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हिंडन को जाने: भाग-1 - हिंडन की देह

Hindon River- A Research on a dying Tributary of Yamuna

Hindon River- A Research on a dying Tributary of Yamuna Hindon River Yatra 2004 - 2012

ByArun Tiwari Arun Tiwari   226

किसी जल प्रवाह को जानना, उसकी देह को जानने जैसा ही है। जिस देह के बारे में हम यहां लिख रहे हैं, उसे

किसी जल प्रवाह को जानना, उसकी देह को जानने जैसा ही है। जिस देह के बारे में हम यहां लिख रहे हैं, उसे कभी किसी ने हरनेन्द्री कहा, तो कभी किसी ने हरिनन्दी... हरनन्दी यानी शिव का नन्दी। इसीलिए हरनन्दी को नदी नहीं, नद्य कहना उचित होगा। 

यदि नदी या नद्य के उद्गम को उसका चरण मानें, तो हरनन्दी के चरण वहां स्थित हैं, जहां कभी स्वर्ग धरती से मिलने आया करता था और धरती की संतानें परम पिता से मिलने सशरीर स्वर्ग जाया करते थे: हरिद्वार और सहारनपुर।  एक शैव क्षेत्र का प्रवेश द्वार, तो दूसरा शिव के नंदी का आसन। ये ही क्षेत्र आज उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के संधिक्षेत्र हैं। 

इसी बीच काल ने करवट ली। नई पढाई ने दस्तक दी। भारत... इंडिया हुआ और हरनन्दी... हिंडन। पहले नाम बदला और कालांतर में देह ही बदल गई।

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  आइये जाने - हिंडन की देह: उद्गम से संगम तक।

   हिंडन उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके से निकलने वाली सबसे प्रमुख नद्य है। इसका उद्गम गंगा-यमुना के    दोआब जिला सहारनपुर के उत्तर-पूर्वी इलाके के गांव-’पुर का टांडा’ के निकट से होता है। यहीं से हिंडन की     देह उत्तर से दक्षिण तक विस्तार पाती है। यह भूभाग समुद्र तल से 350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित  कालीवाला पहाङियों का निचला उच्च मैदानी हिस्सा है। इस्लाम नगर और औरंगाबाद इस इलाके के अन्य     प्रमुख गांव हैं। हिंडन के उद्गम पर कटावयुक्त कई ऐसी जलसंरचनायें हैं, जहां संचित वर्षाजल आगे चलकर   हिंडन की 260 किलोमीटर लंबी देह का निर्माण करती हैं। 

   हिंडन की देहयष्टि:

   हिंडन को उसकी सहायक धाराओं के साथ कभी नक्शे पर देखिए। पेङ की एक मुख्य आधार शाखा से निकली   टेढी-मेढी लंबी उपशाखा जैसी दिखता है हिंडन का प्रवाह।  बायें तीन छोटी-पतली और एक मोटी लंबी टहनी। दायें ओर एक लंबी टहनी। नीचे आधार बनी एक मोटी टहनी। ये सभी टहनियां हिंडन की सहायक धारायें हैं। आधार टहनी यमुना है। 

खासकर सहारनपुर और मुजफ्फरनगर के इलाके में आसपास फैले मशहूर आम के बागीचों के चित्र भी इस टहनीनुमा नक्शे में जोङ दिए जायें, तो टहनी आज भी हरी-भरी हो उठती है। 

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कुछ भी कहो, हिंडन का चित्र अलग ही है। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत के संगी साथियों के साथ गाजियाबाद जनपद से गुजरते हुए हिंडन की देह अंततः गौतमबुद्धनगर के तितवारा गांव के दक्षिण  में यमुना नदी में विलीन हो जाती है।

हिंडन-यमुना का संगम समुद्र तल से 195 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। उद्गम से संगम के बीच 155 मीटर ऊंचाई का अंतर हिंडन की देहयष्टि को बताता है। 155 मीटर को 260 किलोमीटर की लंबाई से भाग दीजिए। हिंडन का औसत ढाल निकलता है - 60 सेंटिमीटर प्रति कि.मी। औसत ढाल बहुत अधिक नहीं है। यही कम औसत हिंडन की देह को उम्र से पहले ही बुजुर्ग बना देता है। एक समय के बाद ऐसी देह का ख्याल रखना जरूरी हो जाता है। 

कोई हिंडन का ख्याल रखे, न रखे.. हिंडन को अपने दायित्व का ख्याल हमेशा रहता है। 

इस पूरी यात्रा के दौरान हिंडन पांच हजार वर्ग किलोमीटर का विशाल खादर क्षेत्र रचती है। हिंडन का परमार्थ तो देखिए! वह यमुना में विलीन होते-होते भी हिंडन-यमुना संगम पर गांव अहा-चुहारपुर और गढी समसपुर के शानदार खादर बनाना नहीं भूलती। 

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और तो और हिंडन कट के नाम से एक नहर बनकर अपने ही खादर को सींचने भी खुद ही निकल पङती है। हिंडन के इसी परमार्थ के कारण कभी हिंडन पंचतीर्थी हुई:

लाक्षागृह (बरनावा), पुरा महादेव (पुरा), वाल्मीकि आश्रम (बालैनी), महादेव मंदिर (सुराना गांव) और गायत्री शक्तिपीठ (श्मशान घाट, मोहननगर)। 

हिंडन के इन पंचतीर्थों पर आकर आज भी हिंडन का समाज माथा नवाता है। यह बात और है कि हिंडन के समाज अब हिंडन के हालचाल लेना, उसकी चिंता करना तो दूर, हिंडन से बात करना भी भूल गया है। हमारा इन पंचतीर्थों को माथा नवाना दिखावटी हो गया है। 

यह मैं नहीं कहता; हिंडन की देह कहती है।  

लेखक -श्री अरुण तिवारी 

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