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वायु प्रदूषण-
मानव को प्रकृति प्रदत्त एक निःशुल्क उपहार मिला है और वह है- वायु। यह उपहार सभी जीवों का आधार है। मानव बिना भोजन एवं बिना जल के कुछ समय भले ही व्यतीत कर ले, बिना वायु के वह दस मिनट भी जीवित नहीं रह सकता। यह अत्यन्त चिन्ता का विषय है कि प्रकृति प्रदत्त जीवनदायिनी वायु लगातार जहरीली होती जा रही है। शहरों का असीमित विस्तार, बढ़ता औद्योगिकीकरण, परिवहन के साधनों में लगातार वृद्धि तथा विलासिता की वस्तुएं (जैसे-एयरकन्डीशनर, रेफ्रिजरेटर आदि) वायु प्रदूषण को लगातार बढ़ावा दे रही हैं। मानव 24 घण्टे में लगभग 22,000 बार सॉंस लेता है तथा इसमें प्रयुक्त वायु की मात्रा लगभग 35 गैलन या 16 कि0ग्रा0 है। ऐसी वायु जो हानिकारक अवयवों से मुक्त होती है उसे शुद्ध वायु कहते हैं। वायु के मुख्य संघटकों में नाइट्रोजन, आक्सीजन एवं कार्बन डाई आक्साइड हैं। उक्त के अतिरिक्त वायुमण्डल में थोड़ी मात्रा में आर्गन या नियान जैसी विरल गैसें भी पाई जाती हैं। वायुमण्डल में प्रमुख गैसों की सान्द्रता निम्न प्रकार है-
1. नाइट्राजेन : 79.20 प्रतिशत
2. आक्सीजन : 20.60 प्रतिशत
3. कार्बन डाई आक्साइड : 0.20 प्रतिशत
4. अन्य : अति सूक्ष्म रूप में
आधुनिक युग में उद्योगों की चिमनियाँ, बढ़ते वाहनों एवं अन्य कारणों से वायुमण्डल में अनेक हानिकारक गैसें मिश्रित हो रही हैं, जिनमें सल्फर डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, नाइट्राजेन के विभिन्न आक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन एवं फार्मेल्डिहाइड मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त सड़कों पर चल रहे वाहनों से निकला सीसा (लेड), अधजले हाइड्रोकार्बन आरै विषैला धुॅंआ भी वायुमण्डल को लगातार प्रदूषित कर रहे हैं। वायुमण्डलीय वातावरण के इस असन्तुलन को ‘वायु प्रदूषण’ कहते हैं।
अत्यधिक वायु प्रदूषण के कारण आसमान अब भूरा दिखाई देता है। विषाक्त वायु को अवशाेषत करने वाले वृक्षों के कटान से वायुमण्डल में प्राणवायु आक्सीजन की कमी हो रही है तथा दूषित गैसां का दबाव बढ़ रहा है।
विभिन्न वायु प्रदूषक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हाते हैं। वायुमण्डल में इन विषाक्त गैसों की उपस्थिति के कारण स्मॉग (धूम) का निर्माण हाते है। लन्दन एवं लॉस एंजेल्स में स्मॉग निर्माण से अनेक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। हमारे देश में भोपाल में मिक गैस से वायु इतनी प्रदूषित हुई, जिससे हजारों लोग मौत एवं विकलांगता का शिकार हो गए। प्रदूषित वायु मानव के श्वसन-तन्त्र को कुप्रभावित करती है। विभिन्न गैसों का घातक प्रभाव निम्न प्रकार है-

उक्त के अतिरिक्त प्रदूषित वायुमण्डल के कारण धातु की बनी वस्तुओं में अनेक बार रॅंगाई करनी पड़ती है। वायु प्रदूषण से ऐतिहासिक इमारतों को भी क्षति पहुॅंचती है। ताजमहल का ‘पत्थर कैंसर’ वायु प्रदूषण का ही परिणाम है। धॅुंआ तथा धूल के सूक्ष्म कणों के कारण सूर्य का प्रकाश भूमि तक ठीक से नहीं पहुॅंच पाता जिससे आकाश की निर्मलता घटती है। इससे वायुयानों के चालन में कठिनाई होती है और दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
वायु प्रदूषण से हाने वाले असन्तुलन का परिणाम हमें चातुर्दिक दिखाई दे रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार ने इस दिशा में वायु (प्रदूषण , निवारण एवं नियन्त्रण) अधिनियम- 1981 पारित किया। केन्द्र में केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड तथा विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रदूषण नियन्त्रण केन्द्रों की स्थापना की गई। जिन उद्योंगो द्वारा प्रदूषण बोर्ड के निर्देशों के बावजूद प्रदूषण नियन्त्रण के सम्बन्ध में यथोचित कार्यवाही नहीं की जाती उनके विरुद्ध अभियोजनात्मक कार्यवाही की जाती है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा परिवेशीय वायु की गुणवत्ता का मानक बनाया गया है, जो निम्न प्रकार है-
(सांद्रता- माइक्रोग्राम/घन मीटर)

वायु प्रदूषण को रोकने हेतु प्रमुख उपाय-
- वायु प्रदूषण रोकने ने में वृक्षों का सबसे बड़ा योगदान है। पौधों वायुमण्डलीय कार्बन डाई आक्साइड अवशोषित कर हमें प्राणवायु आक्सीजन प्रदान करते हैं। अतः सड़कों, नहर पटरियों तथा रेल लाइन के किनारे तथा उपलब्ध रिक्त भू भाग पर व्यापक रूप से वृक्ष लगाए जाने चाहिए ताकि हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ- साथ वायुमण्डल भी शुद्ध हो सके। औद्योगिक क्षेत्रों के निकट हरित पट्टियॉं विकसित की जानी चाहिए जिसमें ऐसे वृक्ष लगाए जायें जो चिमनियां के धुंए से आसानी से नष्ट न हो तथा घातक गैस को अवशाेषत करने की क्षमता रखते हो । पीपल एवं बरगद आदि का रोपण इस दृष्टि से उपयोगी है।
- औद्योगिक इकाइयों को प्रयास करना चाहिए कि वायुमण्डल में फैलने वाली घातक गैसों की मात्रा निर्धारत मानकों के अनुसार रखें जिसके लिए प्रत्येक उद्योग में वायु शिद्धकरण यन्त्र अवश्य लगाए जायें।
- उद्योगों में चिमनियों की उॅंचाई पयार्प्त होनी चाहिए ताकि आस-पास कम से कम प्रदूषण हो।
- पेट्राले कारों में कैटेलिटिक कनवर्टर लगाने से वायु प्रदूषण को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। इस प्रकार की कारों में सीसा रहित पेट्राले का का प्रयोग किया जाना चाहिये।
- घरों में धुऑं रहित ईंधनों का बढ़ावा देना चाहिये।
- जीवाश्म ईंधनों (पेट्रोलियम, कायेला), जो वायुमण्डल को प्रदूषित करते हैं, का प्रयोग कुछ कम करके सारै ऊजा, पवन ऊर्जा जैसी वैकल्पिक ऊर्जाओं का प्रयोग किया जा सकता है।
हमारा वायुमण्डल हमारे स्वास्थय को सर्वाधिक प्रभावित करता है, इस तथ्य के विपरीत हमने विभिन्न पर्यावरणीय तन्त्रों को इस हद तक परिवर्तित कर दिया है जिसका परोक्ष दुष्परिणाम हमें स्पष्ट दिखाई देता है।
इस स्थिति पर ध्यान न देना आत्महत्या सिद्ध होगा। अतः हम सबको मिलकर इस धरती पर प्रलयकारी परिस्थिति पैदा होने की आशकां को टालने के लिये निरंतर संघर्ष करना हागे। वायु प्रदूषण से उत्पन्न समस्याओं को हम भले ही राके तो नहीं सकते, परन्तु कुछ विशिष्ट सुरक्षा उपायों से कुछ हद तक पयार्वरण संरक्षण, संतुलन व विकास में योगदान कर सकते हैं।
By
Mahendra Pratap Singh 53492
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वायु प्रदूषण-
मानव को प्रकृति प्रदत्त एक निःशुल्क उपहार मिला है और वह है- वायु। यह उपहार सभी जीवों का आधार है। मानव बिना भोजन एवं बिना जल के कुछ समय भले ही व्यतीत कर ले, बिना वायु के वह दस मिनट भी जीवित नहीं रह सकता। यह अत्यन्त चिन्ता का विषय है कि प्रकृति प्रदत्त जीवनदायिनी वायु लगातार जहरीली होती जा रही है। शहरों का असीमित विस्तार, बढ़ता औद्योगिकीकरण, परिवहन के साधनों में लगातार वृद्धि तथा विलासिता की वस्तुएं (जैसे-एयरकन्डीशनर, रेफ्रिजरेटर आदि) वायु प्रदूषण को लगातार बढ़ावा दे रही हैं। मानव 24 घण्टे में लगभग 22,000 बार सॉंस लेता है तथा इसमें प्रयुक्त वायु की मात्रा लगभग 35 गैलन या 16 कि0ग्रा0 है। ऐसी वायु जो हानिकारक अवयवों से मुक्त होती है उसे शुद्ध वायु कहते हैं। वायु के मुख्य संघटकों में नाइट्रोजन, आक्सीजन एवं कार्बन डाई आक्साइड हैं। उक्त के अतिरिक्त वायुमण्डल में थोड़ी मात्रा में आर्गन या नियान जैसी विरल गैसें भी पाई जाती हैं। वायुमण्डल में प्रमुख गैसों की सान्द्रता निम्न प्रकार है-
1. नाइट्राजेन : 79.20 प्रतिशत
2. आक्सीजन : 20.60 प्रतिशत
3. कार्बन डाई आक्साइड : 0.20 प्रतिशत
4. अन्य : अति सूक्ष्म रूप में
आधुनिक युग में उद्योगों की चिमनियाँ, बढ़ते वाहनों एवं अन्य कारणों से वायुमण्डल में अनेक हानिकारक गैसें मिश्रित हो रही हैं, जिनमें सल्फर डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, नाइट्राजेन के विभिन्न आक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन एवं फार्मेल्डिहाइड मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त सड़कों पर चल रहे वाहनों से निकला सीसा (लेड), अधजले हाइड्रोकार्बन आरै विषैला धुॅंआ भी वायुमण्डल को लगातार प्रदूषित कर रहे हैं। वायुमण्डलीय वातावरण के इस असन्तुलन को ‘वायु प्रदूषण’ कहते हैं।
अत्यधिक वायु प्रदूषण के कारण आसमान अब भूरा दिखाई देता है। विषाक्त वायु को अवशाेषत करने वाले वृक्षों के कटान से वायुमण्डल में प्राणवायु आक्सीजन की कमी हो रही है तथा दूषित गैसां का दबाव बढ़ रहा है।
विभिन्न वायु प्रदूषक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हाते हैं। वायुमण्डल में इन विषाक्त गैसों की उपस्थिति के कारण स्मॉग (धूम) का निर्माण हाते है। लन्दन एवं लॉस एंजेल्स में स्मॉग निर्माण से अनेक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। हमारे देश में भोपाल में मिक गैस से वायु इतनी प्रदूषित हुई, जिससे हजारों लोग मौत एवं विकलांगता का शिकार हो गए। प्रदूषित वायु मानव के श्वसन-तन्त्र को कुप्रभावित करती है। विभिन्न गैसों का घातक प्रभाव निम्न प्रकार है-
उक्त के अतिरिक्त प्रदूषित वायुमण्डल के कारण धातु की बनी वस्तुओं में अनेक बार रॅंगाई करनी पड़ती है। वायु प्रदूषण से ऐतिहासिक इमारतों को भी क्षति पहुॅंचती है। ताजमहल का ‘पत्थर कैंसर’ वायु प्रदूषण का ही परिणाम है। धॅुंआ तथा धूल के सूक्ष्म कणों के कारण सूर्य का प्रकाश भूमि तक ठीक से नहीं पहुॅंच पाता जिससे आकाश की निर्मलता घटती है। इससे वायुयानों के चालन में कठिनाई होती है और दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
वायु प्रदूषण से हाने वाले असन्तुलन का परिणाम हमें चातुर्दिक दिखाई दे रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार ने इस दिशा में वायु (प्रदूषण , निवारण एवं नियन्त्रण) अधिनियम- 1981 पारित किया। केन्द्र में केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड तथा विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रदूषण नियन्त्रण केन्द्रों की स्थापना की गई। जिन उद्योंगो द्वारा प्रदूषण बोर्ड के निर्देशों के बावजूद प्रदूषण नियन्त्रण के सम्बन्ध में यथोचित कार्यवाही नहीं की जाती उनके विरुद्ध अभियोजनात्मक कार्यवाही की जाती है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा परिवेशीय वायु की गुणवत्ता का मानक बनाया गया है, जो निम्न प्रकार है-
(सांद्रता- माइक्रोग्राम/घन मीटर)
वायु प्रदूषण को रोकने हेतु प्रमुख उपाय-
हमारा वायुमण्डल हमारे स्वास्थय को सर्वाधिक प्रभावित करता है, इस तथ्य के विपरीत हमने विभिन्न पर्यावरणीय तन्त्रों को इस हद तक परिवर्तित कर दिया है जिसका परोक्ष दुष्परिणाम हमें स्पष्ट दिखाई देता है।
इस स्थिति पर ध्यान न देना आत्महत्या सिद्ध होगा। अतः हम सबको मिलकर इस धरती पर प्रलयकारी परिस्थिति पैदा होने की आशकां को टालने के लिये निरंतर संघर्ष करना हागे। वायु प्रदूषण से उत्पन्न समस्याओं को हम भले ही राके तो नहीं सकते, परन्तु कुछ विशिष्ट सुरक्षा उपायों से कुछ हद तक पयार्वरण संरक्षण, संतुलन व विकास में योगदान कर सकते हैं।