
वनों में आग लगना या भारतीय भाषा में दावानल का भडक उठना यूँ तो शुष्क
गर्मियों के मौसम में एक सामान्य सी घटना है, जिसके अंतर्गत कभी कम तो कभी अधिक आग
सघन वन के एक बड़े हिस्से में धधक उठती है और काफी प्रयासों के बाद ही यह दाहक अग्नि
शमित हो पाती है.
पर सोचिये, पांच करोड़ वर्ष पुराने अमेज़न वर्षावनों, जिन्हें “धरती के फेफड़ों”
की संज्ञा दी गयी है, यदि उनमें ही भीष्ण अग्निपात होता रहे और वह भी बेहद व्यापक
स्तर पर पिछले आठ माह में लगभग 75,000 स्थानों पर...तो क्या यह भी उतना ही सामान्य
रह पायेगा. 13 अगस्त से अमेज़न वर्षा वनों में लगी आग अभी तक भी बुझ नहीं पाई है और
यह घटना मौसमविदों, पर्यावरण विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं सहित दुनिया भर के लोगों को
पसीने पसीने किये हुए है. इस भयंकर अग्निपात से ब्राजील के उत्तरी राज्य
रोरैमा, एक्रे, रोंडोनिया और एमेज़ोनास
बुरी तरह प्रभावित हैं.
यह मामला वास्तव में बेहद गंभीर है क्योंकि अमेज़न वर्षा वनों से समस्त धरती को
मिलने वाले लाभ अनंत हैं और यदि प्रकृति की इस अमूल्य संपदा को ही आग में झोंक
दिया जा रहा है तो इसके नतीजे भुगतने के लिए भी अब सभी को तैयार रहना होगा.
तो क्या है मुद्दा अमेज़न वर्षावन दावानल का, क्यूँ धरती की संजीवनी कहे जाते
हैं अमेज़न रेनफारेस्ट, हरियाली को लील रही इस अग्नि के कारण क्या हैं और इससे भारत
सहित विश्व के अन्य देशों को कौन से भावी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं? आइये जानते
हैं अपनी इस रिपोर्ट के माध्यम से....
जानिए अमेज़न रेनफारेस्ट को
विश्व के सबसे बड़े वर्षावन के रूप में विख्यात अमेज़न रेनफारेस्ट को “धरती के
फेफड़े” कहा जाता है, जिसका कारण है कि लगभग 55 लाख वर्ग किमी के क्षेत्रफल में
विस्तृत इन जंगलों से समस्त विश्व को 20 फीसदी ऑक्सीजन मिलती है.
दक्षिण अमेरिका के अमेज़न बेसिन पर फैला अमेज़न वन क्षेत्र वैसे तो 70 लाख वर्ग
किमी में फैला हुआ है, किन्तु बात यदि वर्षावन क्षेत्र की हो तो वह 55 लाख वर्ग
किलोमीटर के दायरे में आता है और इसका परिसीमन तकरीबन 9 देशों में हैं. यह वर्षावन
सर्वाधिक ब्राजील (58.4%) में और उसके बाद पेरू (12.8%) में फैले हैं, साथ ही ये वर्षावन
कोलंबिया (7.1), बोलिविया (7.7), वेनेजुएला
(6.1), गुयाना (3.1), सूरीनाम (2.5) और
फ्रेंच गुयाना (1.4), ईक्वाडोर (1%) देशों में भी विस्तृत हैं.
यहां जैविक विविधता की बाते करें तो अमेजन के जंगलों में
वनस्पतियों की तकरीबन 16 हजार से अधिक प्रजातियाँ है और लगभग 40 करोड़ वृक्ष इस
उष्णकटिबंधीय वनप्रदेश की प्राकृतिक संपदा के रूप में नौ देशों में फैले हुए हैं. यहां
जीव-जंतुओं की लाखों प्रजातियों का निवास है तथा साथ ही इन जगलों में तकरीबन 450-500
आदिवासी समुदाय रहते हैं.
जिनमें पेरू के मेस्तिजोस, ब्राजील के काबोक्लोस आदिवासी
समुदाय इत्यादि सम्मिलित हैं..किन्तु अचरज भरी बात यह है कि इनमें आधे से ज्यादा
आदिवासी समुदायों ने तो बाहरी विश्व को देखा और जाना तक नहीं है. इसी तथ्य से आप
अंदाजा लगा सकते हैं कि इन वनों की सघनता कितनी अधिक होगी कि तमाम विश्व उसके
सामने नगण्य रह गया.
अमेज़न रेनफारेस्ट मानव जीवन के लिए अहम क्यों हैं?
एक वृक्ष प्रतिदिन 230 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है, जिससे सात लोगों को प्राणवायु
मिलती है..तो सोचिये अकेले अमेज़न के वनों में लगभग 40 करोड़ वृक्ष मौजूद हैं. अब
इनसे मिलने वाली ऑक्सीजन का अंदाजा तो आप लगा ही सकते हैं. विश्व को मिलने वाली
कुल ऑक्सीजन में से 20 फीसदी अमेज़न के जंगलों से ही आता है.
अमेज़न के जंगल स्थानीय तौर पर तो धरती की पारिस्थिकी को संभाले ही रखते हैं
बल्कि इसका वैश्विक प्रभाव भी काफी अधिक है. इसे आप साधारण शब्दों में समझे तो
वनाच्छादित यह बेहद बड़ा भूभाग वर्षा के होने में अहम भूमिका निभाता है, यानि आस
पास की स्थानीय नदियों के जीवन चक्र को चलायमान रखने में इन वनों का खासा योगदान
है और नदियां महासागरों में मिलकर उनकी धाराओं को प्रवाह देने में सहायक सिद्ध
होती हैं. अंततः महासागरों के कारण बड़े स्तर पर जलवायु, तापमान और अन्य वर्षा गतिविधियां
संचालित की जाती हैं. इस तरह देखा जाये तो पारिस्थितिक संतुलन का एक विशेष चक्र
है, जिसका निरंतर चलते रहने मानव जीवन के लिए आवश्यक है.
इन वनों से धरती का पारिस्थिक तंत्र संतुलित बना रहता है और वायुमंडलीय ताप कम
होने के चलते ग्रीन हाउस गैसों से पड़ने वाला दुष्प्रभाव भी नियंत्रित ही रहता है.
साथ ही यह वन प्रदेश भूमि की नमी को संचित कर भूजल रिचार्ज में भी सहायता करता है
तथा मृदा क्षरण को भी रोकता है. यहां तक कि इन वनों में मौजूद औषधीय वनस्पतियों की
गुणवत्ता भी किसी से छिपी नहीं है, यहां का आदिवासी समुदाय आज भी इन्हीं वनस्पतियों
के आधार पर विभिन्न रोगों को दूर रखता है.
तो क्यों जलाया जा रहा है अमेज़न जंगलों को
गर्मियों के मौसम में वनों में आग लगना वैसे तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, परन्तु
इस बार ब्राजील के अंतर्गत बड़े स्तर पर भभका दावानल प्राकृतिक नहीं है. इसके पीछे
कारण भी है, अमेरिकी कृषि विभाग के अनुसार ब्राजील को विश्व में सबसे
बड़े बीफ निर्यातक देश के रूप में जाना जाता है. जिसके चलते यहां के स्थानीय
निवासी अपने मवेशियों के लिए चारागाह विकसित करने की होड़ में जंगलों को कृषि
क्षेत्र में परिवर्तित कर देने के लिए आग लगा रहे हैं.
ब्राजील की अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (इनपे)
के सैटेलाइट आंकड़े बताते हैं कि अमेज़न के वर्षा वन में इस साल विगत वर्ष की
तुलना में 80 फीसदी अधिक आगजनी की घटनाएं हुई हैं और यह आंकड़ा विश्व भर के
पर्यावरण विशेषज्ञों को चौंका रहा है. ब्राजील के साओ पाउलो विश्वविद्यालय में
वायुमंडलीय भौतिक विज्ञानी पाउलो आर्टाक्सो ने साइंस मैगज़ीन को दिए अपने इंटरव्यू
में स्पष्ट करते हुए बताया कि,
"इसमें
कोई संदेह नहीं है कि आग गतिविधि में हो रहा यह इजाफ़ा वनों की कटाई में तेज वृद्धि
से परस्पर जुड़ा है, कृषि योग्य ज़मीन का विकास करने के लिए वनों को साफ़ करने की यह
तकनीक सदियों पुरानी है."
वहीँ कुछ लोग इस बढती आगजनी की घटनाओं के लिए ब्राजील के
राष्ट्र्पति जायर बोल्सोनारो की पर्यावरण विरोधी बयानबाजी को भी कारण मानते हैं, जिसके
कारण जंगल साफ़ करने की घटनाओं में तेजी देखी गयी है. पर्यावरण को लेकर लंबे समय से
संशय रखने वाले राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो ने गैर सरकार संस्थाओं (एनजीओ) पर आरोप
लगाया है कि उन्होंने उनकी सरकार को बदनाम करने के लिए खुद ही जंगलों में आग लगाई
है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सरकार के पास आग बुझाने के पर्याप्त साधन मौजूद
नहीं हैं.
हाल ही में ब्राज़ील के पर्यावरण मंत्री रिकार्डो सल्स ने
ट्वीट किया कि शुष्क मौसम, हवा और गर्मी के
कारण आग इतने व्यापक रूप से फैल गई है, लेकिन वैज्ञानिक रूप से भी देखा जाये तो
सूखे के मौसम में भी अमेज़न के उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिकी तंत्र में इतने बड़े स्तर
पर आग लगने को साधारण प्राकृतिक घटना नहीं कहा जा सकता है.
अमेज़न आग से पड़ रहा स्थानीय एवं वैश्विक दुष्प्रभाव
1. अमेज़न के वायुमंडल में निरंतर आग से निकलने वाला धुंआ
फैल रहा है, यूरोपीय संघ के कॉपर्निकस एटमास्फ़ियर मानिटरिंग सर्विस (कैम्स) के
अनुसार इस आग से उत्पन्न धुआं अमेज़न वनों से 2000 मील दूर साओ पाउलो शहर तक भी
देखा जा रहा है, साथ ही यह अटलांटिक कोस्ट तक भी बढ़ रहा है.
2. जनवरी से अगस्त तक अमेज़न वनों में लगने वाली आग से अबतक
लगभग 230 मेगाटन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हो रही है.
3. विश्व मौसम संगठन के अनुसार इस प्रकार अनियंत्रित
अग्निपात से कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर भी खतरनाक रूप से वृद्धि करेगा. वहीँ कैम्स
ने अपने नक़्शे में दिखाया है कि कार्बन मोनो ऑक्साइड तटीय क्षेत्रों में निरंतर
आगे बढ़ रही है.
4. वहीँ नासा ने भी चेतावनी दी है कि इस आग से धरती पर
कार्बन का संतुलन बिगड़ जाएगा, जिससे ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव ओर अधिक बढ़ेगा.
क्यों जरूरी है चिंता करना?
अमेज़न वर्षा वनों में आग लगना, उनका बड़े पैमाने पर विनाश
शायद अभी भी हमारे लिए उतना अहम नहीं हो, क्योंकि तकरीबन 9,188 मील दूर स्थित
जंगलों के उजड़ जाने से हमे भला क्यों फर्क पड़ेगा? हम में से कितने लोग तो यह भी
नहीं जानते होंगे कि जलवायु में हो रहे निरंतर परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के
कारण हमारे भारत के ही बहुमूल्य जंगल कैसे वर्ष दर वर्ष राख हो रहे हैं.
पर्यावरण की इस लगातार हो रही क्षति के चलते हाल ही में
आइसलैंड के एक पुराना ग्लेशियर “ओके” समाप्त हो गया, जिसकी याद में शोकसभा
का आयोजन कर हम मनुष्यों को एक बड़ी सीख दी गयी कि एक दिन शायद प्रकृति के
अद्भुत उपहार नदियां, ग्लेशियर, पर्वत, हरियाली, वन-उपवन सभी ऐसे ही समाप्त हो
जायेंगे और सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद रोबर्ट स्वान के कहे अनुसार हम सभी सोचते रह
जायेंगे कि....
“कोई और आकर हमारी धरती को बचा लेगा.”

यकीन मानिये यही सोच हमारी स्वर्ग समान धरती के लिए सबसे
बड़ा खतरा है और हमे इसी सोच को बदलना होगा, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हम सभी
कृत्रिम ऑक्सीजन के मास्क पर आश्रित किसी चलते फिरते आईसीयू पेशेंट की भांति सड़कों
या घरों में नजर आएंगे. इसलिए धरती को बेतहाशा धधकने से रोकना बेहद जरूरी है.
By
Deepika Chaudhary 41
वनों में आग लगना या भारतीय भाषा में दावानल का भडक उठना यूँ तो शुष्क गर्मियों के मौसम में एक सामान्य सी घटना है, जिसके अंतर्गत कभी कम तो कभी अधिक आग सघन वन के एक बड़े हिस्से में धधक उठती है और काफी प्रयासों के बाद ही यह दाहक अग्नि शमित हो पाती है.
यह मामला वास्तव में बेहद गंभीर है क्योंकि अमेज़न वर्षा वनों से समस्त धरती को मिलने वाले लाभ अनंत हैं और यदि प्रकृति की इस अमूल्य संपदा को ही आग में झोंक दिया जा रहा है तो इसके नतीजे भुगतने के लिए भी अब सभी को तैयार रहना होगा.
तो क्या है मुद्दा अमेज़न वर्षावन दावानल का, क्यूँ धरती की संजीवनी कहे जाते हैं अमेज़न रेनफारेस्ट, हरियाली को लील रही इस अग्नि के कारण क्या हैं और इससे भारत सहित विश्व के अन्य देशों को कौन से भावी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं? आइये जानते हैं अपनी इस रिपोर्ट के माध्यम से....
जानिए अमेज़न रेनफारेस्ट को
विश्व के सबसे बड़े वर्षावन के रूप में विख्यात अमेज़न रेनफारेस्ट को “धरती के फेफड़े” कहा जाता है, जिसका कारण है कि लगभग 55 लाख वर्ग किमी के क्षेत्रफल में विस्तृत इन जंगलों से समस्त विश्व को 20 फीसदी ऑक्सीजन मिलती है.
दक्षिण अमेरिका के अमेज़न बेसिन पर फैला अमेज़न वन क्षेत्र वैसे तो 70 लाख वर्ग किमी में फैला हुआ है, किन्तु बात यदि वर्षावन क्षेत्र की हो तो वह 55 लाख वर्ग किलोमीटर के दायरे में आता है और इसका परिसीमन तकरीबन 9 देशों में हैं. यह वर्षावन सर्वाधिक ब्राजील (58.4%) में और उसके बाद पेरू (12.8%) में फैले हैं, साथ ही ये वर्षावन कोलंबिया (7.1), बोलिविया (7.7), वेनेजुएला (6.1), गुयाना (3.1), सूरीनाम (2.5) और फ्रेंच गुयाना (1.4), ईक्वाडोर (1%) देशों में भी विस्तृत हैं.
यहां जैविक विविधता की बाते करें तो अमेजन के जंगलों में वनस्पतियों की तकरीबन 16 हजार से अधिक प्रजातियाँ है और लगभग 40 करोड़ वृक्ष इस उष्णकटिबंधीय वनप्रदेश की प्राकृतिक संपदा के रूप में नौ देशों में फैले हुए हैं. यहां जीव-जंतुओं की लाखों प्रजातियों का निवास है तथा साथ ही इन जगलों में तकरीबन 450-500 आदिवासी समुदाय रहते हैं.
जिनमें पेरू के मेस्तिजोस, ब्राजील के काबोक्लोस आदिवासी समुदाय इत्यादि सम्मिलित हैं..किन्तु अचरज भरी बात यह है कि इनमें आधे से ज्यादा आदिवासी समुदायों ने तो बाहरी विश्व को देखा और जाना तक नहीं है. इसी तथ्य से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इन वनों की सघनता कितनी अधिक होगी कि तमाम विश्व उसके सामने नगण्य रह गया.
अमेज़न रेनफारेस्ट मानव जीवन के लिए अहम क्यों हैं?
एक वृक्ष प्रतिदिन 230 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है, जिससे सात लोगों को प्राणवायु मिलती है..तो सोचिये अकेले अमेज़न के वनों में लगभग 40 करोड़ वृक्ष मौजूद हैं. अब इनसे मिलने वाली ऑक्सीजन का अंदाजा तो आप लगा ही सकते हैं. विश्व को मिलने वाली कुल ऑक्सीजन में से 20 फीसदी अमेज़न के जंगलों से ही आता है.
अमेज़न के जंगल स्थानीय तौर पर तो धरती की पारिस्थिकी को संभाले ही रखते हैं बल्कि इसका वैश्विक प्रभाव भी काफी अधिक है. इसे आप साधारण शब्दों में समझे तो वनाच्छादित यह बेहद बड़ा भूभाग वर्षा के होने में अहम भूमिका निभाता है, यानि आस पास की स्थानीय नदियों के जीवन चक्र को चलायमान रखने में इन वनों का खासा योगदान है और नदियां महासागरों में मिलकर उनकी धाराओं को प्रवाह देने में सहायक सिद्ध होती हैं. अंततः महासागरों के कारण बड़े स्तर पर जलवायु, तापमान और अन्य वर्षा गतिविधियां संचालित की जाती हैं. इस तरह देखा जाये तो पारिस्थितिक संतुलन का एक विशेष चक्र है, जिसका निरंतर चलते रहने मानव जीवन के लिए आवश्यक है.
इन वनों से धरती का पारिस्थिक तंत्र संतुलित बना रहता है और वायुमंडलीय ताप कम होने के चलते ग्रीन हाउस गैसों से पड़ने वाला दुष्प्रभाव भी नियंत्रित ही रहता है. साथ ही यह वन प्रदेश भूमि की नमी को संचित कर भूजल रिचार्ज में भी सहायता करता है तथा मृदा क्षरण को भी रोकता है. यहां तक कि इन वनों में मौजूद औषधीय वनस्पतियों की गुणवत्ता भी किसी से छिपी नहीं है, यहां का आदिवासी समुदाय आज भी इन्हीं वनस्पतियों के आधार पर विभिन्न रोगों को दूर रखता है.
तो क्यों जलाया जा रहा है अमेज़न जंगलों को
गर्मियों के मौसम में वनों में आग लगना वैसे तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, परन्तु इस बार ब्राजील के अंतर्गत बड़े स्तर पर भभका दावानल प्राकृतिक नहीं है. इसके पीछे कारण भी है, अमेरिकी कृषि विभाग के अनुसार ब्राजील को विश्व में सबसे बड़े बीफ निर्यातक देश के रूप में जाना जाता है. जिसके चलते यहां के स्थानीय निवासी अपने मवेशियों के लिए चारागाह विकसित करने की होड़ में जंगलों को कृषि क्षेत्र में परिवर्तित कर देने के लिए आग लगा रहे हैं.
ब्राजील की अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (इनपे) के सैटेलाइट आंकड़े बताते हैं कि अमेज़न के वर्षा वन में इस साल विगत वर्ष की तुलना में 80 फीसदी अधिक आगजनी की घटनाएं हुई हैं और यह आंकड़ा विश्व भर के पर्यावरण विशेषज्ञों को चौंका रहा है. ब्राजील के साओ पाउलो विश्वविद्यालय में वायुमंडलीय भौतिक विज्ञानी पाउलो आर्टाक्सो ने साइंस मैगज़ीन को दिए अपने इंटरव्यू में स्पष्ट करते हुए बताया कि,
"इसमें कोई संदेह नहीं है कि आग गतिविधि में हो रहा यह इजाफ़ा वनों की कटाई में तेज वृद्धि से परस्पर जुड़ा है, कृषि योग्य ज़मीन का विकास करने के लिए वनों को साफ़ करने की यह तकनीक सदियों पुरानी है."
वहीँ कुछ लोग इस बढती आगजनी की घटनाओं के लिए ब्राजील के राष्ट्र्पति जायर बोल्सोनारो की पर्यावरण विरोधी बयानबाजी को भी कारण मानते हैं, जिसके कारण जंगल साफ़ करने की घटनाओं में तेजी देखी गयी है. पर्यावरण को लेकर लंबे समय से संशय रखने वाले राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो ने गैर सरकार संस्थाओं (एनजीओ) पर आरोप लगाया है कि उन्होंने उनकी सरकार को बदनाम करने के लिए खुद ही जंगलों में आग लगाई है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सरकार के पास आग बुझाने के पर्याप्त साधन मौजूद नहीं हैं.
हाल ही में ब्राज़ील के पर्यावरण मंत्री रिकार्डो सल्स ने ट्वीट किया कि शुष्क मौसम, हवा और गर्मी के कारण आग इतने व्यापक रूप से फैल गई है, लेकिन वैज्ञानिक रूप से भी देखा जाये तो सूखे के मौसम में भी अमेज़न के उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिकी तंत्र में इतने बड़े स्तर पर आग लगने को साधारण प्राकृतिक घटना नहीं कहा जा सकता है.
अमेज़न आग से पड़ रहा स्थानीय एवं वैश्विक दुष्प्रभाव
1. अमेज़न के वायुमंडल में निरंतर आग से निकलने वाला धुंआ फैल रहा है, यूरोपीय संघ के कॉपर्निकस एटमास्फ़ियर मानिटरिंग सर्विस (कैम्स) के अनुसार इस आग से उत्पन्न धुआं अमेज़न वनों से 2000 मील दूर साओ पाउलो शहर तक भी देखा जा रहा है, साथ ही यह अटलांटिक कोस्ट तक भी बढ़ रहा है.
2. जनवरी से अगस्त तक अमेज़न वनों में लगने वाली आग से अबतक लगभग 230 मेगाटन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हो रही है.
3. विश्व मौसम संगठन के अनुसार इस प्रकार अनियंत्रित अग्निपात से कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर भी खतरनाक रूप से वृद्धि करेगा. वहीँ कैम्स ने अपने नक़्शे में दिखाया है कि कार्बन मोनो ऑक्साइड तटीय क्षेत्रों में निरंतर आगे बढ़ रही है.
4. वहीँ नासा ने भी चेतावनी दी है कि इस आग से धरती पर कार्बन का संतुलन बिगड़ जाएगा, जिससे ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव ओर अधिक बढ़ेगा.
क्यों जरूरी है चिंता करना?
अमेज़न वर्षा वनों में आग लगना, उनका बड़े पैमाने पर विनाश शायद अभी भी हमारे लिए उतना अहम नहीं हो, क्योंकि तकरीबन 9,188 मील दूर स्थित जंगलों के उजड़ जाने से हमे भला क्यों फर्क पड़ेगा? हम में से कितने लोग तो यह भी नहीं जानते होंगे कि जलवायु में हो रहे निरंतर परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण हमारे भारत के ही बहुमूल्य जंगल कैसे वर्ष दर वर्ष राख हो रहे हैं.
पर्यावरण की इस लगातार हो रही क्षति के चलते हाल ही में आइसलैंड के एक पुराना ग्लेशियर “ओके” समाप्त हो गया, जिसकी याद में शोकसभा का आयोजन कर हम मनुष्यों को एक बड़ी सीख दी गयी कि एक दिन शायद प्रकृति के अद्भुत उपहार नदियां, ग्लेशियर, पर्वत, हरियाली, वन-उपवन सभी ऐसे ही समाप्त हो जायेंगे और सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद रोबर्ट स्वान के कहे अनुसार हम सभी सोचते रह जायेंगे कि....
यकीन मानिये यही सोच हमारी स्वर्ग समान धरती के लिए सबसे बड़ा खतरा है और हमे इसी सोच को बदलना होगा, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हम सभी कृत्रिम ऑक्सीजन के मास्क पर आश्रित किसी चलते फिरते आईसीयू पेशेंट की भांति सड़कों या घरों में नजर आएंगे. इसलिए धरती को बेतहाशा धधकने से रोकना बेहद जरूरी है.