
राजनीति में किसका आना अच्छा है किसका नहीं यह बहस का विषय हो सकता है मगर चुनाव सुधार के लिए किए जाने वाले हर प्रयास के साथ बैलेटबॉक्सइंडिया खड़ा है. हमारी कोशिश है कि समाज को सही दिशा दी जा सके जिसके लिए हमारे समाज में सही नेताओं का चुना जाना भी उतना ही ज्यादा जरूरी है.
समाज को कुछ जवाबदेह और जिम्मेदार नेताओं की आज बेहद जरूरत है. जो जात-पात से ऊपर उठकर अपनी निजी और पार्टी के हित को ना देखते हुए समाज के हित को ध्यान में रखें. एक समय समाज में ऐसे नेताओं की कोई कमी नहीं थी मगर इतने अरसे में ऐसा क्या हो गया कि आज हमें वैसे नेताओं को ढूंढने की जरूरत पड़ती है. हमारे देश में कई खामियां है मगर आज नेता उस पर बात नहीं करते. वह अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में हमेशा लगे रहते हैं तभी शायद अदम गोंडवी कहते हैं :
काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
ऐसी स्थिति में हमें यह देखने की जरूरत है कि हमारे सामने विकल्प क्या है. हम किस तरह का परिवेश अपने आसपास चाहते हैं. हम किस तरह के नेताओं को चुनना चाहते हैं. हम समाज को कैसा देखना चाहते हैं.
आज अगर कहीं कूड़े का ढेर सड़कों पर पड़ा हुआ है तो लो इसकी शिकायत नहीं करते बल्कि नाक बंद कर आगे बढ़ जाते हैं. समाज के सामने काफी चुनौतियां है मगर इन सबके बावजूद हमें आज चुनाव सुधार के लिए भी प्रयास करने की जरूरत है समाज को बदलना है तो उसके लिए नेताओं को भी बदलना पड़ेगा और ऐसे में चुनाव सुधार जैसा विकल्प की हमारे सामने बच पाता है.
हम सभी नेताओं से लेकर आम आदमी तक सभी जानते हैं कि आज चुनाव में भ्रष्टाचार का बेहद बोलबाला है. चुनाव में शराब से लेकर पैसे तक सब कुछ बांटे जाते हैं. शायद हमने ऐसी प्रवृत्ति अपना ली है जिसमें हम अपनी आंखें बंद कर सब कुछ देखते हुए भी नहीं देख रहे होते हैं. समाज और नेताओं के सामने चुनाव सुधार एक बहुत बड़ा प्रश्न है मगर फिर भी इस पर कुछ किया नहीं जा सका. नेता इस पर कुछ करना ही नहीं चाहते जबकि उनके सामने सब कुछ है. कभी जब सत्ता किसी और की रहती है तो दूसरे उस पर आरोप लगाते हैं तो कभी दूसरे की सत्ता होती है तो कभी सत्ता में रहा पक्ष उस पर आरोप लगाता है. यही परिपाटी आज तक चली आ रही है. कांग्रेस जब सत्ता में थी तो ईवीएम से चुनाव करवाए जाते थे आज भाजपा सत्ता में है तो कांग्रेस ईवीएम को लेकर पर सवाल खड़े कर रही है. एक समय था जब लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता एक रेल दुर्घटना होने पर स्वतः और तुरंत ही अपने मंत्री पद से इसकी जवाबदेही लेते हुए त्यागपत्र दे देते हैं. मगर आज यह सब हमारे राजनीति से गायब हो चुकी है. आखिर कब तक चलता रहेगा ऐसा?
बैलेटबॉक्सइंडिया लगातार इस प्रयास में है कि चुनाव सुधार के लिए सभी पार्टी एकजुट हो और एक आवाज में चुनाव सुधार की प्रक्रिया को अपनाया जा सके. विधानसभा चुनाव से लेकर एमसीडी चुनाव तक हमने काफी लोगों से चुनाव सुधार को लेकर उनके मत पूछे, उनकी राय जानने की कोशिश की. सभी का मानना है कि चुनाव सुधार की प्रक्रिया होनी चाहिए और वह हमारे जनमेला की अवधारणा से सहमत दिखें. मगर खेद कोई खुद इस विषय को लेकर के पहल नहीं करता. चुनाव सुधार सिर्फ हमारा विषय नहीं बल्कि पूरे समाज का और नेताओं के बनही मुख्य मुद्दें में शामिल होना चाहिए था. चुनाव सुधार होगा तभी समाज में कुछ बेहतर हो पाएगा. भ्रष्टाचार पर रोक लग सकेगी, पैसे का बोलबाला कम होगा, चुनाव पर खर्चें में कम होंगे जिससे जनता पर बोझ कम पड़ेगा और समाज बेहतर बदलाव की दिशा में आगे बढ़ेगा.
आज स्वच्छ छवि के नेताओं की समाज को बेहद जरूरत है. जो किसी मुद्दे पर बात करने से हिचके नहीं, जो बेबाक होकर जवाब दें. पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर उठकर समाज की बात करे. ऐसे में हमारी मुलाकात सीपीआईएम के सागरपुर के एमसीडी उम्मीदवार फैजल खान से हुई. बेहद गरीब परिवार से आने वाले फैजल आज एमसीडी का चुनाव लड़ रहे हैं. कभी दो वक्त की रोटी नहीं मिल पाने वाले फैजल जब खुद के पैरों पर खड़े हुए तो समाज के लिए वह काम करने के लिए प्रेरित हुए. खुद अपने जिंदगी में आभाव को झेलने वाले फैजल इस दर्द को बखूबी समझते हैं और इसीलिए शायद वह लगातार उनके लिए काम करते आए हैं.
कैमरे के सामने पहली बार आए फैजल ऐसे लोगों में से हैं जो समाज की चुनौतियों को समझते हैं और उस पर काम करने को भावुक दिखते हैं. फैजल खान देशहित और सामाजिक मुद्दों पर हमसे बड़ी ही बेबाकी से बात करते हुए अपने विचार रखते हैं. हमने स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, पर्यावरण आदि विषयों पर उनसे प्रश्न किए उन्होंने बड़े ही बेबाकी से अपना जवाब रखा. इसके साथ ही वह जनमेला की अवधारणा से सिर्फ सहमत ही नहीं है बल्कि उनका साफ-साफ कहना था कि चुनाव आज पैसों का खेल बनकर रह गया है. हमारे जैसे लोग जिनके पास इतना पैसा नहीं है वह कभी चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता. आज जनमेला को जरूर लागू किया जाना चाहिए जिससे चुनाव आम लोगों का चुनाव बने ना की सिर्फ पैसे वालों का.
प्रस्तुत है फैजल खान से लिए गए साक्षात्कार का मुख्य अंश:
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Swarntabh Kumar Contributors
Amit Kumar 49
राजनीति में किसका आना अच्छा है किसका नहीं यह बहस का विषय हो सकता है मगर चुनाव सुधार के लिए किए जाने वाले हर प्रयास के साथ बैलेटबॉक्सइंडिया खड़ा है. हमारी कोशिश है कि समाज को सही दिशा दी जा सके जिसके लिए हमारे समाज में सही नेताओं का चुना जाना भी उतना ही ज्यादा जरूरी है.
समाज को कुछ जवाबदेह और जिम्मेदार नेताओं की आज बेहद जरूरत है. जो जात-पात से ऊपर उठकर अपनी निजी और पार्टी के हित को ना देखते हुए समाज के हित को ध्यान में रखें. एक समय समाज में ऐसे नेताओं की कोई कमी नहीं थी मगर इतने अरसे में ऐसा क्या हो गया कि आज हमें वैसे नेताओं को ढूंढने की जरूरत पड़ती है. हमारे देश में कई खामियां है मगर आज नेता उस पर बात नहीं करते. वह अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में हमेशा लगे रहते हैं तभी शायद अदम गोंडवी कहते हैं :
काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
ऐसी स्थिति में हमें यह देखने की जरूरत है कि हमारे सामने विकल्प क्या है. हम किस तरह का परिवेश अपने आसपास चाहते हैं. हम किस तरह के नेताओं को चुनना चाहते हैं. हम समाज को कैसा देखना चाहते हैं.
आज अगर कहीं कूड़े का ढेर सड़कों पर पड़ा हुआ है तो लो इसकी शिकायत नहीं करते बल्कि नाक बंद कर आगे बढ़ जाते हैं. समाज के सामने काफी चुनौतियां है मगर इन सबके बावजूद हमें आज चुनाव सुधार के लिए भी प्रयास करने की जरूरत है समाज को बदलना है तो उसके लिए नेताओं को भी बदलना पड़ेगा और ऐसे में चुनाव सुधार जैसा विकल्प की हमारे सामने बच पाता है.
हम सभी नेताओं से लेकर आम आदमी तक सभी जानते हैं कि आज चुनाव में भ्रष्टाचार का बेहद बोलबाला है. चुनाव में शराब से लेकर पैसे तक सब कुछ बांटे जाते हैं. शायद हमने ऐसी प्रवृत्ति अपना ली है जिसमें हम अपनी आंखें बंद कर सब कुछ देखते हुए भी नहीं देख रहे होते हैं. समाज और नेताओं के सामने चुनाव सुधार एक बहुत बड़ा प्रश्न है मगर फिर भी इस पर कुछ किया नहीं जा सका. नेता इस पर कुछ करना ही नहीं चाहते जबकि उनके सामने सब कुछ है. कभी जब सत्ता किसी और की रहती है तो दूसरे उस पर आरोप लगाते हैं तो कभी दूसरे की सत्ता होती है तो कभी सत्ता में रहा पक्ष उस पर आरोप लगाता है. यही परिपाटी आज तक चली आ रही है. कांग्रेस जब सत्ता में थी तो ईवीएम से चुनाव करवाए जाते थे आज भाजपा सत्ता में है तो कांग्रेस ईवीएम को लेकर पर सवाल खड़े कर रही है. एक समय था जब लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता एक रेल दुर्घटना होने पर स्वतः और तुरंत ही अपने मंत्री पद से इसकी जवाबदेही लेते हुए त्यागपत्र दे देते हैं. मगर आज यह सब हमारे राजनीति से गायब हो चुकी है. आखिर कब तक चलता रहेगा ऐसा?
बैलेटबॉक्सइंडिया लगातार इस प्रयास में है कि चुनाव सुधार के लिए सभी पार्टी एकजुट हो और एक आवाज में चुनाव सुधार की प्रक्रिया को अपनाया जा सके. विधानसभा चुनाव से लेकर एमसीडी चुनाव तक हमने काफी लोगों से चुनाव सुधार को लेकर उनके मत पूछे, उनकी राय जानने की कोशिश की. सभी का मानना है कि चुनाव सुधार की प्रक्रिया होनी चाहिए और वह हमारे जनमेला की अवधारणा से सहमत दिखें. मगर खेद कोई खुद इस विषय को लेकर के पहल नहीं करता. चुनाव सुधार सिर्फ हमारा विषय नहीं बल्कि पूरे समाज का और नेताओं के बनही मुख्य मुद्दें में शामिल होना चाहिए था. चुनाव सुधार होगा तभी समाज में कुछ बेहतर हो पाएगा. भ्रष्टाचार पर रोक लग सकेगी, पैसे का बोलबाला कम होगा, चुनाव पर खर्चें में कम होंगे जिससे जनता पर बोझ कम पड़ेगा और समाज बेहतर बदलाव की दिशा में आगे बढ़ेगा.
आज स्वच्छ छवि के नेताओं की समाज को बेहद जरूरत है. जो किसी मुद्दे पर बात करने से हिचके नहीं, जो बेबाक होकर जवाब दें. पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर उठकर समाज की बात करे. ऐसे में हमारी मुलाकात सीपीआईएम के सागरपुर के एमसीडी उम्मीदवार फैजल खान से हुई. बेहद गरीब परिवार से आने वाले फैजल आज एमसीडी का चुनाव लड़ रहे हैं. कभी दो वक्त की रोटी नहीं मिल पाने वाले फैजल जब खुद के पैरों पर खड़े हुए तो समाज के लिए वह काम करने के लिए प्रेरित हुए. खुद अपने जिंदगी में आभाव को झेलने वाले फैजल इस दर्द को बखूबी समझते हैं और इसीलिए शायद वह लगातार उनके लिए काम करते आए हैं.
कैमरे के सामने पहली बार आए फैजल ऐसे लोगों में से हैं जो समाज की चुनौतियों को समझते हैं और उस पर काम करने को भावुक दिखते हैं. फैजल खान देशहित और सामाजिक मुद्दों पर हमसे बड़ी ही बेबाकी से बात करते हुए अपने विचार रखते हैं. हमने स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, पर्यावरण आदि विषयों पर उनसे प्रश्न किए उन्होंने बड़े ही बेबाकी से अपना जवाब रखा. इसके साथ ही वह जनमेला की अवधारणा से सिर्फ सहमत ही नहीं है बल्कि उनका साफ-साफ कहना था कि चुनाव आज पैसों का खेल बनकर रह गया है. हमारे जैसे लोग जिनके पास इतना पैसा नहीं है वह कभी चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता. आज जनमेला को जरूर लागू किया जाना चाहिए जिससे चुनाव आम लोगों का चुनाव बने ना की सिर्फ पैसे वालों का.
प्रस्तुत है फैजल खान से लिए गए साक्षात्कार का मुख्य अंश: