घर, आँगन,परिवार
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समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
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By
Chandra Bhushan Tiwari Contributors
Amit Kumar Yadav 44
घर, आँगन,परिवार घर है मेरा छोटा-सा, ये धरती मेरा अंगना है|
प्रेम,विश्वास, सम्मान से, सबको यहाँ रहना है|
बाबा- दादी, माता- पिता, चाचा- चची भी रहते है|
एक दूसरे का सदा, उपकार करते है|
दिल में सबके लिए शुभ भावना, यही सबका गहना है|
प्रेम, विश्वास, सम्मान से सबको यहाँ रहना हे|
सभी स्वस्थ रहे धरती पर, यही रहती है सबकी कामना
सभी समझदार हो जग में, सबकी यही भावना|
सब सुख से रहे नित यहाँ, यही सबका चाहना है|
प्रेम, विश्वास, सम्मान से सबको यहाँ रहना हे|
जल, जंगल, जमींन, जानवर, यहाँ जन- जन के पोषक है|
न समझदार मानव यहाँ, होते इनके शोषक है|
झील, झरने, नाँद, नदियां, का शुभ होता नित बहना है|
प्रेम, विश्वास, सम्मान से, सबको यहाँ रहना हे|
बच्चे बूढ़े इस धरती के, सदा होते आभूषण है|
इनके रहने से मिट जाता विचारों का प्रदूषण है|
इनका रहना ही शुभ होता यहाँ, यही सबका कहना है
प्रेम, विश्वास, सम्मान से सबको यहाँ रहना हे| अगर जल, जंगल, जानवर, जमींन व जन- जन के प्रति पोषण संरक्षण का भाव विचार कार्य व व्यवहार होने लगे तो समझिये की मै मनुष्यता की तरफ बढ़ रहा हूँ|