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सरकारी योजनाओं से दम तोड़ रही है गोमती, घट रहा है प्राकृतिक प्रवाह

Gomti River and Gomti Riverfront Lucknow - Analysis on Restoration and Development

Gomti River and Gomti Riverfront Lucknow - Analysis on Restoration and Development News and Media Coverage

ByVenkatesh Dutta Venkatesh Dutta   27

लखनऊ की लाइफलाइन मानी जाती है गोमती और साथ ही यह गंगा नदी की प्रमुख सहायक भी है, जो विगत कईं वर्षों से बेतहाशा प्रदूषण की शिकार है. नदी को अवोरल और निर्मल किये जाने की योजनाओं पर नजर डाले तो पाएंगे कि गोमती स्वच्छ तो नहीं हो पाई लेकिन इसके प्राकृतिक स्वरुप पर खतरा जरुर मंडराने लगा है.

लखनऊ की लाइफलाइन मानी जाती है गोमती और साथ ही यह गंगा नदी की प्रमुख सहायक भी है, जो विगत कईं वर्षों

पीलीभीत से निकलने के बाद गोमती अवैध अतिक्रमण, प्रदूषण, बदलते मौसम आदि समस्याओं को तो झेल ही रही है, साथ ही गोमती सेवा समाज द्वारा ली गयी हालिया तस्वीरें भी दिखाती हें कि गोमती की सहायक नदियों का प्रवाह भी कम हुआ है, जिससे नदी पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, इसके कारण ही इस वर्ष साठा धान की खेती पर भी प्रतिबंध लगाया गया है. लेकिन इससे आगे बढ़कर लखनऊ में गोमती का दम बांधों और रिवरफ्रंट के नाम पर घोटा गया है.  

गोमती नदी के प्राकृतिक स्वरुप का अध्ययन कर रहे नदी विशेषज्ञ मानते हैं कि पिछले 27 सालों में गोमती का प्रवाह (मानसून के समय) 470 क्यूसेक से घटकर मात्र 60 क्यूसेक रह गया है. बांधों में बंधी और अतिक्रमण से अस्त व्यस्त हो चुकी गोमती की व्यथा यहीं खत्म नहीं होती बल्कि इसे और अधिक व्यथित बनाने के लिए अब सिंचाई विभाग योजना बना रहा है कि नदी को निर्मल बनाने के लिए गोमती के किनारों पर दीवारें खड़ी कर पानी को एक लेवल तक किया जायेगा और गाद को नदी से बाहर किया जायेगा. 

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लखनऊ की लाइफलाइन मानी जाती है गोमती और साथ ही यह गंगा नदी की प्रमुख सहायक भी है, जो विगत कईं वर्षों

दावा भले ही गोमती को साफ़ करने का हो लेकिन पर्यावरणविद इसे कहीं से भी उचित नहीं मानते हैं. नदी विशेषज्ञ डॉ वेंकटेश दत्ता, जो बीते कईं वर्षों से गोमती सहित देश की अन्य नदियों पर अध्ययन कर रहे हैं, इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि, 

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"नदियों का प्रवाह कभी भी सीमित नहीं होता है, लेकिन कैनाल का डिस्चार्ज हमेशा फिक्स होता है, सिंचाई विभाग का आगामी प्रोजेक्ट गोमती को कैनाल में बदल देगा. किनारों पर दीवार बनने से गोमती का प्रवाह फिक्स हो जायेगा, जिससे नदी ओर अधिक प्रदूषित होगी. केवल भीतरी तौर पर गोमती साफ़ होगी लेकिन शहरी कचरा ऐसे ही नदी के हवाले होता रहेगा, जो नदी के प्राकृतिक स्वरुप के लिए घातक है."

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नदी विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों और प्रकृति प्रेमियों का यही मानना है कि नदी को यदि बचाए रखना है तो उसके प्राकृतिक फ्लो को बरक़रार रखा जाना चाहिए. गौरतलब है कि गोमती का प्रवाह अतिक्रमण, प्रदूषण आदि समस्याओं के चलते लगातार कम हुआ है. गोमती के फ्लड प्लेन्स में किसानों को प्रशासन द्वारा जमीनें बेचीं गयी हैं और वर्तमान में बड़ी आबादी नदी के बाढ़ क्षेत्र पर कब्जा किया हुए है. 

गोमती में घुलित ऑक्सीजन का स्तर भी निरन्तर घटा है, जो नदी की बदतर हालत बता रहा है. आंकड़ों के अनुसार नदी जल में घुलित ऑक्सीजन छह एमजी प्रति लीटर से कम नहीं होना चाहिए, लेकिन भैंसा कुंड पर यही स्तर 2.8 तक, गोमती बैराज पर 3 और मोहन मीकिन्स में 4.6 एमजी तक रह गया है, बाकि स्थानों पर भी हालात अधिक ठीक नहीं है. इसका मुख्य कारण गोमती के फ्लो में कमी आना और इसमें नालों का गिरना है. बता दें की ऑक्सीजन में कमी आने से जलीय जीवन को काफी नुकसान होता है. 

लखनऊ की लाइफलाइन मानी जाती है गोमती और साथ ही यह गंगा नदी की प्रमुख सहायक भी है, जो विगत कईं वर्षों

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