कश्मीर के लिए सबसे पहली आवाज जो आज भी गूँज रही है
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By
Divya Tripathi Chitrakoot Contributors
Amit Singh
Prachi Mishra 0
जम्मू-कश्मीर के बगैर अखंड भारत की कल्पना नही की जा सकती थी। बंटवारे के समय जम्मू-कश्मीर का अलग ध्वज - अलग विधान था। यह बात जनसंघ के स्व. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आंतरिक रूप से परेशान कर रही थी। इसलिए उन्होने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के लिए संसद मे जोरदार भाषण दिया तत्पश्चात तत्कालीन नेहरू सरकार से इस्तीफा दे दिया।
वह जवाहरलाल नेहरू के तुष्टीकरण नीति की जोरदार खिलाफत करते थे। एक राष्ट्रवादी विचारक के रूप मे धर्म के आधार पर भारत का विभाजन भी नही चाहते थे। इसलिए जिन्ना की हर नाजायज मांग की खिलाफत मे लिखकर बोलकर आवाज देते रहे।
जैसे ही उन्हें लगा कि तुष्टीकरण के खिलाफ एक अलग विचारधारा और संगठन की जरूरत है, वैसे ही उन्होंने जनसंघ की स्थापना की। इसी के साथ लगातार वो जम्मू-कश्मीर मे एक निशान एक विधान के लिए आवाज देते रहे। अपने इसी आंदोलन को लेकर जम्मू-कश्मीर मे बिना परमिट के प्रवेश कर गए और तब वे 21 जून गिरफ्तार कर लिए गए।
इसके बाद 23 जून को बीमारी से उनकी मृत्यु की खबर आती है। उनकी रहस्यमयी मौत पर उनकी माँ ने नेहरू सरकार से जांच की मांग की लेकिन उनको प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा कह गया कोई रहस्य नही है अपितु बीमारी से ही उनकी मौत हुई है। बाद मे उनकी मौत की जांच नही कराई गई, जिसे लेकर आज भी मांग की जा रही है कि उनकी मौत की जांच अवश्य हो।
भाजपा का प्रत्येक कार्यकर्ता ऐसे त्याग और देश की एकता अखंडता के लिए बलिदान देने वाले पितामह का सपूत हैं। जिन्हें ऐसे महान विचारक और बंग भूमि के क्रांतिकारी से हमेशा प्रेरणा मिलती है। एक आंदोलन की चिंगारी जो आपने छोड़ी थी, आज इक्कीसवीं सदी मे बहुमत से भाजपा सरकार बनने पर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई। ऐसे महान सपूत का बलिदान बेकार नही जाता और जम्मू-कश्मीर के लिए सबसे पहली आवाज आज भी भारत के हृदय मे गूँज रही है। अतः स्पष्ट है किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए पहले आवाज देनी पड़ती है और एक दिन वह आवाज ऐसे ही साकार होती है।