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नमामि गंगे परियोजना में शामिल हुई काली नदी – 681 करोड़ के बजट से नदी को किया जाएगा पुनर्जीवित

पूर्वी काली नदी : संरक्षण  एवं परियोजनाएं

पूर्वी काली नदी : संरक्षण एवं परियोजनाएं पूर्वी काली नदी संरक्षण के प्रयास

ByRaman Kant Raman Kant   Contributors Deepika Chaudhary Deepika Chaudhary Tanu chaturvedi Tanu chaturvedi {{descmodel.currdesc.readstats }}

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वर्षों से प्रदूषण का दंश
झेल रही पूर्वी काली नदी की बिगडती हालत को संवारने के लिए हाल ही में जल संसा

वर्षों से प्रदूषण का दंश झेल रही पूर्वी काली नदी की बिगडती हालत को संवारने के लिए हाल ही में जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगापुनरुद्धार मंत्रालय ने कायाकल्प के लिए करीब 681 करोड़ का बजट निर्धारित किया है. नदी के लिए डीपीआर तैयार किया गया है, जिसके अंतर्गत प्रतिदिन नदी में शुद्ध 200 मिलियन जल प्रवाहित किया जाएगा. जिससे नदी फिर जीवंत हो सकेगी.

पर्यावरण एवं नदी संरक्षण के क्षेत्र में दशकों से कार्य कर रहे नीर फाउंडेशन के निदेशक रमन त्यागी जी ने बताया कि,

काली नदी के जीर्णोद्धार के लिए कुछ विकास कार्यों को पहले ही मंजूरी मिल चुकी है. इसके अलावा अंतवाड़ा में एक झील का निर्माण होगा. उद्गम स्थल पर खतौली केनाल से पानी छोड़ने की रूपरेखा पर कार्य चल रहा है. पूर्वी काली नदी संरक्षण को मनरेगा में भी शामिल किये जाने का प्रयास चल रहा है.

16 फरवरी शनिवार को नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (नमामि गंगे) की बैठक में इस प्रस्ताव को स्वीकार किया गया और जल्द ही काम करने की भी योजना बनाई गई. नदी को फिर से प्रदूषण की मार न पड़े इसके लिए ट्रीटमेंट प्लान भी तैयार किये जाएंगें.

15 फरवरी को नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (नमामि गंगे) की उच्चस्तरीय बैठक के अंतर्गत मुख्य अभियंता जीएस श्रीवास्तव, एमई केपी सिंह, इंजीनियर बलवीर सिंह, प्रोजेक्ट मैनेजर रमेश चंद्र राय सहित अन्य शीर्ष अधिकारियों की सहभागीदारी में काली नदी को अविरल बनाने के प्रोजेक्ट पर प्रेजेंटेशन दी गयी. टीम के द्वारा लगभग 741 करोड़ 73 लाख की धनराशि प्रोजेक्ट के अंतर्गत रखी गयी. शहरों को नालों से भी मुक्ति दिलाई जाएगी, जिसमें प्राथमिक तौर पर नालों को सीवरलाइन से जोड़ा जाएगा, जिनके माध्यम से गैर-शोधित पानी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स में जाएगा और उपचारण के बाद ही नदी में छोड़ा जाएगा.

मेरठ के तीन प्रमुख नालों ओडियन, आबू नाला-1 एवं आबू नाला-2 से लगभग 200 मिलियन लीटर अवजल काली नदी को प्रदूषित कर रहा है, फिलवक्त शहर में एकमात्र एसटीपी जाग्रति विहार एक्सटेंशन में स्थित है, जो 72 मिलियन लीटर प्रतिदिन शोधन के अनुसार बनाया गया है. हालाँकि यह अपनी क्षमता के अनुसार कार्य नहीं कर रहा है, जिसके चलते काली नदी में गैर-शोधित अवजल निरंतर प्रवाहित हो रहा है.

काली नदी – उद्गम स्थल एवं प्रवाह क्षेत्र

काली नदी (पूर्व) का उद्गम मुजफ्फरनगर जिले की जानसठ तहसील के दौराला ब्लॉक के उत्तर में स्थित अंतवाड़ा गाँव से हुआ माना जाता है. हालाँकि कुछ स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि नदी की उत्पत्ति अंतवाड़ा गाँव के उत्तर में ऊँचाई पर स्थित चित्तोडा गाँव से होती है, जहां से नदी का उद्गम एक दुबली जलधारा के रूप में 1 किमी की दूरी पर माना गया है, परन्तु इसमें कभी पानी नहीं बहा है.

अध्ययन के समय भी यह जलधारा शुष्क पाई गयी थी. इस कारण अधिकांश स्थानीय लोग नदी के स्रोत और जन्मस्थान के रूप में अंतवाड़ा गांव को ही मानते हैं. यह नदी अपने उद्गमक्षेत्र से लगभग तीन सौ किमी की दूरी तय करती हुए गंगा में समाहित होती है. इसके प्रवाह क्षेत्र में मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, फरूखाबाद और कन्नौज प्रमुखत: आते हैं और कन्नौज के पास गंगा नदी में यह विलीन हो जाती है.

काली नदी के तट पर, लगभग 1200 गाँव, कई बड़े शहर और कस्बे हैं. जिनकी अधिकांश आबादी मुख्य रूप से कृषि और पशु पालन के लिए नदी के पानी का उपयोग करती है. अपने विशेष ज़िगज़ैग तरीके से बहाव के चलते इसे नागिन भी कहा जाता है और कन्नौज एवं बुलंदशहर के पास के इलाके के स्थानीय लोग इसे कालिंदी के नाम से भी जानते हैं.

वर्षों से प्रदूषण का दंश
झेल रही पूर्वी काली नदी की बिगडती हालत को संवारने के लिए हाल ही में जल संसा

प्रदूषण का कारण बनती औद्योगिक इकाइयां एवं नाले  

मुजफ्फरनगर जिले की जानसड तहसील के अंतवाड़ा गांव में वन्य क्षेत्र से एक छोटी सी धारा के रूप में काली नदी उद्गमित होती है और लगभग 3 किलोमीटर तक स्वच्छ जल के रूप में बहती है. खतौली के रास्ते पर मीरापुर रोड स्थित खतौली चीनी मिल के काले, बदबूदार पानी को काली में प्रवेश का मार्ग मिल जाता है, जिसके साथ 10 किलोमीटर की यात्रा के बाद, यह मेरठ जिले में प्रवेश करती है. यह मेरठ जिले में नागली आश्रम के पास से गुजरती है. यहां पानी काफी गन्दा है और आगे चलने पर सूख भी जाता है.

सूखी नदी दौराला-लावाड़ रोड की ओर 10-15 कि.मी. तक पहुंच जाती है, जहां दौराला चीनी मिल, दौराला डिस्टलरी और केमिकल का नाला सूखी नदी में बहता है, जिससे सूखी नदी को काला बदबूदार जल प्रवाह मिलता है. पनवाड़ी, धंजू और देडवा गांवों को पार करते हुए, नदी मेरठ-मवाना रोड से आगे बढ़ती है, जहां सैनी, फिटकारी और राफेन पेपर मिलों के नालें नदी में बहते हैं.

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वर्षों से प्रदूषण का दंश
झेल रही पूर्वी काली नदी की बिगडती हालत को संवारने के लिए हाल ही में जल संसा

मेरठ शहर में आगे बढ़ते हुए, नदी जयभीम नगर कॉलोनी से गुजरती है. जहां शहर के कचरे को ले जाने वाली पीएसी नाला नदी से मिलता है. इस सीवेज में दौराला केमिकल प्लांट और रंग फैक्ट्री के कचरे भी शामिल हैं.

नदी आगे बढ़कर 5 किलोमीटर तक अपशिष्ट की बड़ी मात्रा साथ में ले जाती है,  मवेशियों के शव और मेरठ नगर निगम के बुचडखानों की रक्तरंजित अपशिष्टता भी नदी में गिरा दी जाती है. नदी आध, कुधाला, कौल, भदोली और अटरारा गांवों से गुज़रती है और हापुड जिले में प्रवेश करने से पहले 20 किमी तक बहती है.

फिर हापुड-गढ़ रोड से गुज़रने के बाद 30 किलोमीटर के बाद नदी बुलंदशहर जिले में प्रवेश करती है. यहां काली नदी गुलावठी के पास अकबरपुर गांव से प्रवेश करती है. बुलंदशहर में नगर पालिका का कूड़ा-करकट सीधे नदी के हवाले कर दिया जाता है, साथ ही शहरी क्षेत्र का मेडिकल वेस्ट एवं तकरीबन 30,000 किली सीवरेज लगभग 34 नालों के जरिये काली नदी में निस्तारित किया जाता है.

वर्षों से प्रदूषण का दंश
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लगभग 50 किमी के बाद नदी अलीगढ़ जिले में प्रवेश करती है, जहां अलीगढ़ डिस्टिलरी और कसाई घरों का नारकीय कचरा नदी में फेंक दिया जाता है. अलीगढ़ से गुजरते समय कुछ स्थानों पर प्रदूषण का स्तर कम हो जाता है. इसके लिए पहला स्थान वह है, जहां नदी में हरदुआगंज भुदांसी से जल छोड़ा जाता है और दूसरा स्थान अलीगढ़ और कन्नौज के बीच, जहां यह पवित्र गंगा में मिलता है. इन स्थानों पर  कोई औद्योगिक अपशिष्ट नदी में नहीं डाला जाता है. अलीगढ़ से, यह कासगंज की तरफ बहती है, जहां नदियों का दृश्य भव्य है.

काली नदी पुल पर एक और नदी के नीचे से बहती है. यह पुल 18 वीं शताब्दी में बनाया गया था और 200 मीटर लंबा है. कासगंज से, नदी ईटा जिले में, वहां से फरुक्खाबाद तक और अंत में कन्नौज जिले में बहती है. कासगंज, ईटा, फरुक्खाबाद और कन्नौज जिलों में, कोई भी उद्योग काली में अपने कचरे को डंप नहीं करता है और न ही शहर का सीवेज नदी में फेंका जाता है.

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एटा के बाद, गुरसाईगंज टाउनशिप का सीवेज काली में डाला जाता है, किन्तु आगे चलकर नदी का पानी साफ़ हो जाता है. शहर के सीवेज को नदी में ले जाने और डंप करने के लिए कन्नौज शहर में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक नाले का निर्माण किया जा रहा है.

नदी से कासगंज और कन्नौज के बीच की दूरी लगभग 150 किमी है. मुजफ्फरनगर से अलीगढ़ के बीच लंबाई की तुलना में नदी की यह लंबाई काफी साफ है, जब काली कन्नौज में गंगा में बहती है, तो गंगा और काली के पानी को अलग करना मुश्किल हो जाता है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगा की सहायक नदियों में बढ़ते प्रदूषण के विषय पर अध्ययन करते हुए काली नदी में गिरने वाले 23 प्रमुख नालों की जानकारी एकत्रित की, जिनसे काली नदी निरंतर प्रदूषित हो रही थी.

काली नदी सम्पूर्ण सर्वेक्षण प्रक्रिया –

काली नदी के संरक्षण में अहम योगदान अंकित कर रहे रमन त्यागी जी (निदेशक, नीर फाउंडेशन) के अनुसार डब्ल्यू डब्ल्यू एफ, नई दिल्ली के सहयोग से काली नदी का अप्रैल, 2015 से सम्पूर्ण सर्वेक्षण प्रारम्भ किया जा चुका है. इसके अंतर्गत संस्था द्वारा काली नदी उद्गम स्थल से लेकर गंगा में मिलने तक के दौरान नदी में कहां और किस प्रकार प्रदूषण फैलाया जा रहा है, इसका विस्तृत अध्ययन किया गया. इसके उपरांत नदी के आठ प्रवाह क्षेत्रों से नदी जल और भूजल के सैंपल एकत्रित किये गए, जिनका परीक्षण देहरादून स्थित पीपुल्स साइंस इंस्टिट्यूट की लैब में किया गया.

अध्ययन के अंतर्गत पहला नदी जल सैंपल खतौली-जानसठ मार्ग के पास जहां खतौली गन्ना मिल का अपशिष्ट नदी में गिराया जाता है, वहां से लिया गया. साथ ही समीप के अंतवाडा गांव से निजी हैंडपंप से भूजल सैंपल लिया गया. नदी जल का दूसरा नमूना मेरठ जनपद के जलालपुर ग्राम से तथा यहीं के सरकारी हैंडपंप से लिया गया.

नेशनल हाईवे, हापुड़ जनपद से लालपुर गांव के पुल से तीसरा नदी जल सैंपल एवं लालपुर गांव के सरकारी हैंडपंप से भूमिगत जल के सैंपल लिए गए. बुलंदशहर- शिकारपुर मार्ग के पास शिकारपुर पुल के नीचे से नदी जल का चौथा सैंपल तथा यही के रामपुर गांव से निजी हैंडपंप से भूजल सैंपल लिया गया.   

नदी जल का पांचवा सैंपल अलीगढ़ जनपद से अहमदपुरा गांव के पास से लिया गया तथा ग्राम कौड़ियागंज से निजी हैंडपंप के जल सैंपल लिए गए. कासगंज के नदरई गांव से नदी जल का छठवां एवं इसी ग्राम की कांशीराम कॉलोनी के सरकारी हैंडपंप से भूमि जल का नमूना उठाया गया.

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फर्रुखाबाद से कन्नौज मार्ग पर स्थित खुदाईगंज ग्राम से काली नदी का सैंपल तथा इसी ग्राम के निजी हैंडपंप से भूमि जल का सातवां सैंपल लिया गया. परीक्षण के लिए अंतिम नदी जल सैंपल कन्नौज-हरदोई मार्ग पर मेहंदीगंज घाट से लिया गया तथा साथ ही गंगागंज गांव के सरकारी हैंडपंप से भूजल परीक्षण के लिए लिया गया.

परीक्षण के परिणाम –

इन सैंपल्स में शोधकर्ताओं को भारी मात्रा में मेटल के साथ ही लेड व घुलनशील ठोस व आयरन मिला. राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के अनुसार,  मेटल मानव शरीर के लिए अत्याधिक हानिकारक होता है और यह कैंसर आदि गंभीर रोगों को भी जन्म देता है. ऐसे में ग्राउंडवाटर एवं नदी जल में व्यापक मात्रा में मेटल की उपस्थिति वास्तव में चिन्ता का सबब है.

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रमन त्यागी के अनुसार,

रिसर्च में मुजफ्फरनगर, बुलन्दनगर और अलीगढ़ जिले के पानी में लेड की उपस्थित अत्याधिक मात्रा में देखने को मिली. मुजफ्फरनगर के अंतवाडा गांव के हैंडपंप के पानी में 0.21 मिग्रा प्रति लीटर देखने को मिली, जो कि अनुमत्य सीमा से 21 गुना अधिक है. इसी प्रकार बुलन्दशहर के रामपुरा गांव के हैंडपंप के पानी में लेड की मात्रा 0.35 मिली प्रतिलीटर पायी गई, जो कि अनुमत्य सीमा से 35 गुना अधिक है, वहीं इस गांव के ग्राउंडवाटर में टीडीएस की अनुमत्य सीमा 500 मिग्रा है, जब कि असल में यह 1760 मिग्रा है. इसी प्रकार हापुड़, मेरठ व कन्नौज जिलों के ग्राउंडवाटर में टीडीएस की मात्रा क्रमशः 828, 826 व 824 मिग्रा प्रति लीटर है. निदेशक रमन त्यागी के अनुसार इसी प्रकार कई गांवों के ग्राउंडवाटर में आयरन की मात्रा भी अनुमत्य सीमा से कहीं ज्यादा है. बुलन्दशहर, अलीगढ़, कासगंज और कन्नौज के पांच गांवों के ग्राउंडवाटर में आयरन की मात्रा 0.50, 0.85, 0.54, 0.46, 0.32 मिग्रा प्रतिलीटर पायी गई.

वहीँ गांवों के नलों से पेयजल के स्थान अमोनिया, फ्लोराइड, सिल्वर, सलफाइड, लेड व आयरन जैसे हानिकारक तत्वों का प्रवाह होना ग्रामीणों के लिए घातक और जानलेवा बनता जा रहा है. वास्तव में नदी किनारे बसे ग्रामों के लोग खतरनाक बीमारियों की चपेट में आकर जान गंवा रहे हैं, इन इलाकों में कैंसर, फेफड़ों के रोग, हृदय रोग, किडनी, पेट और विभिन्न संक्रामक रोगों से जूझ रहे हैं. इन भयंकर रोगों के चलते बहुत से ग्रामीण त्रस्त हैं. मुज्जफरनगर जनपद के अंतर्गत  विशेष रूप से रतनपुरी, मोरकुक्का, डाबल, समौली, भनवाड़ा आदि ग्राम अधिक प्रभावित हैं, जहाँ कैंसर जैसे गंभीर रोग के चलते बहुत से ग्रामीणों की मृत्यु हो चुकी है और जन-जीवन, वन्य जीवन इस प्रदूषण से बुरी तरह त्रस्त है.

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नदी संरक्षण की दिशा में किये गए अथक प्रयास –

काली नदी संरक्षण की दिशा में पिछले 18-20 वर्षों से निरंतर विभिन्न संस्थाओं, पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि के द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं. 2015 के बाद से ही शोध के बाद संगृहीत किये गए सैंपलों के आधार पर जल में प्रदूषण की पुष्टि होने के उपरांत से नीर फाउंडेशन के निदेशक रमन त्यागी इस विषय पर गंभीरता से कार्य कर रहे हैं.

नदी को लेकर जागरूकता अभियान की पहल करते हुए उन्होंने ग्रामवासियों से बातचीत कर समस्याओं की गहराई को जानने का प्रयास किया तथा पूर्वी काली के संरक्षण को लेकर निरंतर प्रयास भी किये. साथ ही वाटर कलेक्टिव संस्था के तत्वावधान में डाबल और मोरकुका ग्राम में वाटर फ़िल्टर भी ग्रामवासियों के मध्य बांटे गए थे. नीर फाउंडेशन द्वारा काली नदी प्रदूषण पर डाक्यूमेंट्री बनाकर डब्लूएचओ को भी भेजी जा चुकी है.

मोरकुक्का ग्राम में नदी प्रदूषण के चलते विभिन्न रोगों के शिकार हो रहे ग्रामवासियों को पी. एच. डी. चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इण्डस्ट्रीज, नई दिल्ली द्वारा सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत गांव में स्वास्थ्य चिकित्सा शिविर का आयोजन भी किया जा चुका है. इसमें 245  मरीजों की जांच तथा सभी को नि:शुल्क दवाइयाँ भी वितरित की जा चुकी हैं. 

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नदी के बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए अब ग्रामवासी इस ओर गंभीर होने लगे हैं, उन्होंने स्थानीय प्रशासन से प्रदूषण को रोकने की मांग करते हुए प्रदूषण फैला रहे कारखानों पर सख्त कार्यवाही करने की भी बात रखी है. हाल ही में हुए “काली नदी सेवा” अभियान में भी जनभागीदारी देखी गयी थी और यदि इस तरह के अभियान प्रशासन और जनता की सहभागीदारी में चले तो अभी भी नदियों की दयनीय अवस्था में सुधार किया जा सकता है.

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