
एक बार एक राज्य के प्रधान आमत्य का आकस्मिक निधन हो गया. राज्य में कई उनसे जूनियर थे, जो अपने आपको प्रधान आमत्य का दर्जा देने के लिए राजा पर दबाव बनाने हेतु तरह-तरह के हथकण्डे अपनाने लगे, तो कुछ बहुमत के नाम पर राज्य के अन्य प्रधान पदों पर आसीन लोगों से सिफारिश कराने लगे.
राजा ने कहा कि हम जनता से ही इस पद को भरेंगे, वह भी चुनाव के माध्यम से ही भरेंगे. राज्य में डुगडुगी व मुनादी करा दी गई कि अमुख तिथि पर राज्य के प्रधान आमत्य पद पर चुनाव होगा जो अपने आपको इस योग्य समझे वह राजा के दरबार में आये व अपने को साबित करे. राज्य के कई लोग जो अपने आपको इस योग्य होने का दावा कर रहे थे, राजा के दरबार को जाने लगे.
इधर राजा ने अपना भेष एक गरीब किसान के रूप में बदलकर एक बैलगाड़ी को उसी रास्ते में एक खड्डे में फंसा दिया, जिस रास्ते से होकर स्वकथित योग्य लोग राजा के दरबार में जा रहे थे. भेष बदले राजा ने वहाँ से जाने वाले लोगों से गुहार लगाई कि भैया जरा हाथ लगा दो तो यह गाड़ी निकल जायेगी. किसी ने कहा कि तुम नहीं जानते हो मैं प्रधान आमत्य पद पर चुना जाऊँगा और तुम मुझसे गाड़ी निकलवाने की बात कहते हो मैं चुनाव होने के बाद देखेंगा कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे गाड़ी निकलवाने की तो किसी ने अपने कपड़े खराब होने की बात कही.
लगभग दिन के आधे पहर वह राजा गाड़ी के पास खड़ा रहा और किसी ने हाथ नहीं लगाया. आधे पहर के बाद एक साधारण वेष-भूषा का व्यक्ति वहाँ से उसी पद हेतु चुनाव की प्रत्याश में जा रहा था. बैलगाड़ी वाले के रूप में राजा ने उससे भी वही बात कही. उस व्यक्ति ने सहज ही उनके प्रस्ताव को स्वीकार किया और गाड़ी में सहारा देने लगा तो राजा ने उसे याद दिलाते हुए कहा कि- ''भइया आप कही जा रहे थे तो आपको यदि जल्दी हो तो जाओ.” उसने कहा कि नहीं बाबा जल्दी तो थी, लेकिन मैं भी एक सामाजिक प्राणी हैं और आपको इस हालत में इस भीषण गर्मी, भरी दोपहर में छोड़ कर जाने का मन नहीं करता है. भेष बदले राजा ने पुनः उसे उसके कपडे खराब हो जाने की बात याद दिलाई तो उसने कहा कि कपडों से मोहब्बत नहीं है मुझे, मैं तो काम से प्यार करता हूँ.
गाड़ी निकल जाने के बाद राजा ने कहा कि आपको हमने बहुत परेशान कर दिया अब आपका यदि प्रधान आमत्य पर चुनाव नहीं हुआ तो....... उसने कहा कि कोई बात नहीं बाबा, आदमी को जरूरी नहीं कि वह प्रधान आमत्य पद पर रहते हुए ही कार्य करे, कार्य करने की कोई सीमा नहीं होती कोई बन्धन नहीं होता कार्य तो कार्य है. आदमी को किसी पद विशेष का काई लालच नहीं होना चाहिए. भेष बदले राजा ने अपना परिचय दिया और उस युवक को प्रधान आमत्य पद पर चुने जाने की बात कही, उसे उसके अच्छी सोच व सामाजिक होने का फल मिल चुका था.
दोस्तों हमारे बीच में जो व्यक्ति इस प्रकार का आचरण करें, उसे ही आप अपने साथी बनाये व साथ रखें. जिसे अपने पद का घमंड हो और उस पद पर रहते हुए घमंड के वशीभूत रहकर डराये, धमकाये तो वह आपका कार्य भी नहीं करने लायक होगा. समाज में आज भी बहुत से व्यक्ति ऐसे हैं, जिन्हें समाज में देना आता है, लेना नहीं..वे समाज में एक मिसाल के तौर पर आज भी हैं. आप किसी के कहने पर नहीं आप स्वयं अपने बीच उस व्यक्ति को खोज निकालिए आप विवेकी है और आपको थोडा विवक से कार्य करना है, जैसे उस राजा ने किया.
आप भी किसी राजा से कम नहीं हैं. आज के नेताओं की भाषा बदली हुई है वह कहते हैं. कि- "अमुख काम हम करा देगे" करेंगे नहीं. आज समाज को उसी नेता की जरूरत है जो कहे नहीं करे. आज कल देश में सफाई अभियान चल रहा है, वह भी सिर्फ दिखावे के लिए. यदि सही मायने में हर नेता अपनी ओर से झाडू उठाकर प्रति दिन सिर्फ अपने घर/बंगले व दफ्तर की सफाई का काम करे और ऐसा करने के लिए वह अपने अनुयाइयों को भी कहे तो देश में कही भी गंदगी नजर नहीं आयेगी.
आज हमारे जनप्रतिनिधि यानि तथाकथित हमारे नेता उर्फ जनसेवक सिर्फ चुनाव के समय ही नजर आते हैं. चुनाव के बाद वे घमण्ड से चूर लाल बत्ती व ढेर सारा अमला यानि चाटुकारों की फौज लेकर चलते हैं. वे फिर जनसेवक कम आतताई ज्यादा नजर आते हैं. उनके मिलने के सवाल पर या तो वे दिल्ली में या फिर लखनऊ में होने का राग उनके चमचों द्वारा होना बताया जाता है वे कभी अपने क्षेत्र में नहीं दिखई देते हैं.
अब तो और भी नहीं दिखई देगें चूंकि अब उनके चमचे बतायेगें कि वे अपने घर यानि जहां से वे आये हैं, जैसे कोई इलाहाबाद से तो कोई बम्बई से हमारा प्रतिनिधित्व करने के नाम से कुछ पार्टियों द्वारा सरकार की कुर्सी के लालच में क्षेत्रीय नेता को दरकिनार कर पैरासूट नेता के रूप में उतारे गये हैं. अब हमारे जनप्रतिनिधि सिर्फ चुनाव के समय ही दिखाई देगे. अगली बार कोई ओर के साथ.........खैर यह तो बात हुई उनके क्षेत्र में रहने या न रहने की. हम तो आपको एक कहानी ही बता रहे थे. परन्तु सोचना जरूर.....
धन्यवाद सहित
जय हिन्द जय भारत
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Dr. Dharmendra Singh Katiyar 51
एक बार एक राज्य के प्रधान आमत्य का आकस्मिक निधन हो गया. राज्य में कई उनसे जूनियर थे, जो अपने आपको प्रधान आमत्य का दर्जा देने के लिए राजा पर दबाव बनाने हेतु तरह-तरह के हथकण्डे अपनाने लगे, तो कुछ बहुमत के नाम पर राज्य के अन्य प्रधान पदों पर आसीन लोगों से सिफारिश कराने लगे.
राजा ने कहा कि हम जनता से ही इस पद को भरेंगे, वह भी चुनाव के माध्यम से ही भरेंगे. राज्य में डुगडुगी व मुनादी करा दी गई कि अमुख तिथि पर राज्य के प्रधान आमत्य पद पर चुनाव होगा जो अपने आपको इस योग्य समझे वह राजा के दरबार में आये व अपने को साबित करे. राज्य के कई लोग जो अपने आपको इस योग्य होने का दावा कर रहे थे, राजा के दरबार को जाने लगे.
इधर राजा ने अपना भेष एक गरीब किसान के रूप में बदलकर एक बैलगाड़ी को उसी रास्ते में एक खड्डे में फंसा दिया, जिस रास्ते से होकर स्वकथित योग्य लोग राजा के दरबार में जा रहे थे. भेष बदले राजा ने वहाँ से जाने वाले लोगों से गुहार लगाई कि भैया जरा हाथ लगा दो तो यह गाड़ी निकल जायेगी. किसी ने कहा कि तुम नहीं जानते हो मैं प्रधान आमत्य पद पर चुना जाऊँगा और तुम मुझसे गाड़ी निकलवाने की बात कहते हो मैं चुनाव होने के बाद देखेंगा कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे गाड़ी निकलवाने की तो किसी ने अपने कपड़े खराब होने की बात कही.
लगभग दिन के आधे पहर वह राजा गाड़ी के पास खड़ा रहा और किसी ने हाथ नहीं लगाया. आधे पहर के बाद एक साधारण वेष-भूषा का व्यक्ति वहाँ से उसी पद हेतु चुनाव की प्रत्याश में जा रहा था. बैलगाड़ी वाले के रूप में राजा ने उससे भी वही बात कही. उस व्यक्ति ने सहज ही उनके प्रस्ताव को स्वीकार किया और गाड़ी में सहारा देने लगा तो राजा ने उसे याद दिलाते हुए कहा कि- ''भइया आप कही जा रहे थे तो आपको यदि जल्दी हो तो जाओ.” उसने कहा कि नहीं बाबा जल्दी तो थी, लेकिन मैं भी एक सामाजिक प्राणी हैं और आपको इस हालत में इस भीषण गर्मी, भरी दोपहर में छोड़ कर जाने का मन नहीं करता है. भेष बदले राजा ने पुनः उसे उसके कपडे खराब हो जाने की बात याद दिलाई तो उसने कहा कि कपडों से मोहब्बत नहीं है मुझे, मैं तो काम से प्यार करता हूँ.
गाड़ी निकल जाने के बाद राजा ने कहा कि आपको हमने बहुत परेशान कर दिया अब आपका यदि प्रधान आमत्य पर चुनाव नहीं हुआ तो....... उसने कहा कि कोई बात नहीं बाबा, आदमी को जरूरी नहीं कि वह प्रधान आमत्य पद पर रहते हुए ही कार्य करे, कार्य करने की कोई सीमा नहीं होती कोई बन्धन नहीं होता कार्य तो कार्य है. आदमी को किसी पद विशेष का काई लालच नहीं होना चाहिए. भेष बदले राजा ने अपना परिचय दिया और उस युवक को प्रधान आमत्य पद पर चुने जाने की बात कही, उसे उसके अच्छी सोच व सामाजिक होने का फल मिल चुका था.
दोस्तों हमारे बीच में जो व्यक्ति इस प्रकार का आचरण करें, उसे ही आप अपने साथी बनाये व साथ रखें. जिसे अपने पद का घमंड हो और उस पद पर रहते हुए घमंड के वशीभूत रहकर डराये, धमकाये तो वह आपका कार्य भी नहीं करने लायक होगा. समाज में आज भी बहुत से व्यक्ति ऐसे हैं, जिन्हें समाज में देना आता है, लेना नहीं..वे समाज में एक मिसाल के तौर पर आज भी हैं. आप किसी के कहने पर नहीं आप स्वयं अपने बीच उस व्यक्ति को खोज निकालिए आप विवेकी है और आपको थोडा विवक से कार्य करना है, जैसे उस राजा ने किया.
आज हमारे जनप्रतिनिधि यानि तथाकथित हमारे नेता उर्फ जनसेवक सिर्फ चुनाव के समय ही नजर आते हैं. चुनाव के बाद वे घमण्ड से चूर लाल बत्ती व ढेर सारा अमला यानि चाटुकारों की फौज लेकर चलते हैं. वे फिर जनसेवक कम आतताई ज्यादा नजर आते हैं. उनके मिलने के सवाल पर या तो वे दिल्ली में या फिर लखनऊ में होने का राग उनके चमचों द्वारा होना बताया जाता है वे कभी अपने क्षेत्र में नहीं दिखई देते हैं.
अब तो और भी नहीं दिखई देगें चूंकि अब उनके चमचे बतायेगें कि वे अपने घर यानि जहां से वे आये हैं, जैसे कोई इलाहाबाद से तो कोई बम्बई से हमारा प्रतिनिधित्व करने के नाम से कुछ पार्टियों द्वारा सरकार की कुर्सी के लालच में क्षेत्रीय नेता को दरकिनार कर पैरासूट नेता के रूप में उतारे गये हैं. अब हमारे जनप्रतिनिधि सिर्फ चुनाव के समय ही दिखाई देगे. अगली बार कोई ओर के साथ.........खैर यह तो बात हुई उनके क्षेत्र में रहने या न रहने की. हम तो आपको एक कहानी ही बता रहे थे. परन्तु सोचना जरूर.....
धन्यवाद सहित
जय हिन्द जय भारत