
08 सितम्बर, 2017
संसद सदस्यों के नाम खुलापत्र
सुरेश भाई, हिमालय भागीरथीआश्रम, मातली, उत्तरकाशी द्वाराजारी।
मोबाइल संपर्क: 9412077896
माननीय सांसद महोदय,
भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में से 16.3 प्रतिशत क्षेत्र में 11 हिमालयी राज्य जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नागालैण्ड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, और पश्चिम बंगाल का पहाड़ी क्षेत्र फैला हुआ हैं। भूगर्भविदों के अनुसार बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन जैसी विनाशकारी आपदाओं के कारण इसे जोन 4-5 में रखा गया है।
गंगा और इसमें मिलने वाली सहायक नदियाँ - यमुना, टौंस, रामगंगा, गंडक, कोसी, ब्रहमपुत्र, समेत सैकड़ों छोटी बड़ी नदियाँ हिमालय से आ रही है। किन्तु सदानीरा नदियों को जीवित रखने वाले ग्लेशियर प्रतिवर्ष 18-20 मीटर पीछे हट रहे हैं। इसके अलावा वन एवं वर्षाधारित नदियों का पानी पिछले 50 वर्षों में आधा रह गया है। हिमालय क्षेत्र में आपदा एक बड़ी चिन्ता बन गई है। जिसके कारण हिमालयी राज्यों एवं केन्द्र की सरकार को हर साल बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। सन् 1991-2017 के बीच 32 बार से अधिक बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प की घटनायें घट चुकी हैं, जिसके कारण पर्यटन, तीर्थाटन के बार-बार बाधित होने के साथ ही यहाँ पर निवास करने वाले लोगों के जीवन एवं आजीविका के संसाधन बुरी तरह तबाह हो रहे हैं। हिमालय की खूबसूरती, शान्ति और जलवायु पर दिनोंदिन बुरा प्रभाव पड़ रहा है। आपदाओं के मानवजनित अनेकों कारण भी विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों के द्वारा प्रस्तुत किये जा चुके हैं।
महात्मा गाँधी की शिष्या सरला बहन ने तो आज से 40 वर्ष पूर्व ही पर्वतीय विकास की सही दिशा नामक दस्तावेज के द्वारा हिमालय क्षेत्र की संवेदनशीलता की ओर सबका ध्यानआकर्षित किया था। इसके बाद चिपको आन्दोलन के कार्यकर्ताओं ने हिमालय में जंगल, पानी और वनवासियों के हक-हकूक के लिये हिमालय विकास का एक घोषणा पत्र भी जारी किया था। हिमालय के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ही 9 सितम्बर की तारीख को हिमालय दिवस के रुप में घोषित करके हिमालय के सही विकास की दिशा पर चर्चा प्रांरभ की है। इससे पूर्व यहाँ पर नदियों के पवित्र उद्गम, संगम व प्रयागों की सुरक्षा के लिये नदी बचाओ अभियान, खनन विरोधी आन्दोलन, गंगा बचाओ आदि कई प्रयासों ने हिमालय के विषय पर सरकार का ध्यानाकर्षित किया है।
11 अक्टुबर 2014 से 18 फरवरी 2015 के बीच गंगोत्री से गंगासागर तक चले हिमालय नीति अभियान में लोगों ने 2000 से अधिक पत्र प्रधानमंत्री जी को हिमालय के लिये अलग विकास नीति बनाने पर विचार के लिये भेजे हैं। हिमाचल प्रदेश में वर्षों से हिमनीति अभियान चल रहा है। पिछले वर्षों में गोविन्द वल्लभ पन्त हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान ने हिमालय के विषय पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। उत्तराखण्ड में आपदा के बाद गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर गौर किया जाए तो हिमालयी नदियों के सिरहानों पर स्थित संवेदनशील पर्वतों को चीरने वाली सुरंग आधारित जल विद्युत परियोजनाओं, पर्यटकों की अनियंत्रित आवाजाही, सड़कों का चौड़ीकरण तथा सडक निर्माण के मलवे को नदियों व पहाड़ी बस्तियों की ओर डम्पिंग। जिससे हरित और कृषि भूमि तथा मानव बस्तियों (जैसे ताजा उदाहरण बस्तडी गांव का है) की लगातार उपेक्षा के कारण आपदाओं की घटनायें बढ़ रही है। पदम विभूषण डॉ खड्ग सिंह बल्दिया द्वारा हिमालय के प्रति सचेत रहने संबंधी दस्तावेज सरकारी कार्यालयों में मौजूद हैं। पर शायद उन पर गौर नही किया जा रहा है।
16वीं लोकसभा चुनाव में भी सभी राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में हिमालय नीति का विषय शामिल करवाया गया था। इसमें मुख्य रुप से भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में हिमालय के विषय को शामिल किया है। केन्द्र में जब भाजपा की सरकार बनी तो उन्होंने हिमालय अध्ययन केन्द्र के लिये सौ करोड़ रुपये का बजट भी प्रस्तावित किया है। इसके साथ ही हरिद्वार के सांसद एवंउ त्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने हिमालय के लिये अलग मंन्त्रालय बनाने पर पार्लियामेंट में बहस करवायी है। अभी राज्य सभा के सांसद प्रदीप टम्टा ने हिमालय विकास के पृथक मॉडल पर चर्चा की है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने हिमालय इक्कोमिशन बनाया है। इसके साथ ही पूर्ववर्ती सरकारों व राजनितिक दलों के सांसदो ने समय-समय परहिमालय के विषय पर विचार करते रहे है। लेकिन वर्तमान में हिमालय विकास का कोई ऐसा विकास मॉडल नहीं बनाया गया है, जिससे बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके, हिमालय वासियों का पानी और जवानी हिमालय के काम आ सके और हिमालय को अनियंन्त्रित छेड़-छाड़ से बचाने की प्राथमिकता हो।
भारतीय हिमालय राज्यों मेंआमतौर पर 11 छोटे राज्य हैं, जहां से सांसदों की कुल संख्या 36 है, जबकि अकेले बिहार में 39, मध्यप्रदेश में 29, राजस्थान में 25 तथा गुजरात में 26 सांसद है। इस संदर्भ का अर्थ यह है कि देश का मुकुट कहे जाने वाले हिमालयी भू-भाग की सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं पर्यावरणीय पहुँच पार्लियमेंट में भी कमजोर दिखाई देती है, जबकि सामरिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से अतिसंवेदनशील हिमालयी राज्यों को पूरे देश और दुनिया के संदर्भ में देखने की आवश्यकता है।
यह अच्छा है कि केंद्र सरकार गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिये काफी उत्साहित है। लेकिन मैदानी क्षेत्रों को प्रतिवर्ष 36 करोड़ टन उपजाऊ मिट्टी के साथ पानी और प्राण वायु प्रदान करने वाले हिमालय के बिना गंगा का अस्तित्व संभव नहीं है, इसको ध्यान में रखना जरुरी है। हिमालय नीति की मांग आजादी के बाद देश की संसद के सामने कई बार उठाई गई है। इस पर कई अध्ययन एवं अनुसंधान हुये हैं। ग्लेश्यिरों, पर्वतों, नदियों, जैविक विविधताओं की दृष्टि से सम्पंन हिमालयी प्रकृति और संस्कृति का ध्यान योजनाकारों को विशेष रुप से करना चाहिये तथा ग्रीन बोनस यहां की ग्राम सभाओं को मिलना चाहिये। इसको ध्यान में रखकर हिमालय क्षेत्र में रह रहे लोगों, सामाजिक अभियानों तथा आक्रामक विकास नीति को चुनौती देने वाले कार्यकर्ताओं व पर्यावरणविदों ने कई बार समग्र हिमालय नीति बनाने के लिये केन्द्र सरकार को सुझाव दिये हैं। इसके परिणामस्वरुप ही हिमालय की पवित्र नदियाँ, जलवायु परिवर्तन, लगातार आपदाओं के कारण मैदानी क्षेत्रों पर पड़ रहे प्रभाव को ध्यानमें रखते हुये हिमालय लोकनीति का दस्तावेज तैयार हुआ है। जिसके द्वारा हिमालय के लिये अलग विकास नीति की माँग की जा रही है। यह दस्तावेज मजबूत हिमालय नीति के सुझाव के साथ आपके हाथ में सौंप रहे हैं। हमारा विश्वास है कि आप संसद में इस हिमालय लोक विकास नीति की चर्चा चलायेगे और उसके आधार पर हिमालय के लिये एक अलग विकास नीति पारित कराने में सफलता प्राप्त करेगें।
विनीत
राधा भटट लक्ष्मी आश्रम कौशानी, चण्डी प्रसाद भटट दशोली ग्राम स्वराज मंडलगोपेश्वर, सुरेश भाई हिमालय भागीरथी आश्रम उत्तरकाशी, डॉ शेखर पाठक पहाड नैनीताल, डॉ सच्चिदानंद भारती पाणी राखो कोटद्धार, डॉ बीरेन्द्र पैन्यूली देहरादून, मनोज पाण्डे हिमालय सेवा संघ दिल्ली, आकाश जोशी दिल्ली, के0 एल0 बंगोत्रा जम्मू कश्मीर, गुमान सिंह कुलभूषण उपमन्यु हिमनीति अभियान हिमाचल, बिशाल नाथ राय अरुणाचल, राजनी बाई असम, प्रो जेपी पचौरी समाज कार्य विभाग, के वि श्रीनगर गढवाल, जगत सिह जंगली रूद्रप्रयाग, डॉ अरविन्द दरमोडा, डॉ मोहन पंवार श्रीनगर, अरूण तिवारी दिल्ली, भारत डोगरा दिल्ली, कुमार प्रशान्त गांधी शान्ति प्रतिष्ठान दिल्ली, बिहारी लाल लोकजीवन विकास भारती टिहरी गढवाल, प्रो एस पी सिंह पूर्व कुलपति देहरादून।
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Arun Tiwari 0
08 सितम्बर, 2017
संसद सदस्यों के नाम खुलापत्र
सुरेश भाई, हिमालय भागीरथीआश्रम, मातली, उत्तरकाशी द्वाराजारी।
मोबाइल संपर्क: 9412077896
माननीय सांसद महोदय,
भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में से 16.3 प्रतिशत क्षेत्र में 11 हिमालयी राज्य जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नागालैण्ड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, और पश्चिम बंगाल का पहाड़ी क्षेत्र फैला हुआ हैं। भूगर्भविदों के अनुसार बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन जैसी विनाशकारी आपदाओं के कारण इसे जोन 4-5 में रखा गया है।
गंगा और इसमें मिलने वाली सहायक नदियाँ - यमुना, टौंस, रामगंगा, गंडक, कोसी, ब्रहमपुत्र, समेत सैकड़ों छोटी बड़ी नदियाँ हिमालय से आ रही है। किन्तु सदानीरा नदियों को जीवित रखने वाले ग्लेशियर प्रतिवर्ष 18-20 मीटर पीछे हट रहे हैं। इसके अलावा वन एवं वर्षाधारित नदियों का पानी पिछले 50 वर्षों में आधा रह गया है। हिमालय क्षेत्र में आपदा एक बड़ी चिन्ता बन गई है। जिसके कारण हिमालयी राज्यों एवं केन्द्र की सरकार को हर साल बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। सन् 1991-2017 के बीच 32 बार से अधिक बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प की घटनायें घट चुकी हैं, जिसके कारण पर्यटन, तीर्थाटन के बार-बार बाधित होने के साथ ही यहाँ पर निवास करने वाले लोगों के जीवन एवं आजीविका के संसाधन बुरी तरह तबाह हो रहे हैं। हिमालय की खूबसूरती, शान्ति और जलवायु पर दिनोंदिन बुरा प्रभाव पड़ रहा है। आपदाओं के मानवजनित अनेकों कारण भी विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों के द्वारा प्रस्तुत किये जा चुके हैं।
महात्मा गाँधी की शिष्या सरला बहन ने तो आज से 40 वर्ष पूर्व ही पर्वतीय विकास की सही दिशा नामक दस्तावेज के द्वारा हिमालय क्षेत्र की संवेदनशीलता की ओर सबका ध्यानआकर्षित किया था। इसके बाद चिपको आन्दोलन के कार्यकर्ताओं ने हिमालय में जंगल, पानी और वनवासियों के हक-हकूक के लिये हिमालय विकास का एक घोषणा पत्र भी जारी किया था। हिमालय के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ही 9 सितम्बर की तारीख को हिमालय दिवस के रुप में घोषित करके हिमालय के सही विकास की दिशा पर चर्चा प्रांरभ की है। इससे पूर्व यहाँ पर नदियों के पवित्र उद्गम, संगम व प्रयागों की सुरक्षा के लिये नदी बचाओ अभियान, खनन विरोधी आन्दोलन, गंगा बचाओ आदि कई प्रयासों ने हिमालय के विषय पर सरकार का ध्यानाकर्षित किया है।
11 अक्टुबर 2014 से 18 फरवरी 2015 के बीच गंगोत्री से गंगासागर तक चले हिमालय नीति अभियान में लोगों ने 2000 से अधिक पत्र प्रधानमंत्री जी को हिमालय के लिये अलग विकास नीति बनाने पर विचार के लिये भेजे हैं। हिमाचल प्रदेश में वर्षों से हिमनीति अभियान चल रहा है। पिछले वर्षों में गोविन्द वल्लभ पन्त हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान ने हिमालय के विषय पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। उत्तराखण्ड में आपदा के बाद गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर गौर किया जाए तो हिमालयी नदियों के सिरहानों पर स्थित संवेदनशील पर्वतों को चीरने वाली सुरंग आधारित जल विद्युत परियोजनाओं, पर्यटकों की अनियंत्रित आवाजाही, सड़कों का चौड़ीकरण तथा सडक निर्माण के मलवे को नदियों व पहाड़ी बस्तियों की ओर डम्पिंग। जिससे हरित और कृषि भूमि तथा मानव बस्तियों (जैसे ताजा उदाहरण बस्तडी गांव का है) की लगातार उपेक्षा के कारण आपदाओं की घटनायें बढ़ रही है। पदम विभूषण डॉ खड्ग सिंह बल्दिया द्वारा हिमालय के प्रति सचेत रहने संबंधी दस्तावेज सरकारी कार्यालयों में मौजूद हैं। पर शायद उन पर गौर नही किया जा रहा है।
16वीं लोकसभा चुनाव में भी सभी राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में हिमालय नीति का विषय शामिल करवाया गया था। इसमें मुख्य रुप से भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में हिमालय के विषय को शामिल किया है। केन्द्र में जब भाजपा की सरकार बनी तो उन्होंने हिमालय अध्ययन केन्द्र के लिये सौ करोड़ रुपये का बजट भी प्रस्तावित किया है। इसके साथ ही हरिद्वार के सांसद एवंउ त्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने हिमालय के लिये अलग मंन्त्रालय बनाने पर पार्लियामेंट में बहस करवायी है। अभी राज्य सभा के सांसद प्रदीप टम्टा ने हिमालय विकास के पृथक मॉडल पर चर्चा की है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने हिमालय इक्कोमिशन बनाया है। इसके साथ ही पूर्ववर्ती सरकारों व राजनितिक दलों के सांसदो ने समय-समय परहिमालय के विषय पर विचार करते रहे है। लेकिन वर्तमान में हिमालय विकास का कोई ऐसा विकास मॉडल नहीं बनाया गया है, जिससे बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके, हिमालय वासियों का पानी और जवानी हिमालय के काम आ सके और हिमालय को अनियंन्त्रित छेड़-छाड़ से बचाने की प्राथमिकता हो।
भारतीय हिमालय राज्यों मेंआमतौर पर 11 छोटे राज्य हैं, जहां से सांसदों की कुल संख्या 36 है, जबकि अकेले बिहार में 39, मध्यप्रदेश में 29, राजस्थान में 25 तथा गुजरात में 26 सांसद है। इस संदर्भ का अर्थ यह है कि देश का मुकुट कहे जाने वाले हिमालयी भू-भाग की सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं पर्यावरणीय पहुँच पार्लियमेंट में भी कमजोर दिखाई देती है, जबकि सामरिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से अतिसंवेदनशील हिमालयी राज्यों को पूरे देश और दुनिया के संदर्भ में देखने की आवश्यकता है।
यह अच्छा है कि केंद्र सरकार गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिये काफी उत्साहित है। लेकिन मैदानी क्षेत्रों को प्रतिवर्ष 36 करोड़ टन उपजाऊ मिट्टी के साथ पानी और प्राण वायु प्रदान करने वाले हिमालय के बिना गंगा का अस्तित्व संभव नहीं है, इसको ध्यान में रखना जरुरी है। हिमालय नीति की मांग आजादी के बाद देश की संसद के सामने कई बार उठाई गई है। इस पर कई अध्ययन एवं अनुसंधान हुये हैं। ग्लेश्यिरों, पर्वतों, नदियों, जैविक विविधताओं की दृष्टि से सम्पंन हिमालयी प्रकृति और संस्कृति का ध्यान योजनाकारों को विशेष रुप से करना चाहिये तथा ग्रीन बोनस यहां की ग्राम सभाओं को मिलना चाहिये। इसको ध्यान में रखकर हिमालय क्षेत्र में रह रहे लोगों, सामाजिक अभियानों तथा आक्रामक विकास नीति को चुनौती देने वाले कार्यकर्ताओं व पर्यावरणविदों ने कई बार समग्र हिमालय नीति बनाने के लिये केन्द्र सरकार को सुझाव दिये हैं। इसके परिणामस्वरुप ही हिमालय की पवित्र नदियाँ, जलवायु परिवर्तन, लगातार आपदाओं के कारण मैदानी क्षेत्रों पर पड़ रहे प्रभाव को ध्यानमें रखते हुये हिमालय लोकनीति का दस्तावेज तैयार हुआ है। जिसके द्वारा हिमालय के लिये अलग विकास नीति की माँग की जा रही है। यह दस्तावेज मजबूत हिमालय नीति के सुझाव के साथ आपके हाथ में सौंप रहे हैं। हमारा विश्वास है कि आप संसद में इस हिमालय लोक विकास नीति की चर्चा चलायेगे और उसके आधार पर हिमालय के लिये एक अलग विकास नीति पारित कराने में सफलता प्राप्त करेगें।
विनीत
राधा भटट लक्ष्मी आश्रम कौशानी, चण्डी प्रसाद भटट दशोली ग्राम स्वराज मंडलगोपेश्वर, सुरेश भाई हिमालय भागीरथी आश्रम उत्तरकाशी, डॉ शेखर पाठक पहाड नैनीताल, डॉ सच्चिदानंद भारती पाणी राखो कोटद्धार, डॉ बीरेन्द्र पैन्यूली देहरादून, मनोज पाण्डे हिमालय सेवा संघ दिल्ली, आकाश जोशी दिल्ली, के0 एल0 बंगोत्रा जम्मू कश्मीर, गुमान सिंह कुलभूषण उपमन्यु हिमनीति अभियान हिमाचल, बिशाल नाथ राय अरुणाचल, राजनी बाई असम, प्रो जेपी पचौरी समाज कार्य विभाग, के वि श्रीनगर गढवाल, जगत सिह जंगली रूद्रप्रयाग, डॉ अरविन्द दरमोडा, डॉ मोहन पंवार श्रीनगर, अरूण तिवारी दिल्ली, भारत डोगरा दिल्ली, कुमार प्रशान्त गांधी शान्ति प्रतिष्ठान दिल्ली, बिहारी लाल लोकजीवन विकास भारती टिहरी गढवाल, प्रो एस पी सिंह पूर्व कुलपति देहरादून।