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लॉकडाउन के कारण नदियों में आये बदलाव को रखना होगा स्थायी

Raman Kant

Raman Kant Opinions & Updates

ByRaman Kant Raman Kant   39

केंद्रीय व राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण विभागों के तमाम प्रयासों के बावजूद उद्योगों से निकलने वाले तर

केंद्रीय व राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण विभागों के तमाम प्रयासों के बावजूद उद्योगों से निकलने वाले तरल कचरे की समस्या ऐसी है जो नदियों में तो दिखती है लेकिन पैदा कहां से हो रही है, इस पर जानते हुए भी जिम्मेदार विभाग मौन रहते हैं। कोरोना महामारी के संकट ने यह सिद्ध कर दिया है कि कहीं न कहीं उद्योग व उन पर निगरानी करने वाला तंत्र अपना कार्य ईमानदारी से नहीं कर पा रहा है। वर्तमान में लॉकडाउन के चलते नदियों के पानी में जो सुधार दिख रहा है, उससे उद्योगों व प्रदूषण नियंत्रण विभाग की कलई खुल गई है। ऐसा नहीं है कि नदियों में सौ प्रतिशत बदलाव दिख रहा है लेकिन 20 से 30 प्रतिशत पानी की शुद्धता अवश्य हुई है।

इस शुद्धता का मानक वैज्ञानिक दृष्टि से और भी अधिक हो सकता है लेकिन इसकी प्रमाणिकता इस समय नदियों के पानी का परीक्षण करने से ही सिद्ध होगी, क्योंकि उद्योगों से जो तरल कचरा विभिन्न नालों के माध्यम से सीधे नदियों में आता है उसमें कीटनाशकों व रसायनों के आने की आशंका रहती है जोकि इस समय पूर्णतः बंद है। ऐसे में पूरी संभावना है कि नदियों के पानी की गुणवत्ता वैज्ञानिक दृष्टि से भी जरूर बेहतर हुई होगी। गंगा-यमुना जैसी नदियों में जिनमें की अपना स्वतः बहाव है, उनमें असर अधिक दिख रहा है, जबकि हिंडन-काली जैसी सैंकड़ों बरसाती नदियों का पानी आज भी काला ही है, क्योंकि उनमें उद्योगों का तरल कचरा तो आना बंद हुआ है लेकिन कस्बों-शहरों का सीवर लगातार बह रहा है। इन नदियों में अपना पानी नहीं है इसीलिए सीवर को बहाकर ले जाने की गंगा जैसी क्षमता इन नदियों में नहीं है। नदियों के प्रदूषण में सीवर के तरल कचरे की भूमिका 70 से 80 प्रतिशत होती है जबकि उद्योगों के कचरे की भूमिका 20 से 30 प्रतिशत, लेकिन यह उद्योगों का तरल कचरा अपने रासायनिक गुणों के कारण अधिक खतरनाक होता है।

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इस अवसर पर गंगा के पानी में कहीं-कहीं 30 से 40 प्रतिशत की शुद्धता लॉकडाउन की वजह अर्थात उद्योगों के बंद होने तथा मानव दखल समाप्त होने के कारण आयी है। जल शक्ति मंत्रालय के अधीन नमामि गंगे इस बदलाव से खुश है जबकि इसके लिए उसके द्वारा कोई पैसा खर्च नहीं किया गया है। ऐसे में नमामि गंगे को अब ये गंभीरता से सोचना होगा कि लॉकडाउन के कारण जो बदलाव नदियों में दिखने लगा है उसको स्थायी कैसे रखा जाए क्योंकि लॉकडाउन खुलते ही उद्योग पहले की भांति चलने लगेंगे और नदियों के पानी में आया ये सुधार पुनः छूमंतर हो जाएगा। तो ऐसा क्या किया जाए कि यह बदलाव बना रहे? इस पर गंभीरता से सोचने व उसको अमल करने की आवश्यकता है।

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यूं तो बरसात के समय नदियां लॉकडाउन की अपेक्षा अधिक साफ हो जाती हैं क्योंकि उस दौरान वर्षाजल उद्योगों के तरल सहित सीवर को भी बहा ले जाता है, लेकिन जैसे ही बरसात समाप्त होती है तो नदियां फिर से गंदी हो जाती हैं। सीवर के मामले को हल करने के लिए कस्बों-शहरों में सीवर शोधन प्लांट बनाये जा रहे हैं जिस कार्य को सभी जगह पूर्ण होने में अभी एक दशक लग सकता है, लेकिन सभी उद्योग यह दावा करते हैं कि उनके यहां रसायनिक शोधन प्लांट लगे हैं और वे उद्योग से बाहर निकलने वाले तरल को माननीय राष्ट्रीय हरित अभिकरण (एनजीटी) के मानक के अनुसार ही बाहर जाने देते हैं।

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प्रदूषण नियंत्रण विभाग के जनपदीय अधिकारियों द्वारा लगातार इनकी निगरानी की जाती है। नमामि गंगे, जल शक्ति मंत्रालय तथा राज्य व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण विभाग इन उद्योगों की ऑनलाइन निगरानी भी करते हैं। इन सब निगरानियों में सब कुछ ठीक रहता है लेकिन मौके पर सब कुछ बदला हुआ होता है। अब जब उद्योग बंद हैं तो नदियों में बदलाव क्यों दिख रहा है? इसका सीधा-सच्चा कारण समझ आता है कि हमारे निगरानी तंत्र में कुछ झोल है। अगर हमें अपनी नदियों में स्थायी सुधार चाहिए तो इस झोल को समाप्त करना ही होगा। प्रदूषण नियंत्रण विभाग के स्थान पर नई निगरानी व्यवस्था खड़ी करनी होगी।

वाशिंगटन से होकर बहने वाली पोटोमैक व लंदन से होकर बहने वाली थेम्स नदी कभी यमुना व हिंडन जितनी ही प्रदूषित हुआ करती थी, लेकिन उन्होंने नदियों के सुधार हेतु कड़े नियम बनाये और उनको सख्ती से लागू भी किया। इस तरह के सफल उदहरणों से सीखते हुए हमें भी स्थाई समाधान की और जाना होगा।

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