कृषि समृद्धि का उत्सव बैसाखी - जानिए इसका इतिहास और महत्व
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Deepika Chaudhary 0
भारतवर्ष विविधता से भरा एक देश हैं, जहां विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के एक्तव के अनोखे दर्शन होते हैं. साथ ही विविधता से भरे उत्सवों से सजी हमारी भूमि हमें स्मरण कराती है कि हम अनेक होकर भी एक हैं. अनेकता में एकता का ऐसा ही प्रतीक उत्सव है “बैसाखी”, जो हम प्रत्येक वर्ष 13 या 14 अप्रैल को मनाते हैं. खेतों में रबी की पकी हुई फसल जब सोने सी की आभा लिए चमकती है, तो हमारे किसान भाइयों के चेहरों पर भी खुशियों की लहर दमक उठती है.
दरअसल 13 अप्रैल 1699 के दिन ही सिख पंथ के 10वें गुरू श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसके साथ ही इस दिन को पर्व के तौर पर मनाने की शुरुआत की गई थी। ना केवल पंजाब में बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी बैसाखी की धूम रहती है। असम में बिहू, केरल में विशु, बंगाल में नबा इत्यादि विविध नामों के साथ यह त्यौहार मनाया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब बैसाखी मनाई जाती है, इस समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है, जिसके चलते वैशाख माह के पहले दिन को बैसाखी के रूप में मनाया जाता है। अक्सर 13 या 14 अप्रैल को मनाए जाने वाले इस पर्व के मूल में कृषि परंपरा का सम्मान छिपा हुआ है। अप्रैल माह में जब धूप प्रखर हो जाती है और सर्दियां पूरी तरह से समाप्त हो जाती है, तो इस कीदरती बदलाव के चलते खेतों में रबी की फसल पक जाती है, जो किसानों के लिए किसी पर्व से कम नहीं होता।
देश भर में विविध विविध नामों से मनाया जाने वाला यह त्यौहार बेहद विशेष है क्योंकि पर्व कोई भी हो, वह हमें आपस में जुड़ना सिखाता है, आपसी प्रेम और सद्भावना के मार्ग पर चलते हुए आत्मउन्नति के साथ साथ सामाजिक प्रगति की भी सीख देता है. आप सभी को बैसाखी के सुन्दर पर्व की हार्दिक बधाइयाँ. यह त्यौहार आप सभी देशवासियों के जीवन में नूतनता का संचार करे और आप सभी की बैसाखी शुभ और मंगलमय हो.