
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2019 (Global Liveability Index 2019) के ताजातरीन अध्ययन के अनुसार भारत के दो प्रमुख शहरों दिल्ली और मुंबई की रैंकिंग पहले की तुलना में बेहद नीचे गिर गयी. विश्व के रहने लायक देशों की श्रृंखला में जहां दिल्ली का स्थान 112 से 118वें पायदान पर खिसक गया तो वहीँ महानगरी मुंबई भी इस सूचकांक में दो स्थान नीचे गिरते हुए 117 से 119 पर आ पहुंची. आंकड़ा भले ही महज कागज़ी हो पर वास्तविकता यही है कि बढ़ता प्रदूषण, गड़बड़ाता पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक दबाव और अपराध ग्राफ में लगातार वृद्धि यह सब मिलकर हमारे भारतीय शहरों को बदतर बना रहा है...पर इन सबके मूल में है "तेजी से बढ़ता आबादी का बोझ"..जिसके कारण आज मनुष्य, जीव-जंतु, जंगल, नदियां, वन-उपवन सभी के जीवन पर संकट मंडराने लगा है.
आइये जानते हैं कैसे आबादी का बढ़ता यह आंकड़ा हमें प्रभावित कर रहा है और वो कौन से कारण हैं, जिनके चलते जनसंख्या के इस बोझ से हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा रही है.
शहरों का बेहतरतीब विकास रोकने के लिए रोजगार व मूलभूत सुविधाओं को दूर-दराज छोटे शहरों, कस्बों व गांवों में भी पहुंचाना होगा. गांव में आजीविका के साधन होंगे तो कोई शहर क्यों आएगा?
आजादी के 70 साल बाद भी भारत एक ऐसा शहर विकसित नहीं कर पाया है जो कि जीवन जीने के अंतरराष्ट्रीय मानकों या भारतीय मूल्यों पर खरा उतरता हो. भारत सरकार द्वारा शहरों के आधारभूत ढ़ाचे को विकसित करने के लिए प्रारंभ की गई. स्मार्ट सिटी योजना के प्रथम चरण में तय प्रक्रिया के तहत चयनित किए गए सौ शहरों में अभी बहुत बड़े बदलाव देखने को नहीं मिल रहे हैं. स्मार्ट सिटी योजना में बिजली, पानी, स्वच्छता, कचरा प्रबंधन, पब्लिक परिवहन, पर्यावरणीय विकास, सुरक्षा, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे वही मानक तय किए गए हैं जिनके आधार पर रहने लायक शहरों की अंतरराष्ट्रीय रैकिंग तैयार की जाती है. भारत के शहरों में कुल आबादी की 31 प्रतिशत जनसंख्या रहती है.
कोई डूब रहा है, कोई सूख रहा है...ऐसे में तेजी से बढ़ता जनसंख्या ग्राफ क्या नई मुसीबतें उत्पन्न नहीं करेगा?
2030 तक शहरी आबादी के 40 प्रतिशत होने का अनुमान है. ऐसे में जब अभी बेहतरतीब व्यवस्थाओं से चरमरा रहे शहर संभल नहीं पा रहे हैं तो जनसंख्या का अधिक बोझ आखिर कैसे सह पाएंगे? यहां यह विषय भी विचारणीय है कि जब शहरों पर क्षमता से अधिक जनसंख्या का दबाव बढ़ेगा तो वहां की आधारभूत आवश्यकताएं कैसे पूरी हो पाएंगी? क्योंकि दिल्ली के पास वर्तमान में अपनी आबादी की प्यास बुझाने के लिए भी पानी मौजूद नहीं है. मायानगरी मुंबई जैसा शहर प्रतिवर्ष बरसात में थम सा जाता है क्योंकि वहां सीवेज के सही निस्तारण की व्यवस्था ही नहीं है. दिल्ली जहां सर्दियों के मौसम में हांफने लगती है. यहां सांस लेना भी दूभर रहता है, लेकिन जनसंख्या का दबाव यहां बढ़ता जा रहा है. देश के चार बड़े शहरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई व बेंगलुरु की करीब 35 प्रतिशत आबादी झुग्गियों में रहने को मजबूर हैं.
बदतर दशा में है गांव और गांधी का देश
दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को प्रदूषण के मामले में राहत देने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एनवायरमेंट पॉल्यूशन (प्रिवेंशन व कंट्रोल) अथॉरिटी के भरपूर प्रयासों के बावजूद बेहतर नतीजे देखने को नहीं मिल रहे हैं. भारत को गांव और गांधी का देश का जाता है. गांवों से बेहतर जीवन की तलाश में युवा वर्ग तेजी से शहरों की ओर अपना रुख कर रहा है. गांव लगातार खाली हो रहे हैं और शहरों पर दबाव बढ़ रहा है. ऐसे में अगर शहरों को स्वच्छ व सुरक्षित जीवन जीने के हिसाब से नहीं विकसित किया गया तो भारत की बड़ी आबादी बीमारी व बेकारी की चपेट में होगी.
प्रेरणा लेनी होगी इन विदेशी शहरों से
इकोनॉमिक इंटेलीजेंस यूनिट की रहने लायक शहरों की ताजा रिपोर्ट में 100 में से 99.1 अंक प्राप्त करके पहले स्थान पर पहुंच विएना शहर से सीख लेकर हमें अपने शहरों को विकसित करना होगा. उच्च दस शहरों की सूची में ऑस्ट्रेलिया के तीन मेलबर्न, सिडनी व एडिलेड हैं. सिडनी शहर अपने सस्टेनेबल सिडनी-2030 कार्यक्रम के चलते पांचवे स्थान से छलांग लगाकर तीसरे स्थान पर पहुंचा है. भारत को स्मार्ट सिटी योजना में भी इसका अनुसरण करना चाहिए.
हम दो प्रकार से अपना जीवन जी सकते हैं. एक तो गांधी दर्शन से और दूसरा विकसित देशों के साथ कंधा मिलाकर शहरों में गांधी दर्शन के सभी मानक पूर्ण करना संभव ही नहीं है लेकिन अपने शहरों को हम विकसित देशों के शहरों की कतार में लाकर नागरिकों को बेहतर जीवन जीने का अवसर दे सकते हैं. इसके लिए हमें समयबद्ध तरीके से कार्य करने की आवश्यकता है तथा व्यवस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन भी जरूरी है.
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Raman Kant 39
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2019 (Global Liveability Index 2019) के ताजातरीन अध्ययन के अनुसार भारत के दो प्रमुख शहरों दिल्ली और मुंबई की रैंकिंग पहले की तुलना में बेहद नीचे गिर गयी. विश्व के रहने लायक देशों की श्रृंखला में जहां दिल्ली का स्थान 112 से 118वें पायदान पर खिसक गया तो वहीँ महानगरी मुंबई भी इस सूचकांक में दो स्थान नीचे गिरते हुए 117 से 119 पर आ पहुंची. आंकड़ा भले ही महज कागज़ी हो पर वास्तविकता यही है कि बढ़ता प्रदूषण, गड़बड़ाता पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक दबाव और अपराध ग्राफ में लगातार वृद्धि यह सब मिलकर हमारे भारतीय शहरों को बदतर बना रहा है...पर इन सबके मूल में है "तेजी से बढ़ता आबादी का बोझ"..जिसके कारण आज मनुष्य, जीव-जंतु, जंगल, नदियां, वन-उपवन सभी के जीवन पर संकट मंडराने लगा है.
शहरों का बेहतरतीब विकास रोकने के लिए रोजगार व मूलभूत सुविधाओं को दूर-दराज छोटे शहरों, कस्बों व गांवों में भी पहुंचाना होगा. गांव में आजीविका के साधन होंगे तो कोई शहर क्यों आएगा?
आजादी के 70 साल बाद भी भारत एक ऐसा शहर विकसित नहीं कर पाया है जो कि जीवन जीने के अंतरराष्ट्रीय मानकों या भारतीय मूल्यों पर खरा उतरता हो. भारत सरकार द्वारा शहरों के आधारभूत ढ़ाचे को विकसित करने के लिए प्रारंभ की गई. स्मार्ट सिटी योजना के प्रथम चरण में तय प्रक्रिया के तहत चयनित किए गए सौ शहरों में अभी बहुत बड़े बदलाव देखने को नहीं मिल रहे हैं. स्मार्ट सिटी योजना में बिजली, पानी, स्वच्छता, कचरा प्रबंधन, पब्लिक परिवहन, पर्यावरणीय विकास, सुरक्षा, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे वही मानक तय किए गए हैं जिनके आधार पर रहने लायक शहरों की अंतरराष्ट्रीय रैकिंग तैयार की जाती है. भारत के शहरों में कुल आबादी की 31 प्रतिशत जनसंख्या रहती है.
कोई डूब रहा है, कोई सूख रहा है...ऐसे में तेजी से बढ़ता जनसंख्या ग्राफ क्या नई मुसीबतें उत्पन्न नहीं करेगा?
2030 तक शहरी आबादी के 40 प्रतिशत होने का अनुमान है. ऐसे में जब अभी बेहतरतीब व्यवस्थाओं से चरमरा रहे शहर संभल नहीं पा रहे हैं तो जनसंख्या का अधिक बोझ आखिर कैसे सह पाएंगे? यहां यह विषय भी विचारणीय है कि जब शहरों पर क्षमता से अधिक जनसंख्या का दबाव बढ़ेगा तो वहां की आधारभूत आवश्यकताएं कैसे पूरी हो पाएंगी? क्योंकि दिल्ली के पास वर्तमान में अपनी आबादी की प्यास बुझाने के लिए भी पानी मौजूद नहीं है. मायानगरी मुंबई जैसा शहर प्रतिवर्ष बरसात में थम सा जाता है क्योंकि वहां सीवेज के सही निस्तारण की व्यवस्था ही नहीं है. दिल्ली जहां सर्दियों के मौसम में हांफने लगती है. यहां सांस लेना भी दूभर रहता है, लेकिन जनसंख्या का दबाव यहां बढ़ता जा रहा है. देश के चार बड़े शहरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई व बेंगलुरु की करीब 35 प्रतिशत आबादी झुग्गियों में रहने को मजबूर हैं.
बदतर दशा में है गांव और गांधी का देश
दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को प्रदूषण के मामले में राहत देने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एनवायरमेंट पॉल्यूशन (प्रिवेंशन व कंट्रोल) अथॉरिटी के भरपूर प्रयासों के बावजूद बेहतर नतीजे देखने को नहीं मिल रहे हैं. भारत को गांव और गांधी का देश का जाता है. गांवों से बेहतर जीवन की तलाश में युवा वर्ग तेजी से शहरों की ओर अपना रुख कर रहा है. गांव लगातार खाली हो रहे हैं और शहरों पर दबाव बढ़ रहा है. ऐसे में अगर शहरों को स्वच्छ व सुरक्षित जीवन जीने के हिसाब से नहीं विकसित किया गया तो भारत की बड़ी आबादी बीमारी व बेकारी की चपेट में होगी.
प्रेरणा लेनी होगी इन विदेशी शहरों से
इकोनॉमिक इंटेलीजेंस यूनिट की रहने लायक शहरों की ताजा रिपोर्ट में 100 में से 99.1 अंक प्राप्त करके पहले स्थान पर पहुंच विएना शहर से सीख लेकर हमें अपने शहरों को विकसित करना होगा. उच्च दस शहरों की सूची में ऑस्ट्रेलिया के तीन मेलबर्न, सिडनी व एडिलेड हैं. सिडनी शहर अपने सस्टेनेबल सिडनी-2030 कार्यक्रम के चलते पांचवे स्थान से छलांग लगाकर तीसरे स्थान पर पहुंचा है. भारत को स्मार्ट सिटी योजना में भी इसका अनुसरण करना चाहिए.