
भारत में लोकसभा चुनावों की तैयारी जोरों पर है, सभी पार्टियाँ अपने अपने
तरीके से आगे बढ़ते हुए जन समर्थन जुटाने का प्रयास कर रही हैं. यह चुनावी माहौल
वर्ष 2016 में हुए अमेरिकी चुनावों और कैंब्रिज
एनालिटिका प्रकरण की एकाएक याद दिलाता है.
अमेरिका जैसा सुविकसित, तकनीकी क्षमता से दक्ष देश भी जब अपने चुनावों में
फेसबुकी मंच का दुरूपयोग होने से नहीं रोक पाया और लोकतंत्र की नींव को ही कुछ
रुसी एजेंसियों के हाथ में फेसबुक विज्ञापनों के जरिये थमा बैठा..तो कल्पना कीजिये
क्या भारत में होने वाले चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी होंगे? क्या गारंटी है कि कोई
अन्य देश या अपने ही देश के कुछ दल, नेता या एजेंसी फेसबुक प्लेटफार्म का दुरूपयोग
नहीं करेगी?
ऐसे ही बहुत से प्रश्नों के जवाब के लिए संसद की स्थायी समिति द्वारा फेसबुक,
ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया साइट्स को समन भेजा गया. ऑनलाइन
मीडिया प्लेटफार्म पर आम नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के मामले पर 6 मार्च को फेसबुक अधिकारियों से पूछताछ की गयी. जिसमें भारतीय चुनावों के दौरान फेसबुक मंच
के दुरूपयोग को रोकने में फेसबुक की अक्षमताओं, पुलवामा मुद्दे पर सार्वजनिक
टिप्पणियों और विभिन्न मुद्दों पर फेसबुक के ग्लोबल पब्लिक पालिसी के उपाध्यक्ष जोएल
काप्लान, भारत, साउथ एवं सेंट्रल एशिया के फेसबुक सार्वजनिक नीति निदेशक, अखिल दास और भारत
से व्हाट्सएप के प्रमुख अभिजीत बोस से सवाल-जवाब किये गए.
सूचना प्रौद्योगिकी संसदीय समिति द्वारा रखे गए तथ्य -
भाजपा संसद श्री अनुराग ठाकुर की अध्यक्षता में सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की
31 सदस्यों वाली स्थायी समिति ने फेसबुक उपाध्यक्ष जोएल काप्लान के सम्मुख बहुत से
तथ्य रखते हुए जवाबदेही मांगी गयी. समिति में हुई इस पूछताछ के मुख्य अंश
अग्रलिखित प्रकार से हैं..
1. चुनावों के दौरान फेसबुक प्लेटफार्म का दुरूपयोग न हो, इसके लिए फेसबुक कौन
से सशक्त कदम उठा रहा है?
2. फेसबुक अक्सर राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों की सहायता करने में अक्षम रही है,
जो आने वाले चुनावों के लिहाज से गंभीर विषय है.
3. फेसबुक लम्बे समय से अपनी गलतियों के लिए माफ़ी मांगती रही है, फिर भी वह
नहीं चाहती कि नियमाधीन रूप से इसकी पारदर्शिता और निष्पक्षता की जाँच की जाये.
4. गार्जियन यूके की “डेटा
गोपनीयता कानूनों के खिलाफ फेसबुक की वैश्विक पैरवी” रिपोर्ट के हवाले से
फेसबुक के प्रबंधकीय ढांचें पर सवालिया प्रश्न खड़े किये गए. सदस्यों द्वारा कहा
गया कि,
“फेसबुक का मॉडल ही इस प्रकार रखा गया है कि यह बड़े निर्णयों और जवाबदेही जैसे
मुद्दों को सरलता से छुपा सके.”
5. उपरोक्त रिपोर्ट को लेकर ही एक सदस्य ने बात रखी कि फेसबुक के द्वारा
गोपनीयता संबंधी नियम सख्त करने के खिलाफ भारत सहित विश्वभर के देशों में सरकारों
से संपर्क अभियान चलाया गया है.
6. पुलवामा मुद्दे और आतंकवाद को लेकर फेसबुक के कर्मचारियों की ओर से संवेदनहीन
सार्वजनिक टिप्पणियां की गयी, जो शोभनीय नहीं थी.
हमारे पास सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं है : जोएल काप्लान (फेसबुक उपाध्यक्ष) -
आई टी समिति द्वारा बार बार प्रश्न करने पर भी फेसबुक के ग्लोबल पब्लिक पालिसी
के उपाध्यक्ष जोएल काप्लान यह नहीं बता पाए कि फेसबुक द्वारा प्रदत्त सामग्री,
विज्ञापनों और विपणन संचालन पर वें भारत में कौन सा नियामक ढांचा क्रियान्वित करते
हैं. काप्लान ने पुलवामा मुद्दे पर कर्मचारियों के बयान को लेकर माफ़ी मांगते हुए
कहा,
"वर्तमान में नीति निर्माता और कंपनी, सभी के सामने यही
सवाल है, जिससे हम सभी जूझ रहे हैं. हम स्वयं सही नियामक ढांचे की दिशा में कार्य करने
के लिए प्रयासरत हैं, हमारे पास सभी सवालों के जवाब नहीं हैं."
काप्लान ने समिति के सम्मुख अपना वक्तव्य रखते हुए कहा कि,
“हम एक हाइब्रिड कंपनी (विभिन्न क्षेत्रों के संयोजन से बनी कंपनी) हैं, जिसके
चलते हमारे अधिकारी यह बताने में असमर्थ हैं कि भारत में कंपनी की ओर से कौन से
विनियामक व्यवस्था लागू होती है.”
लोकसभा चुनावों में फेसबुक के प्रयासों के लिए अपने स्पष्टीकरण में आश्वासन
दिया गया कि चुनाव के समय फेसबुक प्लेटफार्म पर आने वाले विज्ञापनों पर निगरानी रखने
के लिए और उनकी सही पहचान कराने के उद्देश्य से फेसबुक यूजर्स को एक पृथक पेज
उपलब्ध कराएगी, जिसके जरिये यूजर्स आसानी से विज्ञापनदाताओं की सही पहचान, उनकी
लोकेशन और भुगतान करने वालों की पहचान कर सकेंगे.
साथ ही काप्लान ने यह तथ्य भी उजागर किया कि आवश्यक नहीं है कि फेसबुक
प्लेटफार्म पर उपयुक्त सामग्री को उचित करने के संबंध में लिया गया प्रत्येक
निर्णय हमेशा ठीक हो.
गौरतलब है कि काप्लान द्वारा दिया गया कोई भी वक्तव्य
स्पष्ट और पारदर्शी प्रतीत नहीं होता है. फेसबुक के पास ऐसी कोई ठोस कार्यनीति
नहीं है, जिसके जरिये चुनावों में सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर सके. मसलन,
काप्लान ने विज्ञापन के संबंध में जिस पृथक पेज की बात रखी, वह किस प्रकार यूजर्स
को सही जानकारी उपलब्ध करा पायेगा और क्या वास्तव में वह जानकारी सटीक होगी, इस पर
भी वह विस्तृत रूप से कोई व्याख्या नहीं कर पाए.
यूरोपियन संसद के सम्मुख भी फेसबुक रख चुकी है असंतोषजनक
स्पष्टीकरण -
गत वर्ष 22 मई को मार्क ज़करबर्ग द्वारा यूरोपियन यूनियन के सीनेटरों के सामने
प्रत्यक्ष रूप से कैंब्रिज एनालिटिका सम्बन्धित डेटा चोरी तथा यूजर्स निजता
मुद्दों पर फेसबुक के ढुल- मुल रवैये को लेकर भी समिति बैठाई जा चुकी है, जिसके
अंतर्गत भी यूरोपियन संसद के सदस्यों ने फेसबुक
संस्थापक मार्क ज़करबर्ग द्वारा दिए गये जवाबों को अनुपयुक्त बताया था और साथ
ही फेसबुक डेटा प्रकरण मामले में उनकी सफाई को असंतोषजनक घोषित किया था.
फेसबुक को नियंत्रित करने के प्रयास होने बेहद जरूरी हैं -
हालांकि भारतीय सरकार द्वारा फेसबुक को जांच-पड़ताल में लाने का विचार एक अच्छी
पहल कही जा सकती है, इन विदेशी कंपनियों को नियंत्रण में लाने की. किन्तु साथ ही
सरकार को चुनावों से पहले आम जनता के लिए एक गाइडलाइन भी जारी करनी चाहिए, जिसमें तकनीकी
विशेषज्ञों के द्वारा सरल शब्दों में तथ्यपरक बिंदु रखे जाये. लोगों को समझाया
जाये कि क्यों चुनावों के दौरान इन सोशल मीडिया साइट्स के प्रलोभन से दूर रहे.
वर्तमान समय में, जब आप फेसबुक जैसे डिजिटल दानव को पूरी तरह से रोक पाने में
समर्थ नहीं हैं, तो अवश्य ही प्रयास होने चाहिए अपने नागरिकों को जागरूक करने
के...
और सरकार ही क्यों, एक प्रबुद्ध नागरिक के तौर पर हर भारतीय को यह आत्म-बोध
करना ही होगा कि फेसबुक
मात्र एक व्यवसाय है, एक छलावा है, जो आपकी मानसिकता को दिशाभ्रमित कर लाभ
कमाने का प्रत्येक गुर रखता है. यही कारण है कि चीन की सरकार ने इसे अपने देश में
टिकने नहीं दिया. इससे पहले कि भारत में भी “कैंब्रिज एनालिटिका” जैसा कोई प्रकरण
दोहराया जाये, हमें जागना होगा.
आइए पहल करें -
जनतंत्र को यदि कोई बचा सकता है, तो वो स्वयं आप और हम हैं. हमारी तार्किक
विचारधारा और आत्म-संज्ञान की पहल ही हमें फेसबुक, व्हाट्सएप आदि के झांसे से बचा
सकती है. आने वाले चुनावों में क्या करें, क्या न करें..यह जानने के लिए आप हमारे ई
सत्याग्रह अभियान से भी जुड़ सकते हैं और esatyagraha.org वेबसाइट पर जाकर
विशेषज्ञों की राय-मशवरा जानने के साथ ही अपने सुझाव भी आप हम तक पहुंचा सकते हैं.
आपके बहुमूल्य प्रयासों के लिए हम प्रतीक्षारत रहेंगे.
By
Deepika Chaudhary 15
भारत में लोकसभा चुनावों की तैयारी जोरों पर है, सभी पार्टियाँ अपने अपने तरीके से आगे बढ़ते हुए जन समर्थन जुटाने का प्रयास कर रही हैं. यह चुनावी माहौल वर्ष 2016 में हुए अमेरिकी चुनावों और कैंब्रिज एनालिटिका प्रकरण की एकाएक याद दिलाता है.
अमेरिका जैसा सुविकसित, तकनीकी क्षमता से दक्ष देश भी जब अपने चुनावों में फेसबुकी मंच का दुरूपयोग होने से नहीं रोक पाया और लोकतंत्र की नींव को ही कुछ रुसी एजेंसियों के हाथ में फेसबुक विज्ञापनों के जरिये थमा बैठा..तो कल्पना कीजिये क्या भारत में होने वाले चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी होंगे? क्या गारंटी है कि कोई अन्य देश या अपने ही देश के कुछ दल, नेता या एजेंसी फेसबुक प्लेटफार्म का दुरूपयोग नहीं करेगी?
ऐसे ही बहुत से प्रश्नों के जवाब के लिए संसद की स्थायी समिति द्वारा फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया साइट्स को समन भेजा गया. ऑनलाइन मीडिया प्लेटफार्म पर आम नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के मामले पर 6 मार्च को फेसबुक अधिकारियों से पूछताछ की गयी. जिसमें भारतीय चुनावों के दौरान फेसबुक मंच के दुरूपयोग को रोकने में फेसबुक की अक्षमताओं, पुलवामा मुद्दे पर सार्वजनिक टिप्पणियों और विभिन्न मुद्दों पर फेसबुक के ग्लोबल पब्लिक पालिसी के उपाध्यक्ष जोएल काप्लान, भारत, साउथ एवं सेंट्रल एशिया के फेसबुक सार्वजनिक नीति निदेशक, अखिल दास और भारत से व्हाट्सएप के प्रमुख अभिजीत बोस से सवाल-जवाब किये गए.
सूचना प्रौद्योगिकी संसदीय समिति द्वारा रखे गए तथ्य -
भाजपा संसद श्री अनुराग ठाकुर की अध्यक्षता में सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की 31 सदस्यों वाली स्थायी समिति ने फेसबुक उपाध्यक्ष जोएल काप्लान के सम्मुख बहुत से तथ्य रखते हुए जवाबदेही मांगी गयी. समिति में हुई इस पूछताछ के मुख्य अंश अग्रलिखित प्रकार से हैं..
1. चुनावों के दौरान फेसबुक प्लेटफार्म का दुरूपयोग न हो, इसके लिए फेसबुक कौन से सशक्त कदम उठा रहा है?
2. फेसबुक अक्सर राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों की सहायता करने में अक्षम रही है, जो आने वाले चुनावों के लिहाज से गंभीर विषय है.
3. फेसबुक लम्बे समय से अपनी गलतियों के लिए माफ़ी मांगती रही है, फिर भी वह नहीं चाहती कि नियमाधीन रूप से इसकी पारदर्शिता और निष्पक्षता की जाँच की जाये.
4. गार्जियन यूके की “डेटा गोपनीयता कानूनों के खिलाफ फेसबुक की वैश्विक पैरवी” रिपोर्ट के हवाले से फेसबुक के प्रबंधकीय ढांचें पर सवालिया प्रश्न खड़े किये गए. सदस्यों द्वारा कहा गया कि,
“फेसबुक का मॉडल ही इस प्रकार रखा गया है कि यह बड़े निर्णयों और जवाबदेही जैसे मुद्दों को सरलता से छुपा सके.”
5. उपरोक्त रिपोर्ट को लेकर ही एक सदस्य ने बात रखी कि फेसबुक के द्वारा गोपनीयता संबंधी नियम सख्त करने के खिलाफ भारत सहित विश्वभर के देशों में सरकारों से संपर्क अभियान चलाया गया है.
6. पुलवामा मुद्दे और आतंकवाद को लेकर फेसबुक के कर्मचारियों की ओर से संवेदनहीन सार्वजनिक टिप्पणियां की गयी, जो शोभनीय नहीं थी.
हमारे पास सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं है : जोएल काप्लान (फेसबुक उपाध्यक्ष) -
आई टी समिति द्वारा बार बार प्रश्न करने पर भी फेसबुक के ग्लोबल पब्लिक पालिसी के उपाध्यक्ष जोएल काप्लान यह नहीं बता पाए कि फेसबुक द्वारा प्रदत्त सामग्री, विज्ञापनों और विपणन संचालन पर वें भारत में कौन सा नियामक ढांचा क्रियान्वित करते हैं. काप्लान ने पुलवामा मुद्दे पर कर्मचारियों के बयान को लेकर माफ़ी मांगते हुए कहा,
काप्लान ने समिति के सम्मुख अपना वक्तव्य रखते हुए कहा कि,
लोकसभा चुनावों में फेसबुक के प्रयासों के लिए अपने स्पष्टीकरण में आश्वासन दिया गया कि चुनाव के समय फेसबुक प्लेटफार्म पर आने वाले विज्ञापनों पर निगरानी रखने के लिए और उनकी सही पहचान कराने के उद्देश्य से फेसबुक यूजर्स को एक पृथक पेज उपलब्ध कराएगी, जिसके जरिये यूजर्स आसानी से विज्ञापनदाताओं की सही पहचान, उनकी लोकेशन और भुगतान करने वालों की पहचान कर सकेंगे.
साथ ही काप्लान ने यह तथ्य भी उजागर किया कि आवश्यक नहीं है कि फेसबुक प्लेटफार्म पर उपयुक्त सामग्री को उचित करने के संबंध में लिया गया प्रत्येक निर्णय हमेशा ठीक हो.
गौरतलब है कि काप्लान द्वारा दिया गया कोई भी वक्तव्य स्पष्ट और पारदर्शी प्रतीत नहीं होता है. फेसबुक के पास ऐसी कोई ठोस कार्यनीति नहीं है, जिसके जरिये चुनावों में सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर सके. मसलन, काप्लान ने विज्ञापन के संबंध में जिस पृथक पेज की बात रखी, वह किस प्रकार यूजर्स को सही जानकारी उपलब्ध करा पायेगा और क्या वास्तव में वह जानकारी सटीक होगी, इस पर भी वह विस्तृत रूप से कोई व्याख्या नहीं कर पाए.
यूरोपियन संसद के सम्मुख भी फेसबुक रख चुकी है असंतोषजनक स्पष्टीकरण -
गत वर्ष 22 मई को मार्क ज़करबर्ग द्वारा यूरोपियन यूनियन के सीनेटरों के सामने प्रत्यक्ष रूप से कैंब्रिज एनालिटिका सम्बन्धित डेटा चोरी तथा यूजर्स निजता मुद्दों पर फेसबुक के ढुल- मुल रवैये को लेकर भी समिति बैठाई जा चुकी है, जिसके अंतर्गत भी यूरोपियन संसद के सदस्यों ने फेसबुक संस्थापक मार्क ज़करबर्ग द्वारा दिए गये जवाबों को अनुपयुक्त बताया था और साथ ही फेसबुक डेटा प्रकरण मामले में उनकी सफाई को असंतोषजनक घोषित किया था.
फेसबुक को नियंत्रित करने के प्रयास होने बेहद जरूरी हैं -
हालांकि भारतीय सरकार द्वारा फेसबुक को जांच-पड़ताल में लाने का विचार एक अच्छी पहल कही जा सकती है, इन विदेशी कंपनियों को नियंत्रण में लाने की. किन्तु साथ ही सरकार को चुनावों से पहले आम जनता के लिए एक गाइडलाइन भी जारी करनी चाहिए, जिसमें तकनीकी विशेषज्ञों के द्वारा सरल शब्दों में तथ्यपरक बिंदु रखे जाये. लोगों को समझाया जाये कि क्यों चुनावों के दौरान इन सोशल मीडिया साइट्स के प्रलोभन से दूर रहे. वर्तमान समय में, जब आप फेसबुक जैसे डिजिटल दानव को पूरी तरह से रोक पाने में समर्थ नहीं हैं, तो अवश्य ही प्रयास होने चाहिए अपने नागरिकों को जागरूक करने के...
और सरकार ही क्यों, एक प्रबुद्ध नागरिक के तौर पर हर भारतीय को यह आत्म-बोध करना ही होगा कि फेसबुक मात्र एक व्यवसाय है, एक छलावा है, जो आपकी मानसिकता को दिशाभ्रमित कर लाभ कमाने का प्रत्येक गुर रखता है. यही कारण है कि चीन की सरकार ने इसे अपने देश में टिकने नहीं दिया. इससे पहले कि भारत में भी “कैंब्रिज एनालिटिका” जैसा कोई प्रकरण दोहराया जाये, हमें जागना होगा.