सवालों के घेरे में गोमती रिवर फ्रंट

बैलेटबॉक्सइंडिया नदियों को लेकर, पर्यावरण को लेकर हमेशा से संजीदा रहा है. हम प्रकृति के संरक्षण का पुरजोर समर्थन करते रहे हैं. हम प्रकृति द्वारा निर्मित उसके मूल संरचनाओं के छेड़छाड़ के विरोध में हैं वह भी तब जब कि उसका सही ढंग से आंकलन ना किया गया हो. हम अपनी इसी कोशिश के तहत गोमती नदी और गोमती रिवर फ्रंट को लेकर वर्ष 2015 से ही काम करते रहे हैं. हमने लखनऊ में गोमती को थेम्स बना देने वाले दिवास्वप्न को लेकर भी आवाज उठाई थी. हमने साबरमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर गोमती रिवर फ्रंट बनाए जाने को लेकर अपनी कुछ चिंताएं जाहिर की थी, मगर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट हमारी सारी चिंताओं को नकारते हुए अपनी वेग में बढ़ता चला गया और आज नए सरकार के आने के बाद गोमती रिवर फ्रंट को लेकर कई सारे प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं.
नहीं मिला आरटीआई का जवाब

हमने गोमती रिवर फ्रंट पर अपने जारी रिसर्च के दौरान सूचना के अधिकार के तहत कई सारे जवाब मांगे इनमें से कुछ का वर्ष भर से अधिक समय होने के बाद भी जवाब नहीं आया तो कुछ एक का जवाब टालने वाले रवैया के साथ हमें मिला.
क्या गोमती के लिए रिवर फ्रंट बनाया जाना ही था सबसे ज्यादा जरूरी
यह अचंभित ही करता है कि गोमती रिवर फ्रंट बनाने से पहले हमने इस के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में आंकलन नहीं किया. क्या यह अच्छा नहीं होता कि हम रिवर फ्रंट बनाने की जगह गोमती में बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर काम कर पाते. आज गोमती में विभिन्न नालों के द्वारा गंदा पानी गिराया जाता है क्या हमें पहले इस पर नहीं सोचना चाहिए था? लगातार गोमती के विषैले होने के कारण इसके जलचर मर रहे हैं, इसके पानी का उपयोग करने से लोगों को घातक बीमारियां हो रही हैं मगर हम इन पर ध्यान देने की जगह रिवर फ्रंट बनाकर करदाताओं के करोड़ों रुपए को यूंही लुटा रहे हैं.
बैलेटबॉक्सइंडिया ने जांच दल से की मुलाकात
अपने इसी प्रयास के तहत और गोमती पर बनाए जा रहे रिवर फ्रंट की चिंताओं पर हमने 8 मई 2017 को इसके जांच दल से मुलाकात की. बैलेटबॉक्सइंडिया के प्रतिनिधि श्री राकेश प्रसाद ने आरटीआई से प्राप्त जवाब की कॉपी न्यायमूर्ति आलोक कुमार सिंह को इस मुलाकात के दौरान सौंपी. ज्ञात हो किस सिंचाई विभाग के पास इस प्रोजेक्ट को लेकर अप्रैल, 2016 तक कोई भी पर्यावरण की मंजूरी नहीं थी और ना ही इस पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन पूरा किया गया था. आपको यहां यह भी जानना अति आवश्यक है कि तब तक गोमती रिवर फ्रंट पर किए जा रहे कार्यों का अधिकांश कार्य पूर्ण किया जा चुका था.
सार्थक रही न्यायमूर्ति आलोक कुमार सिंह से मुलाकात, बैलेटबॉक्सइंडिया के कार्य को सराहा
न्यायमूर्ति आलोक कुमार सिंह से मुलाकात करने में हमें भले ही लंबा इंतजार करना पड़ा हो मगर उन्होंने पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव और हमारी चिंताओं को बड़े ही धैर्यपूर्वक सुना. साथ ही उन्होंने हमें यह विश्वास दिलाया कि हमारे द्वारा सौंपी गई आरटीआई के जवाब की कॉपी को वह संज्ञान में लेंगे. इसके साथ ही उन्होंने हमें यह भी आश्वासन दिया कि इस पैनल में वरिष्ठ पर्यावरण वैज्ञानिकों के साथ उन्होंने इस पर गहन शोध किया है.
इसके साथ ही हमने न्यायमूर्ति आलोक सिंह के सामने एबीपी न्यूज़ जैसे समाचार चैनलों के उस रिपोर्ट का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट का गुणगान किया था और जिसमें कहां गया था कि रिवर फ्रंट बनाने से गोमती की खूबसूरती बढ़ी है और उन्होंने इस प्रयास को सराहा जबकि पर्यावरण पर पड़ने वाले इसके प्रतिकूल प्रभाव को उन्होंने छुआ तक नहीं. इस पर न्यायमूर्ति ने कहा कि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर का विषय है और वह इस पर कुछ नहीं कर सकते.
माननीय न्यायमूर्ति ने हमारे प्रयासों की जमकर सराहना की और कहा कि यदि आप जैसे युवा लोग इस तरह के मुद्दों पर संज्ञान लेना शुरु करते हैं तो भारत मैं ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होनी ही बंद हो जाएगी. इस मुलाकात के दौरान सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता अंबुज द्विवेदी भी मौजूद थे.
नदी की चौड़ाई कर दी गई कम, कभी भी दिख सकता है नदी की विध्वंसक स्वरूप

यहां हम आपको यह बता दे गोमती रिवर फ्रंट बनाने के नाम पर करोड़ों खर्च किए जा चुके हैं. विकास और खूबसूरती के नाम पर किए जाने वाला खर्च कितना घातक हो सकता है वह आपको भी पता होना चाहिए. 2012-13 में लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी ने आईआईटी रुड़की से रिवर फ्रंट डेवलपमेंट की स्टडी करवाई कि क्या साबरमती की तर्ज पर नदी के दोनों तरफ 250 मीटर की चौड़ाई पर दीवार बनाकर सौंदर्यीकरण किया जाए तो नदी की फ्लडिंग क्षमता पर क्या असर होगा? बाढ़ की स्थिति में ब्रिज बचेंगे या बह जाएंगे? इस पूरी स्टडी का ध्यान सिर्फ नदी की चौड़ाई पर केंद्रित था. अब ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर 6.8 किलोमीटर तक नदी की चौड़ाई 250 मीटर कम कर दी जाती है तो नदी की विध्वंसक शक्ति कितनी बढ़ जाएगी इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. आज स्थिति यह है कि हमने रिवर फ्रंट के लिए नदी के मूल स्वरुप से छेड़छाड़ कर इसकी चौड़ाई को कम कर दिया है साथ ही नदियों के ऊपर कंक्रीट और सरिए का बोझा जबरदस्ती लाद दिया है, जिसका नुकसान पर्यावरण के साथ-साथ हमें भी उठाना होगा.
आज की स्थिति

अखिलेश यादव सरकार के दौरान गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट योजना में करोड़ों के घोटाले की बात सामने आई.
न्यायमूर्ति आलोक सिंह की जांच रिपोर्ट में इस योजना के तहत हुए करोड़ों के घोटाले और साथ ही नियमों की अनदेखी का खुलासा हुआ.
नई सरकार और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने 27 मार्च को रिवर फ्रंट का दौरा किया. वह वहां के कार्यों को देखकर और खर्च की गई धनराशि को लेकर काफी नाराज दिखें उन्होंने गोमती के गंदे पानी पर भी सवाल खड़े किए. इसके बाद उन्होंने गोमती रिवर फ्रंट की न्यायिक जांच के आदेश दिए और साथ ही 45 दिनों के भीतर जांच रिपोर्ट पेश करने को कहा.
घोटाले पर नियमों की अनदेखी का खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आरोपियों पर करवाई सुनिश्चित करने के लिए मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया. इसमें राजस्व परिषद के अध्यक्ष प्रवीण कुमार, प्रमुख सचिव न्याय रंगनाथ पांडेय, अपर मुख्य सचिव वित्त अनूप पांडे को इसका सदस्य बनाया गया.
सुरेश खन्ना समिति की स्टेटस रिपोर्ट सार्वजनिक तो नहीं की गई लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि इस जांच समिति को गोमती रिवर फ्रंट परियोजना में काफी घोटाले होने के सबूत मिले हैं.
खन्ना जांच समिति के आधार पर ही सिंचाई विभाग की तरफ से आठ इंजीनियरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई गई.
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने रिवर फ्रंट घोटाले की जांच सीबीआई से करवाने की सिफारिश की है.
तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव के साथ मुख्य सचिव आलोक रंजन, तत्कालीन प्रमुख सचिव वित्त राहुल भटनागर, प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल, अधिशासी अभियंता रूप सिंह यादव समेत कई बड़े नाम जांच के घेरे में हैं.
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Swarntabh Kumar 84
सवालों के घेरे में गोमती रिवर फ्रंट
बैलेटबॉक्सइंडिया नदियों को लेकर, पर्यावरण को लेकर हमेशा से संजीदा रहा है. हम प्रकृति के संरक्षण का पुरजोर समर्थन करते रहे हैं. हम प्रकृति द्वारा निर्मित उसके मूल संरचनाओं के छेड़छाड़ के विरोध में हैं वह भी तब जब कि उसका सही ढंग से आंकलन ना किया गया हो. हम अपनी इसी कोशिश के तहत गोमती नदी और गोमती रिवर फ्रंट को लेकर वर्ष 2015 से ही काम करते रहे हैं. हमने लखनऊ में गोमती को थेम्स बना देने वाले दिवास्वप्न को लेकर भी आवाज उठाई थी. हमने साबरमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर गोमती रिवर फ्रंट बनाए जाने को लेकर अपनी कुछ चिंताएं जाहिर की थी, मगर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट हमारी सारी चिंताओं को नकारते हुए अपनी वेग में बढ़ता चला गया और आज नए सरकार के आने के बाद गोमती रिवर फ्रंट को लेकर कई सारे प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं.
नहीं मिला आरटीआई का जवाब
हमने गोमती रिवर फ्रंट पर अपने जारी रिसर्च के दौरान सूचना के अधिकार के तहत कई सारे जवाब मांगे इनमें से कुछ का वर्ष भर से अधिक समय होने के बाद भी जवाब नहीं आया तो कुछ एक का जवाब टालने वाले रवैया के साथ हमें मिला.
क्या गोमती के लिए रिवर फ्रंट बनाया जाना ही था सबसे ज्यादा जरूरी
यह अचंभित ही करता है कि गोमती रिवर फ्रंट बनाने से पहले हमने इस के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में आंकलन नहीं किया. क्या यह अच्छा नहीं होता कि हम रिवर फ्रंट बनाने की जगह गोमती में बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर काम कर पाते. आज गोमती में विभिन्न नालों के द्वारा गंदा पानी गिराया जाता है क्या हमें पहले इस पर नहीं सोचना चाहिए था? लगातार गोमती के विषैले होने के कारण इसके जलचर मर रहे हैं, इसके पानी का उपयोग करने से लोगों को घातक बीमारियां हो रही हैं मगर हम इन पर ध्यान देने की जगह रिवर फ्रंट बनाकर करदाताओं के करोड़ों रुपए को यूंही लुटा रहे हैं.
बैलेटबॉक्सइंडिया ने जांच दल से की मुलाकात
अपने इसी प्रयास के तहत और गोमती पर बनाए जा रहे रिवर फ्रंट की चिंताओं पर हमने 8 मई 2017 को इसके जांच दल से मुलाकात की. बैलेटबॉक्सइंडिया के प्रतिनिधि श्री राकेश प्रसाद ने आरटीआई से प्राप्त जवाब की कॉपी न्यायमूर्ति आलोक कुमार सिंह को इस मुलाकात के दौरान सौंपी. ज्ञात हो किस सिंचाई विभाग के पास इस प्रोजेक्ट को लेकर अप्रैल, 2016 तक कोई भी पर्यावरण की मंजूरी नहीं थी और ना ही इस पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन पूरा किया गया था. आपको यहां यह भी जानना अति आवश्यक है कि तब तक गोमती रिवर फ्रंट पर किए जा रहे कार्यों का अधिकांश कार्य पूर्ण किया जा चुका था.
सार्थक रही न्यायमूर्ति आलोक कुमार सिंह से मुलाकात, बैलेटबॉक्सइंडिया के कार्य को सराहा
न्यायमूर्ति आलोक कुमार सिंह से मुलाकात करने में हमें भले ही लंबा इंतजार करना पड़ा हो मगर उन्होंने पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव और हमारी चिंताओं को बड़े ही धैर्यपूर्वक सुना. साथ ही उन्होंने हमें यह विश्वास दिलाया कि हमारे द्वारा सौंपी गई आरटीआई के जवाब की कॉपी को वह संज्ञान में लेंगे. इसके साथ ही उन्होंने हमें यह भी आश्वासन दिया कि इस पैनल में वरिष्ठ पर्यावरण वैज्ञानिकों के साथ उन्होंने इस पर गहन शोध किया है.
इसके साथ ही हमने न्यायमूर्ति आलोक सिंह के सामने एबीपी न्यूज़ जैसे समाचार चैनलों के उस रिपोर्ट का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट का गुणगान किया था और जिसमें कहां गया था कि रिवर फ्रंट बनाने से गोमती की खूबसूरती बढ़ी है और उन्होंने इस प्रयास को सराहा जबकि पर्यावरण पर पड़ने वाले इसके प्रतिकूल प्रभाव को उन्होंने छुआ तक नहीं. इस पर न्यायमूर्ति ने कहा कि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर का विषय है और वह इस पर कुछ नहीं कर सकते.
माननीय न्यायमूर्ति ने हमारे प्रयासों की जमकर सराहना की और कहा कि यदि आप जैसे युवा लोग इस तरह के मुद्दों पर संज्ञान लेना शुरु करते हैं तो भारत मैं ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होनी ही बंद हो जाएगी. इस मुलाकात के दौरान सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता अंबुज द्विवेदी भी मौजूद थे.
नदी की चौड़ाई कर दी गई कम, कभी भी दिख सकता है नदी की विध्वंसक स्वरूप
यहां हम आपको यह बता दे गोमती रिवर फ्रंट बनाने के नाम पर करोड़ों खर्च किए जा चुके हैं. विकास और खूबसूरती के नाम पर किए जाने वाला खर्च कितना घातक हो सकता है वह आपको भी पता होना चाहिए. 2012-13 में लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी ने आईआईटी रुड़की से रिवर फ्रंट डेवलपमेंट की स्टडी करवाई कि क्या साबरमती की तर्ज पर नदी के दोनों तरफ 250 मीटर की चौड़ाई पर दीवार बनाकर सौंदर्यीकरण किया जाए तो नदी की फ्लडिंग क्षमता पर क्या असर होगा? बाढ़ की स्थिति में ब्रिज बचेंगे या बह जाएंगे? इस पूरी स्टडी का ध्यान सिर्फ नदी की चौड़ाई पर केंद्रित था. अब ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर 6.8 किलोमीटर तक नदी की चौड़ाई 250 मीटर कम कर दी जाती है तो नदी की विध्वंसक शक्ति कितनी बढ़ जाएगी इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. आज स्थिति यह है कि हमने रिवर फ्रंट के लिए नदी के मूल स्वरुप से छेड़छाड़ कर इसकी चौड़ाई को कम कर दिया है साथ ही नदियों के ऊपर कंक्रीट और सरिए का बोझा जबरदस्ती लाद दिया है, जिसका नुकसान पर्यावरण के साथ-साथ हमें भी उठाना होगा.
आज की स्थिति
अखिलेश यादव सरकार के दौरान गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट योजना में करोड़ों के घोटाले की बात सामने आई.
न्यायमूर्ति आलोक सिंह की जांच रिपोर्ट में इस योजना के तहत हुए करोड़ों के घोटाले और साथ ही नियमों की अनदेखी का खुलासा हुआ.
नई सरकार और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने 27 मार्च को रिवर फ्रंट का दौरा किया. वह वहां के कार्यों को देखकर और खर्च की गई धनराशि को लेकर काफी नाराज दिखें उन्होंने गोमती के गंदे पानी पर भी सवाल खड़े किए. इसके बाद उन्होंने गोमती रिवर फ्रंट की न्यायिक जांच के आदेश दिए और साथ ही 45 दिनों के भीतर जांच रिपोर्ट पेश करने को कहा.
घोटाले पर नियमों की अनदेखी का खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आरोपियों पर करवाई सुनिश्चित करने के लिए मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया. इसमें राजस्व परिषद के अध्यक्ष प्रवीण कुमार, प्रमुख सचिव न्याय रंगनाथ पांडेय, अपर मुख्य सचिव वित्त अनूप पांडे को इसका सदस्य बनाया गया.
सुरेश खन्ना समिति की स्टेटस रिपोर्ट सार्वजनिक तो नहीं की गई लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि इस जांच समिति को गोमती रिवर फ्रंट परियोजना में काफी घोटाले होने के सबूत मिले हैं.
खन्ना जांच समिति के आधार पर ही सिंचाई विभाग की तरफ से आठ इंजीनियरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई गई.
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने रिवर फ्रंट घोटाले की जांच सीबीआई से करवाने की सिफारिश की है.
तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव के साथ मुख्य सचिव आलोक रंजन, तत्कालीन प्रमुख सचिव वित्त राहुल भटनागर, प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल, अधिशासी अभियंता रूप सिंह यादव समेत कई बड़े नाम जांच के घेरे में हैं.
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