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सीपीआईएम का आह्वान, जुमलेबाजों को बेनकाब करो! राशन, शिक्षा और न्यूनतम वेतन की लड़ाई का हिस्सा बनो!

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CPIM सीपीआईएम का आह्वान, जुमलेबाजों को बेनकाब करो! राशन, शिक्षा और न्यूनतम वेतन की लड़ाई का हिस्सा बनो!

ByHarilal Prasad Harilal Prasad   27

सीपीआईएम का आह्वान जुमलेबाजों को बेनकाब करो!राशन, शिक्षा और न्यूनतम वेतन की लड़ाई का हिस्सा बनो! राज

सीपीआईएम का आह्वान जुमलेबाजों को बेनकाब करो!

राशन, शिक्षा और न्यूनतम वेतन की लड़ाई का हिस्सा बनो!
 
राजधानी दिल्ली के साथ-साथ गाजियाबाद और गौतम बुद्ध नगर में हाल ही में चुनाव खत्म हुए हैं. शासक वर्ग के सभी राजनीतिक दलों के लिए चुनाव के साथ ही जनता के मुद्दे भी खत्म हो जाते हैं. सच्चाई तो यह है कि केंद्र की भाजपा सरकार की नीतियों की मार से पूरे देश की तरह ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की जनता भी त्रस्त है. दिल्ली की आप पार्टी की सरकार भी इन नीतियों के मार्ग से जनता को राहत दिलाने की इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाई. ऐसे में सीपीआईएम एक बार फिर राशन, रोजगार और शिक्षा समेत बुनियादी सवालों पर मई के महीने में सघन अभियान छेड़ने वाली है. 
 

राशन की लूट बंद करो!

केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को राशन प्रणाली के लिए दिए जाने वाले बजट में भारी कटौती के चलते पहले से ही कमजोर राशन व्यवस्था चरमराने की कगार पर है. खाद्य वस्तुओं में बेलगाम महंगाई से आज परिवार चल पाना बेहद मुश्किल हो गया है. जहां पहले से ही टार्गेटिंग के नाम पर जरूरतमंद परिवारों को व्यवस्था से दूर रखा जा रहा है, वहीं अब केंद्र ने चीनी के लिए दिए जाने वाले सब्सिडी में भी कटौती कर दी है.  जहां एक तरफ भाजपा की केंद्र सरकार राशन व्यवस्था को कमजोर करने का काम कर रही है, वहीं दूसरी ओर दिल्ली की आप सरकार भी बजट में इस मद में बिना कोई आवंटन किए इसी राह पर आगे बढ़ रही है. दिल्ली में 2009 में जहां 2525 राशन की दुकानें थी, वहीं 2016 में यह घटकर केवल 2283 रह गई. जहां एक तरफ ई-राशन कार्ड का ढिंढोरा पीटा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर भारी संख्या में पुरानी कार्डों को कैंसिल किया गया है. उत्तर प्रदेश में भी बिना नए कार्ड बनाए बिना ही पुराने कार्डों को कैंसिल किया जा रहा है. हमारा साफ मानना है कि बढ़ती महंगाई को देखते हुए राशन की सुविधा हर परिवार को दी जानी चाहिए. साथ ही गेहूं, चावल और चीनी के अलावा दाल, नमक और खाने का तेल भी राशन की दुकानों में उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
 

बढ़े हुए न्यूनतम वेतन लागू करो! मुनाफा कमा रही सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपना बंद करो!

मोदी सरकार आज नियोजित तरीके से सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने में लगी हुई है! इसमें कोयला, स्टील और बैंक जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं, जो हमारे देश की अर्थव्यवस्था के रीढ़ हैं. इसका सीधा असर न केवल मौजूदा कर्मियों पर पड़ेगा बल्कि नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था भी बेमानी हो जाएगा. इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. दिल्ली में पिछले कई वर्षों से ट्रेड यूनियन आंदोलन के लंबे संघर्ष के बाद दिल्ली सरकार ने न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी करने का फैसला लिया है. आज इसे लागू कराने में कोई कानूनी अड़चन मौजूद नहीं है. ऐसे में चाहिए कि दिल्ली सरकार दिल्ली के सभी फैक्ट्रियों और प्रतिष्ठानों में बढ़े हुए न्यूनतम वेतन लागू करवाए. गाजियाबाद और नोएडा में न्यूनतम वेतन 18000 प्रति माह कम से कम दिल्ली के न्यूनतम वेतन के बराबर किया जाना चाहिए. 
शिक्षा को गरीब, मेहनतकश परिवार के बच्चों की पहुंच से दूर करने की साजिश नहीं चलेगी!
 

मोदी सरकार के इशारे पर दिल्ली विश्वविद्यालय के 24 ट्रस्ट कॉलेजों को स्वायत्तता की तरफ धकेला जा रहा है.

 
इसका असर क्या होगा? स्वायत्तता का मतलब होगा कि इन कॉलेजों को अपने फंड खुद ही जुगाड़ने होंगे, जिसका एक ही मतलब होगा कि फीसों में भारी बढ़ोतरी और दोयम दर्जे के डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्सों की भरमार. इसकी मार पड़ेगी दिल्ली-एनसीआर के मजदूर वर्ग और गरीब परिवारों के बच्चों पर, जिनके लिए पहले से ही सरकारी कॉलेजों की भारी कमी के चलते उच्च शिक्षा हासिल कर पाना बेहद मुश्किल है. पिछले 15 सालों में न तो दिल्ली सरकार ने और ना ही केंद्र की सरकारों ने दिल्ली में कोई नया कॉलेज खोला है. जहां हर साल दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले में 3 लाख से अधिक फॉर्म भरे जाते हैं, वहीं सीटों की संख्या महज 60,000 है. यही हाल गाजियाबाद और नोएडा का भी है, जहां डिग्री और इंटर कॉलेजों की हालत खस्ता है. दूसरी तरफ कुकुरमुत्ते की तरह फैल रहे निजी संस्थानों में छात्र और मां-बाप मोटी फीस और प्रशासन का शोषण झेलने को मजबूर हैं. यह सब मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति की तरफ बढ़ते कदमों का हिस्सा ही है.
 
मोदी सरकार ने 100 दिनों में यह नीति लाने की बात की थी, पर अब तक इनका कोई अता-पता नहीं है. पर, सरकार की चाल ढाल से तो साफ़ है कि इस नीति का मतलब मौजूदा सरकारी संस्थानों को योजनाबद्ध तरीके से कमजोर बनाना, निजीकरण को खुली छूट देना और सिलेबस में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना ही होगा.
 

इस अभियान में हमारी मांग साफ है:

डीयू के कॉलेजों  को चोर दरवाजे से निजीकरण के रास्ते पर ढकेलना बंद करो, फीस वृद्धि पर लगाम लगाओ, नए सरकारी कॉलेज खोलो और मौजूदा कॉलेजों में शाम का शिफ्ट चलाओ. 
हम आपसे इस अभियान में भारी संख्या में शामिल होने की अपील करते हैं.
 
हमारी आपकी एकता से ही सरकारों के लूट के राज पर लगाम लगाई जा सकती है.

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