
लखनऊ मे जन्मा और बड़ा हुआ तो साथ साथ लखनऊ को भी बढ़ते हुए देखा. जो शहर अपने ऐतिहासिक इमारतों और इतिहास के लिए प्रसिद्द था वो अब अपने बढे हुए कद के लिए भी प्रसिद्द हो रा है . उत्तर भारत के उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ ने बीते 2 दशक मे बहुत बदलाव देखे है . जहा एक तरफ बड़े और छोटे इमामबाड़े रात मे जगमाते है वही दूसरी और नए सिनेमा मॉल्स, शॉपिंग कॉम्प्लेक्सेस, एम्यूजमेंट पार्क्स, नए हाइवेज, फ्लाई ओवर्स , हालिया शुरू हुए गोमती रिवरफ्रण्ट प्रोजेक्ट और मेट्रो के काम से नहुत विकसित लगता और उजला लगता है.
लेकिन एक तरफ़ा हुए मानवीय विकास ने शहर मे से शहर का असली तत्त्व ख़त्म कर दिया है. शहर मे पहले के मुकाबले अब काम पर्यावरण सम्भन्दित प्राकृतिक वस्तुए है. शहर मे हुए अँधा धुन विकास ने शहर को काफी हद तक सूखा कर दिया है. बीते कई वर्षो मैं हुए विकास मे कई नदी, तालाब, पोखरों की ज़मीन भी नष्ट हुई या उनपे कब्ज़े हुए.
जहाँ कही पे हम लोग बचपन मे तालाब या जलस्त्रोत देखा करते थे, वो अब वहां नहीं है और उनकी जगह अब किसी जगमगाती इमारत ने ले ली है. इसमे कोई संदेह नहीं है के एल डी ऐ ने बीते वर्षों मे कई ज़मीन को आवंटित किया होगा के उसपे विकास हो सके. लेकिन ऐसी कई शिकायतें आयी जिसमे जलस्त्रोतों की ज़मीन के अधिग्रहण का मामला सामने आया है. लोकल संपादकीय की माने तो एल डी ऐ को अनेको दफा दोषी पाया गया है. लेकिन उसपे कोई सुनवाई नहीं हुई.
ऐसा ही एक मामला आया जब नयी हाई कोर्ट की ज़मीन भी तलाबे बताई गयी . लोकल सम्पादकीईय की माने तो एल डी ऐ ने हाई कोर्ट को अपने बचाव मे इस्तेमाल किया. उसने अपने बुरे मे हाई कोर्ट को ही भागी बना लिया ताकि उसपे कोई आंच न सके.
लखनऊ विकास प्राधिकरण ने पिछले कुछ दशको मे अवैध निर्माण को कई गुना बढ़ावा दिया है. उसने प्लाट और मकान की अवैध बिक्री करवाई और अपने काम को धारा प्रवाह रखने के लिए जलस्रोतो की ज़मीन भी बेंच डाली. उसने निरंतर जन सुविधा और सुनियोजित विकास को पीछे रखते हुए पैसा बनाने का काम किया. उसमे काम कर रहे कर्मचारी और अधिकारी ने भ्रस्टाचर्य को निरंतर बढ़ावा दिया. प्रदेश मे ' उत्तर प्रदेश अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट 1973 ' बना है जिसका उद्देश्य है प्रदेश मे सुनियोजित ढंग से प्रदेश मे नालियां, सड़के ,पार्क आदि का निर्माण करना जिससे आम जनता को सुविधा हो सके. लेकिन लखनऊ विकास प्रधिकरण ने सभी नियमो को ताख पे रखते हुए तालाबो और जल स्रोतों को भी बिल्डर्स को धन के लिए बेंच डाला .
लखनऊ महायोजना 2021 लागू होने के बाद तालाबो और पोखरो को हथियाने का काम जोर शोर से शुरू हुआ. समाज सेवी अशोक शंकरं और उनके सहियोगी नीरज पांडेय जो की कई वर्षो से जल संरक्षण के काम मे लगे है, उन्होंने पाया के हाई कोर्ट की ज़मीन भी तालाब के ऊपर है और लखनऊ विकास प्राधिकरण ने साज़िशन हाई कोर्ट को भी उन्ही भ्रस्ट बिल्डर्स की सूची मे ला खड़ा किया है.
अशोक शंकरं जिन्होंने इस सन्दर्भ मे हाई कोर्ट मे जनहित याचिका दायर कर राखी है वो कहते है की कोर्ट भी इस मसले को अनदेखा कर रा है और उसने उस ज़मीन पे निर्माण करवा दिया है. अब बात आती है के क्या उस 1500 करोड़ की लागत के निर्माण को दहा दिया जाये ? इस पे जवाब देते हुए अशोक शंकरं ने उदहारण देते हुए कहा के कैम्प कोला की बिल्डिंग जब गिराई जा सकती है जिसमे लोग रह रहे थे तोह ये तोह अभी बन ही रही है.
अब जब लखनऊ विकास प्राधिकरण के साथ लखनऊ हाई कोर्ट को भी भागिदार समझ जा रा है तो ये बात उठती है के क्या अब हाई कोर्ट लखनऊ विकास प्राधिकरण को तालाबो के अवैध कब्ज़े को गलत मानेगी जब उसकी खुद की इमारत एक तालाब पे बानी है . मिलीभगत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है के हाई कोर्ट की नयी बिल्डिंग जिसका निर्माण अभी अधूरा है उसका उद्धघाटन इतना अन्नान फानन मे क्यों करवा दिया गया??
हम किस ओर अग्रसर है और अगर आप कुछ करना चाहते हैं:
तालाबो, झीलों, नालियों और अनेक तरह के जल स्र्तों पे हो रहे अतिक्रमण का सिलसिला बढ़ता जा रहा है . प्राकृतिक तालाब या जल स्त्रोत को सूखा देख उससे पुनः जीवित करने के बजाये उसे प्राइवेट बिल्डर्स को बेचा जा रहा है जिससे हमारे जल स्त्रोत नष्ट हो रहे है . अक्सर तालाब पे कब्ज़े की सूचना सुनने को मिलती है . पिछले बीते वर्षो मे कई राष्ट्रों मे तालाब पे अतिक्रमण के किस्से सामने आये. अब जब हाई कोर्ट पे बे इल्ज़ामात है तालाब कब्जियाने के, जनता मे निराशा है के वो अब पर भोरासा कर सकते है जब न्याय देने वाला है प्रश्नों मे घिरा है . अगर आपके गली मोहल्ले या इलाके मे भी किसी जल स्त्रोत पे अतिक्रमण हो रहा हो तो संपर्क करे.
हम इस रिसर्च के माध्यम से लखनऊ हाई कोर्ट की बिल्डिंग पे चल रहे तालाब अधिग्रहण के केस, या किसी अन्य तालाब अधिग्रहण के मामले की तह तक जाने और इसपे सभी सही जानकारी जाने के कार्यात है . इस रिसर्च के माध्यम से हम सही सुजाव देने मे भी समर्थ होंगे.
अगर आप इससे सम्बंधित कुछ जानते है :
अगर आप इस केस से सम्बंधित कोई जानकारी रखते है और हमसे साझा करना चाहते है, तोह आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है: coordinators@ballotboxindia.com
अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो इस विषय मे कुछ जानता हो:
अगर आप किसी ऐसे को जानते हो जो तालाब अधिग्रहण मे विशेषज्ञ हो या इस केस से सम्बंधित कुछ जानता हो , तोह आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है: coordinators@ballotboxindia.com
team-BBI
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Ashok Shankaram 43
लखनऊ मे जन्मा और बड़ा हुआ तो साथ साथ लखनऊ को भी बढ़ते हुए देखा. जो शहर अपने ऐतिहासिक इमारतों और इतिहास के लिए प्रसिद्द था वो अब अपने बढे हुए कद के लिए भी प्रसिद्द हो रा है . उत्तर भारत के उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ ने बीते 2 दशक मे बहुत बदलाव देखे है . जहा एक तरफ बड़े और छोटे इमामबाड़े रात मे जगमाते है वही दूसरी और नए सिनेमा मॉल्स, शॉपिंग कॉम्प्लेक्सेस, एम्यूजमेंट पार्क्स, नए हाइवेज, फ्लाई ओवर्स , हालिया शुरू हुए गोमती रिवरफ्रण्ट प्रोजेक्ट और मेट्रो के काम से नहुत विकसित लगता और उजला लगता है.
लेकिन एक तरफ़ा हुए मानवीय विकास ने शहर मे से शहर का असली तत्त्व ख़त्म कर दिया है. शहर मे पहले के मुकाबले अब काम पर्यावरण सम्भन्दित प्राकृतिक वस्तुए है. शहर मे हुए अँधा धुन विकास ने शहर को काफी हद तक सूखा कर दिया है. बीते कई वर्षो मैं हुए विकास मे कई नदी, तालाब, पोखरों की ज़मीन भी नष्ट हुई या उनपे कब्ज़े हुए.
जहाँ कही पे हम लोग बचपन मे तालाब या जलस्त्रोत देखा करते थे, वो अब वहां नहीं है और उनकी जगह अब किसी जगमगाती इमारत ने ले ली है. इसमे कोई संदेह नहीं है के एल डी ऐ ने बीते वर्षों मे कई ज़मीन को आवंटित किया होगा के उसपे विकास हो सके. लेकिन ऐसी कई शिकायतें आयी जिसमे जलस्त्रोतों की ज़मीन के अधिग्रहण का मामला सामने आया है. लोकल संपादकीय की माने तो एल डी ऐ को अनेको दफा दोषी पाया गया है. लेकिन उसपे कोई सुनवाई नहीं हुई.
ऐसा ही एक मामला आया जब नयी हाई कोर्ट की ज़मीन भी तलाबे बताई गयी . लोकल सम्पादकीईय की माने तो एल डी ऐ ने हाई कोर्ट को अपने बचाव मे इस्तेमाल किया. उसने अपने बुरे मे हाई कोर्ट को ही भागी बना लिया ताकि उसपे कोई आंच न सके.
लखनऊ विकास प्राधिकरण ने पिछले कुछ दशको मे अवैध निर्माण को कई गुना बढ़ावा दिया है. उसने प्लाट और मकान की अवैध बिक्री करवाई और अपने काम को धारा प्रवाह रखने के लिए जलस्रोतो की ज़मीन भी बेंच डाली. उसने निरंतर जन सुविधा और सुनियोजित विकास को पीछे रखते हुए पैसा बनाने का काम किया. उसमे काम कर रहे कर्मचारी और अधिकारी ने भ्रस्टाचर्य को निरंतर बढ़ावा दिया. प्रदेश मे ' उत्तर प्रदेश अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट 1973 ' बना है जिसका उद्देश्य है प्रदेश मे सुनियोजित ढंग से प्रदेश मे नालियां, सड़के ,पार्क आदि का निर्माण करना जिससे आम जनता को सुविधा हो सके. लेकिन लखनऊ विकास प्रधिकरण ने सभी नियमो को ताख पे रखते हुए तालाबो और जल स्रोतों को भी बिल्डर्स को धन के लिए बेंच डाला .
लखनऊ महायोजना 2021 लागू होने के बाद तालाबो और पोखरो को हथियाने का काम जोर शोर से शुरू हुआ. समाज सेवी अशोक शंकरं और उनके सहियोगी नीरज पांडेय जो की कई वर्षो से जल संरक्षण के काम मे लगे है, उन्होंने पाया के हाई कोर्ट की ज़मीन भी तालाब के ऊपर है और लखनऊ विकास प्राधिकरण ने साज़िशन हाई कोर्ट को भी उन्ही भ्रस्ट बिल्डर्स की सूची मे ला खड़ा किया है.
अशोक शंकरं जिन्होंने इस सन्दर्भ मे हाई कोर्ट मे जनहित याचिका दायर कर राखी है वो कहते है की कोर्ट भी इस मसले को अनदेखा कर रा है और उसने उस ज़मीन पे निर्माण करवा दिया है. अब बात आती है के क्या उस 1500 करोड़ की लागत के निर्माण को दहा दिया जाये ? इस पे जवाब देते हुए अशोक शंकरं ने उदहारण देते हुए कहा के कैम्प कोला की बिल्डिंग जब गिराई जा सकती है जिसमे लोग रह रहे थे तोह ये तोह अभी बन ही रही है.
अब जब लखनऊ विकास प्राधिकरण के साथ लखनऊ हाई कोर्ट को भी भागिदार समझ जा रा है तो ये बात उठती है के क्या अब हाई कोर्ट लखनऊ विकास प्राधिकरण को तालाबो के अवैध कब्ज़े को गलत मानेगी जब उसकी खुद की इमारत एक तालाब पे बानी है . मिलीभगत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है के हाई कोर्ट की नयी बिल्डिंग जिसका निर्माण अभी अधूरा है उसका उद्धघाटन इतना अन्नान फानन मे क्यों करवा दिया गया??
हम किस ओर अग्रसर है और अगर आप कुछ करना चाहते हैं:
तालाबो, झीलों, नालियों और अनेक तरह के जल स्र्तों पे हो रहे अतिक्रमण का सिलसिला बढ़ता जा रहा है . प्राकृतिक तालाब या जल स्त्रोत को सूखा देख उससे पुनः जीवित करने के बजाये उसे प्राइवेट बिल्डर्स को बेचा जा रहा है जिससे हमारे जल स्त्रोत नष्ट हो रहे है . अक्सर तालाब पे कब्ज़े की सूचना सुनने को मिलती है . पिछले बीते वर्षो मे कई राष्ट्रों मे तालाब पे अतिक्रमण के किस्से सामने आये. अब जब हाई कोर्ट पे बे इल्ज़ामात है तालाब कब्जियाने के, जनता मे निराशा है के वो अब पर भोरासा कर सकते है जब न्याय देने वाला है प्रश्नों मे घिरा है . अगर आपके गली मोहल्ले या इलाके मे भी किसी जल स्त्रोत पे अतिक्रमण हो रहा हो तो संपर्क करे.
हम इस रिसर्च के माध्यम से लखनऊ हाई कोर्ट की बिल्डिंग पे चल रहे तालाब अधिग्रहण के केस, या किसी अन्य तालाब अधिग्रहण के मामले की तह तक जाने और इसपे सभी सही जानकारी जाने के कार्यात है . इस रिसर्च के माध्यम से हम सही सुजाव देने मे भी समर्थ होंगे.
अगर आप इससे सम्बंधित कुछ जानते है :
अगर आप इस केस से सम्बंधित कोई जानकारी रखते है और हमसे साझा करना चाहते है, तोह आप हमें इस पे कांटेक्ट कर सकते है: coordinators@ballotboxindia.com
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