युगदृष्टा बाबासाहब अंबेडकर की 131वीं जयंती - जानें राष्ट्रनिर्माता से जुडें कुछ अहम तथ्य
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समाधान पायें
कार्य समूह पारदर्शिता एवं कुशलता के साथ समाधान की ओर क़दम बढ़ाएगा, साथ में ही समाज में से ही कुछ भविष्य के अधिनायकों को उभरने में सहायता करेगा।
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समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
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Deepika Chaudhary 12
भारतीय संविधान के शिल्पकार डॉ. भीमराव अंबेडकर जिन्हें बाबा साहेब के नाम से भी जाना जाता है, आज अर्थात 14 अप्रैल का दिन उनकी जन्म जयंती के रूप में जाना जाता है. अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र व सामाजिक कार्यों में समर्पित करने वाले बाबासाहेब जी की जयंती के शुभ अवसर को सम्पूर्ण भारत में प्रेम व उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन डॉ. भीमराव अंबेडकर जी के अनुयायियों द्वारा विभिन्न स्थानों पर जुलुस व झांकियों का आयोजन भी किया जाता है. उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है तथा लोगों को एकता व समानता का सन्देश देकर सभी के हृदय में अपना अनमोल स्थान कायम किया हुआ है.
अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से डॉ भीमराव अंबेडकर ने मास्टर ऑफ आर्टस् करने के साथ साथ पीएचडी की मानद उपाधि भी प्राप्त की थी. भारतीय अर्थव्यवस्था में गहन अध्ययन करते हुए उन्होंने "ऐंशिएंट इंडियन कॉमर्स", " दि प्राब्लम ऑफ रूपी" और "नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया" के नाम से थीसिस की थी. उनकी थीसिस दि प्रॉब्लम ऑफ रूपी आगे चलकर पुस्तक के तौर पर प्रकाशित हुयी और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का आधार भी बनी. बाबासाहब ने राष्ट्र निर्माण के जिस मार्ग पर कदम बढ़ाया, उस मार्ग पर कानूनी पेचीदिगियां कदम-कदम पर उन्हें परेशान करने लगी, तत्कालीन व्यवस्था को देखते हुए सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए भी बैरिस्टर बनना एक जरूरी योग्यता थी और बाबासाहब ने इस योग्यता को भी लंदन जाकर प्राप्त किया.
भारतरत्न से सम्मानित बाबा साहब ने भारत को स्वतंत्रता, समानता और आर्थिक मजबूती के रूप में जो उपहार दिया है, वह अविस्मरणीय है. भारतीय संविधान का निर्माण करना, सभी धर्मों, जातियों, वर्गों से दूर हटकर अपने सिद्धांतों व आदर्शों से सभी के लिए समानता का मार्ग चुनना, यह सभी किसी भी विकसित राष्ट्र की नींव होते हैं. बाबा साहब के आदर्श उक्त समय जितने प्रासंगिक थे, आज भी उनका मूल्य वही है.