगर आपके पास थोड़ा समय,कौशल और योग्यता है तो BallotBoxIndia आपके लिए सही मंच है. अपनी जानकारी coordinators@ballotboxindia.com पर हमसे साझा करें.
धन्यवाद
Coordinators @ballotboxindia.com
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Swarntabh Kumar 95
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 - नागालैंड सूचना आयोग ने आरटीआई आवेदन को ऑनलाइन करने की स्वीकृति दी बावजूद अब तक ऐसा नहीं हुआ, आपको डाउनग्रेड किया जाता है
आरटीआई एक्ट भ्रष्टाचार कम करने में भी रहा सहायक
सूचना का अधिकार अधिनियम एक दशक पार कर चूका है. परिपक्वता की ओर बढ़ रहे इसके कदम में कई खामियां है बावजूद इसके भारतीय नागरिकों को मिला यह अबतक एक प्रमुख और सबसे सशक्त कानून है. इसने सरकार और आम जनता के बीच कई साल से चली आ रही दूरियों को कम करने का काम किया है. साथ ही इस कानून की ही यह खासियत है कि इसने सरकारी काम-काज में पारदर्शिता लाने में भी अपनी भूमिका निभाई है. ना जाने कितने घोटालों का उजागर आरटीआई के कारण हो पाया है. होते आ रहे भ्रष्टाचार में इसी के कारण कमी आई है यानी कुल मिला कर कहा जाए तो आरटीआई एक्ट 2005 में कई कमियों के बाद भी यह अबतक एक बेहतरीन कानून साबित हुआ है.
ग्यारह का हुआ आरटीआई
12 अक्टूबर, 2005 एक ऐसा दिन जब देश और उसकी जनता को संविधान से पारित एक अधिकार प्राप्त हुआ, जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 कहा गया. आज इस कानून को बने लगभग 11 वर्ष होने को है. आने वाला 12 अक्टूबर, 2016 भारत में सूचना का अधिकार कानून की 11 वीं वर्षगांठ के अवसर होगा। इस कानून में पारदर्शिता को लेकर थोड़ी कमी भी है बावजूद इसके इस कानून की ताकत काफी प्रभावशाली है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र को और भी मजबूत बनता यह कानून दुनिया के शीर्ष पांच में अपना स्थान रखता है और एक भारतीय होने के नाते हमें इस बात का गर्व है. चाहत है कि इस कानून को हम और भी मजबूत बनाए, इसमें और भी पारदर्शिता लाये ताकि आने वाले समय में यह दुनिया के शीर्ष पांच की जगह अपना स्थान पहले नंबर पर दर्ज करवा पाए.
दस वर्षों में 1.75 करोड़ आरटीआई आवेदन दायर हुए
कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव द्वारा किये गए अध्ययन से पता चलता है कि 2005 से 2015 तक सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत अब तक कुल 1.75 करोड़ आरटीआई आवेदन दायर किये गए हैं. भारत भर में सरकार से जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रति दिन 4,800 आरटीआई आवेदन दायर किये जाते हैं. हो सकता है यह आकड़ें देखने में बड़े लगे पर हकीकत यह है कि जागरूकता के कमी के कारण बहुत से राज्यों का आरटीआई फाइल करने का औसत बेहद असंतोष जनक है. इन आकड़ों में और इजाफा हो पता अगर लोगों में हमेशा इस कानून के प्रति जागरूकता अभियान चलाया जाता, आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या और उनपर हमले न होते (देश के सभी राज्यों में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले हो चुके हैं और धमकियां मिलना जैसे आम बात हो), आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन सुविधा हो पाती.
आरटीआई आवेदन में से एक चौथाई आवेदन केंद्र को
इसी अध्ययन से पता चलता है कि 1.75 करोड़ आरटीआई आवेदन में से एक चौथाई आवेदन केंद्र को किये गए हैं. 2005 और 2015 के बीच दायर कुल आवेदनों में से केंद्र के तहत विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के लिए 27.2% (47.66 लाख) जानकारी प्राप्त करने के लिए कुल आवेदन किये गए. सूचना का अधिकार कानून का इस्तेमाल महाराष्ट्र के लोगों ने भी बखूबी किया यहाँ कुल आवेदनों की संख्या 26.40% (46.26 लाख) रही, यानी महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर रहा तो वहीं तीसरे स्थान पर कर्नाटक सरकार रही जिसे 11.83% (20.73 लाख) आवेदन प्राप्त हुए. इन तीनों ने ही दो तिहाई या पिछले 10 वर्षों में भारतीयों द्वारा दायर आरटीआई आवेदन के 65.43% आवेदन प्राप्त किया.
पूर्वोत्तर राज्य आरटीआई आवेदन करने में फिस्सडी
इसी अध्ययन से यह भी पता चलता है कि पूर्वोत्तर राज्यों द्वारा आरटीआई अधिनियम का लगातार कम उपयोग किया गया है. 2005-15 तक नगालैंड सरकार को बस 16,009 आरटीआई आवेदन प्राप्त हुए हैं तो मेघालय को 11,092 अनुरोध प्राप्त हुए. तो वहीं 1600 आवेदन ही मिले सिक्किम को तो 555 आवेदन के साथ अरुणाचल प्रदेश हैं कजिन्हें इन राज्यों के मुकाबले सबसे कम आवेदन प्राप्त हुए.
सरकारी महकमों को बदलना होगा अपना रवैया
इतने कम आवेदनों के बावजूद सरकारी महकमे का गलत जानकारी देना, आवेदन को टालने की कोशिश करना, दूसरे मंत्रालय या विभाग का बता कर आवेदन को लौटा देना आम जनता के लिए यह रवैया जरा मुश्किल हो जाता है. उनके लिए बार-बार दौड़ना मुश्किल हो जाता है शायद यही कारण है कि पूर्वोत्तर राज्यों द्वारा आरटीआई अधिनियम का कम उपयोग किया गया है. एक उदहारण देखिये - Public Service Aspirants of Nagaland ने आरटीआई के तहत गलत और अधूरी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए लीगल मेट्रोलोजी और उपभोक्ता संरक्षण (LMCP) विभाग के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. मेट्रोलोजी और उपभोक्ता संरक्षण विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी 2015 में मुख्य सूचना आयोग (सीआईसी), नागालैंड द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के विपरीत था. अब ऐसे हालात में कोई आम नागरिक क्यों आरटीआई दाखिल करना चाहेगा.
आरटीआई आवेदनों का आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं
यह दुर्भाग्य ही है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 12 अक्टूबर को अपने कार्यान्वयन के 11 वर्ष पूरे कर 12 वें वर्ष में प्रवेश करेगा बावजूद उसके सरकार के पास आरटीआई आवेदनों की कुल संख्या का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है. जागरूकता की कमी, पारदर्शिता के आभाव का कारण भी शायद यही है कि सरकारों का इस कानून के प्रति कोई खास गंभीर रुख नहीं रहा है सिवाय इस अधिनियम को लागू करने के अलावा.
नागालैंड सूचना आयोग क्यों हुआ डाउनग्रेड
यहीं कारण है कि केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों ने भी आरटीआई की पारदर्शिता को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए सिवाय अपनी वेबसाइट पर बड़ी-बड़ी बातें लिखने के अलावा. नागालैंड सूचना आयोग ने जिस प्रकार से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की गंभीरता को समझते हुए आरटीआई आवेदन पर हमारे सुझाव और प्रश्न की क्या आपके पास आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था है? का जवाब तुरंत दिया और कहा की हम इस प्रक्रिया को जल्द शुरू करेंगे बेहद सराहनीय था. जिसके लिए हम तहे दिल से आपके शुक्रगुजार है पर पता नहीं आप आरटीआई को ऑनलाइन करने की किस प्रक्रिया में उलझ गए कि एक वर्ष से भी अधिक अवधि के बीत जाने के बाद भी नागालैंड सूचना आयोग अब तक आरटीआई की ऑनलाइन व्यवस्था नहीं दे पाया है. हम दुखी मन से नागालैंड सूचना आयोग को डाउनग्रेड करते हैं. मगर उम्मीद है आप अब भी अपने दिए वचन के प्रति गंभीर होंगे और इस दिशा में जल्द ही कोई ठोस कदम उठाएंगे.
क्या चाहते हैं हम?
एक ऐसा भारत जहां हर राज्य के पास एक ऐसी उन्नत व्यवस्था हो जिससे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की शक्ति को और भी बल मिल सके. हर राज्य के पास खुद की आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था होनी चाहिए जिससे इसे और भी सुचारू तरीके से चलाया जा सके. जब केंद्र सरकार आरटीआई फाइल करने की ऑनलाइन व्यवस्था प्रदान कर सकती है तब दूसरे राज्य उसका अनुसरण क्यों नहीं कर सकते? जब भारत एक है तो #OnenationOneRTI क्यों नहीं हो सकता?
अगर आप आरटीआई विशेषज्ञ हैं या आरटीआई कार्यकर्ता जो वास्तव में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की बेहतरी के लिए हमारे साथ काम करना चाहते हैं तो अपना विवरण हमें coordinators@ballotboxindia.com पर भेजें.
आप किसी को जानते हैं, जो इस मामले का जानकार है, एक बदलाव लाने का इच्छुक हो. तो आप हमें coordinators@ballotboxindia.com पर लिख सकते हैं या इस पेज पर नीचे दिए "Contact a coordinator" पर क्लिक कर उनकी या अपनी जानकारी दे सकते हैं.
अगर आप अपने समुदाय की बेहतरी के लिए थोड़ा समय दे सकते हैं तो हमें बताये और समन्वयक के तौर हमसे जुड़ें.
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