लॉकडाउन के कारण नदियों में आये बदलाव को रखना होगा स्थायी
Leave a comment for the team.
रिसर्च को सब्सक्राइब करें
इस रिसर्च पर अपडेट पाने के लिए और इससे जुड़ने के लिए अपना ईमेल आईडी नीचे भरें.
ये कैसे कार्य करता है ?

जुड़ें और फॉलो करें
ज्यादा से ज्यादा जुड़े लोग, प्रतिभाशाली समन्वयकों एवं विशेषज्ञों को आकर्षित करेंगे , इस मुद्दे को एक पकड़ मिलेगी और तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद ।

संगठित हों
हमारे समन्वयक अपने साथ विशेषज्ञों को ले कर एक कार्य समूह का गठन करेंगे, और एक योज़नाबद्ध तरीके से काम करना सुरु करेंगे

समाधान पायें
कार्य समूह पारदर्शिता एवं कुशलता के साथ समाधान की ओर क़दम बढ़ाएगा, साथ में ही समाज में से ही कुछ भविष्य के अधिनायकों को उभरने में सहायता करेगा।
आप कैसे एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं ?
क्या आप इस या इसी जैसे दूसरे मुद्दे से जुड़े हुए हैं, या प्रभावित हैं? क्या आपको लगता है इसपर कुछ कारगर कदम उठाने चाहिए ?तो नीचे फॉलो का बटन दबा कर समर्थन व्यक्त करें।इससे हम आपको समय पर अपडेट कर पाएंगे, और आपके विचार जान पाएंगे। ज्यादा से ज्यादा लोगों द्वारा फॉलो होने पर इस मुद्दे पर कार्यरत विशेषज्ञों एवं समन्वयकों का ना सिर्फ़ मनोबल बढ़ेगा, बल्कि हम आपको, अपने समय समय पर होने वाले शोध यात्राएं, सर्वे, सेमिनार्स, कार्यक्रम, तथा विषय एक्सपर्ट्स कोर्स इत्यादि में सम्मिलित कर पाएंगे।
समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
अपने सोशल नेटवर्क पर शेयर करें
हर छोटा बड़ा कदम मायने रखता है, अपने दोस्तों और जानकारों से ये मुद्दा साझा करें , क्या पता उन्ही में से कोई इस विषय का विशेषज्ञ निकल जाए।
क्या आपके पास कुछ समय सामजिक कार्य के लिए होता है ?
इस एक्शन ग्रुप के सहभागी बनें, एक सदस्य, विशेषज्ञ या समन्वयक की तरह जुड़ें । अधिक जानकारी के लिए समन्वयक से संपर्क करें और अपने बारे में बताएं।
By
Raman Kant 39
केंद्रीय व राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण विभागों के तमाम प्रयासों के बावजूद उद्योगों से निकलने वाले तरल कचरे की समस्या ऐसी है जो नदियों में तो दिखती है लेकिन पैदा कहां से हो रही है, इस पर जानते हुए भी जिम्मेदार विभाग मौन रहते हैं। कोरोना महामारी के संकट ने यह सिद्ध कर दिया है कि कहीं न कहीं उद्योग व उन पर निगरानी करने वाला तंत्र अपना कार्य ईमानदारी से नहीं कर पा रहा है। वर्तमान में लॉकडाउन के चलते नदियों के पानी में जो सुधार दिख रहा है, उससे उद्योगों व प्रदूषण नियंत्रण विभाग की कलई खुल गई है। ऐसा नहीं है कि नदियों में सौ प्रतिशत बदलाव दिख रहा है लेकिन 20 से 30 प्रतिशत पानी की शुद्धता अवश्य हुई है।
इस शुद्धता का मानक वैज्ञानिक दृष्टि से और भी अधिक हो सकता है लेकिन इसकी प्रमाणिकता इस समय नदियों के पानी का परीक्षण करने से ही सिद्ध होगी, क्योंकि उद्योगों से जो तरल कचरा विभिन्न नालों के माध्यम से सीधे नदियों में आता है उसमें कीटनाशकों व रसायनों के आने की आशंका रहती है जोकि इस समय पूर्णतः बंद है। ऐसे में पूरी संभावना है कि नदियों के पानी की गुणवत्ता वैज्ञानिक दृष्टि से भी जरूर बेहतर हुई होगी। गंगा-यमुना जैसी नदियों में जिनमें की अपना स्वतः बहाव है, उनमें असर अधिक दिख रहा है, जबकि हिंडन-काली जैसी सैंकड़ों बरसाती नदियों का पानी आज भी काला ही है, क्योंकि उनमें उद्योगों का तरल कचरा तो आना बंद हुआ है लेकिन कस्बों-शहरों का सीवर लगातार बह रहा है। इन नदियों में अपना पानी नहीं है इसीलिए सीवर को बहाकर ले जाने की गंगा जैसी क्षमता इन नदियों में नहीं है। नदियों के प्रदूषण में सीवर के तरल कचरे की भूमिका 70 से 80 प्रतिशत होती है जबकि उद्योगों के कचरे की भूमिका 20 से 30 प्रतिशत, लेकिन यह उद्योगों का तरल कचरा अपने रासायनिक गुणों के कारण अधिक खतरनाक होता है।
इस अवसर पर गंगा के पानी में कहीं-कहीं 30 से 40 प्रतिशत की शुद्धता लॉकडाउन की वजह अर्थात उद्योगों के बंद होने तथा मानव दखल समाप्त होने के कारण आयी है। जल शक्ति मंत्रालय के अधीन नमामि गंगे इस बदलाव से खुश है जबकि इसके लिए उसके द्वारा कोई पैसा खर्च नहीं किया गया है। ऐसे में नमामि गंगे को अब ये गंभीरता से सोचना होगा कि लॉकडाउन के कारण जो बदलाव नदियों में दिखने लगा है उसको स्थायी कैसे रखा जाए क्योंकि लॉकडाउन खुलते ही उद्योग पहले की भांति चलने लगेंगे और नदियों के पानी में आया ये सुधार पुनः छूमंतर हो जाएगा। तो ऐसा क्या किया जाए कि यह बदलाव बना रहे? इस पर गंभीरता से सोचने व उसको अमल करने की आवश्यकता है।
यूं तो बरसात के समय नदियां लॉकडाउन की अपेक्षा अधिक साफ हो जाती हैं क्योंकि उस दौरान वर्षाजल उद्योगों के तरल सहित सीवर को भी बहा ले जाता है, लेकिन जैसे ही बरसात समाप्त होती है तो नदियां फिर से गंदी हो जाती हैं। सीवर के मामले को हल करने के लिए कस्बों-शहरों में सीवर शोधन प्लांट बनाये जा रहे हैं जिस कार्य को सभी जगह पूर्ण होने में अभी एक दशक लग सकता है, लेकिन सभी उद्योग यह दावा करते हैं कि उनके यहां रसायनिक शोधन प्लांट लगे हैं और वे उद्योग से बाहर निकलने वाले तरल को माननीय राष्ट्रीय हरित अभिकरण (एनजीटी) के मानक के अनुसार ही बाहर जाने देते हैं।
प्रदूषण नियंत्रण विभाग के जनपदीय अधिकारियों द्वारा लगातार इनकी निगरानी की जाती है। नमामि गंगे, जल शक्ति मंत्रालय तथा राज्य व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण विभाग इन उद्योगों की ऑनलाइन निगरानी भी करते हैं। इन सब निगरानियों में सब कुछ ठीक रहता है लेकिन मौके पर सब कुछ बदला हुआ होता है। अब जब उद्योग बंद हैं तो नदियों में बदलाव क्यों दिख रहा है? इसका सीधा-सच्चा कारण समझ आता है कि हमारे निगरानी तंत्र में कुछ झोल है। अगर हमें अपनी नदियों में स्थायी सुधार चाहिए तो इस झोल को समाप्त करना ही होगा। प्रदूषण नियंत्रण विभाग के स्थान पर नई निगरानी व्यवस्था खड़ी करनी होगी।