
पर्यावरण के विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों में धरती के अस्तित्व को संकटग्रस्त कर दिया है। यदि इस पर प्रभावी नियंत्रण न किया गया तो आगामी पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित नही है। एकांगी भौतिक विकास हमारे लिये तब तक आत्मघाती है जब तक वह शुद्ध प्राण वायु एवं पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं करता। भौतिक विकास की पराकाष्ठा तक पहुॅंचकर प्राण वायु एवं पेय जल के अभाव में घुट- घुट कर मरने की कल्पना बड़ी भयावह है। प्रदूषण की समस्या मानवताघाती है।
इस सम्बन्ध में कुछ सुझाव निम्न प्रकार हैं-
1. कृषि वानिकी-
कृषि वानिकी का अर्थ है कि एक ही भूमि पर कृषि फसल एवं वृक्ष प्रजातियांे को विधिपूर्वक रोपित कर दोनों प्रकार की उपज लेकर आय बढ़ाना। चूॅंकि संरक्षित वन क्षेत्र सीमित हैं एवं केवल उन्हीं के सहारे वनीकरण के निर्धारित लक्ष्य को नहीं प्राप्त किया जा सकता है तथा कृषि भूमि को भी वनीकरण हेतु लिया जाना संभव नही है। अतः खेती की भूमि में खेती के साथ-साथ वनीकरण किया जाना ही एकमात्र उपाय है जिससे किसानों को कोई क्षति हुये बिना वनावरण को बढ़ाया जा सकता है। वनावरण को बढ़ाने के अतिरिक्त कृषि वानिकी से किसानों को प्रत्यक्ष लाभ है।
2. प्रदूषण को दूर करने वाले पौधों का रोपण-
(प) कुछ पौधे वायु प्रदूषण प्रतिरोधी या सहिष्णु होते हैं। ये विभिन्न प्रकार के प्रदूषक तत्वों के हानिकारक गुणों को कम करते हैं तथा पर्यावरण शुद्धिकरण में सहायक होते हैं। घातक प्रदूषण को दूर करने हेतु इन पौधों का रोपण अत्यन्त उपयोगी है-
क्रम सं0
|
प्रदूषक
|
पौधे जो प्रदूषण कम करते हैं
|
1.
| सल्फर डाई आक्साइड
|
सीरस, नीम, अरू, पीपल व अर्जुन आदि।
|
2.
|
ओजोन
|
एसर प्लेटनाएडस, एसर नैगुण्डा तथा क्वेरकस रुबरा।
|
3.
| नाइट्रोजन आक्साइड | फेगस ओरिएटेलिस, एसर नैगुण्डा तथा क्वेरकस रुबरा।
|
4.
|
परआक्सी एसिटिल नाइट्रेट
|
एसर प्लेटनाएडस, एसर नैगुण्डा, क्वेरकस रुबरा, क्वेरकस पालुसटिस तथा रौलिक्स प्रजाति।
|
5.
|
लेड
|
कैसियस सियामिका, जिजिफस मैरिटिआना, बै्रसिका जन्सिया, हाइड्रोडिक्टीयान, रेटिकुलेटम
|
6.
|
प्लोराइड
|
अरू, जूनिपेरस प्रजाति, स्पाइरोडेला पालिराइजा
|
7.
|
बेन्जीन
|
हेडरा हेलिक्स, डेªसिना, स्पेथिफिलम, फाइकास कोरिका, सेन्सेविरिया
|
8.
|
फारमैल्डिहाइड
| यूर्फोबिया पुल्वेरिया, फाइकोण्डान, क्लोरोफिल्म, सेन्सतिरिया आदि
|
9.
|
क्रोमियम
| सिरपस लाकेस्ट्रीस, निम्फीय अल्वा, बाकीया मोनीपरी, फ्रोगगाइटिस करको |
(पप) कुछ पौधे मृदा प्रदूषण दूर करने में अत्यन्त प्रभावी होते हैं। जहाॅं पर भूमि कटाव की समस्या अधिक पायी जाती है वहाॅं पर कुछ प्रजातियां उपयोगी होती हैं जो न केवल मृदा को जड़ों से जकड़ लेती हैं बल्कि साथ ही साथ पानी के बहाव को भी कम करती हैं। इस प्रकार की मुख्य प्रजातियां निम्न हैं-
- सदाबहार (आइपोसिया)
- वाइटेक्स निगन्ड
- पेनीसेटम परपूरियम
- बिल्सा (सैलिक्स टेट्रास्पर्मा)
- धौला (वुडलेन्डिया फ्रूटीकोसा)
- झींगन
- उतीस (एलनस नेपालेंसिस)
- वुडलेन्डिया एक्सर्टा
- मसूर (कोरेरिया नेपालें-सिस)
- टेªमा ओरियन्टैलिस
- चिलकन (टेªमा पाली टैरिया)
- तुंग (रहस कोटाइनस)
- चमेली (जैसमिनम हयूमाइल)
- बाॅंसा (एढ़ाटोडा वैसीका)
- पतंगी (पाइरस पैशिया)
जहाॅं पर भूमि उसरीली हो गयी है तथा ची मान 9 से अधिक हो गया है, वहाॅं निम्न प्रजातियाॅं सफलतापूर्वक उगायी जा सकती हैं-
- विलायती बबूल
- अर्जुन
- ढाक
- काला सिरस
- नीम
- महुआ
- आकाशमोनी
नदियों के किनारे वाली भूमि जहाॅं वर्षा ऋतु में बाढ़ आ जाती है, निम्न प्रजातियां उपयोगी हैं-
- सफेद सिरस
- पेपर मलबरी
- शीशम
- खैर
- झाऊ
- वाइटेक्स निगण्डु
वे क्षेत्र जहाॅं पानी कुछ महीनों तक जमा रहता है, निम्न प्रजातियां उपयोगी हैं-
- अर्जुन
- जामुन
- बैंसी
- बैरिगटोनिया
- गुतेल
- सफेद सिरस
- ढाक
3. जनसामान्य को वनीकरण से जोड़ना-वनमहोत्सव कार्यक्रम-
वनविस्तार की आवश्यकता निर्विवाद है। वांछित एवं वास्तविक वन क्षेत्र की कमी को पूरा करने के लिये भारत सरकार एवं राज्य सरकारें लगातार प्रयासरत हैं किन्तु केवल राजकीय संसाधनों से इस वृहद कार्य का संपादन करना संभव नही है। इन परिस्थितियों में एक ही विकल्प है कि जहाॅं भी संभव हो खाली पड़ी भूमि में वृक्ष लगाये जायें एवं उनकी सुरक्षा की जाये।
इसी परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय वन नीति 1988 में वानिकी कार्य को एक जन आन्दोलन के रूप में चलाये जाने का संकल्प लिया गया है।
जन सामान्य मंे चेतना जागृत कर वृक्षारोपण अभियान में उनका सहयोग प्राप्त करने की दृष्टि से श्री के0 एम0 मुंशी, तत्कालीन् खाद्य मंत्री भारत सरकार ने वर्ष 1950 में वृक्षारोपण कार्यक्रम को वन महोत्सव के रूप में आरम्भ करने का आहवान किया तथा ‘‘वृक्ष से जल, जल से अन्न, अन्न से जीवन’’ का मूल मंत्र दिया। इसका परिणाम बहुत ही उत्साहवर्धक रहा है तथा तबसे प्रत्येक वर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में वन महोत्सव मनाया जाता है।
वन महोत्सव का मुख्य उद्देश्य जनता में प्रकृति के प्रति जागरूकता एवं प्रेम उत्पन्न करना है। वन महोत्सव प्रत्येक वर्ष 01 से 07 जुलाई तक औपचारिक शुभारम्भ से पूरे वर्षाकाल में निरन्तर चलने वाले एक कार्यक्रम के रूप मे मनाया जाता है। जुलाई के प्रथम सप्ताह में मानसून के आगमन के साथ चारों ओर वर्षा होने लगती है तथा मिट्टी में नमी आ जाती है। यही समय वृहद वृक्षारोपण हेतु वन महोत्सव के लिये सर्वाधिक उपयुक्त होता है।
हमारा यह प्रयास होना चाहिये कि वन महोत्सव केवल एक प्रतीकात्मक राजकीय समारोह मात्र न रह जाये। जिस भावना का उद्देश्य इसमें निहित है उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि की आवश्यकता है। पूरे समुदाय को इसका भागीदार बनाकर जन-जन द्वारा सामुदायिक भूमि, राजकीय कार्यालयों, शिक्षण संस्थाओं, नगर पालिका आदि क्षेत्रों में समारोह आयोजित कर इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये।
4. शहरी वन-
शहरी वानिकी उन लोगों से सम्बन्धित होती है जो शहरों एवं कस्बों आदि में रहते हैं। शहरी वन से तात्पर्य शहरों में वन जैसा वातावरण उत्पन्न किया जाना है। शहरी लोग दिन- प्रतिदिन के कार्यों से त्रस्त हो जाते हैं तथा स्वच्छ वायु हेतु प्राकृतिक वास की शरण लेते हैं। वस्तुतः शहरी वन शहरों के फेफडे़ का कार्य करते हैं।
5. वृक्षों के धार्मिक महत्व को उभारना-
हमारे देश की जनता मूलतः धार्मिक है। यदि हमें किसी विचारधारा को जनमानस में हृदयंगम कराना है तो धर्म के माध्यम से आसानी से कराया जा सकता है। सभी धर्मों में वृक्षों की महत्ता स्थापित की गयी है।
By
Mahendra Pratap Singh 1319
पर्यावरण के विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों में धरती के अस्तित्व को संकटग्रस्त कर दिया है। यदि इस पर प्रभावी नियंत्रण न किया गया तो आगामी पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित नही है। एकांगी भौतिक विकास हमारे लिये तब तक आत्मघाती है जब तक वह शुद्ध प्राण वायु एवं पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं करता। भौतिक विकास की पराकाष्ठा तक पहुॅंचकर प्राण वायु एवं पेय जल के अभाव में घुट- घुट कर मरने की कल्पना बड़ी भयावह है। प्रदूषण की समस्या मानवताघाती है।
इस सम्बन्ध में कुछ सुझाव निम्न प्रकार हैं-
1. कृषि वानिकी-
कृषि वानिकी का अर्थ है कि एक ही भूमि पर कृषि फसल एवं वृक्ष प्रजातियांे को विधिपूर्वक रोपित कर दोनों प्रकार की उपज लेकर आय बढ़ाना। चूॅंकि संरक्षित वन क्षेत्र सीमित हैं एवं केवल उन्हीं के सहारे वनीकरण के निर्धारित लक्ष्य को नहीं प्राप्त किया जा सकता है तथा कृषि भूमि को भी वनीकरण हेतु लिया जाना संभव नही है। अतः खेती की भूमि में खेती के साथ-साथ वनीकरण किया जाना ही एकमात्र उपाय है जिससे किसानों को कोई क्षति हुये बिना वनावरण को बढ़ाया जा सकता है। वनावरण को बढ़ाने के अतिरिक्त कृषि वानिकी से किसानों को प्रत्यक्ष लाभ है।
2. प्रदूषण को दूर करने वाले पौधों का रोपण-
(प) कुछ पौधे वायु प्रदूषण प्रतिरोधी या सहिष्णु होते हैं। ये विभिन्न प्रकार के प्रदूषक तत्वों के हानिकारक गुणों को कम करते हैं तथा पर्यावरण शुद्धिकरण में सहायक होते हैं। घातक प्रदूषण को दूर करने हेतु इन पौधों का रोपण अत्यन्त उपयोगी है-
प्रदूषक
पौधे जो प्रदूषण कम करते हैं
1.
सीरस, नीम, अरू, पीपल व अर्जुन आदि।
2.
ओजोन
एसर प्लेटनाएडस, एसर नैगुण्डा तथा क्वेरकस रुबरा।
3.
फेगस ओरिएटेलिस, एसर नैगुण्डा तथा क्वेरकस रुबरा।
4.
परआक्सी एसिटिल नाइट्रेट
एसर प्लेटनाएडस, एसर नैगुण्डा, क्वेरकस रुबरा, क्वेरकस पालुसटिस तथा रौलिक्स प्रजाति।
5.
लेड
कैसियस सियामिका, जिजिफस मैरिटिआना, बै्रसिका जन्सिया, हाइड्रोडिक्टीयान, रेटिकुलेटम
6.
प्लोराइड
अरू, जूनिपेरस प्रजाति, स्पाइरोडेला पालिराइजा
7.
बेन्जीन
हेडरा हेलिक्स, डेªसिना, स्पेथिफिलम, फाइकास कोरिका, सेन्सेविरिया
8.
फारमैल्डिहाइड
9.
क्रोमियम