आज गंगा दशहरा
है। गंगा दशहरा मतलब ऐतिहासिक तौर पर गंगा अवतरण की तिथि; पारम्परिक रूप में स्नान का अवसर; उत्सव रूप में गंगा आरती का पर्व। इतिहास, परम्परा और उत्सव का अपना महत्व है, हक़ीक़त, सेहत और समय की चिंता व चिंतन का अपना। हक़ीक़त यह है कि बीते एक वर्ष के दौरान,
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, विज्ञान-पर्यावरण केन्द्र, संकटमोचन फाउण्डेशन समेत जिस भी विशेषज्ञ
संस्थान ने गंगाजल की गुणवत्ता रिपोर्ट पेश की; सभी ने सबसे ज्यादा चिंता, गंगाजल में बीओडी और कॉलिफोर्म की मात्रा को लेकर जताई।
बीओडी क्या है?
पानी के जिंदा, स्वस्थ व मुर्दा होने की जांच का एक पैमाना है - बीओडी।
बीओडी यानी जैविक ऑक्सीजन की मांग। पानी, जैविक ऑक्सीजन की मांग जितनी कम करे, समझिए कि पानी, उतनी अच्छी तरह
से सांस ले पा रहा है।
फीकल कॉलिफोर्म -
एक ऐसा बैक्टीरिया है, जो कि मानव समेत
गर्म-ठण्डे रक्त वाले जीवों की आंतों में उत्पन्न होता है। यह भोजन पचाने में
सहायक होता है। फीकल कॉलिफोर्म यदि दलहन जैसे नाइट्रोजन को रोककर रखने वाले पौधों
को हासिल हो जाए, तो पोषक की
भूमिका अदा करता है। किंतु यदि यही फीकल कॉलिफोर्म, पानी में पहुंच जाए, तो यह प्रमाण है कि मल के जल में मिश्रित होने का। फीकल कॉलिफोर्म,
बीमारी का वाहक न सही, मल के साथ जल में जा पहुंचे टाइफाइड, वायरल, हेपटाइटस-ए जैसी
बीमारियों के रोगाणुओं के उपस्थित होने की संभावना तो बताता ही है।
घटती ऑक्सीजन,
बढ़ते रोगाणु
मानक है कि जैविक
ऑक्सीजन मांग (बीओडी) शून्य हो तो पानी
पीने योग्य, 05 मिलीग्राम प्रति
लीटर हो तो नहाने योग्य। फीकल कॉलिफोर्म की मात्रा शून्य हो तो पानी पीने योग्य,
2500 प्रति 100 मिलीलीटर हो तो नहाने योग्य। अध्ययन कह रहे
हैं कि गंगाजल की बीओडी, जो कि वर्ष 2016 में 46.5 से 50.4 मिलीग्राम प्रति
लीटर के बीच थी; जनवरी,
2019 में बढ़कर 66 से 78 मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच पहुंच गई। गंगाजल में फीकल कॉलिफोर्म की मात्रा
- अक्तूबर, 2018 में 24,000 कॉलिफोर्म इकाई प्रति 100 मिलीलीटर यानी मानक से लगभग 10 गुना थी। वर्ष - 2019 में वाराणसी के ऊपरी भाग मे 03 लाख, 16 हज़ार प्रति 100 मिलीलीटर तथा वाराणसी के निचले भाग में 146 लाख प्रति 100 लीटर जा पहुंची। नतीजा ? वर्ष - 2018 की जांच में
गंगाजल, 70 निगरानी केन्द्रों में
से मात्र 05 स्थान पर पीने योग्य और 07 पर स्नान योग्य पाया गया। वर्ष - 2019 में जांचे गए 16 निगरानी क्षेत्रों में से मात्र जगजीतपुर हरिद्वार तक साफ
अथवा कम प्रदूषित। उसके बाद मध्यम-भारी प्रदूषित। सर्वाधिक प्रदूषित वाराणसी के
सराय मुहाना में।
हमें धिक्कार है
ये सभी आंकडे़
संकेत हैं कि गंगाजी को सांस लेने में परेशानी बढ़ती जा रही है। गंगाजी अब बीमार भी
हैं और बीमारी के रोगाणुओं की वाहक भी। हमें धिक्कार है! मां बीमार हैं; उसे ऑक्सीजन की ज़रूरत है और हम उसकी आरती उतार
रहे हैं!! क्या आरती करने से मां की सेहत सुधर जाएगी? गंगा जी का पानी सब जगह न पीने योग्य और न ही नहाने;
फिर भी हम स्नान के लिए दौडे़ चले जा रहे हैं!
यह आस्था है या हमारे दिमाग का दिवालियापन? हम गंगा मां की संताने हैं या उसके दुश्मन?
शासकीय दावे झूठे
हमें समझना चाहिए
कि 'नमामि गंगे' के कदम नकरात्मक हैं और गंगा गुणवत्ता की
बेहतरी को लेकर पेश होते रहे शासकीय दावे झूठे। हक़ीक़त यह है कि बीते अर्धकुम्भ के
दौरान जब स्नानार्थियों को जल देखने में कुछ साफ प्रतीत हुआ, उस दौरान (दिसम्बर, 2018 से अप्रैल, 2019 के बीच) भी प्रयागराज के संगम क्षेत्र के गंगाजल का बीओडी - मानक से 2.5 से 5.3 गुना तथा फीकल काॅलीफार्म - मानक से 06 से 96 गुना तक अधिक
था। गुणवत्ता में यह गिरावट, इसके बावजू़द
मिली कि सरकार ने अर्धकुम्भ के दौरान अस्थाई शौचालय, पेशाबघर, कूड़ादान यानी
स्वच्छता और उसके प्रचार पर लगभग 120 करोड़ खर्च कर दिए। जैविक विधि से 53 नालों के उपचार पर जो खर्च हुए, सो अलग। बिहार, झारखण्ड और प.
बंगाल में गंगा को पहुंचते नुक़सान की अनदेखी भी कम नहीं; वरना् हरित प्राधिकरण इनकी सरकारों पर 25-25 लाख का जुर्माना व फटकार क्यों लगाता?
गौर कीजिए कि
औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण का जिम्मा वन, पर्यावरण एवम् जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का है। इसके सचिव
श्री चन्द्र किशोर मिश्र ने हाल ही में एक टेलीविजन कार्यक्रम में दावा किया
कि ऑ नलाइन निगरानी के मामले में उनका
मंत्रालय 24 घण्टे अलर्ट पर है।
प्रदूषण मिलते ही फैकटरी पर कार्रवाई शुरु हो जाती है। यदि यह सच है तो क्या 10 अप्रैल, 2019 को हरित प्राधिकरण में पेश जस्टिस अरुण टण्डन रिपोर्ट झूठ
है ? रिपोर्ट कह रही है कि कई
जगह, 50 प्रतिशत तक अवजल बिना
साफ किए सीधे गंगाजी में डाला जा रहा है। मंत्रालय बताए कि औद्योगिक किनारों वाली
हिण्डन नदी के जल में ऑक्सीजन का स्तर शून्य पर क्यों पहुंच गया है?
सब आंखों का धोखा
कानपुर के जिस
सीसामऊ नाले को लेकर एक वक्त नितीन गडकरी जी ने बतौर मंत्री अपनी पीठ ठोकी,
उसके निष्पादन के लिए दो संयंत्र हैं: जाजमऊ
औद्योगिक अवजल शोधन संयंत्र और बिनगवां सीवेज शोधन संयंत्र। यदि सतर्कता 24 घण्टे है और दावा 100 फीसदी सच, तो कोई उनसे पूछे
कि जाजमऊ औद्योगिक अवजल शोधन संयंत्र से शोधन पश्चात् निकलने वाले जल की गुणवत्ता
इतनी घटिया क्यों है ? 21 दिसम्बर,
2018 को जाजमऊ संयंत्र से
शोधित अवजल का बीओडी 56 मिलीग्राम प्रति
लीटर तथा विद्युत चालकता 3328 माइक्रो म्हो
प्रति सेंटीमीटर पाई गई। इसका मतलब, शोधन पश्चात् प्राप्त पानी इतना घटिया है कि सिंचाई योग्य भी नहीं; जबकि कानपुर के शेखपुर, जना, किशनपुर, मदारपुर, करनखेड़ा व ढोड़ीघाट आदि गांवों इसी स्तर के शोधित अवजल से
सिंचाई हो रही है। लोग बीमार होंगे ही। बिनगवां से शोधित जल पाण्डु नदी में छोड़ा जा
रहा है। पाण्डु नदी, फतेहपुर पहुंचकर
गंगा में मिल जाती है। पाण्डु नदी में
बीओडी, मानक से 11 गुना अधिक पाई गई।.....तो फिर यह गंगा को
निर्मल करने का काम कैसे हुआ? यह तो आंखों को
धोखा देना हो गया। गंगा पुनर्जीवन और नमामि गंगे जैसे शब्दों को अपनाना, एक साध्वी को गंगा मंत्री बनाना और स्वयं को
गंगा का बेटा बताना; ये सब धोखा नहीं
तो और क्या साबित हुआ?
कहा गया कि गंगा
किनारे के गांवों को खुले में शौच से मुक्त करने से गंगाजल में कॉलिफोर्म की
मात्रा में कमी आएगी। रिपोर्ट कह रही है कि जब गंगा मुख्य मार्ग के सभी राज्यों के
खुले में शौचमुक्त हो जाने के बाद गंगा में प्रवाहित मल कचरे की मात्रा - 1800 लाख लीटर प्रतिदिन हो जाएगी। शासकीय आंकडे़
कुछ अन्य हैं और गंगा में वास्तविक अपशिष्ट, उससे 123 प्रतिशत अधिक।
गंगा स्वच्छता मिशन कह रहा है कि गंगाजल बेहतर हो रहा है, तो फिर बताइए कि गंगा में जैसे-जैसे नीचे जाइए, वैसे-वैसे मछलियों का वजन मे गिरावट क्यूं
दिखाई दे रही है?
गंगा सफाई - कमाई
का कारपोरेट एजेण्डा मात्र
निवेदन है कि कम
से कम इस गंगा दशहरा पर तो हक़ीक़त से मुंह मत फेरिए। एहसास कीजिए कि मां बीमार है।
चिंता कीजिए कि मां का देह प्रवाह लगातार घट रहा है। इसमें 44 प्रतिशत तक कमी का आकलन है। जानिए कि यह क्यों
है? यह इसलिए है चूंकि जिस
गंगा के लिए रास्ते को बाधा रहित करने का काम कभी सम्राटों के सम्राट...चक्रवर्ती
सम्राट राजा भगीरथ ने किया था, हमने इतनी वीआईपी
गंगा का रास्ता बांधने की जुर्रत की है। उसके गले में एक नहीं, अनेक फंदे डाल दिए हैं। जिस गंगा को स्पर्श
करने से पहले राम-जानकी तक ने उनकी चरण वंदना की; हमने उस गंगा के गर्भक्षेत्र तक को खोद डाला। मां के सीने
पर बस्तियां बसाईं। मां की देह को अपने मल से मलीन किया। उद्योगों ने जहर उगलने से
परहेज नहीं किया। गंगा की मलीनता, माई से कमाई का
कारपोरेट एजेण्डा हो गईं। सरकारें भी सिर्फ इसका औजार बनकर रह गईं। यह दुर्योग ही
है कि इतनी दुर्दशा होने पर भी गंगा की अविरलता-निर्मलता, भारत का लोक एजेण्डा नहीं बन सका है।
आश्वासन का उलट
करते हम
हमें मां गंगा का
राजा भगीरथ से कहा आज फिर से याद करने की ज़रूरत है, ''भगीरथ, मैं इस कारण भी
पृथ्वी पर नहीं जाऊंगी कि लोग मुझमें अपने पाप धोयेंगे। मैं उस पाप को धोने कहां
जाऊंगी?''
राजा भगीरथ ने
आश्वस्त किया था, ''माता, जिन्होने लोक-परलोक, धन-सम्पत्ति और स्त्री-पुरुष की कामना से मुक्ति ले ली है;
जो संसार से ऊपर होकर अपने आप में शांत हैं;
जो ब्रह्मनिष्ठ और लोकों को पवित्र करने वाले
परोपकारी सज्जन हैं... वे आपके द्वारा ग्रहण किए गए पाप को अपने अंग स्पर्श व
श्रमनिष्ठा से नष्ट कर देंगे।''
हम क्या रहे हैं?
जो गंगा की सेहत की अनदेखी कर रही है, हम उनकी जय-जयकार कर रहे हैं। जो गंगा की चिंता
कर रहे हैं, हम उनसे दूर खडे़
हैं। हम राजा भगीरथ को धोखा दे रहे हैं। क्या उसी कुल में पैदा हुए राजा राम खुश
होंगे ? गंगा आज फिर प्रश्न कर
रही है कि वह मानव प्रदत पाप को धोने कहां जाए?
By
Arun Tiwari 16
बीओडी क्या है? पानी के जिंदा, स्वस्थ व मुर्दा होने की जांच का एक पैमाना है - बीओडी। बीओडी यानी जैविक ऑक्सीजन की मांग। पानी, जैविक ऑक्सीजन की मांग जितनी कम करे, समझिए कि पानी, उतनी अच्छी तरह से सांस ले पा रहा है।
फीकल कॉलिफोर्म - एक ऐसा बैक्टीरिया है, जो कि मानव समेत गर्म-ठण्डे रक्त वाले जीवों की आंतों में उत्पन्न होता है। यह भोजन पचाने में सहायक होता है। फीकल कॉलिफोर्म यदि दलहन जैसे नाइट्रोजन को रोककर रखने वाले पौधों को हासिल हो जाए, तो पोषक की भूमिका अदा करता है। किंतु यदि यही फीकल कॉलिफोर्म, पानी में पहुंच जाए, तो यह प्रमाण है कि मल के जल में मिश्रित होने का। फीकल कॉलिफोर्म, बीमारी का वाहक न सही, मल के साथ जल में जा पहुंचे टाइफाइड, वायरल, हेपटाइटस-ए जैसी बीमारियों के रोगाणुओं के उपस्थित होने की संभावना तो बताता ही है।
घटती ऑक्सीजन, बढ़ते रोगाणु
मानक है कि जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) शून्य हो तो पानी पीने योग्य, 05 मिलीग्राम प्रति लीटर हो तो नहाने योग्य। फीकल कॉलिफोर्म की मात्रा शून्य हो तो पानी पीने योग्य, 2500 प्रति 100 मिलीलीटर हो तो नहाने योग्य। अध्ययन कह रहे हैं कि गंगाजल की बीओडी, जो कि वर्ष 2016 में 46.5 से 50.4 मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच थी; जनवरी, 2019 में बढ़कर 66 से 78 मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच पहुंच गई। गंगाजल में फीकल कॉलिफोर्म की मात्रा - अक्तूबर, 2018 में 24,000 कॉलिफोर्म इकाई प्रति 100 मिलीलीटर यानी मानक से लगभग 10 गुना थी। वर्ष - 2019 में वाराणसी के ऊपरी भाग मे 03 लाख, 16 हज़ार प्रति 100 मिलीलीटर तथा वाराणसी के निचले भाग में 146 लाख प्रति 100 लीटर जा पहुंची। नतीजा ? वर्ष - 2018 की जांच में गंगाजल, 70 निगरानी केन्द्रों में से मात्र 05 स्थान पर पीने योग्य और 07 पर स्नान योग्य पाया गया। वर्ष - 2019 में जांचे गए 16 निगरानी क्षेत्रों में से मात्र जगजीतपुर हरिद्वार तक साफ अथवा कम प्रदूषित। उसके बाद मध्यम-भारी प्रदूषित। सर्वाधिक प्रदूषित वाराणसी के सराय मुहाना में।
हमें धिक्कार है
ये सभी आंकडे़ संकेत हैं कि गंगाजी को सांस लेने में परेशानी बढ़ती जा रही है। गंगाजी अब बीमार भी हैं और बीमारी के रोगाणुओं की वाहक भी। हमें धिक्कार है! मां बीमार हैं; उसे ऑक्सीजन की ज़रूरत है और हम उसकी आरती उतार रहे हैं!! क्या आरती करने से मां की सेहत सुधर जाएगी? गंगा जी का पानी सब जगह न पीने योग्य और न ही नहाने; फिर भी हम स्नान के लिए दौडे़ चले जा रहे हैं! यह आस्था है या हमारे दिमाग का दिवालियापन? हम गंगा मां की संताने हैं या उसके दुश्मन?
शासकीय दावे झूठे
हमें समझना चाहिए कि 'नमामि गंगे' के कदम नकरात्मक हैं और गंगा गुणवत्ता की बेहतरी को लेकर पेश होते रहे शासकीय दावे झूठे। हक़ीक़त यह है कि बीते अर्धकुम्भ के दौरान जब स्नानार्थियों को जल देखने में कुछ साफ प्रतीत हुआ, उस दौरान (दिसम्बर, 2018 से अप्रैल, 2019 के बीच) भी प्रयागराज के संगम क्षेत्र के गंगाजल का बीओडी - मानक से 2.5 से 5.3 गुना तथा फीकल काॅलीफार्म - मानक से 06 से 96 गुना तक अधिक था। गुणवत्ता में यह गिरावट, इसके बावजू़द मिली कि सरकार ने अर्धकुम्भ के दौरान अस्थाई शौचालय, पेशाबघर, कूड़ादान यानी स्वच्छता और उसके प्रचार पर लगभग 120 करोड़ खर्च कर दिए। जैविक विधि से 53 नालों के उपचार पर जो खर्च हुए, सो अलग। बिहार, झारखण्ड और प. बंगाल में गंगा को पहुंचते नुक़सान की अनदेखी भी कम नहीं; वरना् हरित प्राधिकरण इनकी सरकारों पर 25-25 लाख का जुर्माना व फटकार क्यों लगाता?
गौर कीजिए कि औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण का जिम्मा वन, पर्यावरण एवम् जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का है। इसके सचिव श्री चन्द्र किशोर मिश्र ने हाल ही में एक टेलीविजन कार्यक्रम में दावा किया कि ऑ नलाइन निगरानी के मामले में उनका मंत्रालय 24 घण्टे अलर्ट पर है। प्रदूषण मिलते ही फैकटरी पर कार्रवाई शुरु हो जाती है। यदि यह सच है तो क्या 10 अप्रैल, 2019 को हरित प्राधिकरण में पेश जस्टिस अरुण टण्डन रिपोर्ट झूठ है ? रिपोर्ट कह रही है कि कई जगह, 50 प्रतिशत तक अवजल बिना साफ किए सीधे गंगाजी में डाला जा रहा है। मंत्रालय बताए कि औद्योगिक किनारों वाली हिण्डन नदी के जल में ऑक्सीजन का स्तर शून्य पर क्यों पहुंच गया है?
सब आंखों का धोखा
कानपुर के जिस सीसामऊ नाले को लेकर एक वक्त नितीन गडकरी जी ने बतौर मंत्री अपनी पीठ ठोकी, उसके निष्पादन के लिए दो संयंत्र हैं: जाजमऊ औद्योगिक अवजल शोधन संयंत्र और बिनगवां सीवेज शोधन संयंत्र। यदि सतर्कता 24 घण्टे है और दावा 100 फीसदी सच, तो कोई उनसे पूछे कि जाजमऊ औद्योगिक अवजल शोधन संयंत्र से शोधन पश्चात् निकलने वाले जल की गुणवत्ता इतनी घटिया क्यों है ? 21 दिसम्बर, 2018 को जाजमऊ संयंत्र से शोधित अवजल का बीओडी 56 मिलीग्राम प्रति लीटर तथा विद्युत चालकता 3328 माइक्रो म्हो प्रति सेंटीमीटर पाई गई। इसका मतलब, शोधन पश्चात् प्राप्त पानी इतना घटिया है कि सिंचाई योग्य भी नहीं; जबकि कानपुर के शेखपुर, जना, किशनपुर, मदारपुर, करनखेड़ा व ढोड़ीघाट आदि गांवों इसी स्तर के शोधित अवजल से सिंचाई हो रही है। लोग बीमार होंगे ही। बिनगवां से शोधित जल पाण्डु नदी में छोड़ा जा रहा है। पाण्डु नदी, फतेहपुर पहुंचकर गंगा में मिल जाती है। पाण्डु नदी में बीओडी, मानक से 11 गुना अधिक पाई गई।.....तो फिर यह गंगा को निर्मल करने का काम कैसे हुआ? यह तो आंखों को धोखा देना हो गया। गंगा पुनर्जीवन और नमामि गंगे जैसे शब्दों को अपनाना, एक साध्वी को गंगा मंत्री बनाना और स्वयं को गंगा का बेटा बताना; ये सब धोखा नहीं तो और क्या साबित हुआ?
कहा गया कि गंगा किनारे के गांवों को खुले में शौच से मुक्त करने से गंगाजल में कॉलिफोर्म की मात्रा में कमी आएगी। रिपोर्ट कह रही है कि जब गंगा मुख्य मार्ग के सभी राज्यों के खुले में शौचमुक्त हो जाने के बाद गंगा में प्रवाहित मल कचरे की मात्रा - 1800 लाख लीटर प्रतिदिन हो जाएगी। शासकीय आंकडे़ कुछ अन्य हैं और गंगा में वास्तविक अपशिष्ट, उससे 123 प्रतिशत अधिक। गंगा स्वच्छता मिशन कह रहा है कि गंगाजल बेहतर हो रहा है, तो फिर बताइए कि गंगा में जैसे-जैसे नीचे जाइए, वैसे-वैसे मछलियों का वजन मे गिरावट क्यूं दिखाई दे रही है?
गंगा सफाई - कमाई का कारपोरेट एजेण्डा मात्र
निवेदन है कि कम से कम इस गंगा दशहरा पर तो हक़ीक़त से मुंह मत फेरिए। एहसास कीजिए कि मां बीमार है। चिंता कीजिए कि मां का देह प्रवाह लगातार घट रहा है। इसमें 44 प्रतिशत तक कमी का आकलन है। जानिए कि यह क्यों है? यह इसलिए है चूंकि जिस गंगा के लिए रास्ते को बाधा रहित करने का काम कभी सम्राटों के सम्राट...चक्रवर्ती सम्राट राजा भगीरथ ने किया था, हमने इतनी वीआईपी गंगा का रास्ता बांधने की जुर्रत की है। उसके गले में एक नहीं, अनेक फंदे डाल दिए हैं। जिस गंगा को स्पर्श करने से पहले राम-जानकी तक ने उनकी चरण वंदना की; हमने उस गंगा के गर्भक्षेत्र तक को खोद डाला। मां के सीने पर बस्तियां बसाईं। मां की देह को अपने मल से मलीन किया। उद्योगों ने जहर उगलने से परहेज नहीं किया। गंगा की मलीनता, माई से कमाई का कारपोरेट एजेण्डा हो गईं। सरकारें भी सिर्फ इसका औजार बनकर रह गईं। यह दुर्योग ही है कि इतनी दुर्दशा होने पर भी गंगा की अविरलता-निर्मलता, भारत का लोक एजेण्डा नहीं बन सका है।
आश्वासन का उलट करते हम
हमें मां गंगा का राजा भगीरथ से कहा आज फिर से याद करने की ज़रूरत है, ''भगीरथ, मैं इस कारण भी पृथ्वी पर नहीं जाऊंगी कि लोग मुझमें अपने पाप धोयेंगे। मैं उस पाप को धोने कहां जाऊंगी?''
राजा भगीरथ ने आश्वस्त किया था, ''माता, जिन्होने लोक-परलोक, धन-सम्पत्ति और स्त्री-पुरुष की कामना से मुक्ति ले ली है; जो संसार से ऊपर होकर अपने आप में शांत हैं; जो ब्रह्मनिष्ठ और लोकों को पवित्र करने वाले परोपकारी सज्जन हैं... वे आपके द्वारा ग्रहण किए गए पाप को अपने अंग स्पर्श व श्रमनिष्ठा से नष्ट कर देंगे।''